जां क्रिस्तोफ़ क्रोप्ट मेलकायर का पुत्र था। मेलकायर एक नशेबाज संगीतज्ञ था। उसका लूईशा नामक रसोईदारिन से संबंध हो गया था और इसके दुष्परिणामस्वरूप जां क्रिस्तोफ़ का जन्म हुआ।
रहिन नामक एक छोटे क़स्बे में जां मिचेल नामक व्यक्ति ने पचास वर्ष पहले अपना निवास स्थान बनाया था। यह जां मिचेल जां क्रिस्तोफ़ का बाबा था। बहुत छुटपन में ही क्रिस्तोफ़ की रुचि संगीत की ओर हो गई। मेलकायर नित्य ही अपने पुत्र को पियानो के पास ज़बरदस्ती बिठा लेता और रोज़ उससे अभ्यास करवाता। बच्चे को यह चीज़ पसंद नहीं थी।
एक दिन जां मिचेल उसको ऑपेरा दिखाने ले गया, जहाँ जां क्रिस्तोफ़ पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उसने संगीतज्ञ बनने का निश्चय कर लिया।
कुछ समय बाद एक दिन जां मिचेल ने अपने पोते क्रिस्तोफ़ द्वारा अब तक लिखे सभी गीतों को संगृहीत कर लिया। क्रिस्तोफ़ खेलते वक़्त इन गीतों को वैसे ही बना लिया करता था। बाबा ने इन गीतों के संग्रह का नाम रखा 'शैशव के सुख'। मेलकायर ने अपने पुत्र की प्रतिभा को पहचाना और शीघ्र ही एक संगीत-सभा का आयोजन किया। उसमें ग्रांडड्यूक ऑफ़ लीयोफ़ोल्ड को निमंत्रित किया गया और जां क्रिस्तोफ़ नामक साढ़े सात वर्ष के संगीतज्ञ ने अपने बनाए गीतों को उस सभा में गाया-बजाया। वे सब गीत ग्रांडड्यूक को समर्पित कर दिए गए थे। क्रिस्तोफ़ को दरबार की कृपा प्राप्त हुई। उसको सरकार की ओर से वज़ीफ़ा बाँध दिया गया और महल में बाजा बजाने का काम भी मिल गया।
इन्हीं दिनों उसके बाबा की मृत्यु हो गई और आमदनी का एक ज़रिया ख़त्म हो गया। उसके पिता की नशेबाजी भी अब और बढ़ गई। परिणाम यह हुआ कि होब थियेटर के ऑरकेस्ट्रा में से उसे निकाल दिया गया। शराब ने उसके पिता की नौकरी छुड़वा दी थी, अत: चौदह वर्ष की अवस्था में ही वायलिन की केवल पहली धुन बजा पाने वाले क्रिस्तोफ़ को सारा परिवार सँभालने का बोझ उठाना पड़ा।
क्रिस्तोफ़ के मामा का नाम गोटफ़्रीड था। वह सीधा-सादा ईमानदार आदमी था। उसकी आमदनी के आधार पर क्रिस्तोफ़ ने एक जीवन-दर्शन बनाया और उसको अपनाने की चेष्टा की। अब क्रिस्तोफ़ इधर-उधर संगीत सिखाने भी जाया करता था। एक धनी परिवार में एक लड़की को वह संगीत सिखाने लगा। वह उस लड़की से प्रेम करने लगा, किंतु लड़की ने उसका मज़ाक़ उड़ा दिया। इस बात से जां क्रिस्तोफ़ को बहुत दुःख हुआ। कुछ ही दिन बाद उसके पिता की भी मृत्यु हो गई। इसका परिणाम यह हुआ कि क्रिस्तोफ़ का मन राग-रंग से उचाट खा गया और वह नीरस विशुद्धतावादी-सा बन गया। किंतु फिर भी उसका मन इतनी नीरसता से अपने आपको बाँध नहीं सका और कुछ दिनों में ही जां क्रिस्तोफ़ सेबीन नामक एक विधवा युवती के प्रेम में फँस गया। किंतु इससे पूर्व कि वह प्रेम परिपक्व होता, बढ़ता, सेबीन मर गई। इस घटना ने क्रिस्तोफ़ को बहुत ही विरक्त कर दिया और वह देहात की ओर घूमने का शौक़ीन हो गया। दूर-दूर तक घूमता। ऐसे ही घूमते-घूमते एक बार उसकी एडा नामक एक लड़की से मुलाक़ात हुई। उन्होंने होटल में रात साथ-साथ गुज़ारी और क्रिस्तोफ़ उसके प्रेम में पड़ गया। लेकिन जब उसे यह पता चला कि उसके छोटे भाई के साथ एडा का प्रेम-संबंध चल रहा है तो उसे बड़ा भारी धक्का लगा। अब वह पूरी शक्ति से अपने काम में लग गया। जैसे-जैसे उसकी परिपक्वता बढ़ती जा रही थी, उसकी परख, ईमानदारी, सचाई और चेतना में पुष्टि आ रही थी। उसके संगीत-रचना के नियम जर्मन नियमों से टकराने लगे और एक स्थानीय पत्र में उसने जर्मन पद्धति को बर्बर कहना प्रारंभ किया। इसका परिणाम यह हुआ कि संपादकों से उसका झगड़ा हो गया और वह एक साम्यवादी पत्र में लिखने लगा। इस बात से ग्रांडड्यूक भी क्रुद्ध हो गया और क्रिस्तोफ़ को राज्य की ओर से मिलने वाली सहायता भी बंद हो गई। किंतु जां क्रिस्तोफ़ की विपत्ति का यहीं अंत नहीं हुआ। क़स्बे के लोग उसके विरुद्ध हो गए और धीरे-धीरे सारे मित्र भी उसे छोड़ने लगे। केवल बूढ़ा पीटर शेट्ज़, जो संगीत के इतिहास का रिटायर्ड प्रोफ़ेसर था, उसकी बात को समझता था।
एक बार एक सराय में एक किसान लड़की के साथ नृत्य करते समय क्रिस्तोफ़ का कुछ शराबी सैनिकों के साथ झगड़ा हो गया। उस समय वह बीस वर्ष का था। सैनिकों से झगड़ा करने के अपराध में जेल हो जाने का ख़तरा था, इसलिए क्रिस्तोफ़ को मजबूर होकर पेरिस भाग जाना पड़ा। पेरिस में अपने जीवनयापन के लिए वह संगीत की ट्यूशन करने लगा। वहाँ उसे बचपन का एक दोस्त मिल गया—सिलवे कोहन, जो पेरिस में अपनी स्थिति बना चुका था। उसने क्रिस्तोफ़ को पेरिस के समाज में घुसा दिया, किंतु क्रिस्तोफ़ को वह सब पसंद नहीं आया। उस समाज में एक खोखलापन था, काहिली थी, नैतिक निर्वीर्यता थी, उद्देश्यहीनता, व्यर्थता अपने आपको नष्ट कर देने वाली अनावश्यक आलोचना थी; जैसे उस समाज में एक सार्वजनिक तनाव था, जिसने लोगों की सहजता को विनष्ट कर दिया था। ऐसे समाज में प्रसिद्धि प्राप्त करने के लिए क्रिस्तोफ़ को इन सब बातों से समझौता करने की आवश्यकता थी, जो करना उसने स्वीकार नहीं किया। ...और इसलिए वह ट्यूशन से अपना काम नहीं चला पाया, क्योंकि वह धीरे-धीरे सबसे दूर होता चला गया था। अब वह एक प्रकाशक के लिए संगीत-लिपि लिखने लगा।
इसी बीच वह बहुत बीमार पड़ गया। उसके पड़ोस में कुछ लोग रहते थे, जिनमें सीडोनी ने उसकी बहुत सेवा-सुश्रूषा की। यहाँ उसकी इकोल नोरमेल के एक तरुण लेक्चरर ओलिवियर ज़्यानिन से मुलाक़ात हो गई। उसको पता चला कि ओलिवियर एंतोनित का भाई था, जिससे कि उसकी जर्मनी में मुलाक़ात हुई थी। यद्यपि जां क्रिस्तोफ़ का कोई दोस्त नहीं था, फिर भी उसका परिचित होने के कारण एंतोनित का समाज में सम्मान नष्ट हो गया था। उसे पता चला कि एंतोनित को तपेदिक हो गई थी और अपने भाई को पढ़ाने के प्रयत्न में घोर परिश्रम करने और उस अवस्था में अपनी देख-रेख न कर पा सकने के कारण उसकी मृत्यु हो गई थी।
एक दिन ओलिवियर ने क्रिस्तोफ़ से कहा कि अब तक वह असली फ़्रांस के संपर्क में नहीं आया है—असली फ़्रांस की जनता के संपर्क में। दोनों ही एक-दूसरे को नई-नई जानकारी जुटाते। दोनों एक-दूसरे की प्रकृति से अवगत हो गए थे। ओलिवियर स्वभाव का गंभीर था, किंतु शारीरिक रूप से वह स्वस्थ नहीं था। क्रिस्तोफ़ में अपार शक्ति थी और उसकी आत्मा भी तूफ़ानी थी। दोनों की जोड़ी ऐसी थी जैसे एक लँगड़ा था और एक अंधा।
कुछ दिन बाद कोलेथ नामक लड़की के पीछे दोनों मित्रों में एक तनाव आ गया। क्रिस्तोफ़ कोलेथ को पहले प्यार करता था और अब ओलिवियर उसका नया प्रेमी था। कोलेथ ने लूसियन लेवीकोर नामक एक व्यक्ति को बीच में लिया। यह क्रिस्तोफ़ का पुराना शत्रु था और उसने एक प्रकार की उलझन पैदा कर दी थी। नासमझी में क्रिस्तोफ़ बहुत क्रुद्ध हो गया। उसने एक पार्टी में लेवीकोर का अपमान कर दिया और परिणाम यह हुआ कि लेवीकोर ने द्वंद्व के लिए उसे ललकारा। दोनों युद्ध के लिए तैयार हुए, किंतु दोनों की गोलियाँ ख़ाली चली गईं। इसका परिणाम यह हुआ कि क्रिस्तोफ़ और ओलिवियर का तनाव दूर हो गया और दोनों एक-दूसरे के मित्र हो गए।
इस बीच में फ़्रांस और जर्मनी के बीच युद्ध की भयानक ख़बरें आने लगीं। चारों ओर एक आतंक फैल गया। जब कुछ शांति हुई, क्रिस्तोफ़ रचनात्मक कार्य में दस गुनी शक्ति के साथ लग गया। अब उसकी संगीत-संबंधी रचनाएँ प्रकाशित होने लगीं और फ़्रेंच और जर्मन ऑरकेस्ट्रा उन्हें बजाने लगे। उसकी सफलता का पथ प्रशस्त हो चला था। लेकिन ऐसे समय दुर्भाग्य से उसे जर्मनी में अपनी माता की मृत्युशय्या के निकट जाना पड़ा।
जेक्लीन लैंगियास एक ख़ूबसूरत लड़की थी, जिसकी आदतें बिगड़ चुकी थीं और जो बहुत ही चपल थी। ओलिवियर उसके प्रेम में पड़ गया और उसने उससे विवाह कर लिया। उसको फ़्रांस के क़स्बे में एक नौकरी मिल गई और अब वह अपनी पत्नी के साथ वहीं एक क़स्बे में बस गया। कुछ दिन बाद वे लोग पेरिस आ गए। लेकिन जेक्लीन ओलिवियर से ऊब गई। एक बच्चा भी पैदा हुआ, किंतु दोनों पति-पत्नी उसके कारण भी एक नहीं हो सके। जेक्लीन ने क्रिस्तोफ़ से प्रेम करने की चेष्टा की, किंतु उसका मन नहीं भरा और वह एक बदचलन लेखक के साथ भाग गई। इस घटना का परिणाम यह हुआ कि क्रिस्तोफ़ और ओलिवियर, जिनमें कभी वैमनस्य हो गया था, जेक्लीन के कारण फिर से मित्र हो गए। वे दोनों पेरिस के समाज को समझना चाहते थे। ओलिवियर आदर्शवादी था और क्रिस्तोफ़ में मानववादी चेतना थी। इन बातों ने उन्हें मज़दूर आंदोलन की ओर आकर्षित किया। 'मई दिवस' के प्रदर्शन को देखने ओलिवियर भी गया। क्रिस्तोफ़ बड़े जोश में था। ओलिवियर वहाँ एक दंगे में मारा गया। क्रिस्तोफ़ का इस पर पुलिस से झगड़ा हो गया, किंतु उसके मित्रों ने उसे बचा लिया। उन्होंने उसे देश की सीमा के पार पहुँचा दिया। अब वह एक बार फिर अधिकारी वर्ग के सामने भगोड़ा हो गया—जैसा कि दस वर्ष पूर्व इधर से उधर भाग रहा था। डॉक्टर ब्रोन ने उसे आश्रय दिया। वे जर्मन थे। उनकी पत्नी का नाम अन्ना था। कुछ दिनों बाद क्रिस्तोफ़ और अन्ना में प्रेम-व्यवहार प्रारंभ हो गया। यद्यपि उन्होंने बहुत चेष्टा की कि उस संबंध को तोड़ दें, किंतु वे सफल नहीं हुए। ब्रोन को धोखा दिया गया है, यह सोच-सोचकर अन्ना को इस बात का इतना मानसिक दुःख हुआ कि उसने अंत में आत्महत्या तक करने की चेष्टा की। परिणामस्वरूप, क्रिस्तोफ़ वहाँ से निकल भागा।
वह स्विटजरलैंड के पर्वतीय इलाक़े में पहुँच गया। इस तरह वर्षों बीत गए—क्रिस्तोफ़ को विदेशों में घूमते-फिरते। इटली में रहते हुए क्रिस्तोफ़ को ग्रेज़िया मिली। एक बार जवानी में उससे पेरिस में क्रिस्तोफ़ की मुलाक़ात हुई थी। ग्रेज़िया ने आस्ट्रिया के एक काउंट से विवाह किया था। अपने पति के प्रभाव से उसने क्रिस्तोफ़ को उस समय सहायता दी थी, जबकि जनता क्रिस्तोफ़ के संगीत को पसंद नहीं करती थी। उसके पति की द्वंद्व युद्ध में मृत्यु हो गई थी और अब वह एक माँ थी। क्रिस्तोफ़ और ग्रेज़िया एक-दूसरे के प्रेम में पड़ गए, किंतु बाद में जल्द ही दोनों अलग-अलग हो गए। क्रिस्तोफ़ पेरिस लौट आया। उधर ग्रेज़िया का स्वास्थ्य नष्ट हो गया और वह मर गई।
अपने जीवन के ढलते वर्ष क्रिस्तोफ़ अपने पुराने मित्रों के साथ बिताने लगा। इन्हीं दिनों क्रिस्तोफ़ के लिए भय का नया कारण उत्पन्न हो गया और वह यह था कि जर्मनी और फ़्रांस में युद्ध के बादल घिर रहे थे। परंतु उसको निश्चय था कि यदि युद्ध हुआ, तो भी वह दोनों देशों के बीच भाईचारे के संबंध को नष्ट नहीं कर पाएगा।
अंतिम समय तक क्रिस्तोफ़ संगीत-रचना करता रहा। यहाँ तक कि जब मृत्यु निकट आ गई, तो भी उसने अपनी क़लम उठाई और अपना बनाया हुआ गीत लिखा :
तू फिर से जन्म लेगा, विश्राम कर।
अब सब कुछ एक हो गया है।
रात और दिन की मुसकानें मिल गई हैं।
प्रेम और घृणा परस्पर समरसता में परिणत हो चुके हैं।
मैं दो विशाल पंखों वाले देवता का आराधन करूँगा।
जीवन की जय, मृत्यु की जय!
jaan kristof kropt melkayar ka putr tha. melkayar ek nashebaj sangitaj~n tha. uska luisha namak rasoidarin se sambandh ho gaya tha aur iske dushparinamasvrup jaan kristof ka janm hua.
rahin namak ek chhote qasbe mein jaan michel namak vekti ne pachas varsh pahle apna nivas sthaan banaya tha. ye jaan michel jaan kristof ka baba tha. bahut chhutpan mein hi kristof ki ruchi sangit ki or ho gai. melkayar nity hi apne putr ko piano ke paas zabardasti bitha leta aur roz usse abhyas karvata. bachche ko ye cheez pasand nahin thi.
ek din jaan michel usko opera dikhane le gaya, jahan jaan kristof par itna adhik prabhav paDa ki usne sangitaj~n banne ka nishchay kar liya.
kuch samay baad ek din jaan michel ne apne pote kristof dvara ab tak likhe sabhi giton ko sangrhit kar liya. kristof khelte vaक़t in giton ko vaise hi bana liya karta tha. baba ne in giton ke sangrah ka naam rakha shaishav ke sukh. melkayar ne apne putr ki pratibha ko pahchana aur sheeghr hi ek sangit sabha ka ayojan kiya. usmen granDaDyuk off liyofolD ko nimantrit kiya gaya aur jaan kristof namak saDhe saat varsh ke sangitaj~n ne apne banaye giton ko us sabha mein gaya bajaya. ve sab geet granDaDyuk ko samarpit kar diye gaye the. kristof ko darbar ki kripa praapt hui. usko sarkar ki or se vazifa baandh diya gaya aur mahl mein baja bajane ka kaam bhi mil gaya.
inhin dinon uske baba ki mirtyu ho gai aur amdani ka ek zariya khatm ho gaya. uske pita ki nashebaji bhi ab aur baDh gai. parinaam ye hua ki hob thiyetar ke aurkestra mein se use nikal diya gaya. sharab ne uske pita ki naukari chhoDva di thi, atah chaudah varsh ki avastha mein hi vayalin ki keval pahli dhun baja pane vale kristof ko sara parivar sambhalne ka bojh uthana paDa.
kristof ke mama ka naam gotafriD tha. wo sidha sada imanadar adami tha. uski amdani ke adhar par kristof ne ek jivan darshan banaya aur usko apnane ki cheshta ki. ab kristof idhar udhar sangit sikhane bhi jaya karta tha. ek dhani parivar mein ek laDki ko wo sangit sikhane laga. wo us laDki se prem karne laga, kintu laDki ne uska maज़aक़ uDa diya. is baat se jaan kristof ko bahut duःkh hua. kuch hi din baad uske pita ki bhi mirtyu ho gai. iska parinaam ye hua ki kristof ka man raag rang se uchaat kha gaya aur wo niras vishuddhtavadi sa ban gaya. kintu phir bhi uska man itni nirasta se apne aapko baandh nahin saka aur kuch dinon mein hi jaan kristof sebin namak ek vidhva yuvati ke prem mein phans gaya. kintu isse poorv ki wo prem paripakv hota, baDhta, sebin mar gai. is ghatna ne kristof ko bahut hi virakt kar diya aur wo dehat ki or ghumne ka shauqin ho gaya. door door tak ghumta. aise hi ghumte ghumte ek baar uski eDa namak ek laDki se mulaqat hui. unhonne hotel mein raat saath saath guzari aur kristof uske prem mein paD gaya. lekin jab use ye pata chala ki uske chhote bhai ke saath eDa ka prem sambandh chal raha hai to use baDa bhari dhakka laga. ab wo puri shakti se apne kaam mein lag gaya. jaise jaise uski paripakvata baDhti ja rahi thi, uski parakh, imandari, sachai aur chetna mein pushti aa rahi thi. uske sangit rachna ke niyam german niymon se takrane lage aur ek asthaniya patr mein usne german paddhati ko barbar kahna prarambh kiya. iska parinaam ye hua ki sampadkon se uska jhagDa ho gaya aur wo ek samyavadi patr mein likhne laga. is baat se granDaDyuk bhi kruddh ho gaya aur kristof ko raajy ki or se milne vali sahayata bhi band ho gai. kintu jaan kristof ki vipatti ka yahin ant nahin hua. qasbe ke log uske viruddh ho gaye aur dhire dhire sare mitr bhi use chhoDne lage. keval buDha pitar shetz, jo sangit ke itihas ka ritayarD professor tha, uski baat ko samajhta tha.
ek baar ek saray mein ek kisan laDki ke saath nrity karte samay kristof ka kuch sharabi sainikon ke saath jhagDa ho gaya. us samay wo bees varsh ka tha. sainikon se jhagDa karne ke apradh mein jel ho jane ka khatra tha, isliye kristof ko mazbur hokar peris bhaag jana paDa. peris mein apne jivanyapan ke liye wo sangit ki tution karne laga. vahan use bachpan ka ek dost mil gaya—silve kohan, jo peris mein apni sthiti bana chuka tha. usne kristof ko peris ke samaj mein ghusa diya, kintu kristof ko wo sab pasand nahin aaya. us samaj mein ek khokhlapan tha, kahili thi, naitik nirviryta thi, uddeshyhinta, vyarthata apne aapko nasht kar dene vali anavashyak alochana thee; jaise us samaj mein ek sarvajnik tanav tha, jisne logon ki sahajta ko vinsht kar diya tha. aise samaj mein prasiddhi praapt karne ke liye kristof ko in sab baton se samjhauta karne ki avashyakta thi, jo karna usne svikar nahin kiya. aur isliye wo tution se apna kaam nahin chala paya, kyonki wo dhire dhire sabse door hota chala gaya tha. ab wo ek prakashak ke liye sangit lipi likhne laga.
isi beech wo bahut bimar paD gaya. uske paDos mein kuch log rahte the, jinmen siDoni ne uski bahut seva sushrusha ki. yahan uski ikol normel ke ek tarun lecturer oliviyar zyanin se mulaqat ho gai. usko pata chala ki oliviyar entonit ka bhai tha, jisse ki uski jarmni mein mulaqat hui thi. yadyapi jaan kristof ka koi dost nahin tha, phir bhi uska parichit hone ke karan entonit ka samaj mein samman nasht ho gaya tha. use pata chala ki entonit ko tapedik ho gai thi aur apne bhai ko paDhane ke prayatn mein ghor parishram karne aur us avastha mein apni dekh rekh na kar pa sakne ke karan uski mirtyu ho gai thi.
ek din oliviyar ne kristof se kaha ki ab tak wo asli fraans ke sanpark mein nahin aaya hai—asli fraans ki janta ke sanpark mein. donon hi ek dusre ko nai nai jankari jutate. donon ek dusre ki prakrti se avgat ho gaye the. oliviyar svbhaav ka gambhir tha, kintu sharirik roop se wo svasth nahin tha. kristof mein apar shakti thi aur uski aatma bhi tufani thi. donon ki joDi aisi thi jaise ek langDa tha aur ek andha.
kuch din baad koleth namak laDki ke pichhe donon mitron mein ek tanav aa gaya. kristof koleth ko pahle pyaar karta tha aur ab oliviyar uska naya premi tha. koleth ne lusiyan levikor namak ek vekti ko beech mein liya. ye kristof ka purana shatru tha aur usne ek prakar ki uljhan paida kar di thi. nasamjhi mein kristof bahut kruddh ho gaya. usne ek party mein levikor ka apman kar diya aur parinaam ye hua ki levikor ne dvandv ke liye use lalkara. donon yudh ke liye taiyar hue, kintu donon ki goliyan khali chali gain. iska parinaam ye hua ki kristof aur oliviyar ka tanav door ho gaya aur donon ek dusre ke mitr ho gaye.
is beech mein fraans aur jarmni ke beech yudh ki bhayanak khabren aane lagin. charon or ek atank phail gaya. jab kuch shanti hui, kristof rachnatmak kaary mein das guni shakti ke saath lag gaya. ab uski sangit sambandhi rachnayen prakashit hone lagin aur french aur german aurkestra unhen bajane lage. uski saphalta ka path prashast ho chala tha. lekin aise samay durbhagy se use jarmni mein apni mata ki mrityushayya ke nikat jana paDa.
jeklin laingiyas ek khubsurat laDki thi, jiski adten bigaD chuki theen aur jo bahut hi chapal thi. oliviyar uske prem mein paD gaya aur usne usse vivah kar liya. usko fraans ke qasbe mein ek naukari mil gai aur ab wo apni patni ke saath vahin ek qasbe mein bus gaya. kuch din baad ve log peris aa gaye. lekin jeklin oliviyar se ub gai. ek bachcha bhi paida hua, kintu donon pati patni uske karan bhi ek nahin ho sake. jeklin ne kristof se prem karne ki cheshta ki, kintu uska man nahin bhara aur wo ek badachlan lekhak ke saath bhaag gai. is ghatna ka parinaam ye hua ki kristof aur oliviyar, jinmen kabhi vaimanasy ho gaya tha, jeklin ke karan phir se mitr ho gaye. ve donon peris ke samaj ko samajhna chahte the. oliviyar adarshavadi tha aur kristof mein manavvadi chetna thi. in baton ne unhen mazdur andolan ki or akarshait kiya. mai divas ke pradarshan ko dekhne oliviyar bhi gaya. kristof baDe josh mein tha. oliviyar vahan ek dange mein mara gaya. kristof ka is par police se jhagDa ho gaya, kintu uske mitron ne use bacha liya. unhonne use desh ki sima ke paar pahuncha diya. ab wo ek baar phir adhikari varg ke samne bhagoDa ho gaya—jaisa ki das varsh poorv idhar se udhar bhaag raha tha. doctor bron ne use ashray diya. ve german the. unki patni ka naam anna tha. kuch dinon baad kristof aur anna mein prem vyvahar prarambh ho gaya. yadyapi unhonne bahut cheshta ki ki us sambandh ko toD den, kintu ve saphal nahin hue. bron ko dhokha diya gaya hai, ye soch sochkar anna ko is baat ka itna manasik duःkh hua ki usne ant mein atmahatya tak karne ki cheshta ki. parinaamasvarup, kristof vahan se nikal bhaga.
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antim samay tak kristof sangit rachna karta raha. yahan tak ki jab mirtyu nikat aa gai, to bhi usne apni qalam uthai aur apna banaya hua geet likha ha
tu phir se janm lega, vishram kar.
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raat aur din ki muskanen mil gai hain.
prem aur ghrinaa paraspar samrasta mein parinat ho chuke hain.
main do vishal pankhon vale devta ka aradhan karunga.
jivan ki jay, mirtyu ki jay!. . .
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inhin dinon uske baba ki mirtyu ho gai aur amdani ka ek zariya khatm ho gaya. uske pita ki nashebaji bhi ab aur baDh gai. parinaam ye hua ki hob thiyetar ke aurkestra mein se use nikal diya gaya. sharab ne uske pita ki naukari chhoDva di thi, atah chaudah varsh ki avastha mein hi vayalin ki keval pahli dhun baja pane vale kristof ko sara parivar sambhalne ka bojh uthana paDa.
kristof ke mama ka naam gotafriD tha. wo sidha sada imanadar adami tha. uski amdani ke adhar par kristof ne ek jivan darshan banaya aur usko apnane ki cheshta ki. ab kristof idhar udhar sangit sikhane bhi jaya karta tha. ek dhani parivar mein ek laDki ko wo sangit sikhane laga. wo us laDki se prem karne laga, kintu laDki ne uska maज़aक़ uDa diya. is baat se jaan kristof ko bahut duःkh hua. kuch hi din baad uske pita ki bhi mirtyu ho gai. iska parinaam ye hua ki kristof ka man raag rang se uchaat kha gaya aur wo niras vishuddhtavadi sa ban gaya. kintu phir bhi uska man itni nirasta se apne aapko baandh nahin saka aur kuch dinon mein hi jaan kristof sebin namak ek vidhva yuvati ke prem mein phans gaya. kintu isse poorv ki wo prem paripakv hota, baDhta, sebin mar gai. is ghatna ne kristof ko bahut hi virakt kar diya aur wo dehat ki or ghumne ka shauqin ho gaya. door door tak ghumta. aise hi ghumte ghumte ek baar uski eDa namak ek laDki se mulaqat hui. unhonne hotel mein raat saath saath guzari aur kristof uske prem mein paD gaya. lekin jab use ye pata chala ki uske chhote bhai ke saath eDa ka prem sambandh chal raha hai to use baDa bhari dhakka laga. ab wo puri shakti se apne kaam mein lag gaya. jaise jaise uski paripakvata baDhti ja rahi thi, uski parakh, imandari, sachai aur chetna mein pushti aa rahi thi. uske sangit rachna ke niyam german niymon se takrane lage aur ek asthaniya patr mein usne german paddhati ko barbar kahna prarambh kiya. iska parinaam ye hua ki sampadkon se uska jhagDa ho gaya aur wo ek samyavadi patr mein likhne laga. is baat se granDaDyuk bhi kruddh ho gaya aur kristof ko raajy ki or se milne vali sahayata bhi band ho gai. kintu jaan kristof ki vipatti ka yahin ant nahin hua. qasbe ke log uske viruddh ho gaye aur dhire dhire sare mitr bhi use chhoDne lage. keval buDha pitar shetz, jo sangit ke itihas ka ritayarD professor tha, uski baat ko samajhta tha.
ek baar ek saray mein ek kisan laDki ke saath nrity karte samay kristof ka kuch sharabi sainikon ke saath jhagDa ho gaya. us samay wo bees varsh ka tha. sainikon se jhagDa karne ke apradh mein jel ho jane ka khatra tha, isliye kristof ko mazbur hokar peris bhaag jana paDa. peris mein apne jivanyapan ke liye wo sangit ki tution karne laga. vahan use bachpan ka ek dost mil gaya—silve kohan, jo peris mein apni sthiti bana chuka tha. usne kristof ko peris ke samaj mein ghusa diya, kintu kristof ko wo sab pasand nahin aaya. us samaj mein ek khokhlapan tha, kahili thi, naitik nirviryta thi, uddeshyhinta, vyarthata apne aapko nasht kar dene vali anavashyak alochana thee; jaise us samaj mein ek sarvajnik tanav tha, jisne logon ki sahajta ko vinsht kar diya tha. aise samaj mein prasiddhi praapt karne ke liye kristof ko in sab baton se samjhauta karne ki avashyakta thi, jo karna usne svikar nahin kiya. aur isliye wo tution se apna kaam nahin chala paya, kyonki wo dhire dhire sabse door hota chala gaya tha. ab wo ek prakashak ke liye sangit lipi likhne laga.
isi beech wo bahut bimar paD gaya. uske paDos mein kuch log rahte the, jinmen siDoni ne uski bahut seva sushrusha ki. yahan uski ikol normel ke ek tarun lecturer oliviyar zyanin se mulaqat ho gai. usko pata chala ki oliviyar entonit ka bhai tha, jisse ki uski jarmni mein mulaqat hui thi. yadyapi jaan kristof ka koi dost nahin tha, phir bhi uska parichit hone ke karan entonit ka samaj mein samman nasht ho gaya tha. use pata chala ki entonit ko tapedik ho gai thi aur apne bhai ko paDhane ke prayatn mein ghor parishram karne aur us avastha mein apni dekh rekh na kar pa sakne ke karan uski mirtyu ho gai thi.
ek din oliviyar ne kristof se kaha ki ab tak wo asli fraans ke sanpark mein nahin aaya hai—asli fraans ki janta ke sanpark mein. donon hi ek dusre ko nai nai jankari jutate. donon ek dusre ki prakrti se avgat ho gaye the. oliviyar svbhaav ka gambhir tha, kintu sharirik roop se wo svasth nahin tha. kristof mein apar shakti thi aur uski aatma bhi tufani thi. donon ki joDi aisi thi jaise ek langDa tha aur ek andha.
kuch din baad koleth namak laDki ke pichhe donon mitron mein ek tanav aa gaya. kristof koleth ko pahle pyaar karta tha aur ab oliviyar uska naya premi tha. koleth ne lusiyan levikor namak ek vekti ko beech mein liya. ye kristof ka purana shatru tha aur usne ek prakar ki uljhan paida kar di thi. nasamjhi mein kristof bahut kruddh ho gaya. usne ek party mein levikor ka apman kar diya aur parinaam ye hua ki levikor ne dvandv ke liye use lalkara. donon yudh ke liye taiyar hue, kintu donon ki goliyan khali chali gain. iska parinaam ye hua ki kristof aur oliviyar ka tanav door ho gaya aur donon ek dusre ke mitr ho gaye.
is beech mein fraans aur jarmni ke beech yudh ki bhayanak khabren aane lagin. charon or ek atank phail gaya. jab kuch shanti hui, kristof rachnatmak kaary mein das guni shakti ke saath lag gaya. ab uski sangit sambandhi rachnayen prakashit hone lagin aur french aur german aurkestra unhen bajane lage. uski saphalta ka path prashast ho chala tha. lekin aise samay durbhagy se use jarmni mein apni mata ki mrityushayya ke nikat jana paDa.
jeklin laingiyas ek khubsurat laDki thi, jiski adten bigaD chuki theen aur jo bahut hi chapal thi. oliviyar uske prem mein paD gaya aur usne usse vivah kar liya. usko fraans ke qasbe mein ek naukari mil gai aur ab wo apni patni ke saath vahin ek qasbe mein bus gaya. kuch din baad ve log peris aa gaye. lekin jeklin oliviyar se ub gai. ek bachcha bhi paida hua, kintu donon pati patni uske karan bhi ek nahin ho sake. jeklin ne kristof se prem karne ki cheshta ki, kintu uska man nahin bhara aur wo ek badachlan lekhak ke saath bhaag gai. is ghatna ka parinaam ye hua ki kristof aur oliviyar, jinmen kabhi vaimanasy ho gaya tha, jeklin ke karan phir se mitr ho gaye. ve donon peris ke samaj ko samajhna chahte the. oliviyar adarshavadi tha aur kristof mein manavvadi chetna thi. in baton ne unhen mazdur andolan ki or akarshait kiya. mai divas ke pradarshan ko dekhne oliviyar bhi gaya. kristof baDe josh mein tha. oliviyar vahan ek dange mein mara gaya. kristof ka is par police se jhagDa ho gaya, kintu uske mitron ne use bacha liya. unhonne use desh ki sima ke paar pahuncha diya. ab wo ek baar phir adhikari varg ke samne bhagoDa ho gaya—jaisa ki das varsh poorv idhar se udhar bhaag raha tha. doctor bron ne use ashray diya. ve german the. unki patni ka naam anna tha. kuch dinon baad kristof aur anna mein prem vyvahar prarambh ho gaya. yadyapi unhonne bahut cheshta ki ki us sambandh ko toD den, kintu ve saphal nahin hue. bron ko dhokha diya gaya hai, ye soch sochkar anna ko is baat ka itna manasik duःkh hua ki usne ant mein atmahatya tak karne ki cheshta ki. parinaamasvarup, kristof vahan se nikal bhaga.
wo svitajarlainD ke parvatiy ilaqe mein pahunch gaya. is tarah varshon beet gaye—kristof ko videshon mein ghumte phirte. italy mein rahte hue kristof ko greziya mili. ek baar javani mein usse peris mein kristof ki mulaqat hui thi. greziya ne astriya ke ek count se vivah kiya tha. apne pati ke prabhav se usne kristof ko us samay sahayata di thi, jabki janta kristof ke sangit ko pasand nahin karti thi. uske pati ki dvandv yudh mein mirtyu ho gai thi aur ab wo ek maan thi. kristof aur grejiya ek dusre ke prem mein paD gaye, kintu baad mein jald hi donon alag alag ho gaye. kristof peris laut aaya. udhar greziya ka svaasthy nasht ho gaya aur wo mar gai.
apne jivan ke Dhalte varsh kristof apne purane mitron ke saath bitane laga. inhin dinon kristof ke liye bhay ka naya karan utpann ho gaya, aur wo ye tha ki jarmni aur fraans mein yudh ke badal ghir rahe the. parantu usko nishchay tha ki yadi yudh hua, to bhi wo donon deshon ke beech bhaichare ke sambandh ko nasht nahin kar payega.
antim samay tak kristof sangit rachna karta raha. yahan tak ki jab mirtyu nikat aa gai, to bhi usne apni qalam uthai aur apna banaya hua geet likha ha
tu phir se janm lega, vishram kar.
ab sab kuch ek ho gaya hai.
raat aur din ki muskanen mil gai hain.
prem aur ghrinaa paraspar samrasta mein parinat ho chuke hain.
main do vishal pankhon vale devta ka aradhan karunga.
jivan ki jay, mirtyu ki jay!. . .
स्रोत :
पुस्तक : नोबेल पुरस्कार विजेताओं की 51 कहानियाँ (पृष्ठ 70-75)
संपादक : सुरेन्द्र तिवारी
रचनाकार : रोमां रोलां
प्रकाशन : आर्य प्रकाशन मंडल, सरस्वती भण्डार, दिल्ली
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