पिछले रोज़ चार दिनों से ग़ायब मर्द पिनपिनाया हुआ घर आता है और दरवाज़े से आवाज़ देता है। अंदर से पैर घसीटती हुई उसकी औरत निकलती है। मर्द अपनी धोती की मुरीं से दस रुपए का एक मुड़ा-तुड़ा नोट निकालता है और औरत के हाथ पर रखकर बोलता है कि जब वह शाम को लौटे तो उसे खाना मिलना चाहिए।
औरत चिंतित होकर पूछती है, ‘अनाज कहाँ है?'
'जुहन्नम में।' मर्द डपटकर कहता है और बाहर निकल जाता है। औरत नोट को ग़ौर से देखती है और जतन से ताख पर रख देती है। वह अपने चार साल के लड़के को, जो खेलते-खेलते सो गया है—जगाती है और कहती है, 'तुम घर देखो, मैं अभी आ रही हूँ।' लड़का आँख मलता है और वह उसे लौटकर अपने साथ बाज़ार ले चलने का लालच देता है! लड़का चुपचाप अपनी माँ को देखता रहता है।
औरत कटकटाए बर्तनों को उठाती है और मलने के लिए बाहर चली आती है।
वह चटपट बर्तन मलकर घर आती है और चौखट पर पहुँचकर दंग रह जाती है। नीचे ज़मीन पर नोट के टुकड़े पड़े हैं। वह बर्तन फेंककर ताख के पास जाती है—नोट नदारद। लड़का खटिया पर जस का तस लेटा है। वह ग़ुस्से में है और मुँह फुलाए है।
वह लड़के को खींचकर मारना शुरू करती है और थक जाती है और रोने लगती है।
शाम को मर्द आता है और चौक में पीढ़े पर बैठ जाता है। वह औरत को आवाज़ देता है कि तुरंत खाना दो।
औरत आँगन में बैठे बैठे बताती है कि जब वह बर्तन मलने गई थी, लड़के ने नोट को फाड़ दिया था।
मर्द अपनी सूखी जाँघ पर एक मुक्का मारता है और उठ खड़ा होता है। वह लपककर चूल्हे के पास से हंसुआ उठाता है और आँगन में खड़ा होकर चिल्लाता है, 'अगर कोई मेरे पास आया तो उसे कच्चा खा जाऊँगा।
उसका मुँह अपनी औरत की ओर है।
औरत बिना उसे देखे-सुने बैठी रहती है।
मर्द झपट्टा मारकर लड़के को उठाता है और उस पर चढ़ बैठता है। फिर हंसुआ को झंडे की तरह तानकर औरत को ललकारता है, 'कच्चा खा जाऊँगा।'
औरत उसकी ओर कतई नहीं देखती।
मर्द लड़के के गले पर हंसुआ दबाता है और ग़ुस्से में काँखता है, “साले, तुझे हलाल करके छोडूँगा।' और अपने ओंठ भींच लेता है।
लड़का—जो बिना चीख़े, चिल्लाए, रोए उसके घुटनों के बीच दबा है—किसी तरह साँस लेता है, 'ओह, ऐसे नहीं, धीरे-धीरे...।
और पुलिस दूसरी सुबह नियमानुसार मर्द के साथ अपना फ़र्ज़ पूरा करती है।
पानी
पुलिस को ख़बर दी जाती है कि सात दिनों से भूखा निठोहर कुएँ में कूद गया है और वह बाहर नहीं आ रहा है।
'इसमें परेशानी क्या है?' पुलिस पूछती है।
'हुज़ूर, वह मरना चाहता है।'
'अगर वह यही चाहता है तो हम क्या कर सकते हैं?' पुलिस फिर कहती है और समझाती है कि वे उसके लिए मर जाने के बाद ही कुछ कर सकते हैं, इसके पहले नहीं। उन्हें इसके लिए ‘फ़ायर ब्रिगेड' दफ़्तर को ख़बर करनी चाहिए।
ख़बर करने वाले चिंतित होते हैं और खड़े रहते हैं।
'साहेब, वह कुएँ में मर गया तो हम पानी कहाँ पिएँगे?' उनमें से एक आदमी हिम्मत के साथ कहता है।
'क्यों?'
‘एक ही कुआँ है।' वह संकोच के साथ धीरे-से कहता है।
दूसरा आदमी बात और साफ़ करता है। ‘उस कुएँ को छोड़े पानी के लिए हमें तीन कोस दूर दूसरे गाँव जाना पड़ेगा।'
काफ़ी सोच विचार के बाद दो सिपाही कुएँ पर आते हैं। वे झाँककर देखते हैं—पानी बहुत नीचे चला गया है और वहाँ अँधेरा दिखार्इ पड़ रहा है। पानी की सतह के ऊपर एक किनारे बरोह पकड़े हुए निठोहर बैठा है—नंगा और काला। सिपाही होली का मज़ा किरकिरा करने के लिए उन्हें गालियाँ देते हैं और डोर लाने के लिए कहते हैं।
डोर लार्इ जाती है और कुएँ में ढील दी जाती है। सिपाही अलग-अलग और एक साथ चिल्लाकर निठोहर से रस्सी पकड़ने के लिए कहते हैं। रस्सी निठोहर के सामने हिलती रहती है और वह चुपचाप बैठा रहता है।
सिपाही उसे डाँटते हैं, 'बाहर आना हो तो डोर पकड़ो।'
काफ़ी हो-हल्ला के बाद निठोहर अपनी आँखें डोर के सहारे ऊपर करता है, फिर सिर झुका लेता है।
'वह डोर क्यों नहीं पकड़ रहा है?' एक सिपाही बस्तीवालों से पूछता है।
बस्तीवाले बताते हैं कि वह डोर पकड़ने के नहीं, मरने के इरादे से अंदर गया है। वह भूख से तंग आ चुका है।
सिपाही मसख़री करते हैं कि क्या वे उनके निठोहर के लिए रोटी हो जाएँ।
सिपाहियों में से एक फिर चिल्लाता है कि अगर वह मरने पर ही आ गया हो तो उसे कोई रोक नहीं सकता लेकिन वह कम-से-कम आज नहीं मर सकता। आज होली है और यह ग़लत है।
'हाँ, वह किसी दूसरे दिन मर सकता है, जब हम न रहें।' दूसरा सिपाही बोलता है।
जवाब में निठोहर के होंठ हिलते हुए मालूम होते हैं, लेकिन आवाज़ नहीं सुन पड़ती।
'क्या बोलता है?' एक सिपाही पूछता है।
'मुँह चिढ़ा रहा है।' दूसरा कहता है।
'नहीं, वह गालियाँ दे रहा होगा, बड़ा ग़ुस्सैल है।' दूसरी तरफ़ से अंदर झाँकता हुआ एक आदमी कहता है।
'गालियाँ? खींच लो। तुम सब खींच लो डोर और साले को मर जाने दो!' बाहर डोर पकड़े हुए बस्तीवालों पर एक सिपाही चीख़ता है।
बस्तीवालों पर उसकी चीख़ का कोई असर नहीं पड़ता।
'जाने दो। गाली ही दे रहा है, गा तो नहीं रहा है।' उसका साथी फिर मसख़री करता है और ही-ही करके हँसता है।
'अच्छा, ठीक है, बाहर आने दो।' सिपाही ख़ुद को शांत करता है।
डोर ऊपर खींच ली जाती है और उसे बाहर निकालने के लिए तरह-तरह के सुझाव आने लगते हैं। तय पाया जाता है कि वह भूखा है और रोटियाँ देखकर ऊपर आ जाएगा। लेकिन सवाल पैदा होता है कि रोटियाँ कहाँ से आएँ? अगर रोटियाँ होती तो वह कुएँ में क्यों बैठता? फिर बात इस पर भी आती है कि उसे यहीं से चारा दिखाया जाए। मुलायम और नरम पत्तियाँ।
'क्यों, तुम सब उसे पाड़ा समझते हो?' नाराज़ सिपाही पूछता है और अपना थल-थल शरीर हँसी से दलकाने लगता है।
अंत में तय होता है कि कोई आदमी निकट के बाज़ार में चला जाए और वहाँ से कुछ भी ले आए।
घंटे बाद पावभर सत्तू आता है। सिपाही पूरी बुद्धि के साथ एक गगरे में सत्तू घोलकर निठोहर के आगे ढील देते हैं। वह गगरे को हाथों में लेकर हिलाता है, उसमें झाँकता है, सूंघता है, फिर एक साँस में पी जाता है।
ख़ाली गगरा फिर झूलने लगता है और ऊपर हँसी होती है।
'अच्छा बनाया उसने,' एक सिपाही कहता है।
'अब तो वह और भी बाहर नहीं आएगा।' बस्ती का एक आदमी उदास होकर कहता है।
'हाँ-हाँ, रुको। घबड़ाओ नहीं।' थलथल सिपाही अंदर झाँकता हुआ हाथ उठाकर चिल्लाता है।
दूसरे भी झाँकते हैं।
निठोहर ने गगरा छिटाकर पानी पर फेंक दिया है और फंदा अपने गले में डाल लिया है।
'उसने फंदा पकड़ लिया है।' पहला सिपाही चिल्लाता है।
‘खींचों, मैं कहता हूँ, खींचो साले को।' दूसरा चीख़ता है और निठोहर खींच लिया जाता है। उसकी उँगलियाँ फ़ंदे पर कस गई हैं। जीभ और आँखे बाहर निकल आई हैं और टाँगे किसी मरे मेंढक-सी तन गई हैं।
सिपाहियों को करतब दिखाने का ज़रिया मिलता है और बस्तीवालों को पानी।
प्रदर्शनी
ख़बर फैली है कि इस इलाक़े में अकाल देखने प्रधानमंत्री आ रही हैं। सरगर्मी बढ़ती है।
जंगल के बीच से नमूने के तौर पर 50 कंगाल जुटाए जाते हैं और पंद्रह दिन तक कैंप में रखकर उन्हें इस मौक़े के लिए तैयार किया जाता है।
स्वागत की तैयारियाँ शुरू होती हैं। फाटक बनाए जाते हैं। तोरण और बंदनवार सजाए जाते हैं। ‘स्वागतम्' और 'शुभागमनम्' लटकाए जाते हैं। 'जयहिंद' के लिए दो नेताओं में मतभेद हो जाता है इसलिए यह नहीं लटकाया जाता।
गाड़ियाँ इधर से उधर दौड़ती हैं और उधर से इधर। पुलिस आती है, पत्रकार आते हैं, नेता और अफ़सर आते हैं। सी.आई.डी की सतर्कता बढ़ती है।
अपने क्षेत्रों के विजेता नेता लोगों को समझाते हैं कि यह उनकी आवाज़ है जो प्रधानमंत्री को यहाँ घसीट लार्इ है। इस तरह अगले चुनाव में उनके विजय की भूमिका बनती है।
दूसरे क्षेत्रों से आए नेताओं को कोफ़्त होती है कि उनका क्षेत्र अकाल से क्यों वंचित रह गया।
इस बीच अकाल भी ज़ोर पकड़ लेता है। पेड़ों से बेल, महुवे, करौंदे, कुनरू, के बौर साफ़ हो चुके हैं। अब पेड़ नंगे होने लगे हैं। उनकी पत्तियाँ—भरसक नर्म और मुलायम—उठाई जा रही हैं और खार्इ जा रही हैं।
यह सब तब तक चल रहा है, जब तक आगे है।
ऐन वक़्त पर प्रधानमंत्री आती हैं। वे दस रुपए की साड़ी में सौ वर्ग मील की यात्रा करती हैं। कुछ ही घंटों में इतनी लंबी यात्रा लोगों को सकते में डाल देती है।
प्रधानमंत्री ख़ुश रहती हैं क्योंकि लोग भूखे हैं फिर भी उन्हें देखने के लिए खड़े हैं। जनता प्रधानमंत्री के प्रति अपने पूरे विश्वास और विनय के साथ अकाल में मर रही है। अंत में प्रधानमंत्री का दस मिनट तक कार्यक्रम होता है। रामलीला मैदान में कहीं कोई तैयारी नहीं है। क्योंकि बाहर से लाए जाने वाले फल, गजरे, केले के गाछ कंगालों के बीच सुरक्षित नहीं रह सकते। और ऐसे भी यह कार्यक्रम जश्न मनाने के लिए नहीं है।
कार्यक्रम से पहले प्रदर्शनी के लिए तैयार किए गए सैंतालीस कंगाल लाए जाते हैं। पचास में से तीन मर चुके हैं। कैंप में आने के तेरहवें दिन जब उन्हें खाने के लिए रोटियाँ दी गईं तो वे पूरी की पूरी निगल गए। और हुआ यह कि रोटी सूखे गले में फंस गई और वे दिवंगत हो गए।
प्रधानमंत्री उनके और सारी भीड़ के आगे अपना कार्यक्रम पेश करती हैं। वे धूप में एक चबूतरे पर आ खड़ी होती हैं। बोलने की कोशिश में ओंठों को कँपाती हैं। आँखों को रूमाल से पोंछती हैं और सिर दूसरी ओर घुमा लेती हैं। रूमाल के एक कोने पर सुर्ख़ गुलाब कढ़ा है।
भीड़ गदगद होती है।
इस मौन कार्यक्रम के बाद प्रसन्न चेहरे के साथ प्रधानमंत्री विदा लेती है। नारे लगते हैं। जै-जैकार होता है। और दूसरे शहर के सबसे बड़े होटल में प्रधानमंत्री पत्रकारों के बीच वक़्तव्य देती हैं कि 'हम दृढ़ता, निश्चय और अपने बलबूते पर ही इसका मुक़ाबला कर सकते हैं।
अफ़सर ख़ुश होते हैं कि दौरा बिना किसी दुर्घटना के सम्पन्न हुआ है। भीड़ पहली बार अपने जीवन में प्रधानमंत्री का दर्शन पाकर छंट जाती है और वे सैंतालीस कंगाल घास और माथों की आँड़ी खाने के लिए जंगल की ओर हाँक दिए जाते हैं।
akal
ye waqya duddhi tahsil ke ek pariwar ka hai
pichhle roz chaar dinon se ghayab mard pinapinaya hua ghar aata hai aur darwaze se awaz deta hai andar se pair ghasitti hui uski aurat nikalti hai mard apni dhoti ki murin se das rupae ka ek muDa tuDa not nikalta hai aur aurat ke hath par rakhkar bolta hai ki jab wo sham ko laute to use khana milna chahiye
aurat chintit hokar puchhti hai, ‘anaj kahan hai?
juhannam mein mard Dapatkar kahta hai aur bahar nikal jata hai aurat not ko ghaur se dekhti hai aur jatan se takh par rakh deti hai wo apne chaar sal ke laDke ko, jo khelte khelte so gaya hai—jagati hai aur kahti hai, tum ghar dekho, main abhi aa rahi hoon laDka ankh malta hai aur wo use lautkar apne sath bazar le chalne ka lalach deta hai! laDka chupchap apni man ko dekhta rahta hai
aurat kataktaye bartnon ko uthati hai aur malne ke liye bahar chali aati hai
wo chatpat bartan malkar ghar aati hai aur chaukhat par pahunchakar dang rah jati hai niche zamin par not ke tukDe paDe hain wo bartan phenkkar takh ke pas jati hai—not nadarad laDka khatiya par jas ka tas leta hai wo ghusse mein hai aur munh phulaye hai
wo laDke ko khinchkar marana shuru karti hai aur thak jati hai aur rone lagti hai
sham ko mard aata hai aur chauk mein piDhe par baith jata hai wo aurat ko awaz deta hai ki turant khana do
aurat angan mein baithe baithe batati hai ki jab wo bartan malne gai thi, laDke ne not ko phaD diya tha
mard apni sukhi jaangh par ek mukka marta hai aur uth khaDa hota hai wo lapakkar chulhe ke pas se hansua uthata hai aur angan mein khaDa hokar chillata hai, agar koi mere pas aaya to use kachcha kha jaunga
uska munh apni aurat ki or hai
aurat bina use dekhe sune baithi rahti hai
mard jhapatta markar laDke ko uthata hai aur us par chaDh baithta hai phir hansua ko jhanDe ki tarah tankar aurat ko lalkarta hai, kachcha kha jaunga
aurat uski or kati nahin dekhti
mard laDke ke gale par hansua dabata hai aur ghusse mein kankhata hai, “sale, tujhe halal karke chhoDunga aur apne onth bheench leta hai
laDka—jo bina chikhe, chillaye, roe uske ghutnon ke beech daba hai—kisi tarah sans leta hai, oh, aise nahin, dhire dhire
aur police dusri subah niymanusar mard ke sath apna farz pura karti hai
pani
police ko khabar di jati hai ki sat dinon se bhukha nithohar kuen mein kood gaya hai aur wo bahar nahin aa raha hai
ismen pareshani kya hai? police puchhti hai
huzur, wo marna chahta hai
agar wo yahi chahta hai to hum kya kar sakte hain? police phir kahti hai aur samjhati hai ki we uske liye mar jane ke baad hi kuch kar sakte hain, iske pahle nahin unhen iske liye ‘fire brigade daftar ko khabar karni chahiye
khabar karne wale chintit hote hain aur khaDe rahte hain
saheb, wo kuen mein mar gaya to hum pani kahan piyenge? unmen se ek adami himmat ke sath kahta hai
kyon?
‘ek hi kuan hai wo sankoch ke sath dhire se kahta hai
dusra adami baat aur saf karta hai ‘us kuen ko chhoDe pani ke liye hamein teen kos door dusre ganw jana paDega
kafi soch wichar ke baad do sipahi kuen par aate hain we jhankakar dekhte hain—pani bahut niche chala gaya hai aur wahan andhera dikhari paD raha hai pani ki satah ke upar ek kinare baroh pakDe hue nithohar baitha hai—nanga aur kala sipahi holi ka maza kirkira karne ke liye unhen galiyan dete hain aur Dor lane ke liye kahte hain
Dor lari jati hai aur kuen mein Dheel di jati hai sipahi alag alag aur ek sath chillakar nithohar se rassi pakaDne ke liye kahte hain rassi nithohar ke samne hilti rahti hai aur wo chupchap baitha rahta hai
sipahi use Dantte hain, bahar aana ho to Dor pakDo
kafi ho halla ke baad nithohar apni ankhen Dor ke sahare upar karta hai, phir sir jhuka leta hai
wo Dor kyon nahin pakaD raha hai? ek sipahi bastiwalon se puchhta hai
bastiwale batate hain ki wo Dor pakaDne ke nahin, marne ke irade se andar gaya hai wo bhookh se tang aa chuka hai
sipahi masakhri karte hain ki kya we unke nithohar ke liye roti ho jayen
sipahiyon mein se ek phir chillata hai ki agar wo marne par hi aa gaya ho to use koi rok nahin sakta lekin wo kam se kam aaj nahin mar sakta aaj holi hai aur ye ghalat hai
han, wo kisi dusre din mar sakta hai, jab hum na rahen dusra sipahi bolta hai
jawab mein nithohar ke honth hilte hue malum hote hain, lekin awaz nahin sun paDti
kya bolta hai? ek sipahi puchhta hai
munh chiDha raha hai dusra kahta hai
nahin, wo galiyan de raha hoga, baDa ghussail hai dusri taraf se andar jhankta hua ek adami kahta hai
galiyan? kheench lo tum sab kheench lo Dor aur sale ko mar jane do! bahar Dor pakDe hue bastiwalon par ek sipahi chikhta hai
bastiwalon par uski cheekh ka koi asar nahin paDta
jane do gali hi de raha hai, ga to nahin raha hai uska sathi phir masakhri karta hai aur hi hi karke hansta hai
achchha, theek hai, bahar aane do sipahi khu ko shant karta hai
Dor upar kheench li jati hai aur use bahar nikalne ke liye tarah tarah ke sujhaw aane lagte hain tay paya jata hai ki wo bhukha hai aur rotiyan dekhkar upar aa jayega lekin sawal paida hota hai ki rotiyan kahan se ayen? agar rotiyan hoti to wo kuen mein kyon baithta? phir baat is par bhi aati hai ki use yahin se chara dikhaya jaye mulayam aur naram pattiyan
kyon, tum sab use paDa samajhte ho? naraz sipahi puchhta hai aur apna thal thal sharir hansi se dalkane lagta hai
ant mein tay hota hai ki koi adami nikat ke bazar mein chala jaye aur wahan se kuch bhi le aaye
ghante baad pawbhar sattu aata hai sipahi puri buddhi ke sath ek gagre mein sattu gholkar nithohar ke aage Dheel dete hain wo gagre ko hathon mein lekar hilata hai, usmen jhankta hai, sunghta hai, phir ek sans mein pi jata hai
khali gagra phir jhulne lagta hai aur upar hansi hoti hai
achchha banaya usne, ek sipahi kahta hai
ab to wo aur bhi bahar nahin ayega basti ka ek adami udas hokar kahta hai
han han, ruko ghabDao nahin thalthal sipahi andar jhankta hua hath uthakar chillata hai
dusre bhi jhankte hain
nithohar ne gagra chhitakar pani par phenk diya hai aur phanda apne gale mein Dal liya hai
usne phanda pakaD liya hai pahla sipahi chillata hai
‘khinchon, main kahta hoon, khincho sale ko dusra chikhta hai aur nithohar kheench liya jata hai uski ungliyan fande par kas gai hain jeebh aur ankhe bahar nikal i hain aur tange kisi mare meinDhak si tan gai hain
sipahiyon ko kartab dikhane ka zariya milta hai aur bastiwalon ko pani
pradarshani
khabar phaili hai ki is ilaqe mein akal dekhne prdhanmantri aa rahi hain sargarmi baDhti hai
jangal ke beech se namune ke taur par 50 kangal jutaye jate hain aur pandrah din tak kaimp mein rakhkar unhen is mauqe ke liye taiyar kiya jata hai
swagat ki taiyariyan shuru hoti hain phatak banaye jate hain toran aur bandanwar sajaye jate hain ‘swagtam aur shubhagamnam latkaye jate hain jayhind ke liye do netaon mein matbhed ho jata hai isliye ye nahin latkaya jata
gaDiyan idhar se udhar dauDti hain aur udhar se idhar police aati hai, patrakar aate hain, neta aur afsar aate hain si i d ki satarkata baDhti hai
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ye sab tab tak chal raha hai, jab tak aage hai
ain waqt par prdhanmantri aati hain we das rupae ki saDi mein sau warg meel ki yatra karti hain kuch hi ghanton mein itni lambi yatra logon ko sakte mein Dal deti hai
prdhanmantri khush rahti hain kyonki log bhukhe hain phir bhi unhen dekhne ke liye khaDe hain janta prdhanmantri ke prati apne pure wishwas aur winay ke sath akal mein mar rahi hai ant mein prdhanmantri ka das minat tak karyakram hota hai ramlila maidan mein kahin koi taiyari nahin hai kyonki bahar se laye jane wale phal, gajre, kele ke gachh kangalon ke beech surakshait nahin rah sakte aur aise bhi ye karyakram jashn manane ke liye nahin hai
karyakram se pahle pradarshani ke liye taiyar kiye gaye saintalis kangal laye jate hain pachas mein se teen mar chuke hain kaimp mein aane ke terahwen din jab unhen khane ke liye rotiyan di gain to we puri ki puri nigal gaye aur hua ye ki roti sukhe gale mein phans gai aur we diwangat ho gaye
prdhanmantri unke aur sari bheeD ke aage apna karyakram pesh karti hain we dhoop mein ek chabutre par aa khaDi hoti hain bolne ki koshish mein onthon ko kanpati hain ankhon ko rumal se ponchhti hain aur sir dusri or ghuma leti hain rumal ke ek kone par surkh gulab kaDha hai
bheeD gadgad hoti hai
is maun karyakram ke baad prasann chehre ke sath prdhanmantri wida leti hai nare lagte hain jai jaikar hota hai aur dusre shahr ke sabse baDe hotel mein prdhanmantri patrkaron ke beech waqtawya deti hain ki hum driDhta, nishchay aur apne balbute par hi iska muqabala kar sakte hain
afsar khush hote hain ki daura bina kisi durghatna ke sampann hua hai bheeD pahli bar apne jiwan mein prdhanmantri ka darshan pakar chhant jati hai aur we saintalis kangal ghas aur mathon ki anDi khane ke liye jangal ki or hank diye jate hain
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jane do gali hi de raha hai, ga to nahin raha hai uska sathi phir masakhri karta hai aur hi hi karke hansta hai
achchha, theek hai, bahar aane do sipahi khu ko shant karta hai
Dor upar kheench li jati hai aur use bahar nikalne ke liye tarah tarah ke sujhaw aane lagte hain tay paya jata hai ki wo bhukha hai aur rotiyan dekhkar upar aa jayega lekin sawal paida hota hai ki rotiyan kahan se ayen? agar rotiyan hoti to wo kuen mein kyon baithta? phir baat is par bhi aati hai ki use yahin se chara dikhaya jaye mulayam aur naram pattiyan
kyon, tum sab use paDa samajhte ho? naraz sipahi puchhta hai aur apna thal thal sharir hansi se dalkane lagta hai
ant mein tay hota hai ki koi adami nikat ke bazar mein chala jaye aur wahan se kuch bhi le aaye
ghante baad pawbhar sattu aata hai sipahi puri buddhi ke sath ek gagre mein sattu gholkar nithohar ke aage Dheel dete hain wo gagre ko hathon mein lekar hilata hai, usmen jhankta hai, sunghta hai, phir ek sans mein pi jata hai
khali gagra phir jhulne lagta hai aur upar hansi hoti hai
achchha banaya usne, ek sipahi kahta hai
ab to wo aur bhi bahar nahin ayega basti ka ek adami udas hokar kahta hai
han han, ruko ghabDao nahin thalthal sipahi andar jhankta hua hath uthakar chillata hai
dusre bhi jhankte hain
nithohar ne gagra chhitakar pani par phenk diya hai aur phanda apne gale mein Dal liya hai
usne phanda pakaD liya hai pahla sipahi chillata hai
‘khinchon, main kahta hoon, khincho sale ko dusra chikhta hai aur nithohar kheench liya jata hai uski ungliyan fande par kas gai hain jeebh aur ankhe bahar nikal i hain aur tange kisi mare meinDhak si tan gai hain
sipahiyon ko kartab dikhane ka zariya milta hai aur bastiwalon ko pani
pradarshani
khabar phaili hai ki is ilaqe mein akal dekhne prdhanmantri aa rahi hain sargarmi baDhti hai
jangal ke beech se namune ke taur par 50 kangal jutaye jate hain aur pandrah din tak kaimp mein rakhkar unhen is mauqe ke liye taiyar kiya jata hai
swagat ki taiyariyan shuru hoti hain phatak banaye jate hain toran aur bandanwar sajaye jate hain ‘swagtam aur shubhagamnam latkaye jate hain jayhind ke liye do netaon mein matbhed ho jata hai isliye ye nahin latkaya jata
gaDiyan idhar se udhar dauDti hain aur udhar se idhar police aati hai, patrakar aate hain, neta aur afsar aate hain si i d ki satarkata baDhti hai
apne kshetron ke wijeta neta logon ko samjhate hain ki ye unki awaz hai jo prdhanmantri ko yahan ghasit lari hai is tarah agle chunaw mein unke wijay ki bhumika banti hai
dusre kshetron se aaye netaon ko koft hoti hai ki unka kshaetr akal se kyon wanchit rah gaya
is beech akal bhi zor pakaD leta hai peDon se bel, mahuwe, karaunde, kunru, ke baur saf ho chuke hain ab peD nange hone lage hain unki pattiyan—bharsak narm aur mulayam—uthai ja rahi hain aur khari ja rahi hain
ye sab tab tak chal raha hai, jab tak aage hai
ain waqt par prdhanmantri aati hain we das rupae ki saDi mein sau warg meel ki yatra karti hain kuch hi ghanton mein itni lambi yatra logon ko sakte mein Dal deti hai
prdhanmantri khush rahti hain kyonki log bhukhe hain phir bhi unhen dekhne ke liye khaDe hain janta prdhanmantri ke prati apne pure wishwas aur winay ke sath akal mein mar rahi hai ant mein prdhanmantri ka das minat tak karyakram hota hai ramlila maidan mein kahin koi taiyari nahin hai kyonki bahar se laye jane wale phal, gajre, kele ke gachh kangalon ke beech surakshait nahin rah sakte aur aise bhi ye karyakram jashn manane ke liye nahin hai
karyakram se pahle pradarshani ke liye taiyar kiye gaye saintalis kangal laye jate hain pachas mein se teen mar chuke hain kaimp mein aane ke terahwen din jab unhen khane ke liye rotiyan di gain to we puri ki puri nigal gaye aur hua ye ki roti sukhe gale mein phans gai aur we diwangat ho gaye
prdhanmantri unke aur sari bheeD ke aage apna karyakram pesh karti hain we dhoop mein ek chabutre par aa khaDi hoti hain bolne ki koshish mein onthon ko kanpati hain ankhon ko rumal se ponchhti hain aur sir dusri or ghuma leti hain rumal ke ek kone par surkh gulab kaDha hai
bheeD gadgad hoti hai
is maun karyakram ke baad prasann chehre ke sath prdhanmantri wida leti hai nare lagte hain jai jaikar hota hai aur dusre shahr ke sabse baDe hotel mein prdhanmantri patrkaron ke beech waqtawya deti hain ki hum driDhta, nishchay aur apne balbute par hi iska muqabala kar sakte hain
afsar khush hote hain ki daura bina kisi durghatna ke sampann hua hai bheeD pahli bar apne jiwan mein prdhanmantri ka darshan pakar chhant jati hai aur we saintalis kangal ghas aur mathon ki anDi khane ke liye jangal ki or hank diye jate hain
स्रोत :
पुस्तक : श्रेष्ठ हिन्दी कहानियाँ (1960-1970) (पृष्ठ 19)
संपादक : केवल गोस्वामी
रचनाकार : काशीनाथ सिंह
प्रकाशन : पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस प्रा. लिमिटेड
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।