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रघुराजसिंह

1823 - 1879 | रीवा, मध्य प्रदेश

रीतिकालीन कवि और रीवां नरेश विश्वनाथसिंह के पुत्र।

रीतिकालीन कवि और रीवां नरेश विश्वनाथसिंह के पुत्र।

रघुराजसिंह की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 26

उर अनुपम उनको लसै, सुखमा को अति ठाट।

मनहु सुछवि हिय भरि भये, काम शृंगार कपाट॥

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यदुपति कटि की चारुता, को करि सकै बखान।

जासु सुछवि लखि सकुचि हरि, रहत दरीन दुरान॥

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यदुपति नैन समान हित, ह्वै बिरचै मैन।

मीन कंज खंजन मृगहु, समता तऊ लहै न॥

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हरिनासा को सुभगता, अटकि रही दृग माँह।

कामकीर के ठौर की, सुखमा छुवति छाँह॥

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युगल जानु यदुराज की, जोहि सुकवि रसभीन।

कहत भार शृंगार के, सपुट द्वै रचि दीन॥

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सवैया 10

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