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राय देवीप्रसाद ‘पूर्ण’

राय देवीप्रसाद ‘पूर्ण’ की संपूर्ण रचनाएँ

कविता 1

 

दोहा 6

सरस-सरस बरसत सलिल, तरस-तरस रहि बाम।

झरस-झरस बिरहागि सों, बरस-बरस भे जाम॥

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तिय तन लखि मोहित तड़ित, गति अद्भुत लखि जात।

बार-बार लखि तिय छटा, छन प्रकाश रहि जात॥

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सारंग झरि सारंग रव, सुखद स्याम सारंग।

विहरत बर सारंग मिलि, सरसत बरसा रंग॥

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रामावर आराम में, लखी परम अभिराम।

भो हराम आराम सब, परो राम सों काम॥

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सुनि-सुनि नवला रूप गुन, करि दरसन अभिलास।

सुर दारा छित जोवहीं, करि-करि गगन प्रकास॥

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सवैया 6

कवित्त 2

 

कुंडलियाँ 1

 

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