मैं अपने दादाजी के साथ रहती हूँ। उन्हें मैं ‘थाथा’ कहती हूँ। लेकिन जब उन पर बहुत प्यार आता है, तो मैं उन्हें ‘थाथू’ बुलाती हूँ। कभी-कभी थाथू मुझे सिनेमा दिखाने बाहर ले जाते हैं। मैं उनकी गोदी में बैठकर हॉर्न बजाती हूँ—पॉम! पॉम! रास्ते की सब
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जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
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