प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा आठवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।
राकेश का मन तो कह रहा था कि बिना पूरी तैयारी के नाटक नहीं खेलना चाहिए और जब नाटक में अभिनय करने वाले कलाकार भी नए हों, मंच पर आकर डर जाते हों, घबरा जाते हों और कुछ-कुछ बुद्धू भी हों, तब तो अधूरी तैयारी से खेलना ही नहीं चाहिए। उसके साथी मोहन, सोहन और श्याम ऐसे ही थे। राकेश को उनके अभिनय पर बिलकुल भी विश्वास नहीं था। वह स्वयं अभिनय इसलिए नहीं कर रहा था कि फ़ुटबॉल खेलते हुए वह अचानक गिर पड़ा था और उसके हाथ में चोट लग गई थी और हाथ को एक पट्टी में लपेटकर गर्दन के सहारे लटकाए रखना पड़ता था।
नाटक खेलना बहुत आवश्यक था। मुहल्ले की इज़्ज़त का सवाल था। मुहल्ले के बच्चों ने मिल-जुलकर फ़ालतू पड़े एक छोटे से सार्वजनिक मैदान में दूब व फूल-पौधे लगाए थे। वहीं एक मंच भी बना लिया था। राकेश की योग्यता पर सबको बहुत विश्वास भी था।
समय था केवल एक सप्ताह का। सात दिन ऐसे निकल गए कि पता भी नहीं लगा। मोहन, सोहन और श्याम यूँ तो अच्छी तरह अभिनय करने लगे थे, पर राकेश को उनके बुद्धूपन से डर था। हर एक अपने को दूसरे से अधिक समझदार मानता था। इसलिए यह भूल जाता था कि वह कहाँ क्या कर रहा है बस कहने से मतलब! दूसरे चाहे उनकी मूर्खतापूर्ण बातों पर हँस रहे हों, मगर वे पागलों की तरह आपस में ही उलझने लगते थे।
राकेश ने पूर्वाभ्यास के सात दिनों में उन्हें बहुत अच्छी तरह समझाया था। निर्देशन उसने इतना अच्छा दिया था कि छोटी-से-छोटी और साधारण-से-साधारण बात भी समझ में आ जाए।
ख़ैर प्रदर्शन का दिन और समय भी आ गया। राकेश साज-सज्जा कक्ष में खड़ा सबको ख़ास-ख़ास हिदायतें फिर से दे रहा था।
मोहन बोला, मेरा तो दिल बहुत ज़ोरों से धड़क रहा है।
मेरा भी, सोहन ने सीने पर हाथ रखकर कहा।
तुम लोग पानी पियो और मन को साहसी बनाओ। राकेश ने फिर हिम्मत बढ़ाई।
जैसे-तैसे अभी तक तो ठीक-ठाक हो गया। अभिनेता मंच पर आ गए। पर्दा उठा।
मोहन बना था चित्रकार। और सोहन बना था उर्दू का शायर। नाटक में दोनों दोस्त होते हैं। चित्रकार कहता है उसकी कला महान, शायर कहता है उसकी कला महान! श्याम बनता है संगीतकार! वह उनसे मुलाक़ात करने उनके उस स्थान पर आता है, जहाँ वे यह बहस कर रहे हैं। बजाय इसके कि वह नए-नए मित्रों से मधुर बातें करे, बड़े-छोटे के इस विवाद में उलझ जाता है। वह कहता है संगीतकार की कला महान!
अभी तक अभिनय अच्छी तरह चल रहा था। सबको अपना-अपना पार्ट याद आ रहा था। सब ठीक-ठीक अभिनय करते चले जा रहे थे। अचानक श्याम पार्ट भूल गया!
पर्दे की आड़ में राकेश स्वयं पूरा नाटक लिए खड़ा था। वह हर एक संवाद का पहला शब्द बोल रहा था, ताकि कलाकारों को संवाद याद आते रहें
मगर श्याम घबरा गया। वह सहसा चुप हो गया। उसके चुप होने से चित्रकार और शायर महोदय भी चुप हो गए। होना यह चाहिए था कि दोनों कोई बात मन की ही बनाकर बात आगे बढ़ा देते। पर वे घबराकर राकेश की तरफ़ देखने लगे। संगीतकार महोदय भी पलटकर राकेश की ओर देखने लगे।
राकेश बार-बार संगीतकार जी का संवाद बोल रहा था मगर आवाज़ तेज़ होकर 'माइक' से सबको न सुनाई दे जाए, इसलिए धीरे-धीरे फुसफुसाकर बोल रहा था, संगीतकार जी को वह हल्की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी।
तभी शायर साहब संगीतकार के कंधे पर हाथ मारकर बोले उधर जाकर सुन ले न। संगीतकार अपना वायलिन पकड़े-पकड़े राकेश की ओर खिसक आए!
दर्शक ठठाकर हँस पड़े। संगीतकार जी और घबरा गए। जो कुछ सुनाई पड़ा उसे ही बिना समझे-बूझे झट से बोलने लगे।
संवाद था—'जब संगीत की स्वर लहरी गूँजती है, तो पशु-पक्षी तक मुग्ध हो जाते हैं, शायर साहब! आप क्या समझते हैं संगीत को?
मगर संगीतकार साहब बोल गए यों—जब संगीत की स्वर लहरी गूँजती है तो पशु-पक्षी तक मुँह की खा जाते हैं, गाजर साहब! आप क्या समझते हैं हमें?
चित्रकार महोदय ने मंच पर सूझ और अक़्लमंदी दिखाने की कोशिश की—इनका मतलब है आपकी शायरी गाजर-मूली है और आप गाजर साहब हैं। सो इनकी कला महान है। मगर मेरी कला इनसे भी महान है।
राकेश दाँत पीस रहा था। उसकी सारी मेहनत पर पानी पड़ गया था। पर इस तरह बात सँभलते देखकर कुछ शांत हुआ।
इस बार शायर साहब बुद्धूपना दिखा बैठे। ग़ुस्सा होकर बोले, तूने भी ग़लत बोल दिया। मुझे गाजर साहब कहने की बात थी क्या? और मेरी शायरी गाजर-मूली है, तो तेरी चित्रकला झाड़ू फेरना है, पोतना है, झख मारना है।
चित्रकार महोदय ने हाथ उठाकर कहा, देख, मुँह सँभालकर बोल!
दर्शक फिर बड़े ज़ोर से हँस पड़े।
राकेश घबरा रहा था। ग़ुस्सा भी आ रहा था उसे और रोना भी। सारी इज़्ज़त मिट्टी में मिल गई।
पर अब क्या हो? वह बार-बार दोनों हथेलियों को मसल रहा था और कोई तरकीब सोच रहा था।
इधर मंच पर तीनों में ज़ोरों से तू-तू मैं-मैं हो रही थी। चित्रकार महोदय हाथ में कूची पकड़े, आँखें नचा-नचाकर, मटक-मटककर बोल रहे थे—
अरे चमगादड़ तुझे क्या ख़ाक शायरी करना आता है! ज़बरदस्ती ही तुझे यह पार्ट दे दिया। तूने सारा गड़बड़ कर दिया।
मुझे चमगादड़ कहता है? अरे आलूबुखारे, शायरी तो मेरी बातों से टपकती है। तूने कभी 'टूथ-ब्रुश' के अलावा कोई ब्रुश उठाया भी है? यहाँ चित्रकार बना दिया तो सचमुच ही अपने को चित्रकार समझ बैठा।
दर्शक हँसी से लोटपोट हुए जा रहे थे। संगीतकार महोदय कभी उन दोनों लड़ते कलाकरों की ओर हाथ नचाते, कभी दर्शकों की ओर।
तभी तेज़ी से राकेश मंच पर पहुँच गया। सब चुप हो गए, सकपका गए। राकेश पहुँचते ही एक कुर्सी पर बैठते हुए बोला आज मुझे अस्पताल में हाथ पर पट्टी बँधवाने में देर हो गई, तो तुमने इस तरह 'रिहर्सल' की है! ज़ोर-ज़ोर से लड़ने लगे। अभिनय का दिन बिलकुल पास आ गया है और हमारी तैयारी का यह हाल है।
चित्रकार महोदय ने इस समय अक़्लमंदी दिखाई बोले, हम क्या करें, डायरेक्टर साहब? पहले इसी ने ग़लती की।
राकेश बात काटकर बोला, अरे तो मैंने कह नहीं दिया था कि रिहर्सल में भी यह मानकर चलो कि दर्शक सामने ही बैठे हैं। अगर ग़लती हो गई थी, तो वहीं से दुबारा रिहर्सल शुरू कर देते। यह क्या कि लड़ने लगे। सब गड़बड़ करते हो।
बात राकेश ने बहुत सँभाल ली थी। पर्दे की आड़ में खड़े अन्य साथी मन-ही-मन राकेश की तुरतबुद्धि की प्रशंसा कर रहे थे। दर्शक सब शांत थे, भौंचक्के थे। वे सोच रहे थे यह क्या हो गया! वे तो समझ रहे थे कि नाटक बिगड़ गया, मगर यहाँ तो नाटक में ही नाटक था। उसकी रिहर्सल ही नाटक था। मानो इस नाटक में नाटक की तैयारी की कठिनाइयों और कमज़ोरियों को ही दिखाया गया था!
राकेश कह रहा था, देखिए, हमारे नाटक का नाम है बड़ा कलाकार और बड़ा कलाकार वह है, जो दूसरे की त्रुटियों को नहीं अपनी त्रुटियों को देखे और सुधारे। आइए, अब हम फिर से 'रिहर्सल' शुरू करते हैं।
तभी राकेश के इशारे पर पर्दा गिर गया। दर्शक नाटक की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए अपने घर चले गए।
rakesh ka man to kah raha tha ki bina puri taiyari ke naatk nahin khelna chahiye aur jab naatk mein abhinay karne vale kalakar bhi ne hon, manch par aakar Dar jate hon, ghabra jate hon aur kuch kuch buddhu bhi hon, tab to adhuri taiyari se khelna hi nahin chahiye. uske sathi mohan, sohan aur shyaam aise hi the. rakesh ko unke abhinay par bilkul bhi vishvas nahin tha. wo svayan abhinay isliye nahin kar raha tha ki futbaul khelte hue wo achanak gir paDa tha aur uske haath mein chot lag gai thi aur haath ko ek patti mein lapetkar gardan ke sahare latkaye rakhna paDta tha.
naatk khelna bahut avashyak tha. muhalle ki izzat ka saval tha. muhalle ke bachchon ne mil julkar faltu paDe ek chhote se sarvajnik maidan mein doob va phool paudhe lagaye the. vahin ek manch bhi bana liya tha. rakesh ki yogyata par sabko bahut vishvas bhi tha.
samay tha keval ek saptah ka. saat din aise nikal ge ki pata bhi nahin laga. mohan, sohan aur shyaam yoon to achchhi tarah abhinay karne lage the, par rakesh ko unke buddhupan se Dar tha. har ek apne ko dusre se adhik samajhdar manata tha. isliye ye bhool jata tha ki wo kahan kya kar raha hai bas kahne se matlab! dusre chahe unki murkhtapurn baton par hans rahe hon, magar ve paglon ki tarah aapas mein hi ulajhne lagte the.
rakesh ne purvabhyas ke saat dinon mein unhen bahut achchhi tarah samjhaya tha. nirdeshan usne itna achchha diya tha ki chhoti se chhoti aur sadharan se sadharan baat bhi samajh mein aa jaye.
khair pradarshan ka din aur samay bhi aa gaya. rakesh saaj sajja kaksh mein khaDa sabko khaas khaas hidayten phir se de raha tha.
mohan bola, mera to dil bahut zoron se dhaDak raha hai.
mera bhee, sohan ne sine par haath rakhkar kaha.
tum log pani piyo aur man ko sahasi banao. rakesh ne phir himmat baDhai.
jaise taise abhi tak to theek thaak ho gaya. abhineta manch par aa ge. parda utha.
mohan bana tha chitrkar. aur sohan bana tha urdu ka shayar. naatk mein donon dost hote hain. chitrkar kahta hai uski kala mahan, shayar kahta hai uski kala mahan! shyaam banta hai sangitkar! wo unse mulaqat karne unke us sthaan par aata hai, jahan ve ye bahs kar rahe hain. bajay iske ki wo ne ne mitron se madhur baten kare, baDe chhote ke is vivad mein ulajh jata hai. wo kahta hai sangitkar ki kala mahan!
abhi tak abhinay achchhi tarah chal raha tha. sabko apna apna paart yaad aa raha tha. sab theek theek abhinay karte chale ja rahe the. achanak shyaam paart bhool gaya!
parde ki aaD mein rakesh svayan pura naatk liye khaDa tha. wo har ek sanvad ka pahla shabd bol raha tha, taki kalakaron ko sanvad yaad aate rahen
magar shyaam ghabra gaya. wo sahsa chup ho gaya. uske chup hone se chitrkar aur shayar mahoday bhi chup ho ge. hona ye chahiye tha ki donon koi baat man ki hi banakar baat aage baDha dete. par ve ghabrakar rakesh ki taraf dekhne lage. sangitkar mahoday bhi palatkar rakesh ki or dekhne lage.
rakesh baar baar sangitkar ji ka sanvad bol raha tha magar avaz tez hokar maik se sabko na sunai de jaye, isliye dhire dhire phusaphusakar bol raha tha, sangitkar ji ko wo halki avaz sunai nahin de rahi thi.
tabhi shayar sahab sangitkar ke kandhe par haath markar bole udhar jakar sun le na. sangitkar apna vayalin pakDe pakDe rakesh ki or khisak aaye!
darshak thathakar hans paDe. sangitkar ji aur ghabra ge. jo kuch sunai paDa use hi bina samjhe bujhe jhat se bolne lage.
sanvad tha—jab sangit ki svar lahri gunjti hai, to pashu pakshi tak mugdh ho jate hain, shayar sahab! aap kya samajhte hain sangit ko?
magar sangitkar sahab bol ge yon—jab sangit ki svar lahri gunjti hai to pashu pakshi tak munh ki kha jate hain, gajar sahab! aap kya samajhte hain hamen?
shayar sahab tapak se bole, tumhara sar! gajar sahab hoon main?
darshak phir uthakar hans paDe.
chitrkar mahoday ne manch par soojh aur aqlmandi dikhane ki koshish ki—inka matlab hai apaki shayari gajar muli hai aur aap gajar sahab hain. so inki kala mahan hai. magar meri kala inse bhi mahan hai.
rakesh daant pees raha tha. uski sari mehnat par pani paD gaya tha. par is tarah baat sanbhalate dekhkar kuch shaant hua.
is baar shayar sahab buddhupna dikha baithe. ghussa hokar bole, tune bhi ghalat bol diya. mujhe gajar sahab kahne ki baat thi kyaa? aur meri shayari gajar muli hai, to teri chitrakla jhaDu pherna hai, potna hai, jhakh marana hai.
chitrkar mahoday ne haath uthakar kaha, dekh, munh sanbhalakar bol!
darshak phir baDe zor se hans paDe.
rakesh ghabra raha tha. ghussa bhi aa raha tha use aur rona bhi. sari izzat mitti mein mil gai.
par ab kya ho? wo baar baar donon hatheliyon ko masal raha tha aur koi tarkib soch raha tha.
idhar manch par tinon mein zoron se tu tu main main ho rahi thi. chitrkar mahoday haath mein kuchi pakDe, ankhen nacha nachakar, matak matakkar bol rahe the—
are chamgadaD tujhe kya khaak shayari karna aata hai! zabardasti hi tujhe ye paart de diya. tune sara gaDbaD kar diya.
mujhe chamgadaD kahta hai? are alubukhare, shayari to meri baton se tapakti hai. tune kabhi tooth brush ke alava koi brush uthaya bhi hai? yahan chitrkar bana diya to sachmuch hi apne ko chitrkar samajh baitha.
darshak hansi se lotpot hue ja rahe the. sangitkar mahoday kabhi un donon laDte kalakron ki or haath nachate, kabhi darshkon ki or.
tabhi tezi se rakesh manch par pahunch gaya. sab chup ho ge, sakapka ge. rakesh pahunchte hi ek kursi par baithte hue bola aaj mujhe aspatal mein haath par patti bandhvane mein der ho gai, to tumne is tarah riharsal ki hai! zor zor se laDne lage. abhinay ka din bilkul paas aa gaya hai aur hamari taiyari ka ye haal hai.
chitrkar mahoday ne is samay aqlmandi dikhai bole, ham kya karen, Dayarektar sahab? pahle isi ne ghalati ki.
rakesh baat katkar bola, are to mainne kah nahin diya tha ki riharsal mein bhi ye mankar chalo ki darshak samne hi baithe hain. agar ghalati ho gai thi, to vahin se dubara riharsal shuru kar dete. ye kya ki laDne lage. sab gaDbaD karte ho.
baat rakesh ne bahut sanbhal li thi. parde ki aaD mein khaDe anya sathi man hi man rakesh ki turatbuddhi ki prshansa kar rahe the. darshak sab shaant the, bhaunchakke the. ve soch rahe the ye kya ho gaya! ve to samajh rahe the ki naatk bigaD gaya, magar yahan to naatk mein hi naatk tha. uski riharsal hi naatk tha. mano is naatk mein naatk ki taiyari ki kathinaiyon aur kamzoriyon ko hi dikhaya gaya tha!
rakesh kah raha tha, dekhiye, hamare naatk ka naam hai baDa kalakar aur baDa kalakar wo hai, jo dusre ki trutiyon ko nahin apni trutiyon ko dekhe aur sudhare. aaie, ab hum phir se riharsal shuru karte hain.
tabhi rakesh ke ishare par parda gir gaya. darshak naatk ki bhuri bhuri prshansa karte hue apne ghar chale ge.
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tabhi tezi se rakesh manch par pahunch gaya. sab chup ho ge, sakapka ge. rakesh pahunchte hi ek kursi par baithte hue bola aaj mujhe aspatal mein haath par patti bandhvane mein der ho gai, to tumne is tarah riharsal ki hai! zor zor se laDne lage. abhinay ka din bilkul paas aa gaya hai aur hamari taiyari ka ye haal hai.
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rakesh baat katkar bola, are to mainne kah nahin diya tha ki riharsal mein bhi ye mankar chalo ki darshak samne hi baithe hain. agar ghalati ho gai thi, to vahin se dubara riharsal shuru kar dete. ye kya ki laDne lage. sab gaDbaD karte ho.
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rakesh kah raha tha, dekhiye, hamare naatk ka naam hai baDa kalakar aur baDa kalakar wo hai, jo dusre ki trutiyon ko nahin apni trutiyon ko dekhe aur sudhare. aaie, ab hum phir se riharsal shuru karte hain.
tabhi rakesh ke ishare par parda gir gaya. darshak naatk ki bhuri bhuri prshansa karte hue apne ghar chale ge.
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।