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विश्वेश्वरैया

vishveshvaraiya

आर.के. मूर्ति

आर.के. मूर्ति

विश्वेश्वरैया

आर.के. मूर्ति

और अधिकआर.के. मूर्ति

    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा सातवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    आकाश में अँधेरा छाया हुआ था। बादल आकाश में मँडराते हुए एक-दूसरे से टकरा जाते तो बिजली चमक उठती और गर्जन होता। फिर मूसलाधार वर्षा होने लगी। कुछ ही देर में गड्ढे और नालियाँ पानी से भर गई।

    छः वर्षीय विश्वेश्वरैया अपने घर के बरामदे में खड़ा इस दृश्य को निहार रहा था। गली में पंक्तियों में खड़े पेड़ बारिश में धुल जाने के कारण साफ़ सुंदर दिखाई दे रहे थे। पत्तियों और टहनियों से पानी की बूँदें टप-टप गिर रही थीं। थोड़ी ही दूरी पर हरे-भरे धान के खेत लहलहा रहे थे।

    जहाँ विश्वेश्वरैया खड़ा था वहीं निकट की नाली का पानी उमड़-घुमड़ रहा था। उसमें भँवर भी उठ रहे थे। उसने एक जलप्रपात का रूप धारण कर लिया था। वह एक बहुत ही बड़े पत्थर को अपने साथ बहाकर ले जा रहा था जिससे उसकी शक्ति का प्रदर्शन होता था। विश्वेश्वरैया ने हवा और सूर्य की शक्ति को भी देखा था। सामूहिक रूप से वे प्रकृति की असीम शक्ति की ओर संकेत कर रहे थे। ‘प्रकृति शक्ति है। मुझे प्रकृति के बारे में सब कुछ जानना चाहिए’ वह छोटा-सा लड़का बुदबुदाया।

    फिर उसने थोड़ी दूरी पर, निर्भीकता से मूसलाधार वर्षा में खड़ी एक आकृति को ताड़पत्र की छतरी हाथ में लिए देखा। वह उसे तुरंत पहचान गया। उसके कपड़े फटे हुए थे। वह कमज़ोर और भूखी लग रही थी। वह एक झोंपड़ी में रहती थी। उसके बच्चे कभी स्कूल नहीं जाते। वह ग़रीब थी। विश्वेश्वरैया ने सोचा ‘वह इतनी ग़रीब क्यों है?’

    उन्होंने बड़ी गंभीरता से प्रकृति और ग़रीबी के कारण के बारे में जानने का प्रयास किया।

    वह परिवार के बड़ों से इन बातों का उत्तर जानना चाहते थे। वह अपने अध्यापकों से भी जिरह करते। वह उनसे प्रकृति के बारे में पूछते—ऊर्जा के कौन से प्रचलित स्रोत हैं? कैसे इस ऊर्जा को पकड़कर इस्तेमाल में लाया जा सकता है?

    वह यह भी पूछते कि आख़िर इतने लोग ग़रीब क्यों हैं? नौकरानी फटी साड़ी क्यों पहनती है? वह झोंपड़ी में क्यों रहती है? क्या उसे अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहिए?

    धीरे-धीरे इस लड़के को प्रकृति और जीवन के बारे में अंतर्दृष्टि प्राप्त होने लगी। उन्हें महसूस हुआ कि ज्ञान असीमित है। उसे बिना रुके, सीखते रहना होगा। तभी उन्हें उन प्रश्नों के उत्तर मिल सकते हैं जो उन्होंने उठाए थे। उन्होंने निश्चय किया कि वह जीवनपर्यंत तक छात्र बने रहेंगे क्योंकि बहुत कुछ सीखना बाक़ी है। इसी संकल्प में उनकी महानता की कुंजी थी।

    मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर (जो अब कर्नाटक में है) के मुद्देनाहल्ली नामक स्थान पर 15 सितंबर 1861 को हुआ था। उनके पिता वैद्य थे। वर्षों पहले उनके पूर्वज आंध्र प्रदेश के मोक्षगुंडम से यहाँ आए और मैसूर में बस गए थे।

    दो वर्ष की आयु से ही उनका परिचय रामायण, महाभारत और पंचतंत्र की कहानियों से हो गया था। ये कहानियाँ हर रात घर की वृद्ध महिलाएँ उन्हें सुनाती थीं। कहानियाँ शिक्षाप्रद मनोरंजक थीं। इन कहानियों से विश्वेश्वरैया ने ईमानदारी, दया और अनुशासन जैसे मूल मानवीय मूल्यों को आत्मसात किया। विश्वेश्वरैया चिकबल्लापुर के मिडिल हाईस्कूल में पढ़े। जब उन्हें ‘गाड सेव किंग’ (ईश्वर राजा को सुरक्षित रखे) वाला गीत गाने को कहा गया तो उन्हें पता चला कि भारत एक ब्रिटिश उपनिवेश है, अपने मामलों में भी भारतीयों को कुछ कहने का अधिकार था। भारत की अधिकांश संपत्ति विदेशियों ने हड़प ली थी।

    क्या उनके घर में काम करने वाली नौकरानी विदेशी शासन के कारण ग़रीब है? यह प्रश्न विश्वेश्वरैया के मस्तिष्क में उमड़ता घुमड़ता रहा। राष्ट्रीयता की चिंगारी जल उठी थी और उनके जीवन में यह अंत समय तक जलती रही। विश्वेश्वरैया जब केवल चौदह वर्ष के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई। क्या वह अपनी पढ़ाई जारी रखें? इस प्रश्न पर तब विचार-विमर्श हुआ जब उन्होंने अपनी माँ से कहा, “अम्मा, क्या मैं बंगलौर जा सकता हूँ? मैं वहाँ मामा रामैया के यहाँ रह सकता हूँ। वहाँ मैं कॉलेज में प्रवेश ले लूँगा।”

    ‘पर बेटा...तुम्हारे मामा अमीर नहीं है। तुम उन पर बोझ क्यों बनना चाहते हो?’ उनकी माँ ने तर्क किया।

    “अम्मा...मैं अपनी ज़रूरतों के लिए स्वयं कमाऊँगा। मैं बच्चों को ट्यूशन पढ़ा दूँगा। अपनी फ़ीस देने और पुस्तकें ख़रीदने के लिए मैं काफ़ी धन कमा लूँगा। मेरे ख़्याल से मेरे पास कुछ पैसे बच भी जाएँगे, जिन्हें मैं मामा को दे दूँगा,” विश्वेश्वरैया ने समझाया।

    उनके पास हर प्रश्न का उत्तर था—समाधान ढूँढ़ने की क्षमता उनके पूरे जीवन में लगातार विकसित होती रही और इस कारण वह एक व्यावहारिक व्यक्ति बन गए। यह उनके जीवन का सार था और उनका संदेश था पहले जानो, फिर करो। बड़े होकर यही विश्वेश्वरैया एक महान इंजीनियर बने।

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    आर.के. मूर्ति

    आर.के. मूर्ति

    स्रोत :
    • पुस्तक : दूर्वा (भाग-2) (पृष्ठ 51)
    • रचनाकार : आर.के.मूर्ति
    • प्रकाशन : एनसीईआरटी
    • संस्करण : 2022
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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