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स्याम कठोर न होहु

syam kathor na hohu

सहचरिशरण

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स्याम कठोर न होहु

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    स्याम कठोर होहु, हमारी बार कों।

    नैकु दया उर ल्याय, उदय करि प्यार कों॥

    ‘सहचरि सरन’ अनाथ, अकेलो जानिकैं।

    कियो चहत खल ख्वार बचाओ आनिकैं॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : ब्रजमाधुरीसार (पृष्ठ 246)
    • संपादक : वियोगी हरि
    • प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
    • संस्करण : 1939

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