किसी देश की स्त्रियों के संबंध में कुछ लिखते या कहते बड़ा संकोच होता है। जहाज़ में बैठते ही कुछ असाधारण बातें देखकर भारतीय हृदय को बहुत बड़ा सदमा पहुँचता है। योरप पहुँचकर और वहाँ की बाहरी अवस्था देखकर वह दुःख और भी बढ़ जाता है। स्त्रियों का सिगरेट और शराब पीना साधारण-सी बात है। हमने सुना था कि भोजन के अनंतर सिगरेट पीने के लिए मर्द स्त्रियों से अलग हो जाते हैं, यह बात अब नहीं है। लोगों ने हमें बतलाया कि इन दोनों बुराइयों को वहाँ की स्त्रियों ने लड़ाई के समय सीखा जब वे दिन रात चिंता में रहती थीं। उनके मर्द, भाई, पिता सब लड़ाई में गए थे, उनके ऊपर न केवल बच्चों के पालने का ही भार था बल्कि रुपया कमाने का उत्तरदायित्व भी उनके सिर पर आ पड़ा था। ऐसे समय में वे बेचारी अपने दुःख को दूर करने के लिए थोड़ी मदिरा पी लेती थीं या सिगरेट का प्रयोग कर लेती थीं।
जहाज़ में, बाग़-बग़ीचों में यहाँ तक कि गिरजाघरों के बाहर भी अँधेरा होने पर औरत और मर्द ऐसा व्यवहार करते हुए मिले जिसके देखने का अवसर हिंदुस्तानियों को अपने देश में नहीं मिलता। इसके लिए लंडन का हाइडपार्क बहुत बदनाम है। ऐसे जीवन का मुख्य कारण शराब है। गंदी बीमारियाँ सारे योरप में बढ़ रही हैं। किसी सभ्य लेखनी द्वारा ऐसी बातों का वर्णन करना कठिन है। वहाँ के लोग निजी जीवन को सार्वजनिक जीवन से अलग समझते हैं। किसी के निजी जीवन की जाँच पड़ताल नहीं करते। ऐसी बातों को देखकर बग़ल से चले जाते हैं।
इटली पहुँचकर हमने देखा कि स्त्रियाँ अपने होठों को लाल रँगती हैं। यह प्रथा फ़्रांस में अधिक पाई। रेल में स्त्री मर्द एक ही कमरे में एक साथ यात्रा करते हैं। शीशा, कंघी, पाउडर उनके साथ रहता है। आवश्यकता पड़ने पर वे सबके सामने शीशा निकालकर अपना मुँह देखने लगती हैं। कंघी से अपने बाल सँवार लेती हैं और चेहरे पर पाउडर लगा लेती हैं। पर पुरुष के सामने खिलखिलाकर हँसना बुरा नहीं समझा जाता है। शरीर को बनावटी तौर पर सुंदर रखने के लिए अनेक प्रकार के साबुन और मक्खन, तरह तरह की बुकनी बाज़ारों में मिलती हैं। Complexion soap, Complexion cream, cleansing cream, Nourishing cream आदि के इश्तिहार मोटे मोटे अक्षरों में चारों तरफ़ देखने में आते हैं। अनेक प्रकार की ऐसी वस्तुएँ बिकती हैं जिनसे होठ या गाल रंगे जाते हैं।
हम लोगों का विश्वास था कि हमारे देश में पति-पत्नी-संबंधी विचार बच्चों को योरप की अपेक्षा जल्दी हो जाता है जिसके हम तीन कारण समझते थे—एक इस देश की गर्मी, दूसरे माता पिता की असावधानी और तीसरे गली बाज़ारों में रात दिन गालियों का सुनना। गाड़ीवाला घोड़े को, बैलवाला बैल को, माँ बहन की गाली देता है, जिसको लोग बचपन ही से सुनते हैं। परंतु योरोपीय देशों में भी इस संबंध की ऐसी बहुत सी बातें हैं। उनमें से दो एक का उल्लेख हमने ऊपर कर दिया है। दूसरे, माता पिता का सदैव एक बिस्तर पर सोना। तीसरे, अधिक बच्चों के पैदा होने को रोकने के संबंध की सामग्री का खुल्लमखुल्ला दूकानों पर बिकना। वीयना में लघुशंका करने के स्थान में रबर की ऐसी एक चीज़—जिसका नाम Gummi लिखा है—रखी रहती है। कल में पैसा डालते ही वह बाहर निकल आती है। फ़्रांस में गर्मी, सुज़ाक आदि रोगों से बचने के उपाय कहीं कहीं पेशाबख़ानों में सचित्र लटके रहते हैं। वहाँ वेश्याओं की सामयिक डाक्टरी परीक्षा होती है। जर्मनी में एक बड़े विद्वान् और अनुभवी मित्र ने हमें बतलाया कि विद्यार्थियों में ये रोग बहुत बढ़ रहे हैं जिसके कारण वहाँ के शिक्षक लोग बहुत चिंतित हैं। दुःख की बात है कि यह शिकायत हिंदुस्तान में भी सुनने में आ रही है। चौथे, योरप भर में नंगी मूर्तियाँ सब जगह मिलती हैं। ऐसी मूर्तियाँ हमें संग्रहालयों में, सड़कों पर, क्रिस्टल पैलेस में और विश्वविद्यालयों के बाहर भी मिली। वे कहते हैं कि ऐसी मूर्तियों को मूर्ति निर्माण-कला की दृष्टि से देखना चाहिए। जहाज़ में और कई दूसरी जगह जहाँ केवल मर्द ही मर्द नहाते-धोते हैं वहाँ कई बेर देखा कि मर्द नंगे होकर सबके सामने तौलिए से बदन पोछने लगते हैं। बहुत से थियेटर और अन्य तमाशों में स्त्रियाँ प्राय: नंगी होकर खेल दिखलाती हैं। पाँचवें, बड़े-बड़े नगरों में इस बात का विज्ञापन रहता है कि आप चाहें तो वहाँ की नाईट लाइफ़ देख लें 'Night Life of Paris, Night Life of Berlin' आदि मोटे अक्षरों में लिखा रहता है। जो देखना चाहे उसका प्रबंध गाइड लोग कर देते हैं। यह हवा मिस्र देश की राजधानी तक पहुँच गई है।
केवल येही बातें देखकर यदि हम भारतवर्ष लौट आए होते तो हमें बड़ा दुःख होता और कुछ भी फ़ायदा न होता। जिन महासभाओं में हम गए और वहाँ जिन महिला-रत्नों के हमें दर्शन हुए और जिन बहिनों ने अपने घरों में हमें निमंत्रित किया उन्होंने स्त्री जाति के लिए हमारे हृदय में सच्चा आदर पैदा कर दिया। हमें यह मालूम हो गया कि अपने अपने देशों का सिर संसार में ऊँचा करने के लिए योरप की स्त्रियों ने पूरा प्रयत्न किया है। शिक्षा प्रचार में और जनता की सेवा में इनका कार्य अलौकिक है। इस समय सारे संसार में इटली को डाक्टर मांटीसोरी का नाम फैल रहा है। इन्होंने शिक्षा-प्रणाली में विलक्षण परिवर्तन कर दिया है। यह पहली स्त्री थीं जिन्होंने रोम के विश्वविद्यालय से चिकित्साशास्त्र की डिग्री प्राप्त की। पहले इनको ऐसे स्कूलों के डाकर मांटीसोरी निरीक्षण का भार दिया गया था जिनमें बोदे, कम बुद्धिवाले और कमज़ोर लड़के पढ़ते थे। ऐसे स्कूल भी योरप में बहुत हैं। कुछ दिनों के बाद इनकी शिक्षा-प्रणाली से बोदे लड़कों की बुद्धि भी चमक निकली। अनुसंधान से पता लगा कि इनके सिद्धांतों के अनुसार यदि साधारण बुद्धि के बालकों को भी शिक्षा दी जाए तो उनका कल्याण हो।
दूसरी महिला-रत्न जिनके अद्भुत वक्तृत्वशक्ति, संगठन-शक्ति और शिक्षा-सिद्धांतों के ज्ञान ने हमें प्रसन्न कर दिया, मिसेज बिइट्रसे एनसोर (Mrs. Beatrice Ensor) हैं। यह इंग्लैंड देश से कोई देवी इस नीरस गद्यमय संसार को मधुर काव्य-रस से ओत-प्रोत करने आ गई हैं। बाइबल, मिल्टन, ब्राउनिंग, शेक्सपियर, रवींद्र नाथ टैगोर आदि के पद इन्हें याद हैं और वे उन्हें इस प्रकार पढ़ती हैं कि उनके अर्थ चुभते हुए आपके हृदय में जाकर बैठ जाते हैं।
लंडन के ईस्टएंड में बहुत ग़रीब और गंदे लोग रहते हैं। वहाँ के लोगों के सुधार के लिए जितना कार्य स्त्रियाँ करती हैं वह संसार के लिए मनुष्य-सेवा का अद्भुत उदाहरण है। मिस लेस्टर एक महिला हैं जिनको अपने पिता से लाखों की संपत्ति मिली थी। उन्होंने सारी संपत्ति ईस्टएंड के सुधार के लिए दे दी, और आप स्वयं वहीं एक साधारण से मकान में साधारण भोजन पर रहती हैं। एक स्त्री हमें मिली जो उच्च कुल में धनी के घर पैदा होकर भी बचपन से ईस्टएंड के लोगों की सेवा अवैतनिक रूप से कर रही हैं, यहाँ तक कि उन्होंने अपना विवाह भी उसी श्रेणी के एक मर्द से कर लिया है जिसके कारण समाज ने उनका एक प्रकार से बहिष्कार कर दिया है। इन्होंने कृपापूर्वक हमें ईस्टएंड का बहुत सा हिस्सा दिखलाया। इनसे बिदा होते समय मैंने उनका पता पूछा। उन्होंने पता लिख दिया। उनके पति भी उस जलसे में मौजूद थे जहाँ वे मुझे ले गई थीं। इन महिला का नाम मिसेज प्लैटन है। मैंने इनसे पूछा कि मुझसे पत्र व्यवहार करने के लिए क्या आपको अपने पति से आज्ञा लेने की आवश्यकता होगी। उन्होंने कहा, नहीं, वह मेरा विश्वास करते हैं और मैं उनका विश्वास करती हूँ।
प्राय: जितनी सभा-समितियों में हम लोग गए उनमें स्त्रियों को बहुत काम करते पाया। हम लोगों से वे इतने प्रश्न पूछती थीं कि हम उनकी बुद्धिमत्ता पर चकित हो जाते थे। डेनमार्क में स्त्रियों को प्राय: तीन भाषाएँ बोलते पाया-अँग्रेज़ी, जर्मन और अपनी मातृभाषा।
खाते समय वहाँ प्रत्येक स्त्री के साथ एक पुरुष बैठता है। पुरुष का कर्तव्य होता है कि उसके पास जो स्त्री बैठे उसको वह बातचीत में लगाए रहे। मुझे जब जब किसी स्त्री के पास बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ मैंने उसके ज्ञान का क्षितिज अपने से अधिक विस्तृत पाया। ऐसे समय मैं बहुधा भारतवर्ष की चर्चा छेड़ देता था जिसके संबंध में उनको बहुत कम मालूम रहता था। बात यह है कि योरप के देशों में अनिवार्य शिक्षा है, इसलिए प्रत्येक स्त्री पढ़ी लिखी हैं। वे अपने व्यवसाय संबंधी और अन्य विषयों पर भी पुस्तकें और समाचारपत्र पढ़ा करती हैं। इसके अतिरिक्त योरप में संग्रहालयों और जंतु-शालाओं की इतनी प्रचुरता है कि इनमें एक बेर घूम आने से भी ज्ञान का विस्तार बढ़ जाता है। रेल के कमरों में भौगोलिक और प्राकृतिक दृश्यों के सुंदर चित्र लगे रहते हैं, गली-गली ऐतिहासिक व्यक्तियों की विशाल मूर्तियाँ वे प्रति दिन देखा करती हैं, इसलिए कोई आश्चर्य नहीं है कि एक पढ़े लिखे भारतवासी की अपेक्षा एक पढ़ी लिखी योरोपियन महिला अधिक ज्ञान रखती है। पेरिस, में हम लोगों को एक महिला मिली जो संस्कृत पढ़ रही थी। उन देशों में ज्ञान उपार्जन के अनेक साधन हैं। बर्लिन और म्यूनिक में हम लोगों ने प्लैनिटेरियम देखे। कमरों के अंदर लोग कुर्सी पर बैठ जाते हैं और अँधेरा कर दिया जाता है। एक यंत्र के चलते ही आकाश और पृथ्वी चलते हुए मालूम होते हैं। आकाश पर तारे निकल आते हैं। एक सज्जन व्याख्यान द्वारा सब बातें समझाते चलते हैं। इसके अतिरिक्त सामाजिक जीवन के उपयोगी शिक्षा भी उन्हें दी जाती है। रोटी पकाना, सीना-पिरोना, नाचना-कूदना, खेलना इत्यादि जानना आवश्यक है। एक स्त्री ने जहाज़ में मुझसे कहा (“Your education is incomplete”) तुम्हारी शिक्षा अधूरी है, क्योंकि तुम खेल-कूद हँसी-मज़ाक़ में तो शरीक होते ही नहीं।
वहाँ की स्त्रियों में एक प्रकार का व्यक्तित्व है। पहले रेल में या ट्रामवे में भीड़-भाड़ के समय मर्द स्त्रियों को बैठने की जगह दे देते थे और आप खड़े रहते थे। यह बात अब बहुत कम हो गई है। स्त्रियाँ अब अपने पैरों पर खड़ा होना पसंद करती हैं। इंग्लैंड, फ़्रांस और जर्मनी में मदों की अपेक्षा स्त्रियों की संख्या अधिक है। लड़ाई में हज़ारों मर्द मारे गए। ऐसी अवस्था में अनेक स्त्रियाँ बिना व्याही हैं और उनको बिना किसी मर्द की सहायता के अपनी जीविका उपार्जन करनी पड़ती है। वे दूकानें करती हैं, भोजनालयों में खाना परोसने का अथवा ख़ज़ानची का काम करती हैं, लोगों के कपड़े धोती हैं अथवा स्कूलों में पढ़ाने का काम करती हैं; पुलिस में कांसटेब्ल भी हैं। इस प्रकार संसार से युद्ध करती हैं और अपने व्यक्तित्व की रक्षा करती हैं। मजाल है कि कोई मर्द उनकी तरफ़ आँख उठाकर देख ले। हमारे देश में मंदिरों में, घाटों पर, बाज़ारों में मर्दों का स्त्रियों की ओर घूरना मामूली सी बात है। इसका बहुत बड़ा कारण निरक्षरता और पर्दा है। योरप में कई बार ऐसा देखने में आया कि एक अकेला मर्द एक अकेली स्त्री के साथ किसी दफ़्तर में काम कर रहा है अथवा लिफ़्ट में ऊपर-नीचे जा रहा है। सर्द देश होने के कारण वहाँ के लोगों को आदत पड़ गई है कि सब काम दरवाज़े बंद करके करें। सोने, शौच आदि जाने और नहाने का प्रबंध स्त्रियों के लिए अलग रहता है, परंतु नहाने का कपड़ा पहनकर मर्द और स्त्री एक ही स्थान पर तैरते हुए मिलते हैं। स्त्रियाँ ख़ूब कसरत करती हैं।
हम सबको अंतरिक्ष और पृथ्वी अभय प्रदान करे, हम सब पीछे से अभय होवें, आगे से अभय होवें, ऊपर से और नीचे से अभय होवें, हम सब मित्र से अभय होवें, शत्रु से अभय होवें, ज्ञात पदार्थ से अभय होवें, और अज्ञात पदार्थ से अभय होवें, रात को अभय रहें और दिन को अभय रहें, सब दिशाओं के रहनेवाले हमारे मित्र होवें।
ऊपर लिखे हुए वेदमंत्र में 'अभय' होने के लिए प्रार्थना की गई है। पर हमारे देश में हो रहा है अब इसका उलटा। हमारी स्त्रियों का जीवन रात-दिन डर ही में बीतता है। वे मर्दों से डरती हैं, अपने पति से डरती हैं, यात्रा करते समय डरती हैं, अँधेरे से डरती हैं, देवी-देवताओं से डरती हैं, भूतों से डरती हैं, इसी का परिणाम है कि हमारे बच्चों को 'अभय' का मंत्र सुनानेवाली माताएँ कम मिलती हैं।
योरप देश की यात्रा में स्त्रियों को मैंने 'अभय' की मूर्ति पाया, उनमें से कई अकेली संसार की यात्रा कर आती हैं। पैरिस में एक इंग्लिश महिला से भेंट हुई, वह 36 बेर एटलांटिक महासागर पार कर चुकी थी अर्थात् 18 बेर योरप से अमेरिका हो आई थी। यह हँसता हुआ चित्र 18 बरस की एक जर्मन लड़की का है, उसका नाम है लुई हाफमन। उसका जन्म जुलाई 1810 को हुआ था और 10 जुलाई 1828 को उसने हवाई जहाज़ चलाने की परीक्षा पास की। गत सितंबर में जब मैं जर्मनी में था तब वहाँ उसकी बड़ी चर्चा थी। निर्भय होकर यह लड़की आकाश में उड़ती है। उस समय जर्मनी में 13 स्त्रियाँ ऐसी थी जो हवाई जहाज़ चलाती थीं पर उनमें सबसे छोटी कुमारी हाफमन थी।
यह तो हुई आकाश की बात। डेनमार्क की मेली गेड नाम की स्त्री ने इंगलिश चैनल पार किया। यह समुद्र का एक टुकड़ा है, जहाज़ साधारणत: सात घंटे में इसको पार करता है। यह निडर स्त्री तैरकर इसको पार कर गई। अभी थोड़े ही दिन हुए कुमारी मरसीडीज़ डीजे 26 घंटे पानी के अंदर तैरती रही। जुलाई के अंत में जब मैं जनीवा में था, मैंने अनेक स्त्रियों को वहाँ की झील में तैरते हुए देखा। यही बात सारे योरप में पाई। स्कूलों में अथवा सर्वसाधारण के स्नानागारों में जिनका प्रबंध वहाँ की म्यूनिसिपैलिटी करती है स्त्रियाँ ख़ूब तैरती हैं, और ऊपर से पानी में बेधड़क कूद जाती हैं।
विस्सूवियस का ज्वालामुखी पर्वत देखने जब हम गए तब वहाँ स्त्रियों को खड्ड में उतरते देखा जिसमें कहीं कहीं आग का धुआँ भी निकलता था। कुछ दिनों के बाद 'शामोनी पर्वत' में जब हम बर्फ़ की नदी देखने गए तो कई स्त्रियों को ग्लेशियर पार करते देखा और भयानक स्थानों में कलोलें करते पाया। वे बर्फ़ के गहरे गड़हों में कूद जाती जहाँ फिर से ऊपर पाना उनके लिए मुश्किल हो जाता। ऊपर से हाथ खींचकर या नीचे से ढकलकर उनके साथी उनको ऊपर चढ़ा देते पर वे फिर नीचे कूद जाती। इसी प्रकार अनेक टोलियाँ अपने अपने साहस का परिचय देती थीं।
मिस्र देश के अलेकजेंडरिया नगर में पाम्पी नाम का एक स्तंभ है जो 88 फुट ऊँचा है। कहा जाता है कि मिस टैलबट नाम की एक योगपियन महिला उसके ऊपर चढ़ गई और वहाँ बैठकर उसने खाना खाया और एक पत्र लिखा।
जब हम कोलंबो से जहाज़ पर योरप जा रहे थे, एक स्त्री जाँघिया और तंग कुरती पहने हुए सबके सामने लड़कियों को कसरत करा रही थी। नित्य प्रति वह ऐसा ही करती थी।
27 अगस्त को बर्लिन में हम वहाँ की सबसे बड़ी व्यायामशाला देखने गए। वहाँ अनेक प्रकार की कसरतों का अद्भुत प्रबंध था। उसको संचालिका एक स्त्री है। उसका नाम मिस मोगडा कावस्की है। उसके शरीर की सी बनावट, उसका-सा फुर्तीलापन, उसके जैसी सुंदरता हमारे देश में स्वप्न में भी देखने में नहीं आती।
इन्हीं कारणों से संसार की दौड़ में वहाँ की स्त्रियाँ मर्दों का साथ देती हैं। सभा-समाजों में स्त्रियों को संख्या मर्दों से कम नहीं रहती, और वाद-विवाद में भी उनका हिस्सा मर्दों से किसी तरह कम नहीं होता। ऐसी माताओं की संतान भानमती के पिटारे में रखने लायक़ बबुए नहीं होते। उसी बर्लिन की व्यायाम-शाला में जिसका वर्णन ऊपर आया है तालाब के किनारे हम लोग बैठे थे, दूसरी तरफ़ एक स्त्री और एक मर्द विश्राम कर रहे थे और उनका बच्चा खेल रहा था। खेलते-खेलते वह पानी के पास चला आता और फिर चला जाता। कभी-कभी पानी में पैर तक डाल देता; उसके माता पिता दूर से देखकर हँसते थे। जहाज़ में छोटे छोटे बच्चे मस्तूल के रस्सों पर, किनारे के छड़ों पर बेखटके चढ़ जाते हैं। लंडन में एक दिन असबाब लादने की खुली लंबी चलती मोटर गाड़ी पर मैंने एक लड़के को कूदकर पीछे से ऊपर चढ़ते हुए देखा। हमारी माताएँ बच्चों को ऐसा करते देखकर घबरा जाती हैं, चिल्लाने लगती हैं और कभी कभी उनको मार भी देती हैं—यही कारण है कि हम लोग बचपन ही से बोदे, डरपोक और रोगी होते हैं, घर बैठे एक रोटी मिल जाए तो बाहर यदि साम्राज्य भी मिले तो नहीं जाएँगे।
छः महीने की यात्रा में हम लोग अनेक नगरों और ग्रामों में गए, अनेक गृहस्थों और व्यापारियों के साथ रहे, साधारणत: कहीं भी रोता हुआ बच्चा नहीं मिला। यह बहुत बड़ी बात है। दिन में बीस दफ़ा रानेवाले बच्चों की, जवानी में स्वाभाविक रोनी सूरत हो जाती है। योरप की स्त्रियों के लिए यह महान् गौरव की बात है कि उनके बच्चे साधारणत: नहीं रोते। हमारे यहाँ बच्चों का रोना मामूली बात है। वहाँ के छोटे-छोटे बच्चे भी निडर होते हैं। 18 जुलाई को एक देवी ने मुझे पैरिस में भोजन के लिए निमंत्रित किया। भारत संबंधी बात-चीत करते रात के ग्यारह बज गए। पैरिस के लोग बड़े रंगीले हैं। रात के समय इतने लोग मोटरों में बाहर निकलते हैं कि सड़क पर एक तरफ़ से दूसरी तरफ़ जाना कठिन हो जाता है। देवी की दो छोटी भतीजियाँ थीं, मुझे सड़क की दूसरी तरफ़ जाकर अंडर ग्राउंड रेल से जाना था। मोटरों की भरमार थी। पटरी से सड़क पर पैर रखने की हिम्मत नहीं थी पर ये दोनों लड़कियाँ सड़क पर उतर ही गईं। बच्चों को देखकर वहाँ के लोग गाड़ी की चाल धीमी कर देते हैं।
स्वाभिमान, संयम और निर्भयता आदि गुणों के कारण वहाँ की स्त्रियाँ साहसी, योद्धा और विद्वान उत्पन्न कर सकती हैं।
जनीवा झील में एक दिन हमने देखा कि एक जहाज़ छूटने ही वाला था, ठीक समय पर एक मोटर आई उस पर महिलाएँ थीं। जहाज़ पर एक मेम, जो उनकी मित्र थी, पहले ही चढ़ चुकी थी। वह दौड़ी और उसने उन्हें जहाज़ पर खींच लिया, तीनों बैठ गई और जहाज़ खुल गया। एक पिछड़ गई, इसलिए बैठ न सकी। पर वह घबराई नहीं। झट मोटर में आ बैठी और मोटर दौड़ाकर आगे के बंदरगाह पर पहुँच गई, जहाँ उसको वही जहाज़ मिल गया। यह है उनका साहस और धैर्य।
योरप में प्रायः हर एक बड़े नगर में एक न एक चित्रशाला है। इन चित्रशालाओं में प्राचीन और नवीन चित्रों का अद्भुत और बहुमूल्य संग्रह मिलता है। वहाँ बैठी हुई विशेष विशेष चित्रों की प्रतिलिपि लेती हुई स्त्रियाँ देखने में आई। इन चित्रों द्वारा वे बहुत सा रुपया कमा लेती हैं। हमने एक लड़की को देखा जो एक चित्र तैयार कर रही थी, उसने कहा कि मैं इसको अमुक प्रदर्शनी में भेजूँगी जो एक वर्ष बाद होनेवाली थी। वह उसके लिए पहले ही से तैयारी कर रही थी।
वहाँ की स्त्रियाँ मर्द बनने का प्रयत्न कर रही हैं। बालों को कटवाती हैं, ऊँचा कोट और ऊँचा मोज़ा पहनती हैं और बहुत तेज़ी के साथ चलती हैं। हमारे देश में गाँव के लड़के भी शहर के स्कूलों में आकर बाल रखने और माँग काढ़ने लगते हैं। तेज़ या दूर तक चलने की उनकी आदत छुट जाती है। एक दिन जब मुझे स्वीडन से जहाज़ पर बैठकर प्रात: काल डेनमार्क आना था मैं बड़े सबेरे अपने स्थान से बंदरगाह की ओर तेज़ी से जा रहा था। मैं समझता हूँ कि तेज़ चलने का मुझे कुछ अभ्यास है। दूर जाकर मुझे पीछे की तरफ़ किसी के चलने की आहट मालूम हुई। घूमकर देखा तो दो स्त्रियाँ आती हुई दिखलाई दीं। वहाँ का नियम है कि पटरी पर मर्द सड़क के किनारे की तरफ़ चलता है। मैं सड़क की तरफ़ हो लिया और मैंने स्त्रियों को आगे बढ़ जाने के लिए स्थान दे दिया। उन्होंने कहा क्या आप भी लेक्चर सुनने के लिए उस पार चल रहे हैं?” मैंने कहा—“जी हाँ।” उन्होंने कहा—तो तेज़ चलना जारी रखिए। आप ही को देखकर हम भी तेज़ आ रही हैं और ट्रामवे में नहीं बैठीं। हम लोग बहुत दूर तक साथ चले। वे इंग्लैंड की रहनेवाली थीं। उन्हें इस बात पर आश्चर्य हुआ कि हिंदुस्तान के (जो गर्म देश हैं) रहनेवाले भी तेज़ चल सकते हैं। मैंने उनको बतलाया कि हमारे देश में मुझसे भी बहुत ज़ियादा तेज़ लोग चल सकते हैं।
इंग्लैंड में थोड़े दिन पहले तक स्त्रियाँ पार्लियामेंट की सदस्य नहीं हो सकती थीं, केंब्रिज और आक्सफ़ोर्ड में डिग्रियाँ नहीं प्राप्त कर सकती थी और उनको वोट देने का अधिकार नहीं था। इन सब अधिकारों को प्राप्त करने के लिए उन्होंने घोर आंदोलन किया और आज इंग्लैंड की स्त्रियों का मर्दों की दृष्टि में बड़ा ऊँचा स्थान है। नेपोलियन से लोगों ने एक बेर पूछा कि आप लंडन पर कब धावा करेंगे। उसने उत्तर दिया “इंग्लैंड के लोग स्पेन, पुर्तगाल आदि देशों की तरह नहीं हैं, यदि उनके मर्द मारे जाएँगे तो उनकी स्त्रियाँ युद्ध क्षेत्र में आकर लड़ेंगी।
स्विज़रलैंड, इटली, और फ़्रांस में अब तक स्त्रियों को वोट देने का अधिकार नहीं है।
योरप में विवाह की प्रथा हमारे देश से भिन्न है। हमारे यहाँ विवाह एक संस्कार है, उनके यहाँ विवाह एक प्रकार का ठीका है। रेल में एक स्त्री हमें मिली। जान पहचान बढ़ जाने पर उसने कहा मेरा पति महासमर में गया था, जब मैंने सुना कि वह लुंजा हो गया तब मैंने उसको तिलाक दे दिया और एक दूसरे मर्द से अपना विवाह कर लिया। हमारे देश में पति के लँगड़े-लूले, अंधे-काने होने पर भी स्त्री उसकी सेवा करना अपना धर्म समझती है। वहाँ पति का चुनाव स्त्री पुरुष एक दूसरे से मिलकर कुछ दिन साथ रहकर अपने आप कर लेते हैं। अभी तक यह प्रथा थोड़ी बहुत जारी है कि अपने माता पिता की अनुमति विवाह से पहले ले लें। पर यह प्रथा अब बहुत कम हो रही है। हमारे देश में पति पत्नी का चुनाव एक संकुचित क्षेत्र में होता है। ब्राह्मण-ब्राह्मण में और क्षत्रिय-क्षत्रिय में भी विवाह नहीं हो सकता। उन देशों में साधारणत: जो जिससे चाहे विवाह कर सकता है। इंग्लैंड में एक स्कूल के हेडमास्टर की धर्मपत्नी ने मुझसे कहा कि मेरा पति पहले एक दूसरे स्कूल में हेडमास्टर था और वहीं मैं मालिन का काम करती थी। यह स्त्री मेरे सामने अपने पति की बड़ी सेवा करती हुई पाई गई। अनेक स्थानों में बुड्ढे स्त्री और मर्दों ने हम लोगों से शिकायत की कि जवान औरतें और मर्द छुट्टीवाले दिन ग़ायब हो जाते हैं और विवाह के कुछ दिनों पहले संबंध निश्चित हो जाने की सूचना देते हैं। राजघराने में और धनाढ्य घरों में अब तक माता पिता की पूर्ण अनुमति प्राप्त करना आवश्यक है।
कोई स्त्री मर्द से अपने विवाह की बातचीत नहीं करेगी, मर्द ही शुरू करेगा। पर मलमास में इसके विपरीत होता है। अधिकतर जब नाच होते हैं या भोज होता है तभी इस प्रकार की जान पहचान हो जाती है। योरप में मर्द का परिचय पहले कराया जाता है, स्त्री का परिचय पीछे। विवाह गिरजाघर में होता है और उसकी रजिस्ट्री कराई जाती है। बहुत से लोग गिर्जा से अन्यत्र भी विवाह करा लेते हैं। विवाह के समय बहुत से लोग निमंत्रित होते हैं। दुल्हा और दुलहिन बड़े सुंदर कपड़े पहिनकर आते हैं और अनेक प्रकार के धार्मिक कृत्य करते हैं। विवाह हो जाने के अनंतर उन पर चावल की और कहीं कहीं जूतों की वर्षा होती है। मित्र लोग अनेक प्रकार की वस्तुएँ भेंट करते हैं। हमने भी कई विवाह देखे और विवाह की मिठाइयाँ और रोटियाँ देखीं। विवाह की समाप्ति पर स्त्री का नाम अपने पति के नाम पर रखा जाता है। स्वतंत्रता-प्रेमी बहुत सी स्त्रियाँ महिला-सभाओं में अब यह भी प्रस्ताव उपस्थित कर रही हैं कि स्त्री मर्द के नाम से क्यों पुकारी जाएँ; क्यों न मर्द स्त्री के नाम से पुकारा जाए।
अंत में दूल्हा और दुलहिन कुछ दिनों के लिए किसी एकांत स्थान में चले जाते हैं, इस रवाज को 'हनीमून' कहते हैं। एक मर्द एक ही स्त्री से विवाह कर सकता है। उसके मरने पर या उसको छोड़ देने पर दूसरी से विवाह होना संभव है।
प्रत्येक स्त्री के लिए गाना और नाचना जानना आवश्यक है। मर्द भी ऐसे बहुत कम होंगे जो गा और नाच न सकते हों, भोजन के बाद सब लोग ख़ूब नाचते और गाते हैं। बहुत सी कसरतें नाच के नाम से प्रसिद्ध हैं, पर उनमें खेलते कूदते अच्छा शारीरिक परिश्रम हो जाता है। स्त्रियाँ कृत्रिम उपायों से अपनी कमर को पतली करती हैं। यह उनकी दृष्टि में सुंदरता का एक चिह्न है। वहाँ के लोग अब इसके भी विरुद्ध हो रहे हैं।
जर्मनी में एक संस्था का पता लगा जिसके सदस्य, मर्द और स्त्री सब एक साथ नंगे होकर कसरत करते हैं। इनकी सचित्र पत्रिका की एक प्रति मैं अपने साथ लाया था जिसपर बंबई के कस्टम कार्यालय के लोगों ने बड़ा ऐतराज़ किया था। इसमें अनेक चित्र हैं जिनमें स्त्री और मर्दों का बिल्कुल नग्न होकर कसरत करना दिखलाया गया है।
पढ़ाने के काम में स्त्रियाँ बहुत हैं, विशेषकर नीचे की कक्षाओं में। इनका कार्य भी अत्यंत प्रशंसनीय है। पर इंग्लैंड में एक दल इसके विरुद्ध खड़ा हो रहा है। अध्यापकों की एक महासभा ने, जो मैनचेस्टर में हुई थी, इस विरोध को इन शब्दों में प्रगट किया, “You cannot feminise the teaching of boys without feminising the nation अर्थात् लड़कों की पढ़ाई का काम स्त्रियों के हाथ में देने से राष्ट्र में स्त्रीत्व आ जाएगा। इसके विपरीत स्त्रियाँ अपनी महासभाओं में यह प्रस्ताव पास करती हैं कि हर एक व्यवसाय में और जातीय काम में स्त्रियों को स्थान मिलना चाहिए। उनका उद्योग है कि स्त्रियाँ शिक्षा संबंधी, जेल-सुधार संबंधी कमीशनों और कमेटियों की सदस्या बनाई जाएँ।
दया के काम करने में स्त्रियाँ सबसे आगे हैं। वे अस्पतालों में रोगियों की सेवा करती हुई मिलती हैं (Sisters of merey)। एक दिन रविवार के सबेरे लंडन में एक अस्पताल के बाहर कुछ स्त्रियों को मैंने बहुत से फूलों के गुच्छे लिए हुए देखा। पूछने से मालूम हुआ कि प्रति रविवार को बहुत सी स्त्रियाँ रोगियों को फूलों के गुच्छे लाकर देती हैं; और उनके पास बैठकर क़िस्से-कहानी अथवा धार्मिक कथाएँ सुनाती हैं।
kisi desh ki istriyon ke sambandh mein kuch likhte ya kahte baDa sankoch hota hai jahaz mein baithte hi kuch asadharan baten dekhkar bharatiy hirdai ko bahut baDa sadma pahunchta hai yorap pahunchakar aur wahan ki bahari awastha dekhkar wo duःkh aur bhi baDh jata hai istriyon ka cigarette aur sharab pina sadharan si baat hai hamne suna tha ki bhojan ke anantar cigarette pine ke liye mard istriyon se alag ho jate hain, ye baat ab nahin hai logon ne hamein batlaya ki in donon buraiyon ko wahan ki istriyon ne laDai ke samay sikha jab we din raat chinta mein rahti theen unke mard, bhai, pita sab laDai mein gaye the, unke upar na kewal bachchon ke palne ka hi bhaar tha balki rupaya kamane ka uttardayitw bhi unke sir par aa paDa tha aise samay mein we bechari apne duःkh ko door karne ke liye thoDi madira pi leti theen ya cigarette ka prayog kar leti theen
jahaz mein, bagh baghichon mein yahan tak ki girjaghron ke bahar bhi andhera hone par aurat aur mard aisa wywahar karte hue mile jiske dekhne ka awsar hindustaniyon ko apne desh mein nahin milta iske liye lanDan ka haiDpark bahut badnam hai aise jiwan ka mukhy karan sharab hai gandi bimariyan sare yorap mein baDh rahi hain kisi sabhy lekhani dwara aisi baton ka warnan karna kathin hai wahan ke log niji jiwan ko sarwajnik jiwan se alag samajhte hain kisi ke niji jiwan ki jaanch paDtal nahin karte aisi baton ko dekhkar baghal se chale jate hain
italy pahunchakar hamne dekha ki striyan apne hothon ko lal rangati hain ye pratha frans mein adhik pai rail mein istri mard ek hi kamre mein ek sath yatra karte hain shisha, kanghi, pauDar unke sath rahta hai awashyakta paDne par we sabke samne shisha nikalkar apna munh dekhne lagti hain kanghi se apne baal sanwar leti hain aur chehre par pauDar laga leti hain par purush ke samne khilakhilakar hansna bura nahin samjha jata hai sharir ko banawati taur par sundar rakhne ke liye anek prakar ke sabun aur makkhan, tarah tarah ki bukni bazaron mein milti hain complexion soap, complexion cream, cleansing cream, nourishing cream aadi ke ishtihar mote mote akshron mein charon taraf dekhne mein aate hain anek prakar ki aisi wastuen bikti hain jinse hoth ya gal range jate hain
hum logon ka wishwas tha ki hamare desh mein pati patni sambandhi wichar bachchon ko yorap ki apeksha jaldi ho jata hai jiske hum teen karan samajhte the—ek is desh ki garmi, dusre mata pita ki asawadhani aur tisre gali bazaron mein raat din galiyon ka sunna gaDiwala ghoDe ko, bailwala bail ko, man bahan ki gali deta hai, jisko log bachpan hi se sunte hain parantu yoropiy deshon mein bhi is sambandh ki aisi bahut si baten hain unmen se do ek ka ullekh hamne upar kar diya hai dusre, mata pita ka sadaiw ek bistar par sona tisre, adhik bachchon ke paida hone ko rokne ke sambandh ki samagri ka khullamkhulla dukanon par bikna wiyna mein laghushanka karne ke sthan mein rabar ki aisi ek chiz—jiska nam ghummi likha hai—rakhi rahti hai kal mein paisa Dalte hi wo bahar nikal aati hai frans mein garmi, suzak aadi rogon se bachne ke upay kahin kahin peshabkhanon mein sachitr latke rahte hain wahan weshyaon ki samayik Daktari pariksha hoti hai jarmni mein ek baDe widwan aur anubhwi mitr ne hamein batlaya ki widyarthiyon mein ye rog bahut baDh rahe hain jiske karan wahan ke shikshak log bahut chintit hain duःkh ki baat hai ki ye shikayat hindustan mein bhi sunne mein aa rahi hai chauthe, yorap bhar mein nangi murtiyan sab jagah milti hain aisi murtiyan hamein sangrhalyon mein, saDkon par, cristol pailes mein aur wishwwidyalyon ke bahar bhi mili we kahte hain ki aisi murtiyon ko murti nirman kala ki drishti se dekhana chahiye jahaz mein aur kai dusri jagah jahan kewal mard hi mard nahate dhote hain wahan kai ber dekha ki mard nange hokar sabke samne tauliye se badan pochhne lagte hain bahut se thiyetar aur any tamashon mein striyan prayah nangi hokar khel dikhlati hain panchwen, baDe baDe nagron mein is baat ka wij~napan rahta hai ki aap chahen to wahan ki nait life dekh len night life of paris, night life of berlin aadi mote akshron mein likha rahta hai jo dekhana chahe uska parbandh guide log kar dete hain ye hawa misr desh ki rajdhani tak pahunch gai hai
kewal yehi baten dekhkar yadi hum bharatwarsh laut aaye hote to hamein baDa duःkh hota aur kuch bhi fayda na hota jin mahasbhaon mein hum gaye aur wahan jin mahila ratnon ke hamein darshan hue aur jin bahinon ne apne gharon mein hamein nimantrit kiya unhonne istri jati ke liye hamare hirdai mein sachcha aadar paida kar diya hamein ye malum ho gaya ki apne apne deshon ka sir sansar mein uncha karne ke liye yorap ki istriyon ne pura prayatn kiya hai shiksha parchar mein aur janta ki sewa mein inka kary alaukik hai is samay sare sansar mein italy ko Daktar mantisori ka nam phail raha hai inhonne shiksha pranali mein wilakshan pariwartan kar diya hai ye pahli istri theen jinhonne rom ke wishwawidyalay se chikitsashastr ki degre prapt ki pahle inko aise schoolon ke Dakar mantisori nirikshan ka bhaar diya gaya tha jinmen bode, kam buddhiwale aur kamzor laDke paDhte the aise school bhi yorap mein bahut hain kuch dinon ke baad inki shiksha pranali se bode laDkon ki buddhi bhi chamak nikli anusandhan se pata laga ki inke siddhanton ke anusar yadi sadharan buddhi ke balkon ko bhi shiksha di jaye to unka kalyan ho
dusri mahila ratn jinke adbhut waktritwshakti, sangthan shakti aur shiksha siddhanton ke gyan ne hamein prasann kar diya, misej bitrse ensor (mrs beatrice ensor) hain ye england desh se koi dewi is niras gadymay sansar ko madhur kawy ras se ot prot karne aa gai hain bible, miltan, brauning, shakespeare, rawindr nath tagore aadi ke pad inhen yaad hain aur we unhen is prakar paDhti hain ki unke arth chubhte hue aapke hirdai mein jakar baith jate hain
lanDan ke istenD mein bahut gharib aur gande log rahte hain wahan ke logon ke sudhar ke liye jitna kary striyan karti hain wo sansar ke liye manushya sewa ka adbhut udaharn hai miss lestar ek mahila hain jinko apne pita se lakhon ki sampatti mili thi unhonne sari sampatti istenD ke sudhar ke liye de di, aur aap swayan wahin ek sadharan se makan mein sadharan bhojan par rahti hain ek istri hamein mili jo uchch kul mein dhani ke ghar paida hokar bhi bachpan se istenD ke logon ki sewa awaitanik roop se kar rahi hain, yahan tak ki unhonne apna wiwah bhi usi shrenai ke ek mard se kar liya hai jiske karan samaj ne unka ek prakar se bahishkar kar diya hai inhonne kripapurwak hamein istenD ka bahut sa hissa dikhlaya inse bida hote samay mainne unka pata puchha unhonne pata likh diya unke pati bhi us jalse mein maujud the jahan we mujhe le gai theen in mahila ka nam misej plaitan hai mainne inse puchha ki mujhse patr wywahar karne ke liye kya aapko apne pati se aagya lene ki awashyakta hogi unhonne kaha, nahin, wo mera wishwas karte hain aur main unka wishwas karti hoon
prayah jitni sabha samitiyon mein hum log gaye unmen istriyon ko bahut kaam karte paya hum logon se we itne parashn puchhti theen ki hum unki buddhimatta par chakit ho jate the Denmark mein istriyon ko prayah teen bhashayen bolte paya angrezi, german aur apni matribhasha
khate samay wahan pratyek istri ke sath ek purush baithta hai purush ka kartawya hota hai ki uske pas jo istri baithe usko wo batachit mein lagaye rahe mujhe jab jab kisi istri ke pas baithne ka saubhagya prapt hua mainne uske gyan ka kshaitij apne se adhik wistrit paya aise samay main bahudha bharatwarsh ki charcha chheD deta tha jiske sambandh mein unko bahut kam malum rahta tha baat ye hai ki yorap ke deshon mein aniwary shiksha hai, isliye pratyek istri paDhi likhi hain we apne wyawsay sambandhi aur any wishyon par bhi pustken aur samacharpatr paDha karti hain iske atirikt yorap mein sangrhalyon aur jantu shalaon ki itni prachurta hai ki inmen ek ber ghoom aane se bhi gyan ka wistar baDh jata hai rail ke kamron mein bhaugolik aur prakritik drishyon ke sundar chitr lage rahte hain, gali gali aitihasik wyaktiyon ki wishal murtiyan we prati din dekha karti hain, isliye koi ashchary nahin hai ki ek paDhe likhe bharatwasi ki apeksha ek paDhi likhi european mahila adhik gyan rakhti hai peris, mein hum logon ko ek mahila mili jo sanskrit paDh rahi thi un deshon mein gyan uparjan ke anek sadhan hain berlin aur myunik mein hum logon ne plainiteriyam dekhe kamron ke andar log kursi par baith jate hain aur andhera kar diya jata hai ek yantr ke chalte hi akash aur prithwi chalte hue malum hote hain akash par tare nikal aate hain ek sajjan wyakhyan dwara sab baten samjhate chalte hain iske atirikt samajik jiwan ke upyogi shiksha bhi unhen di jati hai roti pakana, sina pirona, nachna kudna, khelna ityadi janna awashyak hai ek istri ne jahaz mein mujhse kaha (“your education is incomplete”) tumhari shiksha adhuri hai, kyonki tum khel kood hansi mazaq mein to sharik hote hi nahin
wahan ki istriyon mein ek prakar ka wyaktitw hai pahle rail mein ya tramwe mein bheeD bhaD ke samay mard istriyon ko baithne ki jagah de dete the aur aap khaDe rahte the ye baat ab bahut kam ho gai hai striyan ab apne pairon par khaDa hona pasand karti hain england, frans aur jarmni mein madon ki apeksha istriyon ki sankhya adhik hai laDai mein hazaron mard mare gaye aisi awastha mein anek striyan bina wyahi hain aur unko bina kisi mard ki sahayata ke apni jiwika uparjan karni paDti hai we dokanen karti hain, bhojnalyon mein khana parosne ka athwa khaj़anach ka kaam karti hain, logon ke kapDe dhoti hain athwa schoolon mein paDhane ka kaam karti hain; police mein kanstebl bhi hain is prakar sansar se yudh karti hain aur apne wyaktitw ki rakhsha karti hain majal hai ki koi mard unki taraf ankh uthakar dekh le hamare desh mein mandiron mein, ghaton par, bazaron mein mardon ka istriyon ki or ghurna mamuli si baat hai iska bahut baDa karan niraksharata aur parda hai yorap mein kai bar aisa dekhne mein aaya ki ek akela mard ek akeli istri ke sath kisi daftar mein kaam kar raha hai athwa lift mein upar niche ja raha hai sard desh hone ke karan wahan ke logon ko aadat paD gai hai ki sab kaam darwaze band karke karen sone, shauch aadi jane aur nahane ka parbandh istriyon ke liye alag rahta hai, parantu nahane ka kapDa pahankar mard aur istri ek hi sthan par tairte hue milte hain striyan khoob kasrat karti hain
abhayan naktamabhayan diwa nः sarwa shrasha mam mitran bhawantu॥
(atharwawed)
hum sabko antriksh aur prithwi abhai pradan kare, hum sab pichhe se abhai howen, aage se abhai howen, upar se aur niche se abhai howen, hum sab mitr se abhai howen, shatru se abhai howen, j~nat padarth se abhai howen, aur agyat padarth se abhai howen, raat ko abhai rahen aur din ko abhai rahen, sab dishaon ke rahnewale hamare mitr howen
upar likhe hue wedmantr mein abhai hone ke liye pararthna ki gai hai par hamare desh mein ho raha hai ab iska ulta hamari istriyon ka jiwan raat din Dar hi mein bitta hai we mardon se Darti hain, apne pati se Darti hain, yatra karte samay Darti hain, andhere se Darti hain, dewi dewtaon se Darti hain, bhuton se Darti hain, isi ka parinam hai ki hamare bachchon ko abhai ka mantr sunanewali matayen kam milti hain
yorap desh ki yatra mein istriyon ko mainne abhai ki murti paya, unmen se kai akeli sansar ki yatra kar aati hain paris mein ek english mahila se bhent hui, wo 36 ber etlantik mahasagar par kar chuki thi arthat 18 ber yorap se amerika ho i thi ye hansta hua chitr 18 baras ki ek german laDki ka hai, uska nam hai lui haphman uska janm julai 1810 ko hua tha aur 10 julai 1828 ko usne hawai jahaz chalane ki pariksha pas ki gat september mein jab main jarmni mein tha tab wahan uski baDi charcha thi nirbhay hokar ye laDki akash mein uDti hai us samay jarmni mein 13 striyan aisi thi jo hawai jahaz chalati theen par unmen sabse chhoti kumari haphman thi
ye to hui akash ki baat Denmark ki meli geD nam ki istri ne inglish channel par kiya ye samudr ka ek tukDa hai, jahaz sadharantah sat ghante mein isko par karta hai ye niDar istri tairkar isko par kar gai abhi thoDe hi din hue kumari marsiDiz Dije 26 ghante pani ke andar tairti rahi julai ke ant mein jab main janiwa mein tha, mainne anek istriyon ko wahan ki jheel mein tairte hue dekha yahi baat sare yorap mein pai schoolon mein athwa sarwasadharan ke snanagaron mein jinka parbandh wahan ki myunisipailiti karti hai striyan khoob tairti hain, aur upar se pani mein bedhaDak kood jati hain
wissuwiyas ka jwalamukhi parwat dekhne jab hum gaye tab wahan istriyon ko khaDD mein utarte dekha jismen kahin kahin aag ka dhuan bhi nikalta tha kuch dinon ke baad shamoni parwat mein jab hum barf ki nadi dekhne gaye to kai istriyon ko glacier par karte dekha aur bhayanak asthanon mein kalolen karte paya we barf ke gahre gaDhon mein kood jati jahan phir se upar pana unke liye mushkil ho jata upar se hath khinchkar ya niche se Dhakalkar unke sathi unko upar chaDha dete par we phir niche kood jati isi prakar anek toliyan apne apne sahas ka parichai deti theen
misr desh ke alekjenDariya nagar mein pampi nam ka ek stambh hai jo 88 phut uncha hai kaha jata hai ki miss tailbat nam ki ek yogapiyan mahila uske upar chaDh gai aur wahan baithkar usne khana khaya aur ek patr likha
jab hum kolambo se jahaz par yorap ja rahe the, ek istri janghiya aur tang kurti pahne hue sabke samne laDkiyon ko kasrat kara rahi thi nity prati wo aisa hi karti thi
27 august ko berlin mein hum wahan ki sabse baDi wyayamashala dekhne gaye wahan anek prakar ki kasarton ka adbhut parbandh tha usko sanchalika ek istri hai uska nam miss mogDa kawaski hai uske sharir ki si banawat, uska sa phurtilapan, uske jaisi sundarta hamare desh mein swapn mein bhi dekhne mein nahin aati
inhin karnon se sansar ki dauD mein wahan ki striyan mardon ka sath deti hain sabha samajon mein istriyon ko sankhya mardon se kam nahin rahti, aur wad wiwad mein bhi unka hissa mardon se kisi tarah kam nahin hota aisi mataon ki santan bhanmati ke pitare mein rakhne layaq babue nahin hote usi berlin ki wyayam shala mein jiska warnan upar aaya hai talab ke kinare hum log baithe the, dusri taraf ek istri aur ek mard wishram kar rahe the aur unka bachcha khel raha tha khelte khelte wo pani ke pas chala aata aur phir chala jata kabhi kabhi pani mein pair tak Dal deta; uske mata pita door se dekhkar hanste the jahaz mein chhote chhote bachche mastul ke rasson par, kinare ke chhaDon par bekhatke chaDh jate hain lanDan mein ek din asbab ladne ki khuli lambi chalti motor gaDi par mainne ek laDke ko kudkar pichhe se upar chaDhte hue dekha hamari matayen bachchon ko aisa karte dekhkar ghabra jati hain, chillane lagti hain aur kabhi kabhi unko mar bhi deti hain—yahi karan hai ki hum log bachpan hi se bode, Darpok aur rogi hote hain, ghar baithe ek roti mil jaye to bahar yadi samrajy bhi mile to nahin jayenge
chhः mahine ki yatra mein hum log anek nagron aur gramon mein gaye, anek grihasthon aur wyapariyon ke sath rahe, sadharantah kahin bhi rota hua bachcha nahin mila ye bahut baDi baat hai din mein bees dafa ranewale bachchon ki, jawani mein swabhawik roni surat ho jati hai yorap ki istriyon ke liye ye mahan gauraw ki baat hai ki unke bachche sadharantah nahin rote hamare yahan bachchon ka rona mamuli baat hai wahan ke chhote chhote bachche bhi niDar hote hain 18 julai ko ek dewi ne mujhe paris mein bhojan ke liye nimantrit kiya bharat sambandhi baat cheet karte raat ke gyarah baj gaye paris ke log baDe rangile hain raat ke samay itne log motoron mein bahar nikalte hain ki saDak par ek taraf se dusri taraf jana kathin ho jata hai dewi ki do chhoti bhatijiyan theen, mujhe saDak ki dusri taraf jakar anDar ground rail se jana tha motoron ki bharmar thi patri se saDak par pair rakhne ki himmat nahin thi par ye donon laDkiyan saDak par utar hi gain bachchon ko dekhkar wahan ke log gaDi ki chaal dhimi kar dete hain
swabhiman, sanyam aur nirbhayta aadi gunon ke karan wahan ki striyan sahasi, yoddha aur widwan utpann kar sakti hain
janiwa jheel mein ek din hamne dekha ki ek jahaz chhutne hi wala tha, theek samay par ek motor i us par mahilayen theen jahaz par ek mem, jo unki mitr thi, pahle hi chaDh chuki thi wo dauDi aur usne unhen jahaz par kheench liya, tinon baith gai aur jahaz khul gaya ek pichhaD gai, isliye baith na saki par wo ghabrai nahin jhat motor mein aa baithi aur motor dauDakar aage ke bandargah par pahunch gai, jahan usko wahi jahaz mil gaya ye hai unka sahas aur dhairya
yorap mein praya har ek baDe nagar mein ek na ek chitrshala hai in chitrshalaon mein prachin aur nawin chitron ka adbhut aur bahumuly sangrah milta hai wahan baithi hui wishesh wishesh chitron ki pratilipi leti hui striyan dekhne mein i in chitron dwara we bahut sa rupaya kama leti hain hamne ek laDki ko dekha jo ek chitr taiyar kar rahi thi, usne kaha ki main isko amuk pradarshani mein bhejungi jo ek warsh baad honewali thi wo uske liye pahle hi se taiyari kar rahi thi
wahan ki striyan mard banne ka prayatn kar rahi hain balon ko katwati hain, uncha coat aur uncha moza pahanti hain aur bahut tezi ke sath chalti hain hamare desh mein ganw ke laDke bhi shahr ke schoolon mein aakar baal rakhne aur mang kaDhne lagte hain tez ya door tak chalne ki unki aadat chhut jati hai ek din jab mujhe swiDan se jahaz par baithkar pratah kal Denmark aana tha main baDe sabere apne sthan se bandargah ki or tezi se ja raha tha main samajhta hoon ki tez chalne ka mujhe kuch abhyas hai door jakar mujhe pichhe ki taraf kisi ke chalne ki aahat malum hui ghumkar dekha to do striyan aati hui dikhlai deen wahan ka niyam hai ki patri par mard saDak ke kinare ki taraf chalta hai main saDak ki taraf ho liya aur mainne istriyon ko aage baDh jane ke liye sthan de diya unhonne kaha kya aap bhi lecture sunne ke liye us par chal rahe hain?” mainne kaha—“ji han ” unhonne kaha—to tez chalna jari rakhiye aap hi ko dekhkar hum bhi tez aa rahi hain aur tramwe mein nahin baithin hum log bahut door tak sath chale we england ki rahnewali theen unhen is baat par ashchary hua ki hindustan ke (jo garm desh hain) rahnewale bhi tez chal sakte hain mainne unko batlaya ki hamare desh mein mujhse bhi bahut ziyada tez log chal sakte hain
england mein thoDe din pahle tak striyan parliament ki sadasy nahin ho sakti theen, kembrij aur aksforD mein degreeyan nahin prapt kar sakti thi aur unko wote dene ka adhikar nahin tha in sab adhikaron ko prapt karne ke liye unhonne ghor andolan kiya aur aaj england ki istriyon ka mardon ki drishti mein baDa uncha sthan hai napoleon se logon ne ek ber puchha ki aap lanDan par kab dhawa karenge usne uttar diya “inglainD ke log spen, portugal aadi deshon ki tarah nahin hain, yadi unke mard mare jayenge to unki striyan yudh kshaetr mein aakar laDengi
swizarlainD, italy, aur frans mein ab tak istriyon ko wote dene ka adhikar nahin hai
yorap mein wiwah ki pratha hamare desh se bhinn hai hamare yahan wiwah ek sanskar hai, unke yahan wiwah ek prakar ka thika hai rail mein ek istri hamein mili jaan pahchan baDh jane par usne kaha mera pati mahasmar mein gaya tha, jab mainne suna ki wo lunja ho gaya tab mainne usko tilak de diya aur ek dusre mard se apna wiwah kar liya hamare desh mein pati ke langDe lule, andhe kane hone par bhi istri uski sewa karna apna dharm samajhti hai wahan pati ka chunaw istri purush ek dusre se milkar kuch din sath rahkar apne aap kar lete hain abhi tak ye pratha thoDi bahut jari hai ki apne mata pita ki anumti wiwah se pahle le len par ye pratha ab bahut kam ho rahi hai hamare desh mein pati patni ka chunaw ek sankuchit kshaetr mein hota hai brahman brahman mein aur kshatriy kshatriy mein bhi wiwah nahin ho sakta un deshon mein sadharantah jo jisse chahe wiwah kar sakta hai england mein ek school ke headmaster ki dharmpatni ne mujhse kaha ki mera pati pahle ek dusre school mein headmaster tha aur wahin main malin ka kaam karti thi ye istri mere samne apne pati ki baDi sewa karti hui pai gai anek asthanon mein buDDhe istri aur mardon ne hum logon se shikayat ki ki jawan aurten aur mard chhuttiwale din ghayab ho jate hain aur wiwah ke kuch dinon pahle sambandh nishchit ho jane ki suchana dete hain rajaghrane mein aur dhanaDhy gharon mein ab tak mata pita ki poorn anumti prapt karna awashyak hai
koi istri mard se apne wiwah ki batachit nahin karegi, mard hi shuru karega par malmas mein iske wiprit hota hai adhiktar jab nach hote hain ya bhoj hota hai tabhi is prakar ki jaan pahchan ho jati hai yorap mein mard ka parichai pahle karaya jata hai, istri ka parichai pichhe wiwah girjaghar mein hota hai aur uski registry karai jati hai bahut se log girja se anyatr bhi wiwah kara lete hain wiwah ke samay bahut se log nimantrit hote hain dulha aur dulhin baDe sundar kapDe pahinkar aate hain aur anek prakar ke dharmik krity karte hain wiwah ho jane ke anantar un par chawal ki aur kahin kahin juton ki warsha hoti hai mitr log anek prakar ki wastuen bhent karte hain hamne bhi kai wiwah dekhe aur wiwah ki mithaiyan aur rotiyan dekhin wiwah ki samapti par istri ka nam apne pati ke nam par rakha jata hai swtantrta premi bahut si striyan mahila sabhaon mein ab ye bhi prastaw upasthit kar rahi hain ki istri mard ke nam se kyon pukari jayen; kyon na mard istri ke nam se pukara jaye
ant mein dulha aur dulhin kuch dinon ke liye kisi ekant sthan mein chale jate hain, is rawaj ko honeymoon kahte hain ek mard ek hi istri se wiwah kar sakta hai uske marne par ya usko chhoD dene par dusri se wiwah hona sambhaw hai
pratyek istri ke liye gana aur nachna janna awashyak hai mard bhi aise bahut kam honge jo ga aur nach na sakte hon, bhojan ke baad sab log khoob nachte aur gate hain bahut si kasraten nach ke nam se prasiddh hain, par unmen khelte kudte achchha sharirik parishram ho jata hai striyan kritrim upayon se apni kamar ko patli karti hain ye unki drishti mein sundarta ka ek chihn hai wahan ke log ab iske bhi wiruddh ho rahe hain
jarmni mein ek sanstha ka pata laga jiske sadasy, mard aur istri sab ek sath nange hokar kasrat karte hain inki sachitr patrika ki ek prati main apne sath laya tha jispar bambi ke custam karyalay ke logon ne baDa aitraz kiya tha ismen anek chitr hain jinmen istri aur mardon ka bilkul nagn hokar kasrat karna dikhlaya gaya hai
paDhane ke kaam mein striyan bahut hain, wisheshkar niche ki kakshaon mein inka kary bhi atyant prashansniy hai par england mein ek dal iske wiruddh khaDa ho raha hai adhyapkon ki ek mahasabha ne, jo manchester mein hui thi, is wirodh ko in shabdon mein pragat kiya, “you cannot feminise the teaching of boys without feminising the nation arthat laDkon ki paDhai ka kaam istriyon ke hath mein dene se rashtra mein streetw aa jayega iske wiprit striyan apni mahasbhaon mein ye prastaw pas karti hain ki har ek wyawsay mein aur jatiy kaam mein istriyon ko sthan milna chahiye unka udyog hai ki striyan shiksha sambandhi, jel sudhar sambandhi kamishnon aur kametiyon ki sadasya banai jayen
daya ke kaam karne mein striyan sabse aage hain we aspatalon mein rogiyon ki sewa karti hui milti hain (sisters of merey) ek din rawiwar ke sabere lanDan mein ek aspatal ke bahar kuch istriyon ko mainne bahut se phulon ke guchchhe liye hue dekha puchhne se malum hua ki prati rawiwar ko bahut si striyan rogiyon ko phulon ke guchchhe lakar deti hain; aur unke pas baithkar qisse kahani athwa dharmik kathayen sunati hain
kisi desh ki istriyon ke sambandh mein kuch likhte ya kahte baDa sankoch hota hai jahaz mein baithte hi kuch asadharan baten dekhkar bharatiy hirdai ko bahut baDa sadma pahunchta hai yorap pahunchakar aur wahan ki bahari awastha dekhkar wo duःkh aur bhi baDh jata hai istriyon ka cigarette aur sharab pina sadharan si baat hai hamne suna tha ki bhojan ke anantar cigarette pine ke liye mard istriyon se alag ho jate hain, ye baat ab nahin hai logon ne hamein batlaya ki in donon buraiyon ko wahan ki istriyon ne laDai ke samay sikha jab we din raat chinta mein rahti theen unke mard, bhai, pita sab laDai mein gaye the, unke upar na kewal bachchon ke palne ka hi bhaar tha balki rupaya kamane ka uttardayitw bhi unke sir par aa paDa tha aise samay mein we bechari apne duःkh ko door karne ke liye thoDi madira pi leti theen ya cigarette ka prayog kar leti theen
jahaz mein, bagh baghichon mein yahan tak ki girjaghron ke bahar bhi andhera hone par aurat aur mard aisa wywahar karte hue mile jiske dekhne ka awsar hindustaniyon ko apne desh mein nahin milta iske liye lanDan ka haiDpark bahut badnam hai aise jiwan ka mukhy karan sharab hai gandi bimariyan sare yorap mein baDh rahi hain kisi sabhy lekhani dwara aisi baton ka warnan karna kathin hai wahan ke log niji jiwan ko sarwajnik jiwan se alag samajhte hain kisi ke niji jiwan ki jaanch paDtal nahin karte aisi baton ko dekhkar baghal se chale jate hain
italy pahunchakar hamne dekha ki striyan apne hothon ko lal rangati hain ye pratha frans mein adhik pai rail mein istri mard ek hi kamre mein ek sath yatra karte hain shisha, kanghi, pauDar unke sath rahta hai awashyakta paDne par we sabke samne shisha nikalkar apna munh dekhne lagti hain kanghi se apne baal sanwar leti hain aur chehre par pauDar laga leti hain par purush ke samne khilakhilakar hansna bura nahin samjha jata hai sharir ko banawati taur par sundar rakhne ke liye anek prakar ke sabun aur makkhan, tarah tarah ki bukni bazaron mein milti hain complexion soap, complexion cream, cleansing cream, nourishing cream aadi ke ishtihar mote mote akshron mein charon taraf dekhne mein aate hain anek prakar ki aisi wastuen bikti hain jinse hoth ya gal range jate hain
hum logon ka wishwas tha ki hamare desh mein pati patni sambandhi wichar bachchon ko yorap ki apeksha jaldi ho jata hai jiske hum teen karan samajhte the—ek is desh ki garmi, dusre mata pita ki asawadhani aur tisre gali bazaron mein raat din galiyon ka sunna gaDiwala ghoDe ko, bailwala bail ko, man bahan ki gali deta hai, jisko log bachpan hi se sunte hain parantu yoropiy deshon mein bhi is sambandh ki aisi bahut si baten hain unmen se do ek ka ullekh hamne upar kar diya hai dusre, mata pita ka sadaiw ek bistar par sona tisre, adhik bachchon ke paida hone ko rokne ke sambandh ki samagri ka khullamkhulla dukanon par bikna wiyna mein laghushanka karne ke sthan mein rabar ki aisi ek chiz—jiska nam ghummi likha hai—rakhi rahti hai kal mein paisa Dalte hi wo bahar nikal aati hai frans mein garmi, suzak aadi rogon se bachne ke upay kahin kahin peshabkhanon mein sachitr latke rahte hain wahan weshyaon ki samayik Daktari pariksha hoti hai jarmni mein ek baDe widwan aur anubhwi mitr ne hamein batlaya ki widyarthiyon mein ye rog bahut baDh rahe hain jiske karan wahan ke shikshak log bahut chintit hain duःkh ki baat hai ki ye shikayat hindustan mein bhi sunne mein aa rahi hai chauthe, yorap bhar mein nangi murtiyan sab jagah milti hain aisi murtiyan hamein sangrhalyon mein, saDkon par, cristol pailes mein aur wishwwidyalyon ke bahar bhi mili we kahte hain ki aisi murtiyon ko murti nirman kala ki drishti se dekhana chahiye jahaz mein aur kai dusri jagah jahan kewal mard hi mard nahate dhote hain wahan kai ber dekha ki mard nange hokar sabke samne tauliye se badan pochhne lagte hain bahut se thiyetar aur any tamashon mein striyan prayah nangi hokar khel dikhlati hain panchwen, baDe baDe nagron mein is baat ka wij~napan rahta hai ki aap chahen to wahan ki nait life dekh len night life of paris, night life of berlin aadi mote akshron mein likha rahta hai jo dekhana chahe uska parbandh guide log kar dete hain ye hawa misr desh ki rajdhani tak pahunch gai hai
kewal yehi baten dekhkar yadi hum bharatwarsh laut aaye hote to hamein baDa duःkh hota aur kuch bhi fayda na hota jin mahasbhaon mein hum gaye aur wahan jin mahila ratnon ke hamein darshan hue aur jin bahinon ne apne gharon mein hamein nimantrit kiya unhonne istri jati ke liye hamare hirdai mein sachcha aadar paida kar diya hamein ye malum ho gaya ki apne apne deshon ka sir sansar mein uncha karne ke liye yorap ki istriyon ne pura prayatn kiya hai shiksha parchar mein aur janta ki sewa mein inka kary alaukik hai is samay sare sansar mein italy ko Daktar mantisori ka nam phail raha hai inhonne shiksha pranali mein wilakshan pariwartan kar diya hai ye pahli istri theen jinhonne rom ke wishwawidyalay se chikitsashastr ki degre prapt ki pahle inko aise schoolon ke Dakar mantisori nirikshan ka bhaar diya gaya tha jinmen bode, kam buddhiwale aur kamzor laDke paDhte the aise school bhi yorap mein bahut hain kuch dinon ke baad inki shiksha pranali se bode laDkon ki buddhi bhi chamak nikli anusandhan se pata laga ki inke siddhanton ke anusar yadi sadharan buddhi ke balkon ko bhi shiksha di jaye to unka kalyan ho
dusri mahila ratn jinke adbhut waktritwshakti, sangthan shakti aur shiksha siddhanton ke gyan ne hamein prasann kar diya, misej bitrse ensor (mrs beatrice ensor) hain ye england desh se koi dewi is niras gadymay sansar ko madhur kawy ras se ot prot karne aa gai hain bible, miltan, brauning, shakespeare, rawindr nath tagore aadi ke pad inhen yaad hain aur we unhen is prakar paDhti hain ki unke arth chubhte hue aapke hirdai mein jakar baith jate hain
lanDan ke istenD mein bahut gharib aur gande log rahte hain wahan ke logon ke sudhar ke liye jitna kary striyan karti hain wo sansar ke liye manushya sewa ka adbhut udaharn hai miss lestar ek mahila hain jinko apne pita se lakhon ki sampatti mili thi unhonne sari sampatti istenD ke sudhar ke liye de di, aur aap swayan wahin ek sadharan se makan mein sadharan bhojan par rahti hain ek istri hamein mili jo uchch kul mein dhani ke ghar paida hokar bhi bachpan se istenD ke logon ki sewa awaitanik roop se kar rahi hain, yahan tak ki unhonne apna wiwah bhi usi shrenai ke ek mard se kar liya hai jiske karan samaj ne unka ek prakar se bahishkar kar diya hai inhonne kripapurwak hamein istenD ka bahut sa hissa dikhlaya inse bida hote samay mainne unka pata puchha unhonne pata likh diya unke pati bhi us jalse mein maujud the jahan we mujhe le gai theen in mahila ka nam misej plaitan hai mainne inse puchha ki mujhse patr wywahar karne ke liye kya aapko apne pati se aagya lene ki awashyakta hogi unhonne kaha, nahin, wo mera wishwas karte hain aur main unka wishwas karti hoon
prayah jitni sabha samitiyon mein hum log gaye unmen istriyon ko bahut kaam karte paya hum logon se we itne parashn puchhti theen ki hum unki buddhimatta par chakit ho jate the Denmark mein istriyon ko prayah teen bhashayen bolte paya angrezi, german aur apni matribhasha
khate samay wahan pratyek istri ke sath ek purush baithta hai purush ka kartawya hota hai ki uske pas jo istri baithe usko wo batachit mein lagaye rahe mujhe jab jab kisi istri ke pas baithne ka saubhagya prapt hua mainne uske gyan ka kshaitij apne se adhik wistrit paya aise samay main bahudha bharatwarsh ki charcha chheD deta tha jiske sambandh mein unko bahut kam malum rahta tha baat ye hai ki yorap ke deshon mein aniwary shiksha hai, isliye pratyek istri paDhi likhi hain we apne wyawsay sambandhi aur any wishyon par bhi pustken aur samacharpatr paDha karti hain iske atirikt yorap mein sangrhalyon aur jantu shalaon ki itni prachurta hai ki inmen ek ber ghoom aane se bhi gyan ka wistar baDh jata hai rail ke kamron mein bhaugolik aur prakritik drishyon ke sundar chitr lage rahte hain, gali gali aitihasik wyaktiyon ki wishal murtiyan we prati din dekha karti hain, isliye koi ashchary nahin hai ki ek paDhe likhe bharatwasi ki apeksha ek paDhi likhi european mahila adhik gyan rakhti hai peris, mein hum logon ko ek mahila mili jo sanskrit paDh rahi thi un deshon mein gyan uparjan ke anek sadhan hain berlin aur myunik mein hum logon ne plainiteriyam dekhe kamron ke andar log kursi par baith jate hain aur andhera kar diya jata hai ek yantr ke chalte hi akash aur prithwi chalte hue malum hote hain akash par tare nikal aate hain ek sajjan wyakhyan dwara sab baten samjhate chalte hain iske atirikt samajik jiwan ke upyogi shiksha bhi unhen di jati hai roti pakana, sina pirona, nachna kudna, khelna ityadi janna awashyak hai ek istri ne jahaz mein mujhse kaha (“your education is incomplete”) tumhari shiksha adhuri hai, kyonki tum khel kood hansi mazaq mein to sharik hote hi nahin
wahan ki istriyon mein ek prakar ka wyaktitw hai pahle rail mein ya tramwe mein bheeD bhaD ke samay mard istriyon ko baithne ki jagah de dete the aur aap khaDe rahte the ye baat ab bahut kam ho gai hai striyan ab apne pairon par khaDa hona pasand karti hain england, frans aur jarmni mein madon ki apeksha istriyon ki sankhya adhik hai laDai mein hazaron mard mare gaye aisi awastha mein anek striyan bina wyahi hain aur unko bina kisi mard ki sahayata ke apni jiwika uparjan karni paDti hai we dokanen karti hain, bhojnalyon mein khana parosne ka athwa khaj़anach ka kaam karti hain, logon ke kapDe dhoti hain athwa schoolon mein paDhane ka kaam karti hain; police mein kanstebl bhi hain is prakar sansar se yudh karti hain aur apne wyaktitw ki rakhsha karti hain majal hai ki koi mard unki taraf ankh uthakar dekh le hamare desh mein mandiron mein, ghaton par, bazaron mein mardon ka istriyon ki or ghurna mamuli si baat hai iska bahut baDa karan niraksharata aur parda hai yorap mein kai bar aisa dekhne mein aaya ki ek akela mard ek akeli istri ke sath kisi daftar mein kaam kar raha hai athwa lift mein upar niche ja raha hai sard desh hone ke karan wahan ke logon ko aadat paD gai hai ki sab kaam darwaze band karke karen sone, shauch aadi jane aur nahane ka parbandh istriyon ke liye alag rahta hai, parantu nahane ka kapDa pahankar mard aur istri ek hi sthan par tairte hue milte hain striyan khoob kasrat karti hain
abhayan naktamabhayan diwa nः sarwa shrasha mam mitran bhawantu॥
(atharwawed)
hum sabko antriksh aur prithwi abhai pradan kare, hum sab pichhe se abhai howen, aage se abhai howen, upar se aur niche se abhai howen, hum sab mitr se abhai howen, shatru se abhai howen, j~nat padarth se abhai howen, aur agyat padarth se abhai howen, raat ko abhai rahen aur din ko abhai rahen, sab dishaon ke rahnewale hamare mitr howen
upar likhe hue wedmantr mein abhai hone ke liye pararthna ki gai hai par hamare desh mein ho raha hai ab iska ulta hamari istriyon ka jiwan raat din Dar hi mein bitta hai we mardon se Darti hain, apne pati se Darti hain, yatra karte samay Darti hain, andhere se Darti hain, dewi dewtaon se Darti hain, bhuton se Darti hain, isi ka parinam hai ki hamare bachchon ko abhai ka mantr sunanewali matayen kam milti hain
yorap desh ki yatra mein istriyon ko mainne abhai ki murti paya, unmen se kai akeli sansar ki yatra kar aati hain paris mein ek english mahila se bhent hui, wo 36 ber etlantik mahasagar par kar chuki thi arthat 18 ber yorap se amerika ho i thi ye hansta hua chitr 18 baras ki ek german laDki ka hai, uska nam hai lui haphman uska janm julai 1810 ko hua tha aur 10 julai 1828 ko usne hawai jahaz chalane ki pariksha pas ki gat september mein jab main jarmni mein tha tab wahan uski baDi charcha thi nirbhay hokar ye laDki akash mein uDti hai us samay jarmni mein 13 striyan aisi thi jo hawai jahaz chalati theen par unmen sabse chhoti kumari haphman thi
ye to hui akash ki baat Denmark ki meli geD nam ki istri ne inglish channel par kiya ye samudr ka ek tukDa hai, jahaz sadharantah sat ghante mein isko par karta hai ye niDar istri tairkar isko par kar gai abhi thoDe hi din hue kumari marsiDiz Dije 26 ghante pani ke andar tairti rahi julai ke ant mein jab main janiwa mein tha, mainne anek istriyon ko wahan ki jheel mein tairte hue dekha yahi baat sare yorap mein pai schoolon mein athwa sarwasadharan ke snanagaron mein jinka parbandh wahan ki myunisipailiti karti hai striyan khoob tairti hain, aur upar se pani mein bedhaDak kood jati hain
wissuwiyas ka jwalamukhi parwat dekhne jab hum gaye tab wahan istriyon ko khaDD mein utarte dekha jismen kahin kahin aag ka dhuan bhi nikalta tha kuch dinon ke baad shamoni parwat mein jab hum barf ki nadi dekhne gaye to kai istriyon ko glacier par karte dekha aur bhayanak asthanon mein kalolen karte paya we barf ke gahre gaDhon mein kood jati jahan phir se upar pana unke liye mushkil ho jata upar se hath khinchkar ya niche se Dhakalkar unke sathi unko upar chaDha dete par we phir niche kood jati isi prakar anek toliyan apne apne sahas ka parichai deti theen
misr desh ke alekjenDariya nagar mein pampi nam ka ek stambh hai jo 88 phut uncha hai kaha jata hai ki miss tailbat nam ki ek yogapiyan mahila uske upar chaDh gai aur wahan baithkar usne khana khaya aur ek patr likha
jab hum kolambo se jahaz par yorap ja rahe the, ek istri janghiya aur tang kurti pahne hue sabke samne laDkiyon ko kasrat kara rahi thi nity prati wo aisa hi karti thi
27 august ko berlin mein hum wahan ki sabse baDi wyayamashala dekhne gaye wahan anek prakar ki kasarton ka adbhut parbandh tha usko sanchalika ek istri hai uska nam miss mogDa kawaski hai uske sharir ki si banawat, uska sa phurtilapan, uske jaisi sundarta hamare desh mein swapn mein bhi dekhne mein nahin aati
inhin karnon se sansar ki dauD mein wahan ki striyan mardon ka sath deti hain sabha samajon mein istriyon ko sankhya mardon se kam nahin rahti, aur wad wiwad mein bhi unka hissa mardon se kisi tarah kam nahin hota aisi mataon ki santan bhanmati ke pitare mein rakhne layaq babue nahin hote usi berlin ki wyayam shala mein jiska warnan upar aaya hai talab ke kinare hum log baithe the, dusri taraf ek istri aur ek mard wishram kar rahe the aur unka bachcha khel raha tha khelte khelte wo pani ke pas chala aata aur phir chala jata kabhi kabhi pani mein pair tak Dal deta; uske mata pita door se dekhkar hanste the jahaz mein chhote chhote bachche mastul ke rasson par, kinare ke chhaDon par bekhatke chaDh jate hain lanDan mein ek din asbab ladne ki khuli lambi chalti motor gaDi par mainne ek laDke ko kudkar pichhe se upar chaDhte hue dekha hamari matayen bachchon ko aisa karte dekhkar ghabra jati hain, chillane lagti hain aur kabhi kabhi unko mar bhi deti hain—yahi karan hai ki hum log bachpan hi se bode, Darpok aur rogi hote hain, ghar baithe ek roti mil jaye to bahar yadi samrajy bhi mile to nahin jayenge
chhः mahine ki yatra mein hum log anek nagron aur gramon mein gaye, anek grihasthon aur wyapariyon ke sath rahe, sadharantah kahin bhi rota hua bachcha nahin mila ye bahut baDi baat hai din mein bees dafa ranewale bachchon ki, jawani mein swabhawik roni surat ho jati hai yorap ki istriyon ke liye ye mahan gauraw ki baat hai ki unke bachche sadharantah nahin rote hamare yahan bachchon ka rona mamuli baat hai wahan ke chhote chhote bachche bhi niDar hote hain 18 julai ko ek dewi ne mujhe paris mein bhojan ke liye nimantrit kiya bharat sambandhi baat cheet karte raat ke gyarah baj gaye paris ke log baDe rangile hain raat ke samay itne log motoron mein bahar nikalte hain ki saDak par ek taraf se dusri taraf jana kathin ho jata hai dewi ki do chhoti bhatijiyan theen, mujhe saDak ki dusri taraf jakar anDar ground rail se jana tha motoron ki bharmar thi patri se saDak par pair rakhne ki himmat nahin thi par ye donon laDkiyan saDak par utar hi gain bachchon ko dekhkar wahan ke log gaDi ki chaal dhimi kar dete hain
swabhiman, sanyam aur nirbhayta aadi gunon ke karan wahan ki striyan sahasi, yoddha aur widwan utpann kar sakti hain
janiwa jheel mein ek din hamne dekha ki ek jahaz chhutne hi wala tha, theek samay par ek motor i us par mahilayen theen jahaz par ek mem, jo unki mitr thi, pahle hi chaDh chuki thi wo dauDi aur usne unhen jahaz par kheench liya, tinon baith gai aur jahaz khul gaya ek pichhaD gai, isliye baith na saki par wo ghabrai nahin jhat motor mein aa baithi aur motor dauDakar aage ke bandargah par pahunch gai, jahan usko wahi jahaz mil gaya ye hai unka sahas aur dhairya
yorap mein praya har ek baDe nagar mein ek na ek chitrshala hai in chitrshalaon mein prachin aur nawin chitron ka adbhut aur bahumuly sangrah milta hai wahan baithi hui wishesh wishesh chitron ki pratilipi leti hui striyan dekhne mein i in chitron dwara we bahut sa rupaya kama leti hain hamne ek laDki ko dekha jo ek chitr taiyar kar rahi thi, usne kaha ki main isko amuk pradarshani mein bhejungi jo ek warsh baad honewali thi wo uske liye pahle hi se taiyari kar rahi thi
wahan ki striyan mard banne ka prayatn kar rahi hain balon ko katwati hain, uncha coat aur uncha moza pahanti hain aur bahut tezi ke sath chalti hain hamare desh mein ganw ke laDke bhi shahr ke schoolon mein aakar baal rakhne aur mang kaDhne lagte hain tez ya door tak chalne ki unki aadat chhut jati hai ek din jab mujhe swiDan se jahaz par baithkar pratah kal Denmark aana tha main baDe sabere apne sthan se bandargah ki or tezi se ja raha tha main samajhta hoon ki tez chalne ka mujhe kuch abhyas hai door jakar mujhe pichhe ki taraf kisi ke chalne ki aahat malum hui ghumkar dekha to do striyan aati hui dikhlai deen wahan ka niyam hai ki patri par mard saDak ke kinare ki taraf chalta hai main saDak ki taraf ho liya aur mainne istriyon ko aage baDh jane ke liye sthan de diya unhonne kaha kya aap bhi lecture sunne ke liye us par chal rahe hain?” mainne kaha—“ji han ” unhonne kaha—to tez chalna jari rakhiye aap hi ko dekhkar hum bhi tez aa rahi hain aur tramwe mein nahin baithin hum log bahut door tak sath chale we england ki rahnewali theen unhen is baat par ashchary hua ki hindustan ke (jo garm desh hain) rahnewale bhi tez chal sakte hain mainne unko batlaya ki hamare desh mein mujhse bhi bahut ziyada tez log chal sakte hain
england mein thoDe din pahle tak striyan parliament ki sadasy nahin ho sakti theen, kembrij aur aksforD mein degreeyan nahin prapt kar sakti thi aur unko wote dene ka adhikar nahin tha in sab adhikaron ko prapt karne ke liye unhonne ghor andolan kiya aur aaj england ki istriyon ka mardon ki drishti mein baDa uncha sthan hai napoleon se logon ne ek ber puchha ki aap lanDan par kab dhawa karenge usne uttar diya “inglainD ke log spen, portugal aadi deshon ki tarah nahin hain, yadi unke mard mare jayenge to unki striyan yudh kshaetr mein aakar laDengi
swizarlainD, italy, aur frans mein ab tak istriyon ko wote dene ka adhikar nahin hai
yorap mein wiwah ki pratha hamare desh se bhinn hai hamare yahan wiwah ek sanskar hai, unke yahan wiwah ek prakar ka thika hai rail mein ek istri hamein mili jaan pahchan baDh jane par usne kaha mera pati mahasmar mein gaya tha, jab mainne suna ki wo lunja ho gaya tab mainne usko tilak de diya aur ek dusre mard se apna wiwah kar liya hamare desh mein pati ke langDe lule, andhe kane hone par bhi istri uski sewa karna apna dharm samajhti hai wahan pati ka chunaw istri purush ek dusre se milkar kuch din sath rahkar apne aap kar lete hain abhi tak ye pratha thoDi bahut jari hai ki apne mata pita ki anumti wiwah se pahle le len par ye pratha ab bahut kam ho rahi hai hamare desh mein pati patni ka chunaw ek sankuchit kshaetr mein hota hai brahman brahman mein aur kshatriy kshatriy mein bhi wiwah nahin ho sakta un deshon mein sadharantah jo jisse chahe wiwah kar sakta hai england mein ek school ke headmaster ki dharmpatni ne mujhse kaha ki mera pati pahle ek dusre school mein headmaster tha aur wahin main malin ka kaam karti thi ye istri mere samne apne pati ki baDi sewa karti hui pai gai anek asthanon mein buDDhe istri aur mardon ne hum logon se shikayat ki ki jawan aurten aur mard chhuttiwale din ghayab ho jate hain aur wiwah ke kuch dinon pahle sambandh nishchit ho jane ki suchana dete hain rajaghrane mein aur dhanaDhy gharon mein ab tak mata pita ki poorn anumti prapt karna awashyak hai
koi istri mard se apne wiwah ki batachit nahin karegi, mard hi shuru karega par malmas mein iske wiprit hota hai adhiktar jab nach hote hain ya bhoj hota hai tabhi is prakar ki jaan pahchan ho jati hai yorap mein mard ka parichai pahle karaya jata hai, istri ka parichai pichhe wiwah girjaghar mein hota hai aur uski registry karai jati hai bahut se log girja se anyatr bhi wiwah kara lete hain wiwah ke samay bahut se log nimantrit hote hain dulha aur dulhin baDe sundar kapDe pahinkar aate hain aur anek prakar ke dharmik krity karte hain wiwah ho jane ke anantar un par chawal ki aur kahin kahin juton ki warsha hoti hai mitr log anek prakar ki wastuen bhent karte hain hamne bhi kai wiwah dekhe aur wiwah ki mithaiyan aur rotiyan dekhin wiwah ki samapti par istri ka nam apne pati ke nam par rakha jata hai swtantrta premi bahut si striyan mahila sabhaon mein ab ye bhi prastaw upasthit kar rahi hain ki istri mard ke nam se kyon pukari jayen; kyon na mard istri ke nam se pukara jaye
ant mein dulha aur dulhin kuch dinon ke liye kisi ekant sthan mein chale jate hain, is rawaj ko honeymoon kahte hain ek mard ek hi istri se wiwah kar sakta hai uske marne par ya usko chhoD dene par dusri se wiwah hona sambhaw hai
pratyek istri ke liye gana aur nachna janna awashyak hai mard bhi aise bahut kam honge jo ga aur nach na sakte hon, bhojan ke baad sab log khoob nachte aur gate hain bahut si kasraten nach ke nam se prasiddh hain, par unmen khelte kudte achchha sharirik parishram ho jata hai striyan kritrim upayon se apni kamar ko patli karti hain ye unki drishti mein sundarta ka ek chihn hai wahan ke log ab iske bhi wiruddh ho rahe hain
jarmni mein ek sanstha ka pata laga jiske sadasy, mard aur istri sab ek sath nange hokar kasrat karte hain inki sachitr patrika ki ek prati main apne sath laya tha jispar bambi ke custam karyalay ke logon ne baDa aitraz kiya tha ismen anek chitr hain jinmen istri aur mardon ka bilkul nagn hokar kasrat karna dikhlaya gaya hai
paDhane ke kaam mein striyan bahut hain, wisheshkar niche ki kakshaon mein inka kary bhi atyant prashansniy hai par england mein ek dal iske wiruddh khaDa ho raha hai adhyapkon ki ek mahasabha ne, jo manchester mein hui thi, is wirodh ko in shabdon mein pragat kiya, “you cannot feminise the teaching of boys without feminising the nation arthat laDkon ki paDhai ka kaam istriyon ke hath mein dene se rashtra mein streetw aa jayega iske wiprit striyan apni mahasbhaon mein ye prastaw pas karti hain ki har ek wyawsay mein aur jatiy kaam mein istriyon ko sthan milna chahiye unka udyog hai ki striyan shiksha sambandhi, jel sudhar sambandhi kamishnon aur kametiyon ki sadasya banai jayen
daya ke kaam karne mein striyan sabse aage hain we aspatalon mein rogiyon ki sewa karti hui milti hain (sisters of merey) ek din rawiwar ke sabere lanDan mein ek aspatal ke bahar kuch istriyon ko mainne bahut se phulon ke guchchhe liye hue dekha puchhne se malum hua ki prati rawiwar ko bahut si striyan rogiyon ko phulon ke guchchhe lakar deti hain; aur unke pas baithkar qisse kahani athwa dharmik kathayen sunati hain
स्रोत :
पुस्तक : योरप यात्रा में छः मास (पृष्ठ 87)
रचनाकार : रामनारायण मिश्र, गौरीशंकर प्रसाद
प्रकाशन : इंडियन प्रेस, लिमिटेड, प्रयाग
संस्करण : 1932
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।