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दल चलत लखन हल हलत धरन

dal chalat lakhan hal halat dharan

गजधर

गजधर

दल चलत लखन हल हलत धरन

गजधर

और अधिकगजधर

    दल चलत लखन हल हलत धरन, जनक तनय कर कष्ट हरन।

    ददकत हृदय नगर नर छरकत, चलत नयन जल लगत डरन।

    अत दल तरजत जन घन गरजत, डरत नगर नर घरन-घरन।

    गजधर कहत रटत हर-हर-हर, अधर कहत उर गहत चरन॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : बुंदेलखंड की फागें (पृष्ठ 108)
    • संपादक : अयोध्या प्रसाद गुप्त 'कुमुद'
    • रचनाकार : गजधर
    • प्रकाशन : उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी
    • संस्करण : 2000

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