सुबह ही-सुबह इधर अख़बार वाले ने अख़बार फेंक़ा उधर ख़्वाजा साहब ने दरवाज़ा खटखटाया। “करामत मियाँ, अख़बार आ गया...।” “जी, आ गया है। आइए, तशरीफ़ रखिए।” यह मेरे नाश्ता करने और दफ़्तर जाने का वक़्त होता है। हमारा ड्राइंग और डाइनिंग कम्बाइंड है।
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जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।
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