विश्व-साहित्य में जहाँ एक ओर Les Miserables, War and Peace, Wilhelm meister, Gone with the Wind, 'गोदान' आदि उपन्यासों की परंपरा है, वहीं हमें Sorrows of Werther. Adolphe, Strait is the G 'अरक्षणीया', 'त्यागपत्र' आदि लघु उपन्यास भी प्राप्त होते हैं।
वृहद् और लघु उपन्यास का विभेद आकार के आधार पर है। प्रथम का आकार इतना विस्तृत होता है कि उसमें असंख्य घटनाओं और अनेक पात्रों की योजना सहज ही की जा सकती है। महाकाव्य की भाँति कभी-कभी उसका उद्देश्य एक युग-विशेष के समाज को बाँधने का होता है। अथवा उसके माध्यम से लेखक अपने संपूर्ण चिंतन को विस्तार से अभिव्यक्ति देना चाहता है। यही कारण है कि गेटे ने Wilhelm Meister की रचना में लगभग पचास वर्ष लगाए थे। लघु उपन्यास प्रायः जीवन अथवा समाज के किसी विशेष प्रश्न को लेकर चलता है और उसी के अनुसार समस्त नियोजना रहती है। किसी बृहद् उपन्यास के द्वारा लेखक समाज को अपनी परिधि में समेट लेने का प्रयास करता है। यदि यह संभव नहीं होता तो वह किसी एक समस्या पर तो बहुत विस्तार से विचार कर ही डालता है। ‘वॉर एंड पीस’ के माध्यम से टॉलस्टॉय मानों असंख्य सामाजिक स्थितियों और मानव-प्रवृत्तियों को व्यक्त करना चाहता है। लघु उपन्यास के पास एक सीमित आकार होता है और एक नाटककार की भाँति उसे छोटे-से रंगमंच को ध्यान में रखकर निर्माण करना होता है। इस सीमा और विवशता के कारण लघु उपन्यास का लेखक प्रभावांविति का विशेष ध्यान रखता है।
लघु उपन्यासकार कथावस्तु में संगठन लाने का कार्य केवल कल्याण के आधार पर नहीं कर सकता। जीवन के जिस अंग-विशेष को वह अंकित करना चाहता है उसका साक्षात्कार उसके लिए आवश्यक है, अन्यथा उपन्यास में संवेदनशीलता का अभाव रहेगा। इस प्रत्यक्ष अनुभव के कारण ही कभी-कभी लघु उपन्यास व्यक्तिगत अनुभूति तथा आत्म-कथा की सीमा तक का स्पर्श कर लेते हैं। Sorrows of werther की प्रेरणा Lotte Buff वह स्नेह है जिसे आजीवन महाकवि न भूल सका। स्वयं गेटे ने इस उपन्यास के विषय में कहा था कि ‘मेरी व्यक्तिगत अनुभूतियों ने इसे जन्म दिया है।' इसी प्रकार Benjamin Constant के उपन्यास Adolphe की विवेचना (The Conquest of Death) करते हुए Middleton Murry ने लिखा है कि “यह एक हृदयद्रावक कथा है। प्रेम के मनोविज्ञान की यह अंतर्भेदिनी व्याख्या है।” इसकी प्रेरणा लेखक को अपने अंतरंग सखा Mme Talme से प्राप्त हुई थी। एक प्रकार से ये दोनों ही प्रभावशाली लघु उपन्यास लेखक की आत्म-स्वीकृति से बन गए हैं।
इस प्रकार इन कतिपय लघु उपन्यासों की प्रेरणा-भूमि में जाने से ज्ञात होता है कि इनमें लेखक अपने व्यक्तित्व को कभी-कभी छिपाकर नहीं रख पाता। उसकी व्यक्तिगत अनुभूतियाँ बरबस ही बाहर आ जाती हैं। बृहद् उपन्यास प्रायः वर्णन-प्रधान होता है, किंतु लघु उपन्यास में भावों और विचारों को अधिक स्थान मिलता है। इस विचार-प्रधानता के कारण नए साहित्य में एक बार पुनः उपन्यासों की ओर लोगों का ध्यान गया है।
ध्यान से देखने पर ज्ञात होगा कि लघु उपन्यास एक प्रकार से किसी स्वप्न को बाँधने का प्रयास करता है। यह जिस चित्र को प्रस्तुत करना चाहता है, वह यदि सघन न हुआ तो असफल रह जाता है। कथानक की इस संग्रथित योजना के अनुसार ही पात्रों की भी सृष्टि करनी पड़ती है। पात्रों की संख्या उसमें कम रहती है, किंतु इन पात्रों के व्यक्तित्व का निर्माण करने में लेखक को बड़ी सावधानी से कार्य करना पड़ता है। प्रमुख पात्र लघु उपन्यास में एक प्रकार से नियामक का काम करता है और इसी कारण वह आकर्षण का केंद्र बन जाता है। पात्रों का व्यक्तित्व सृजन करने में लेखक को इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि वह अधिकाधिक संवेदनशील हो और उसमें कोई विशेष गुण हो। हरवर्ड रीड के शब्दों में ‘संभव है उसमें चरित्र (कैरेक्टर) न हो, पर व्यक्तित्व (पर्सनालिटी) का होना आवश्यक है।' व्यक्तित्व के अभाव में ये पात्र केंद्रगत प्रभाव सहायक नहीं हो सकते और सहज आकर्षण से वंचित रह जाते हैं। पात्रों में रंग-रूप भरने के लिए कुशल मनोवैज्ञानिक का कार्य लेखक को करना पड़ता है क्योंकि कभी-कभी मनोवृत्तियों के प्रकाशन से ही चरित्रांकन हो जाता है और कथानक को भी गति प्राप्त होती है। लघु उपन्यास के पात्रों को अधिक प्रभावशाली बनाना पड़ता है। उदाहरण के लिए हम 'रघुवंश' महाकाव्य और 'मेघदूत' गीति-काव्य को ले सकते हैं। महाकाव्य में संपूर्ण रघु-परंपरा ही हमारा ध्यान आकृष्ट करती है, किंतु 'मेघदूत' में हमारी समस्त चेतना यक्ष पर ही केंद्रित हो जाती है। बृहद् उपन्यास और लघु उपन्यास के पात्रों में भी यही विभेद होता है। पात्रों के इस मार्मिक चरित्रांकन का प्रत्यक्ष उदाहरण ‘सारोज ऑफ वर्थर' में मिल जाता है। गेटे के जीवनी-लेखक Emile Ludwing ने लिखा है कि “जिस समय यह छोटा-सा उपन्यास प्रकाशित हुआ, जर्मनी में एक हलचल-सी मच गई थी। युवकों ने वर्थर की भाँति कपड़े पहनना आरंभ कर दिया था और युवतियाँ अपने को Charlotte की भाँति सजाने लगी थीं। जर्मनी में आत्म-हत्या की संस्थाएँ तक खुल गई थीं। लघु उपन्यास में प्रमुख नायक ही कथा का सूत्राधार होता है और उसके चरित्रांकन पर ही उपन्यास की सफलता-असफलता निर्भर रहती है।
लघु उपन्यासों के पात्रों को विशेषतया प्रमुख पात्र को कभी-कभी असाधारण भी बनना पड़ता है। यह असाधारणता किसी कुंठा के कारण भी हो सकती है, किंतु उसका उद्देश्य पात्र को एक विशिष्टता प्रदान करना ही होता है। उसके व्यक्तित्व में, कतिपय ऐसे तत्वों का समावेश करना पड़ता है, जो उसकी अपनी संपत्ति हो और जिनके कारण वह एक स्वतंत्र व्यक्तित्व प्राप्त कर सके। यह भी ध्यान रखना होगा कि यह असाधारणता पागलपन की उस सीमा तक न पहुँच
1. Adolphe is a deeply moving story, it is also penetrating analysis of the psychology of love.
जाए कि उसका मानव-मूल्य ही न रहे। वास्तव में प्रमुख पात्र को एक सत्य लेकर चलना पड़ता है जिसके मध्य उसके जीवन के समस्त आदि-अंत सन्निहित रहता है। व्यक्तिगत गुणों के साथ ही वह किसी ऐसे सत्य की खोज में लगा रहता है, जिसमें सामाजिक तत्त्व भी हों। 'Strait the Gate' में एक स्थान पर Jerome को पत्र लिखते हुए Alissa ने लिखा है ‘'हमारी महत्त्वाकांक्षा विद्रोह नहीं, सेवा होनी चाहिए'’ (Our ambition should be not in revolt, but in service)। लघु उपन्यास के पात्रों को स्वयं से संघर्ष करते हुए देखा जा सकता है क्योंकि इसी से उनका व्यक्तित्व निखरता है। यह चरित्रगत आंतरिक द्वंद्व यदि उनके सामाजिक कार्य में बाधा नहीं बनकर आता, तो निस्संदेह उपन्यास अपने मार्मिक प्रभाव में सफल होता है। Adolfe में Ellenose का आंतरिक संघर्ष उपन्यास को मार्मिकता प्रदान करता है, प्रेरणामय बना देता है। Martin Turnell ने उसकी आलोचना करते हुए लिखा है कि लेखक ने संसार की यातनाओं से रक्षा करने के लिए उसे चुना है। इस प्रकार लघु उपन्यास में पात्रों का चरित्रांकन लेखक से विशेष कला-कौशल की माँग करता है।
लघु उपन्यास का लेखक अधिकांश दृष्टियों से नए प्रयोग कर सकता है। वह वास्तव में इस माध्यम से किसी नई मान्यता को जन्म दे सकता है। पात्रों के असाधारण व्यक्तित्व के मूल में प्रायः यही भावना छिपी रहती है। चरित्रांकन के अतिरिक्त शैली के नवीन प्रयोग भी किए जा सकते हैं। लेखक को इसका पूरा अवसर रहता है और प्रायः कुशल कथाकार इसका उचित प्रयोग कर लेते हैं। लघु उपन्यास के माध्यम से उपन्यासकार एक नई टैक्नीक प्रस्तुत कर सकता है। यह शैली यदि एक ओर कथा को रोचकता प्रदान करती है तो साथ ही उसके प्रभावोत्पादन में भी सहायक होती है। डायरी शैली में लिखे जाने के कारण ‘वर्थर' में भावों का उद्वेग अधिक मुखर हो सका है। उसके द्वारा वर्थर का भावावेश और उसकी संपूर्ण मनःस्थिति का आभास मिलता रहता है। उपन्यास के अंत तक आते-आते यह आवेश अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाता है। उसकी स्थिति कुछ-कुछ ‘लस्ट फ़ॉर लाइफ़' के उस विन्सेंट की भाँति हो जाती है जो मृत्यु को चित्रित न कर पाने की विवशता में आत्महत्या कर लेता है। रात्रि के ग्यारह बजे के अनंतर लिखता हुआ वर्थर कहता है, ‘‘मेरे चारों ओर निस्तब्ध नीरवता है और मेरी आत्मा शांत है। ईश्वर, मैं भी तुझे धन्यवाद देता हूँ कि तूने मुझमें इतना साहस और शक्ति भर दी कि मैं इन अंतिम क्षणों को देख सकूँ।” एक साथ अनेक प्रश्न वह स्वयं से करता है और इस प्रकार Charlotte के प्रति अपने स्नेह की अंतिम बूँद बिखेरकर स्वयं को निश्शेष कर देता है।
लघु उपन्यासों के विषय में सबसे अधिक आक्षेप यह लगाया जाता है कि उनके छोटे कलेवर के कारण उनमें किसी भारी प्रश्न को सुलझाना संभव नहीं है। साथ ही, यह भी कहा जा सकता है कि भावना की प्रधानता के कारण उनमें किसी 'स्वस्थ जीवन-दर्शन' को नहीं प्रस्तुत किया जा सकता। उसमें भावुकता अधिक रहती है, विचारों का प्रकाशन कम। इस प्रकार की शिकायत करने वाले अधिकांश समीक्षक नई मान्यताओं और नई शैलियों के स्वागत को तैयार नहीं होते। स्वस्थ जीवन-दर्शन एक ऐसा अद्भुत शब्द है कि उसकी परिभाषा और सीमा निर्धारित करने में भी कठिनाई होती है। बदलती हुई सामाजिक मान्यताओं के बीच कथाकार से इस प्रकार की माँग कुछ अनावश्यक प्रतीत होती है। यदि उपन्यासकार किसी वेश्या के जीवन को उपन्यास के माध्यम से प्रस्तुत करना चाहता है तो उसके लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि वह संपूर्ण चित्र का स्वाभाविक अंकन करे। उदात्तीकरण के साथ ही उसे यह भी ध्यान रखना होगा कि रस-निष्पत्ति में किसी प्रकार की बाधा न प्रस्तुत हो। केवल बाह्य रूपरेखा से ही काम नहीं चल सकता, उसमें प्राण-प्रतिष्ठा करनी होगी। यथार्थ की रक्षा के लिए हर प्रकार का जीवन-दर्शन सम्मुख रखना पड़ता है। जहाँ तक उद्देश्य का प्रश्न है मैं स्वीकार करता हूँ कि बृहद् उपन्यास समाज का एक पर्यवेक्षण करके अपनी राय जाहिर कर सकता है। इस दृष्टि से 'वॉर एंड पीस' अथवा 'गोदान' का सदैव महत्त्वपूर्ण स्थान रहेगा, और वे लेखक की प्रतिनिधि कृतियाँ कही जाएँगी क्योंकि वे इन मनीषियों के संपूर्ण चिंतन का फल हैं। पर केवल भारी आकार के आधार पर यह अनुमान नहीं किया जा सकता है कि प्रत्येक बृहत् उपन्यास समाज पर गहरी दृष्टि डालकर किसी परिपुष्ट और स्वस्थ जीवन-दर्शन को प्रस्तुत करेगा ही। 'चंद्रकांता संतति' के तिलिस्म को छोड़ दें, तो भी अनेक ऐसे भारी-भरकम उपन्यास मिलते हैं जिन्हें आदि से अंत तक पढ़ जाने पर एक भारी शून्य ही हमारे हाथ लगता है। हिंदी में काल के कुछ उपन्यासों से, जिनमें से कुछ प्रतिष्ठित कथाकारों ने लिखे हैं, इसी प्रकार निराशा प्राप्त होती है।
साहित्य का इतिहास इस बात का साक्षी है कि रचना की विभिन्न शैलियाँ एक प्रकार से युग और समाज की माँग होती हैं। विभिन्न मानव-मूल्यों को अभिव्यक्ति देने के लिए नए शिल्प-विधान का निर्माण करना होता है। जिस प्रकार महाकाव्य के द्वारा प्राचीन महाकवि एक दीर्घ परंपरा और विस्तृत समाज को अंकित करते थे, उसी प्रकार बृहद् उपन्यासों के मूल में भी यही महत्त्वाकांक्षा दिखाई देती है। उसके द्वारा लेखक अपने समस्त अनुभव को अभिव्यक्ति देना चाहता है। लघु उपन्यास एक-दो प्रश्नों को लेकर चलते हैं और समाज में बढ़ती हुई समस्याओं के साथ-ही-साथ उनकी माँग बढ़ जाना भी स्वाभाविक ही है। बात यह है कि समाज के अनेक प्रश्नों, असंख्य समस्याओं और सभ्यता के साथ बढ़ जाने की अनगिनत जटिलताओं को किसी एक ही बृहद् उपन्यास में प्रस्तुत कर देना किसी एक कथाकार के बूते का काम नहीं है। यदि महान् लेखक भी आज के जटिल समाज में इस प्रकार का प्रयास करना चाहे, तो वह एक चलती नज़र डालने के अतिरिक्त कुछ न कर पाएगा। वह उपन्यास एक चार्ट अथवा डाइरेक्टरी बन कर रह जाएगा। उसमें प्राण-प्रतिष्ठा करने के लिए लेखक का रसमय हो जाना तथा पात्रों में डूबकर उनके व्यक्तित्व का निर्माण करना आवश्यक है। बृहद् उपन्यास में दूरी देखने को मिल जाती है, पर लघु उपन्यास के लिए गहराई (इनटेंसिटी) आवश्यक है। समाज का बाहरी खाका खींचने में भूल के रूस के अधिकांश आधुनिक उपन्यास डायरेक्टरी बन कर रह गए हैं। किंतु संपूर्ण प्रचार-भावना के होते हुए भी उनकी कहानियाँ अधिक संवेदनशील हैं। 'I choose Peace' के दीर्घ कलेवर में भी पाठक शांति की मूल चेतना को नहीं खोज पाता। किसी एक भावना को अभिव्यक्त करने के लिए लघु उपन्यास एक अधिक अच्छा माध्यम हो सकता है क्योंकि उसमें केंद्रगत भाव सहज ही निर्मित किया जा सकता है।
संभव है लघु उपन्यास किसी महत्त्वाकांक्षी कथाकार की रचना का प्रमुख माध्यम न बन सके, परंतु इतना निश्चित है कि उसके द्वारा किसी विशेष संश्लिष्ट चित्र को उतारा जा सकता है साथ ही उसमें कतिपय नई मान्यताओं के साथ अधिक न्याय भी किया जा सकता है। जहाँ तक लघु उपन्यासों के उद्देश्य का प्रश्न है, मैं एक-दो उदाहरण प्रस्तुत करना चाहूँगा। 'सरोज ऑफ वर्थर' के प्रकाशन के अनंतर जब गेटे ने देखा की उसकी निराशाजनक परिसमाप्ति का प्रभाव जनता पर ठीक नहीं पड़ रहा है, (क्योंकि आत्म-हत्याओं की बाढ़ सी आ गई थी) तो कुछ समय पश्चात् उसने स्वयं परिवर्तन कर दिए थे। अब अपने वर्तमान रूप में वह निराशा के बीच में आशा का संदेश देता है। उसका अंतिम वाक्य इस प्रकार है “वृद्ध पुरुष और उसके लड़के शव के साथ कब्र तक आए। अलबर्ट न जा सका। Charlotte का जीवन संकट में था श्रमिकों ने शव को ढोया। कोई पादरी साथ न था।” 'Strait is the Gate' में धर्म और प्रेम का जो संघर्ष अंकित है, वह एक प्रकार से नई और पुरानी मान्यताओं के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। यद्यपि नायक की करुणाजनक स्थिति का अंकन बड़े ही हृदय द्रावक शब्दों में किया गया है, किंतु उपन्यास का उद्देश्य निराशा की सृष्टि नहीं है। Dorothy Bussy ने उसके विषय में कहा है कि वह एक सुदंर कृति है।'
लघु उपन्यास के इन मूल उपादानों की चर्चा के अनंतर मैं हिंदी के लघु उपन्यासों पर एक विहंगम दृष्टि डालना चाहूँगा। 'गोदान' जैसे महा उपन्यास के लेखक की ही कृति 'निर्मला' है। 'गोदान' हमारा प्रतिनिधि उपन्यास है, किंतु विस्तार के कारण उसमें अनेक पात्र और घटनाएँ निरर्थक प्रतीत होती हैं। 'निर्मला' की कथावस्तु अधिक सुगठित है। शरत् के 'श्रीकांत' की अपेक्षा ‘अरक्षणीया' में इसी कारण मार्मिकता अधिक है। चरित्र को इतनी संवेदनशील और सहानुभूतिपूर्ण रेखाओं से निर्मित किया गया है कि उसका प्रभाव अधिक द्रावक होता है।
जैनेंद्र अपने ‘त्याग-पत्र' द्वारा जिन नैतिक मूल्यों की स्थापना करना चाहते हैं, यद्यपि उसमें उन्हें पूर्ण सफलता नहीं मिल सकी है, फिर भी एक नया दृष्टिकोण हमें देखने को प्राप्त होता है। आरंभ में जिज्ञासा और कौतूहल के लिए लिखे गए दो-चार शब्द इसके प्रमाण हैं कि जैनेंद्र कथा कहने में कितने कुशल हैं। कम-से-कम हिंदी के लिए, अपनी सारी कमियों के बावजूद 'त्याग-पत्र' एक नई दिशा का सूचक अवश्य रहा है, शैली और चरित्रांकन के कारण।
'चित्रलेखा' अपेक्षाकृत अधिक बड़ा उपन्यास है, फिर भी उसके विषय में भी यही कहा जा सकता है कि एक नई शैली देखने को हमें मिली। इन नवीन शैलियों के साथ ही यदि उपन्यासकार नई मान्यताओं को अभिव्यक्ति दे सके, तो उसकी कृति निस्संदेह सफल होगी। हाल ही में लिखे गए डॉ. धर्मवीर भारती का 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' और डॉ. देवराज का ‘बाहर-भीतर' शैली की दृष्टि से नए प्रयोग हैं। यहाँ इतना अवसर नहीं है कि हिंदी के इन कतिपय लघु उपन्यासों की विस्तृत विवेचना की जा सके; क्योंकि वह एक स्वतंत्र निबंध का विषय है, किंतु मैं इस दिशा में इतना संकेत अवश्य करना चाहूँगा कि आज की अवस्था में लघु-उपन्यास प्रयोग का सबसे अच्छा माध्यम हो सकता है।
(आलोचना, अक्टूबर 1954 से)
फुट प्रिंट -
1. The old man and his son followed the body to the grave. Albert could not. Charlotte's life as danger. The body was carried by workmen. No clergyman attended.
2. It's has a lucid Clarity a simplicity a directness, a beauty and sweetness of thought and a musical expression.
-Dorothy Bussy
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laghu upanyas ka lekhak adhikansh drishtiyon se nae prayog kar sakta hai wo wastaw mein is madhyam se kisi nai manyata ko janm de sakta hai patron ke asadharan wyaktitw ke mool mein prayः yahi bhawna chhipi rahti hai charitrankan ke atirikt shaili ke nawin prayog bhi kiye ja sakte hain lekhak ko iska pura awsar rahta hai aur prayः kushal kathakar iska uchit prayog kar lete hain laghu upanyas ke madhyam se upanyasakar ek nai taiknik prastut kar sakta hai ye shaili yadi ek or katha ko rochakta pradan karti hai to sath hi uske prbhawotpadan mein bhi sahayak hoti hai Diary shaili mein likhe jane ke karan ‘warthar mein bhawon ka udweg adhik mukhar ho saka hai uske dwara warthar ka bhawawesh aur uski sampurn manःsthiti ka abhas milta rahta hai upanyas ke ant tak aate aate ye awesh apni charam sima par pahunch jata hai uski sthiti kuch kuch ‘last faur laif ke us winsent ki bhanti ho jati hai jo mirtyu ko chitrit na kar pane ki wiwashta mein atmahatya kar leta hai ratri ke gyarah baje ke anantar likhta hua warthar kahta hai, ‘‘mere charon or nistabdh nirawta hai aur meri aatma shant hai ishwar, main bhi tujhe dhanyawad deta hoon ki tune mujhmen itna sahas aur shakti bhar di ki main in antim kshnon ko dekh sakun ” ek sath anek parashn wo swayan se karta hai aur is prakar charlotte ke prati apne sneh ki antim boond bikherkar swayan ko nishshesh kar deta hai
laghu upanyason ke wishay mein sabse adhik akshaep ye lagaya jata hai ki unke chhote kalewar ke karan unmen kisi bhari parashn ko suljhana sambhaw nahin hai sath hi, ye bhi kaha ja sakta hai ki bhawna ki pradhanta ke karan unmen kisi swasth jiwan darshan ko nahin prastut kiya ja sakta usmen bhawukta adhik rahti hai, wicharon ka prakashan kam is prakar ki shikayat karne wale adhikansh samikshak nai manytaon aur nai shailiyon ke swagat ko taiyar nahin hote swasth jiwan darshan ek aisa adbhut shabd hai ki uski paribhasha aur sima nirdharit karne mein bhi kathinai hoti hai badalti hui samajik manytaon ke beech kathakar se is prakar ki mang kuch anawashyak pratit hoti hai yadi upanyasakar kisi weshya ke jiwan ko upanyas ke madhyam se prastut karna chahta hai to uske liye ye aniwary ho jata hai ki wo sampurn chitr ka swabhawik ankan kare udattikarn ke sath hi use ye bhi dhyan rakhna hoga ki ras nishpatti mein kisi prakar ki badha na prastut ho kewal bahy ruparekha se hi kaam nahin chal sakta, usmen paran pratishtha karni hogi yatharth ki rakhsha ke liye har prakar ka jiwan darshan sammukh rakhna paDta hai jahan tak uddeshy ka parashn hai main swikar karta hoon ki brihad upanyas samaj ka ek paryawekshan karke apni ray jahir kar sakta hai is drishti se waur enD pees athwa godan ka sadaiw mahattwapurn sthan rahega, aur we lekhak ki pratinidhi kritiyan kahi jayengi kyonki we in manishiyon ke sampurn chintan ka phal hain par kewal bhari akar ke adhar par ye anuman nahin kiya ja sakta hai ki pratyek brihat upanyas samaj par gahri drishti Dalkar kisi paripusht aur swasth jiwan darshan ko prastut karega hi chandrkanta santati ke tilism ko chhoD den, to bhi anek aise bhari bharkam upanyas milte hain jinhen aadi se ant tak paDh jane par ek bhari shunya hi hamare hath lagta hai hindi mein kal ke kuch upanyason se, jinmen se kuch pratishthit kathakaron ne likhe hain, isi prakar nirasha prapt hoti hai
sahity ka itihas is baat ka sakshi hai ki rachna ki wibhinn shailiyan ek prakar se yug aur samaj ki mang hoti hain wibhinn manaw mulyon ko abhiwyakti dene ke liye nae shilp widhan ka nirman karna hota hai jis prakar mahakawya ke dwara prachin mahakawi ek deergh parampara aur wistrit samaj ko ankit karte the, usi prakar brihad upanyason ke mool mein bhi yahi mahattwakanksha dikhai deti hai uske dwara lekhak apne samast anubhaw ko abhiwyakti dena chahta hai laghu upanyas ek do prashnon ko lekar chalte hain aur samaj mein baDhti hui samasyaon ke sath hi sath unki mang baDh jana bhi swabhawik hi hai baat ye hai ki samaj ke anek prashnon, asankhya samasyaon aur sabhyata ke sath baDh jane ki anaginat jatiltaon ko kisi ek hi brihad upanyas mein prastut kar dena kisi ek kathakar ke bute ka kaam nahin hai yadi mahan lekhak bhi aaj ke jatil samaj mein is prakar ka prayas karna chahe, to wo ek chalti nazar Dalne ke atirikt kuch na kar payega wo upanyas ek chart athwa directory ban kar rah jayega usmen paran pratishtha karne ke liye lekhak ka rasmay ho jana tatha patron mein Dubkar unke wyaktitw ka nirman karna awashyak hai brihad upanyas mein duri dekhne ko mil jati hai, par laghu upanyas ke liye gahrai (intensiti) awashyak hai samaj ka bahari khaka khinchne mein bhool ke roos ke adhikansh adhunik upanyas Dayrektri ban kar rah gaye hain kintu sampurn parchar bhawna ke hote hue bhi unki kahaniyan adhik sanwedanshil hain i choose peace ke deergh kalewar mein bhi pathak shanti ki mool chetna ko nahin khoj pata kisi ek bhawna ko abhiwyakt karne ke liye laghu upanyas ek adhik achchha madhyam ho sakta hai kyonki usmen kendrgat bhaw sahj hi nirmit kiya ja sakta hai
sambhaw hai laghu upanyas kisi mahattwakankshi kathakar ki rachna ka pramukh madhyam na ban sake, parantu itna nishchit hai ki uske dwara kisi wishesh sanshlisht chitr ko utara ja sakta hai sath hi usmen katipay nai manytaon ke sath adhik nyay bhi kiya ja sakta hai jahan tak laghu upanyason ke uddeshy ka parashn hai, main ek do udaharn prastut karna chahunga saroj auph warthar ke prakashan ke anantar jab gete ne dekha ki uski nirashajnak parismapti ka prabhaw janta par theek nahin paD raha hai, (kyonki aatm hatyaon ki baDh si aa gai thee) to kuch samay pashchat usne swayan pariwartan kar diye the ab apne wartaman roop mein wo nirasha ke beech mein aasha ka sandesh deta hai uska antim waky is prakar hai “wriddh purush aur uske laDke shau ke sath kabr tak aaye albart na ja saka charlotte ka jiwan sankat mein tha shramikon ne shau ko Dhoya koi padari sath na tha ” strait is the ghate mein dharm aur prem ka jo sangharsh ankit hai, wo ek prakar se nai aur purani manytaon ke pratik ke roop mein swikar kiya ja sakta hai yadyapi nayak ki karunajnak sthiti ka ankan baDe hi hirdai drawak shabdon mein kiya gaya hai, kintu upanyas ka uddeshy nirasha ki sirishti nahin hai Dorothy bussy ne uske wishay mein kaha hai ki wo ek sudanr kriti hai
laghu upanyas ke in mool upadanon ki charcha ke anantar main hindi ke laghu upanyason par ek wihangam drishti Dalna chahunga godan jaise maha upanyas ke lekhak ki hi kriti nirmala hai godan hamara pratinidhi upanyas hai, kintu wistar ke karan usmen anek patr aur ghatnayen nirarthak pratit hoti hain nirmala ki kathawastu adhik sugthit hai sharat ke shrikant ki apeksha ‘arakshniya mein isi karan marmikta adhik hai charitr ko itni sanwedanshil aur sahanubhutipurn rekhaon se nirmit kiya gaya hai ki uska prabhaw adhik drawak hota hai
jainendr apne ‘tyag patr dwara jin naitik mulyon ki sthapana karna chahte hain, yadyapi usmen unhen poorn saphalta nahin mil saki hai, phir bhi ek naya drishtikon hamein dekhne ko prapt hota hai arambh mein jigyasa aur kautuhal ke liye likhe gaye do chaar shabd iske praman hain ki jainendr katha kahne mein kitne kushal hain kam se kam hindi ke liye, apni sari kamiyon ke bawjud tyag patr ek nai disha ka suchak awashy raha hai, shaili aur charitrankan ke karan
chitralekha apekshakrit adhik baDa upanyas hai, phir bhi uske wishay mein bhi yahi kaha ja sakta hai ki ek nai shaili dekhne ko hamein mili in nawin shailiyon ke sath hi yadi upanyasakar nai manytaon ko abhiwyakti de sake, to uski kriti nissandeh saphal hogi haal hi mein likhe gaye Dau dharmawir bharti ka suraj ka satwan ghoDa aur Dau dewraj ka ‘bahar bhitar shaili ki drishti se nae prayog hain yahan itna awsar nahin hai ki hindi ke in katipay laghu upanyason ki wistrit wiwechana ki ja sake; kyonki wo ek swtantr nibandh ka wishay hai, kintu main is disha mein itna sanket awashy karna chahunga ki aaj ki awastha mein laghu upanyas prayog ka sabse achchha madhyam ho sakta hai
(alochana, october 1954 se)
phut print
1 the old man and his son followed the body to the grawe albert could not charlottes life as danger the body was carried by workmen no clergyman attended
2 its has a lucid clarity a simplicity a directness, a beauty and sweetness of thought and a musical expression
Dorothy bussy
wishw sahity mein jahan ek or les miserables, war and peace, wilhelm meister, ghone with the wind, godan aadi upanyason ki parampara hai, wahin hamein sorrows of werther adolphe, strait is the gh arakshniya, tyagpatr aadi laghu upanyas bhi prapt hote hain
wrihad aur laghu upanyas ka wibhed akar ke adhar par hai pratham ka akar itna wistrit hota hai ki usmen asankhya ghatnaon aur anek patron ki yojna sahj hi ki ja sakti hai mahakawya ki bhanti kabhi kabhi uska uddeshy ek yug wishesh ke samaj ko bandhne ka hota hai athwa uske madhyam se lekhak apne sampurn chintan ko wistar se abhiwyakti dena chahta hai yahi karan hai ki gete ne wilhelm meister ki rachna mein lagbhag pachas warsh lagaye the laghu upanyas prayः jiwan athwa samaj ke kisi wishesh parashn ko lekar chalta hai aur usi ke anusar samast niyojana rahti hai kisi brihad upanyas ke dwara lekhak samaj ko apni paridhi mein samet lene ka prayas karta hai yadi ye sambhaw nahin hota to wo kisi ek samasya par to bahut wistar se wichar kar hi Dalta hai ‘waur enD pees’ ke madhyam se taulastauy manon asankhya samajik sthitiyon aur manaw prwrittiyon ko wyakt karna chahta hai laghu upanyas ke pas ek simit akar hota hai aur ek natakkar ki bhanti use chhote se rangmanch ko dhyan mein rakhkar nirman karna hota hai is sima aur wiwashta ke karan laghu upanyas ka lekhak prbhawanwiti ka wishesh dhyan rakhta hai
laghu upanyasakar kathawastu mein sangthan lane ka kary kewal kalyan ke adhar par nahin kar sakta jiwan ke jis ang wishesh ko wo ankit karna chahta hai uska sakshatkar uske liye awashyak hai, anyatha upanyas mein sanwedanshilta ka abhaw rahega is pratyaksh anubhaw ke karan hi kabhi kabhi laghu upanyas wyaktigat anubhuti tatha aatm katha ki sima tak ka sparsh kar lete hain sorrows of werther ki prerna lotte buff wo sneh hai jise ajiwan mahakawi na bhool saka swayan gete ne is upanyas ke wishay mein kaha tha ki ‘meri wyaktigat anubhutiyon ne ise janm diya hai isi prakar benjamin constant ke upanyas adolphe ki wiwechana (the conquest of Death) karte hue middleton murry ne likha hai ki “yah ek hridayadrawak katha hai prem ke manowigyan ki ye antarbhedini wyakhya hai ” iski prerna lekhak ko apne antrang sakha mme talme se prapt hui thi ek prakar se ye donon hi prabhawashali laghu upanyas lekhak ki aatm swikriti se ban gaye hain
is prakar in katipay laghu upanyason ki prerna bhumi mein jane se gyat hota hai ki inmen lekhak apne wyaktitw ko kabhi kabhi chhipakar nahin rakh pata uski wyaktigat anubhutiyan barbas hi bahar aa jati hain brihad upanyas prayः warnan pardhan hota hai, kintu laghu upanyas mein bhawon aur wicharon ko adhik sthan milta hai is wichar pradhanta ke karan nae sahity mein ek bar punः upanyason ki or logon ka dhyan gaya hai
dhyan se dekhne par gyat hoga ki laghu upanyas ek prakar se kisi swapn ko bandhne ka prayas karta hai ye jis chitr ko prastut karna chahta hai, wo yadi saghan na hua to asaphal rah jata hai kathanak ki is sangrthit yojna ke anusar hi patron ki bhi sirishti karni paDti hai patron ki sankhya usmen kam rahti hai, kintu in patron ke wyaktitw ka nirman karne mein lekhak ko baDi sawadhani se kary karna paDta hai pramukh patr laghu upanyas mein ek prakar se niyamak ka kaam karta hai aur isi karan wo akarshan ka kendr ban jata hai patron ka wyaktitw srijan karne mein lekhak ko is baat ka dhyan rakhna paDta hai ki wo adhikadhik sanwedanshil ho aur usmen koi wishesh gun ho harwarD reeD ke shabdon mein ‘sambhaw hai usmen charitr (kairektar) na ho, par wyaktitw (parsnaliti) ka hona awashyak hai wyaktitw ke abhaw mein ye patr kendrgat prabhaw sahayak nahin ho sakte aur sahj akarshan se wanchit rah jate hain patron mein rang roop bharne ke liye kushal manowaigyanik ka kary lekhak ko karna paDta hai kyonki kabhi kabhi manowrittiyon ke prakashan se hi charitrankan ho jata hai aur kathanak ko bhi gati prapt hoti hai laghu upanyas ke patron ko adhik prabhawashali banana paDta hai udaharn ke liye hum raghuwansh mahakawya aur meghdut giti kawy ko le sakte hain mahakawya mein sampurn raghu parampara hi hamara dhyan akrisht karti hai, kintu meghdut mein hamari samast chetna yaksh par hi kendrit ho jati hai brihad upanyas aur laghu upanyas ke patron mein bhi yahi wibhed hota hai patron ke is marmik charitrankan ka pratyaksh udaharn ‘saroj auph warthar mein mil jata hai gete ke jiwani lekhak emile ludwing ne likha hai ki “jis samay ye chhota sa upanyas prakashit hua, jarmni mein ek halchal si mach gai thi yuwkon ne warthar ki bhanti kapDe pahanna arambh kar diya tha aur yuwatiyan apne ko charlotte ki bhanti sajane lagi theen jarmni mein aatm hattya ki sansthayen tak khul gai theen laghu upanyas mein pramukh nayak hi katha ka sutradhar hota hai aur uske charitrankan par hi upanyas ki saphalta asphalta nirbhar rahti hai
laghu upanyason ke patron ko wisheshataya pramukh patr ko kabhi kabhi asadharan bhi banna paDta hai ye asadharanta kisi kuntha ke karan bhi ho sakti hai, kintu uska uddeshy patr ko ek wishishtata pradan karna hi hota hai uske wyaktitw mein, katipay aise tatwon ka samawesh karna paDta hai, jo uski apni sampatti ho aur jinke karan wo ek swtantr wyaktitw prapt kar sake ye bhi dhyan rakhna hoga ki ye asadharanta pagalpan ki us sima tak na pahunch
1 adolphe is a deeply mowing story, it is also penetrating analysis of the psychology of lowe
jaye ki uska manaw mooly hi na rahe wastaw mein pramukh patr ko ek saty lekar chalna paDta hai jiske madhya uske jiwan ke samast aadi ant sannihit rahta hai wyaktigat gunon ke sath hi wo kisi aise saty ki khoj mein laga rahta hai, jismen samajik tattw bhi hon strait the ghate mein ek sthan par jerome ko patr likhte hue alissa ne likha hai ‘hamari mahattwakanksha widroh nahin, sewa honi chahiye’ (our ambition should be not in rewolt, but in serwice) laghu upanyas ke patron ko swayan se sangharsh karte hue dekha ja sakta hai kyonki isi se unka wyaktitw nikharta hai ye charitrgat antrik dwandw yadi unke samajik kary mein badha nahin bankar aata, to nissandeh upanyas apne marmik prabhaw mein saphal hota hai adolfe mein ellenose ka antrik sangharsh upanyas ko marmikta pradan karta hai, prernamay bana deta hai martin turnell ne uski alochana karte hue likha hai ki lekhak ne sansar ki yatnaon se rakhsha karne ke liye use chuna hai is prakar laghu upanyas mein patron ka charitrankan lekhak se wishesh kala kaushal ki mang karta hai
laghu upanyas ka lekhak adhikansh drishtiyon se nae prayog kar sakta hai wo wastaw mein is madhyam se kisi nai manyata ko janm de sakta hai patron ke asadharan wyaktitw ke mool mein prayः yahi bhawna chhipi rahti hai charitrankan ke atirikt shaili ke nawin prayog bhi kiye ja sakte hain lekhak ko iska pura awsar rahta hai aur prayः kushal kathakar iska uchit prayog kar lete hain laghu upanyas ke madhyam se upanyasakar ek nai taiknik prastut kar sakta hai ye shaili yadi ek or katha ko rochakta pradan karti hai to sath hi uske prbhawotpadan mein bhi sahayak hoti hai Diary shaili mein likhe jane ke karan ‘warthar mein bhawon ka udweg adhik mukhar ho saka hai uske dwara warthar ka bhawawesh aur uski sampurn manःsthiti ka abhas milta rahta hai upanyas ke ant tak aate aate ye awesh apni charam sima par pahunch jata hai uski sthiti kuch kuch ‘last faur laif ke us winsent ki bhanti ho jati hai jo mirtyu ko chitrit na kar pane ki wiwashta mein atmahatya kar leta hai ratri ke gyarah baje ke anantar likhta hua warthar kahta hai, ‘‘mere charon or nistabdh nirawta hai aur meri aatma shant hai ishwar, main bhi tujhe dhanyawad deta hoon ki tune mujhmen itna sahas aur shakti bhar di ki main in antim kshnon ko dekh sakun ” ek sath anek parashn wo swayan se karta hai aur is prakar charlotte ke prati apne sneh ki antim boond bikherkar swayan ko nishshesh kar deta hai
laghu upanyason ke wishay mein sabse adhik akshaep ye lagaya jata hai ki unke chhote kalewar ke karan unmen kisi bhari parashn ko suljhana sambhaw nahin hai sath hi, ye bhi kaha ja sakta hai ki bhawna ki pradhanta ke karan unmen kisi swasth jiwan darshan ko nahin prastut kiya ja sakta usmen bhawukta adhik rahti hai, wicharon ka prakashan kam is prakar ki shikayat karne wale adhikansh samikshak nai manytaon aur nai shailiyon ke swagat ko taiyar nahin hote swasth jiwan darshan ek aisa adbhut shabd hai ki uski paribhasha aur sima nirdharit karne mein bhi kathinai hoti hai badalti hui samajik manytaon ke beech kathakar se is prakar ki mang kuch anawashyak pratit hoti hai yadi upanyasakar kisi weshya ke jiwan ko upanyas ke madhyam se prastut karna chahta hai to uske liye ye aniwary ho jata hai ki wo sampurn chitr ka swabhawik ankan kare udattikarn ke sath hi use ye bhi dhyan rakhna hoga ki ras nishpatti mein kisi prakar ki badha na prastut ho kewal bahy ruparekha se hi kaam nahin chal sakta, usmen paran pratishtha karni hogi yatharth ki rakhsha ke liye har prakar ka jiwan darshan sammukh rakhna paDta hai jahan tak uddeshy ka parashn hai main swikar karta hoon ki brihad upanyas samaj ka ek paryawekshan karke apni ray jahir kar sakta hai is drishti se waur enD pees athwa godan ka sadaiw mahattwapurn sthan rahega, aur we lekhak ki pratinidhi kritiyan kahi jayengi kyonki we in manishiyon ke sampurn chintan ka phal hain par kewal bhari akar ke adhar par ye anuman nahin kiya ja sakta hai ki pratyek brihat upanyas samaj par gahri drishti Dalkar kisi paripusht aur swasth jiwan darshan ko prastut karega hi chandrkanta santati ke tilism ko chhoD den, to bhi anek aise bhari bharkam upanyas milte hain jinhen aadi se ant tak paDh jane par ek bhari shunya hi hamare hath lagta hai hindi mein kal ke kuch upanyason se, jinmen se kuch pratishthit kathakaron ne likhe hain, isi prakar nirasha prapt hoti hai
sahity ka itihas is baat ka sakshi hai ki rachna ki wibhinn shailiyan ek prakar se yug aur samaj ki mang hoti hain wibhinn manaw mulyon ko abhiwyakti dene ke liye nae shilp widhan ka nirman karna hota hai jis prakar mahakawya ke dwara prachin mahakawi ek deergh parampara aur wistrit samaj ko ankit karte the, usi prakar brihad upanyason ke mool mein bhi yahi mahattwakanksha dikhai deti hai uske dwara lekhak apne samast anubhaw ko abhiwyakti dena chahta hai laghu upanyas ek do prashnon ko lekar chalte hain aur samaj mein baDhti hui samasyaon ke sath hi sath unki mang baDh jana bhi swabhawik hi hai baat ye hai ki samaj ke anek prashnon, asankhya samasyaon aur sabhyata ke sath baDh jane ki anaginat jatiltaon ko kisi ek hi brihad upanyas mein prastut kar dena kisi ek kathakar ke bute ka kaam nahin hai yadi mahan lekhak bhi aaj ke jatil samaj mein is prakar ka prayas karna chahe, to wo ek chalti nazar Dalne ke atirikt kuch na kar payega wo upanyas ek chart athwa directory ban kar rah jayega usmen paran pratishtha karne ke liye lekhak ka rasmay ho jana tatha patron mein Dubkar unke wyaktitw ka nirman karna awashyak hai brihad upanyas mein duri dekhne ko mil jati hai, par laghu upanyas ke liye gahrai (intensiti) awashyak hai samaj ka bahari khaka khinchne mein bhool ke roos ke adhikansh adhunik upanyas Dayrektri ban kar rah gaye hain kintu sampurn parchar bhawna ke hote hue bhi unki kahaniyan adhik sanwedanshil hain i choose peace ke deergh kalewar mein bhi pathak shanti ki mool chetna ko nahin khoj pata kisi ek bhawna ko abhiwyakt karne ke liye laghu upanyas ek adhik achchha madhyam ho sakta hai kyonki usmen kendrgat bhaw sahj hi nirmit kiya ja sakta hai
sambhaw hai laghu upanyas kisi mahattwakankshi kathakar ki rachna ka pramukh madhyam na ban sake, parantu itna nishchit hai ki uske dwara kisi wishesh sanshlisht chitr ko utara ja sakta hai sath hi usmen katipay nai manytaon ke sath adhik nyay bhi kiya ja sakta hai jahan tak laghu upanyason ke uddeshy ka parashn hai, main ek do udaharn prastut karna chahunga saroj auph warthar ke prakashan ke anantar jab gete ne dekha ki uski nirashajnak parismapti ka prabhaw janta par theek nahin paD raha hai, (kyonki aatm hatyaon ki baDh si aa gai thee) to kuch samay pashchat usne swayan pariwartan kar diye the ab apne wartaman roop mein wo nirasha ke beech mein aasha ka sandesh deta hai uska antim waky is prakar hai “wriddh purush aur uske laDke shau ke sath kabr tak aaye albart na ja saka charlotte ka jiwan sankat mein tha shramikon ne shau ko Dhoya koi padari sath na tha ” strait is the ghate mein dharm aur prem ka jo sangharsh ankit hai, wo ek prakar se nai aur purani manytaon ke pratik ke roop mein swikar kiya ja sakta hai yadyapi nayak ki karunajnak sthiti ka ankan baDe hi hirdai drawak shabdon mein kiya gaya hai, kintu upanyas ka uddeshy nirasha ki sirishti nahin hai Dorothy bussy ne uske wishay mein kaha hai ki wo ek sudanr kriti hai
laghu upanyas ke in mool upadanon ki charcha ke anantar main hindi ke laghu upanyason par ek wihangam drishti Dalna chahunga godan jaise maha upanyas ke lekhak ki hi kriti nirmala hai godan hamara pratinidhi upanyas hai, kintu wistar ke karan usmen anek patr aur ghatnayen nirarthak pratit hoti hain nirmala ki kathawastu adhik sugthit hai sharat ke shrikant ki apeksha ‘arakshniya mein isi karan marmikta adhik hai charitr ko itni sanwedanshil aur sahanubhutipurn rekhaon se nirmit kiya gaya hai ki uska prabhaw adhik drawak hota hai
jainendr apne ‘tyag patr dwara jin naitik mulyon ki sthapana karna chahte hain, yadyapi usmen unhen poorn saphalta nahin mil saki hai, phir bhi ek naya drishtikon hamein dekhne ko prapt hota hai arambh mein jigyasa aur kautuhal ke liye likhe gaye do chaar shabd iske praman hain ki jainendr katha kahne mein kitne kushal hain kam se kam hindi ke liye, apni sari kamiyon ke bawjud tyag patr ek nai disha ka suchak awashy raha hai, shaili aur charitrankan ke karan
chitralekha apekshakrit adhik baDa upanyas hai, phir bhi uske wishay mein bhi yahi kaha ja sakta hai ki ek nai shaili dekhne ko hamein mili in nawin shailiyon ke sath hi yadi upanyasakar nai manytaon ko abhiwyakti de sake, to uski kriti nissandeh saphal hogi haal hi mein likhe gaye Dau dharmawir bharti ka suraj ka satwan ghoDa aur Dau dewraj ka ‘bahar bhitar shaili ki drishti se nae prayog hain yahan itna awsar nahin hai ki hindi ke in katipay laghu upanyason ki wistrit wiwechana ki ja sake; kyonki wo ek swtantr nibandh ka wishay hai, kintu main is disha mein itna sanket awashy karna chahunga ki aaj ki awastha mein laghu upanyas prayog ka sabse achchha madhyam ho sakta hai
(alochana, october 1954 se)
phut print
1 the old man and his son followed the body to the grawe albert could not charlottes life as danger the body was carried by workmen no clergyman attended
2 its has a lucid clarity a simplicity a directness, a beauty and sweetness of thought and a musical expression
Dorothy bussy
स्रोत :
रचनाकार : प्रेमशंकर
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।