आप लोहे की कार का आनंद लेते हो
मेरे पास लोहे की बंदूक़ है
मैंने लोहा खा गै
आप लोहे की बात करते हो
लोहा जब पिघलता है
तो भाप नहीं निकलती
जब कुठाली उठाने वालों के दिलों से
भाप निकलती है
तो लोहा पिघल जाता है
पिघले हुए लोहे को
किसी भी आकार में
ढाला जा सकता है
कुठाली में देश की तक़दीर ढली होती है
यह मेरी बंदूक़
आपके बैंकों के सेफ़;
और पहाड़ों को उलटाने वाली मशीनें,
सब लोहे के हैं
शहर से वीराने तक हर फ़र्क़
बहन से वेश्या तक हर एहसास
मालिक से मुलाज़िम तक हर रिश्ता
बिल से क़ानून तक हर सफ़र
शोषणतंत्र से इंक़लाब तक हर इतिहास
जंगल, कोठरियों व झोंपड़ियों से लेकर इंटैरोगेशन तक
हर मुक़ाम सब लोहे के हैं
लोहे ने बड़ी देर इतंज़ार किया है
कि लोहे पर निर्भर लोग
लोहे की पत्तियाँ खाकर
ख़ुदकुशी करना छोड़ दें
मशीनों में फँसकर फूस की तरह उड़ने वाले
लावारिसों की बीवियाँ
लोहे की कुर्सियों पर बैठे वारिसों के पास
कपड़े तक ख़ुद उतारने के लिए मजबूर न हों
लेकिन आख़िर लोहे को
पिस्तौलों, बंदूक़ों और बमों की
शक्ल लेनी पड़ी है
आप लोहे की चमक में चुंधियाकर
अपनी बेटी को बीवी समझ सकते हैं,
(लेकिन) मैं लौहे की आँख से
दोस्तों के मुखौटे पहने दुश्मन
भी पहचान सकता हूँ
क्योंकि मैंने लोहा खाया है
आप लोहे की बात करते हो।
- पुस्तक : लहू है कि तब भी गाता है (पृष्ठ 162)
- संपादक : चमनलाल, कात्यायनी
- रचनाकार : पाश
- प्रकाशन : परिकल्पना प्रकाशन
- संस्करण : 2004
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