सबसे पहले मैं एक व्यक्तिगत बात कह देना चाहता हूँ। राजकीय उत्तरदायित्वों को निभाने और कई अन्य आवश्यक कार्यों के करने में, मैं इतना व्यस्त रहता हूँ कि मेरे लिए यह संभव नहीं कि इस प्रकार के किसी विषय पर कोई विद्वत्तापूर्ण लेख लिख सकूँ। अतः रोमानी नाटक के संबंध में जो भी विचार मन में आए, मैंने उन्हें जल्दी से संकलित भरकर दिया है। परंतु यह आशा करता हूँ कि नीचे की पक्तियों में जो कुछ लिखा है वह बिल्कुल असंगत या अप्रासंगिक नहीं होगा।
रोमानी (Romantic) और श्रेण्य (classical) शब्दों के सही अर्थ क्या हैं, यह अँग्रेज़ी साहित्य का बड़ा ही विवादग्रस्त विषय है। प्रायः इन दो शब्दों को परस्पर विरोधी समझा जाता है परंतु इनमें से किसी की भी ठीक-ठीक परिभाषा करना ज़रा कठिन कार्य है। इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी हद तक श्रेण्य और रोमानी विरोधी शब्द हैं परंतु ये एक-दूसरे से इतने भिन्न भी नहीं हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि रोमानी शब्द 'रोमांस' से संबंधित है, उन अर्थों में जिनमें कि यह शब्द (रोमांस) मध्य-युग में रोमन साम्राज्य के सीमांत क्षेत्रों में प्रयुक्त होता था। भारत की प्राकृत भाषाओं की भाँति, रोम साम्राज्य के जनपदीय क्षेत्रों की भाषा की भी कुछ अपनी ही विशेषताएँ थीं। इन भाषाओं में जो गीत और कहानियाँ लिखी गई, उनमें श्रेण्य लेटिन भाषाओं की रचना की अपेक्षा अधिक स्वतंत्रता दिखाई देती है और उनमें शास्त्रीय नियमों का भी अधिक कठोरता से पालन किया गया।
साहित्य में 'रोमांस' शब्द इन रोमांस भाषाओं की कहानियों के लिए प्रयुक्त होता रहा है और उसमें प्रायः विदेशीयता या अनूठेपन की भावना निहित थी। इन कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इनमें प्रेम और पराक्रम के कार्यों का वर्णन होता था परंतु इनका घटना-चाल सुदूर प्रतीत होता था। ये कहानियाँ किसी विशेष श्रेणी की न थी, बल्कि इनका स्वरूप मिश्रित हुआ करता था क्योंकि उनमें किसी विशेष श्रेणी के नियमों का पालन नहीं किया जाता था। कामदी और त्रासदी के तत्त्व, तथा उत्कृष्ट कामदी व निम्न कामदी, सभी का एक ही कहानी में समावेश कर दिया जाता था। इन कहानियों में प्रायः लौकिक और अलौकिक तत्त्व भी एक साथ सन्निविष्ट रहते थे। रोमांस-जगत का सर्वोत्कृष्ट वर्णन शायद उन्नीसवीं शती के रोमानी कवियों की पक्तियों में मिलता है। उदाहरणार्थ, ये पंक्तियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं—
'पतंगे की तारे के लिए लालसा' (शेली)
'सुदूर परियों के देश में भीषण समुद्र के फेन पर जादू की खिड़कियों का खुलना' (कीट्स)
कालरिज ने अपनी 'कुबला खाँ' शीर्षक कविता में रोमांस-संसार के वातावरण का बड़ा ही सुंदर निदर्शन किया है। आजकल रोमांस शब्द लगभग प्रेम-कथा का पर्याय बन गया है। किन्हीं दो प्रेमियों की कहानी को अब रोमांस कहा जाने लगा है। यद्यपि रोमांस शब्द की लोक-प्रचलित व्याख्या पूर्णतया सत्य नहीं है, परंतु इतनी बात अवश्य है कि हम यह आशा करते हैं कि किसी भी रोमानी कहानी में प्रेम का महत्त्वपूर्ण स्थान होगा।
अँग्रेज़ी साहित्य में रोमांस-कथाएँ सोलहवीं शती में लोकप्रिय हुई। लिली (Lily), ग्रीन (Green), लाज (Lodge), नैशे (Nashe) और दूसरे लेखकों ने रोमानी ढंग की कई गद्य-कथाएँ लिखी। फ़िर उन्हें नाटक के रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा और इससे एक नए प्रकार के नाटक हमारे सामने आए जिसे रोमानी कामदी का नाम दिया गया। परंतु यहाँ साथ ही यह बता देना उचित है कि नाटक रोमानी त्रासदी के ढंग का भी हो सकता है परंतु रोमांस की स्वाभाविक अभिव्यक्ति कामदी में ही होती है। एलिज़ाबेथ-कालीन इंग्लैंड में रोमानी कामदी, एक ऐसी प्रेम-कहानी का नाटकीय रूप होती थी जिसके वातावरण और पृष्ठभूमि, ग्राम्य या आरण्य होते थे। उसमें सच्चे प्रेम का पथ निर्विघ्न नहीं होता था और प्रेमियों को प्रायः अपने घरों से दूर स्थानों में भटकना पड़ता था परंतु अंत में प्रमियों का मिलन ही होता था। शेक्सपियर ने कई श्रेष्ठ रोमानी कामदियाँ लिखी हैं। इन्हें दो वर्गों में बाँटा जा सकता है : (1) मध्यकालीन कामदियों जैसे 'ए मिडसमर नाइट्स ड्रीम', 'दि मर्चेंड ऑफ़ वेनिस', 'एज़ यू लाइक इट', 'मच एडो भवाउट नथिंग' और 'ट्वैल्फ़्थ नाइट और (2) अंतिम रोमानी नाटक जैसे 'पैरीसलीज़', 'सिंबेलीन', 'दि विंटर्स और टेल और 'दि टैंपस्ट'।
पहले वर्ग के नाटकों में कामदीय तत्त्वों—चारित्र्य-विषमता, व्यंग्य और मानव की मूर्खता पर हँसने की प्रवृत्ति—का प्राधान्य है। दूसरे वर्ग के नाटकों में रोमांस के तत्त्व की प्रधानता है अर्थात् सुदूरता की भावना, प्रेम का भावुकतापूर्ण चित्रण और वियुक्त मित्रों और प्रेमियों का लंबे भ्रमणों और साहसिक कार्यों के पश्चात् पुनर्मिलन। इन सभी रोमानी नाटकों में हम ऐसा अनुभव करते हैं कि हम किसी दूसरे ही संसार में पहुँच गए हैं जहाँ की समस्याएँ और संघर्ष तो इस कर्मरत संसार के अनुरूप ही हैं परंतु कवि द्वारा निर्मित इस काव्य-लोक के नियमों के अनुसार सभी चीज़ों का अंत सदा ही अच्छा होना चाहिए। आधुनिक रुचि चरित्रों की ओर अधिक है इसलिए हमारी इच्छा होती है कि इन नाटकों में जो भावात्मक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं और जिस तत्परता से लोग एक-दूसरे से प्रेम करने लग जाते हैं या प्रेम करना छोड़ देते हैं और चरित्रों में इतनी शीघ्रता से जो परिवर्तन होते हैं, इन सब के मनोवैज्ञानिक कारण जानें। परंतु मेरे विचार में सत्य तो यह है कि वास्तविक संसार के कठोर नियम इस कल्पना-जगत पर लागू नहीं होते। रोमांस के संसार और वास्तविक संसार की कई बातें एक जैसी हैं। कई बातें तो दोनों में समान रूप से पाई जाती हैं और कई अन्य बातों में भी दोनों में सादृश्य है। परंतु यदि, अंत में, इसका विश्लेषण किया जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि यह अपने में ही संपूर्ण एक अनोखा संसार है। कॉलरिज़ के शब्दों में कहें तो 'अविश्वासों का स्वेच्छा से परित्याग करके ही' हम इस संसार में प्रवेश पा सकते हैं और इसके जीवन का रसास्वाद कर सकते हैं।
रचना की दृष्टि से देखें तो रोमानी नाटक और विशेषकर रोमानी कामदी की कथा-वस्तु जटिल होती है, साधारण रूप से एक मुख्य कथा और कई उप-कथाएँ उसमें होती हैं। प्रायः इनमें भिन्न सामाजिक वर्गों का समन्वय दिखाया जाता है : अभिजात वर्ग और जनसाधारण का और कभी-कभी तो इस पार्थिव जगत में परियों के देश के आलौकिक तत्वों के दर्शन हो जाते हैं। हमें यह भी पता चलता है कि ये कामदियाँ, आजकल के विविध मनोरंजनों (Variety entertainments) के समान होती थीं और उनमें कई गीतों का सन्निवेश रहता था। युद्ध, मल्लयुद्ध और धमारी प्रहसन का भी उसमें अभिनिवेश किया जाता था।
यदि हम बेन जॉनसन की रचनाओं से तुलना करें तो हमें रोमानी नाटक की ठीक-ठीक प्रकृति का पता चलता है। जॉनसनीय कामदियों में, श्रेण्य कामदियों की प्रणाली की तरह, मानवीय आचरण या विश्लेषण और पर्यालोचन रहा करता था। उनकी संघटना बड़ी संयत होती थी और जो सिद्धांत मान्य थे, उनका कठोरता से पालन किया जाता था। इस प्रकार की कामदियों की तुलना में, शेक्सपियर की रोमानी कामदियाँ प्राय अनियमित, प्राणवंत मनोरंजक और शरीर तथा मन को भावोष्णता प्रदान करने वाली होती हैं।
अंत में, जहाँ तक मेरा विचार है रोमानी नाटक में मुख्य रूप से जीवन का एक हर्षोल्लासमय भावन होता है और इसकी परिधि में विविध प्रकार का जीवन, हास-अश्रु, प्रसन्नता और गंभीरता एवं उच्च और निम्न, ये सभी समा जाते हैं। इस दृष्टि से देखें तो संस्कृत के बहुत से नाटक, विशेषकर कालिदास के नाटक, रोमानी ही कहे जाएँगे। ये नाटक ईश्वर की अपार देन की भावना से, प्राचुर्य और उल्लास के जीवन से ओतप्रोत हैं और यद्यपि इनमें करुणा के तत्त्व भी होते हैं परंतु वे सब सुखांत की ओर ही अग्रसर होते हैं।
श्रेण्य नाटक की अपेक्षा, रोमानी नाटक का अभिनय अधिक कठिन है। इसका कारण यह है कि रोमानी नाटक में दर्शकों को बहुत-कुछ कल्पना से काम लेना पड़ता है और (आधुनिक समय में) दिग्दर्शक को पर्याप्त कौशल का परिचय देना पड़ता है। बहुत कठोर नियंत्रण में बँधे हुए अर्थात् अत्यंत सयत कौशल की भावना से हमें विशेष प्रकार का आनंद मिलता है। श्रेण्य नाटक में, चाहे वह कामदी हो या त्रासदी, हमें इसी प्रकार का आनंद प्राप्त होता है। 'ईश्वर ने सब कुछ दिया है' की भावना से जो आनंद उत्पन्न होता है, वह हमें पाठक वा प्रेक्षक के रूप में, रोमानी नाटक में मिल सकता है।
यह कहा जा सकता है कि कोई भी वस्तु जो प्रसिद्ध हो और दीर्घ कालावधि के पश्चात् भी उसका अस्तित्व बना रहे उसके सुपरिचित होने के नाते ही उसमें कुछ श्रेण्य विशेषताएँ आ जाती हैं। रोमांस से हम जिस नूतनता और अनूठेपन को संबद्ध करते हैं, किसी कविता या नाटक के अत्यधिक व्यवहार में आने से वह लुप्त हो जाती है। वाल्टर पीटर की इस उक्ति में किसी हद तक सच्चाई है कि 'रम्य से जब अद्भुत का योग होता है तो उसे रोमांस संज्ञा से अभिहित करते हैं।’ इस प्रकार हम किसी भी वस्तु को, जो प्रसिद्ध हो और जिसे श्रेष्ठ समझा जाता हो, श्रेण्य कह सकते हैं। तो, रोमानी हम उसको कहेंगे जिसमें नवीनता हो, जिसमें नव्य सौंदर्य-रूपों का अनुसंधान हो और जो आनंददायक हो। मेरे विचार में रोमांस का संबंध अंततः मानव-प्रकृति के आदिम तत्त्व—सृजनात्मक-शक्ति—से होना चाहिए जो स्त्रियों और पुरुषों को एक दूसरे की ओर आकर्षित करती है, और उन प्रवृत्तियों से है जो मनुष्य को नवीन और अज्ञात की खोज करने के लिए प्रेरित करती हैं। एक अँग्रेज़ के लिए शेक्सपियर के समय के रोमानी नाटक अशत एलिज़ाबैथ-युग की उत्तेजना के प्रतीक हैं। इसमें वह अद्भुत नव्य जगत प्रतिबिंबित होता है, जोकि एलिज़ाबैथ-युग के अन्यायिओं और साहसियों के समक्ष उद्घाटित हो रहा था। शांति-काल में, जबकि मनुष्य के आचार-विचार कठोर नियमों में जकड़े रहते हैं, रोमांस की भावना का उदय एक तरह से कठिन होता है। परंतु विजय प्राप्त करने के लिए सदा ही साहस के नए क्षेत्र खुले होते हैं और अपने बंधु-बांधवों एवं अपने ईश्वर के प्रति मनुष्य के संबंधों की अपार विविधता चिर-नवीन रोमांस-रूपों के प्रादुर्भाव का हेतु होती है—चाहे वे गीत में प्रस्फुटित हो या नाटक में।
- रचनाकार : सेमुएल मथाई
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