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कृपानिवास

कृपानिवास की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 8

प्रथम चारु शीला सुभग, गान कला सु प्रवीन।

जुगुल केलि रसना रसित, राम रहस रसलीन॥

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सखी पद्म गंगा सुभग, भूषन सेवत अंग।

सदा विभूषित आप तन, जुगुल माधुरी रंग॥

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हेमा कर वीरी सदा, हँसि दंपति मुख देत।

संपति राग सुहाग की, सौभागिनि उर हेत॥

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क्षेमा समै प्रबंध कर, वसन विचित्र बनाय।

सुरुचि सुहावन सुखद सब, पिय प्यारी पहिराय॥

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सुभगा सुभग सिरोमनि, सेज सोहाई सेव।

सिय वल्लभ सुख सुरति रस, सकल जानि साभेव॥

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पद 13

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