आपके मानने या न मानने से
सच को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता
इन दुखते हुए अंगों पर सच न एक जून भुगती है
और हर सच जून भुगतने के बाद
युग में बदल जाता है
और यह युग अब खेतों और मिलों में ही नहीं
सेना की पाँतों में भी विचर रहा है
कल जब यह युग
लाल क़िले पर परिणाम का ताज पहने
समय की सलामी लेगा
तो आपको सच के असली अर्थ समझ आएँगे
अब हमारी उपद्रवी जाति को
चाहे इस युग की फ़ितरत कह लें
यह कह देना
कि झोंपड़ियों में फैला सच
कोई चीज़ नहीं
कितना सच है?
आपके मानने या न मानने से
सच को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।
- पुस्तक : लहू है कि तब भी गाता है (पृष्ठ 161)
- संपादक : चमनलाल, कात्यायनी
- रचनाकार : पाश
- प्रकाशन : परिकल्पना प्रकाशन
- संस्करण : 2004
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