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मिलन शून्य में

milan shunya mein

नदीन गोर्डिमर

नदीन गोर्डिमर

मिलन शून्य में

नदीन गोर्डिमर

और अधिकनदीन गोर्डिमर

    रोज़ सवेरे उसे भेजा जाता था बेकर की दुकान पर। गाँव की बिल्लियों की तरह काली-काली दीवारों में से निकल कर बाहर जाते थे वे काले उपनिवेशी फ्रेंच बच्चे जो उसके क़दमों के निशानों पर क़दम रख कर उसका पीछा करते थे। वह यह तो नहीं समझ पाता था कि वे बच्चे क्या बातें करते थे, मगर वह उनकी हँसी को समझ लेता था और मान लेता था कि वे उसे एक अजनबी की तरह देख रहे हैं। घर से निकलते ही, हर गली, हर दरवाज़े, हर पगडंडी पर चलते-चलते, पीछे मुड़कर वह अधडरी मुद्रा में देखता और उन बच्चों की अनचाही उपस्थिति से घबराया डरी-डरी नज़रों से यह भाँपने की कोशिश करता कि आख़िर वे ऐसा क्यों करते हैं? बच्चों ने बेकर की दुकान तक उसका पीछा नहीं किया। शायद बेकर उन बच्चों को अपने तक आने ही नहीं देता था। वे बच्चे बड़े ग़रीब दिखते थे और उन्हें मालूम था कि बेकर उन्हें एक प्रकार का चोर मानता था, ऐसा चोर, जो घर पर पड़े काले नीग्रो शिशुओं के लिए ब्रेड चुराया करते थे। वह अपने दक्षिण अफ़्रीकी घर से कभी बेकरी पर नहीं गया। वहाँ तो एक काला बेकरी वाला साइकिल की घंटी टनटनाता गली के भौंकते कुत्तों से डरता-बचता यार्ड में आता था और एक सफ़ेद और एक ब्राउन ब्रेड किचन की टेबल पर रख कर चला जाता था। ऐसा ही सब्जी वाला, फल वाला और फेरी वाला भी करता था। एक दिन एक भारतीय बूढ़े वल्लभ भाई ने अपने घर के पीछे एक लॉरी रुकवाई। लॉरी वाले के काले नीग्रो नौकर से वल्लभ भाई ने जो-जो ख़रीदा, वह सब ले जाकर घर के अंदर रख दिया।

    लेकिन परिवार के लोगों का कहना था कि छोटी-छोटी गलियों में दबी-छुपी दुकानों से सामान लेने में जो मज़ा है, वह फेरी वालों से लेने में नहीं। वे उससे बार-बार फ्रेंच में ब्रेड-ब्रेड पुकारने को कहते, मगर आवाज़ कोई कैसी भी दे एक बार अगर कोई बेकर की दुकान में घुस गया तो वहाँ के लोग उसी ब्रेड की ओर इशारा करते थे जो चाहिए होती थी, वे ब्रेड देते और उसके हाथों में रखे पैसे ले लेते थे। उसे लगता जैसे वह कोई अलग क़िस्म का आदमी हो, शायद कोई गूँगा। अगर किसी दिन उसका मन कोई नई चीज़ ख़रीदने का होता, तो वह चमकदार मुरब्बे से चुपड़ी मीठी ब्रेड की तरफ़ इशारा करता। इस तरह वह दुकानदार का एक पक्का ग्राहक बन गया। जो औरत उसे ब्रेड वगैरा निकाल कर देती, वह उससे बतियाती, मुस्करा कर उसके गाल थपथपाती, सर पर हाथ फेरती, उसकी हथेली पर रखे पैसे उठा लेती और वह गुमसुम इन हरकतों पर खड़ा रहता, कोई जवाब नहीं देता।

    एक लड़का और था, जो कभी-कभी अक्सर अपने साथियों के झुँड में दिख जाता था। वह जब भी अपने साथियों को देखता तो गली के पार से चिल्लाकर अभिवादन करता, उनकी ही भाषा में कुछ ख़ुशी ज़ाहिर करता फिर उनके पास जाकर उनसे बातचीत करने लगता। वह लड़का बिल्कुल अलग तरह का था और यह लड़का मानता था कि वह कुछ ज़्यादा मालदार है। वैसे तो वह लड़का कैनवास के जूते और सूती नेकर ही पहनता था, मगर उसके कंधों पर तरह-तरह की लुभावनी चीज़ें लटकी रहती थीं, जैसे कि एक कैमरा और चमड़े के दो ख़ूबसूरत केस। वह भी प्रतिदिन बेकरी में दिखाई देने लगा। वह बेकरी में बिलकुल पास आकर खड़ा हो जाता, कुछ भी नहीं बोलता, भीड़ में एक अदृश्य आदमी की तरह, एक गूँगे आदमी की तरह। वह अपने सुनहरे भूरे बालों की घनी चमक के बीच से बड़ी भाँपने वाली निगाहों से देखता रहता, अहसास ऐसा कराता जैसे वह काउंटर की टॉप पर रखी केक देख कर अपने आप से मज़ाकिया ढंग से बात कर रहा हो, या उस स्त्री से अत्यंत आत्मीय लहज़े में बतिया रहा हो, जैसे वह पहले से परिचित हो। वह अपने साथियों के झुँड के बिना भी कई अन्य जगहों पर दिखाई देता था। एक बार वह एक मेहराबनुमा रास्ते की सुरंग में झुककर देखने लगा, जिसमें से किसी स्कूल के मूत्रालय जैसी बदबू रही थी। वह बदबूदार गली, जो जल्दी से ऊपर से नीचे पहुँचने का रास्ता था, वह उस गली को पार कर गया। गली पर एक गुलाबी धारीदार मकान के दरवाज़े से हाथों में अलीबाबा के बर्तन लेकर एक आदमी बाहर निकला। ऐसा लगता था कि वह खिड़की की तरफ़ गौर से देख रहा हो, फिर वह ऊपर टॉप पर खड़ा होकर अपने शरीर का संतुलन करने लगा और दीवार के आर-पार झाँकने लगा। दीवार के पार बेकरी वाला और अन्य लोग एक भारी गेंद से खेलते नज़र रहे थे। वह उस दरवाज़े के पास से निकल कर आगे बढ़ गया। कुछ दूरी पर जाकर उस दरवाज़े के सामने पालथी मार कर बैठ गया और कैमरे के अंदर कुछ कुछ करने लगा। उस आदमी ने घर के बाहर से पूछा—‘क्या तुम अंग्रेज़ हो?’

    ‘हाँ, मगर सच पूछा जाए तो—नहीं...नहीं। मेरा मतलब मैं अँग्रेज़ी बोलता तो हूँ, मगर मैं रहने वाला दक्षिण अफ़्रीका का हूँ।’

    ‘अफ़्रीका? तुम अफ़्रीका के रहने वाले? अरे, वह तो एक नर्क है।’

    —क़रीब पंद्रह घंटे हो गए। हम एक जेट विमान से आए थे। हमें थोड़ा ज़्यादा वक़्त लगा, क्योंकि शायद एक इंजिन में कुछ ख़राबी गई थी। हमें आधी रात को केना में तीन घंटे इंतज़ार करना पड़ा। ‘सुना लड़के! बड़ी गर्मी थी, और आसपास ऊँट मंडरा रहे थे।’ —यह क़िस्सा अचानक ही बंद हो गया। अक्सर ऐसी कहानियाँ परिवार के लोग बढ़ा-चढ़ा कर कहते हैं, जिनसे ऊब पैदा होती है।

    मेरे पास कुछ मनोरम और मज़ेदार अनुभव हैं। मेरे माता-पिता सारी दुनिया की सैर करते फिरते हैं। मैं भी उनके साथ जाता हूँ, अधिकांश वक़्त! मैं अपने घर वापस बहुत थोड़े समय के लिए आता हूँ और सिर्फ़ पतझर के मौसम में ही स्कूल जाता हूँ। अफ़्रीका! अद्भुत! हम वहाँ कभी-कभी बाहर निकल पड़ते हैं। आप इन रंगीन पोलोरॉइड फ़ोटोग्राफ़ों को देख रहे हैं न? यह चित्र देखो, यहीं अटक गया है। मैंने तुम्हारे भी कुछ फ़ोटो उतारे हैं। तुम्हें दिखाता हूँ। मैं बहुत साफ़ और बढ़िया फ़ोटो खींचता हूँ। सारी दुनिया में मेरा जवाब नहीं। मेरे पास एक कैमरा और है—मिनॉक्स कैमरा। मगर मैं यही कैमरा काम में लेता हूँ, क्योंकि इसमें अंदर ही प्रिंट अपने आप बन कर बाहर जाता है। इससे हम लोगों को फ़ोटो उसी समय दे सकते हैं। यह देखो, यह फ़ोटो हँसने-हँसाने के लिए कितना अच्छा है। मेरे पास कुछ और मज़ेदार फ़ोटो हैं।

    ‘मैं इस गली में आख़िर हूँ कहाँ?’

    ‘अरे मैं तो पूरे वक़्त फ़ोटो ही खींचता रहा हूँ। सब जगह के फ़ोटो।’

    ‘उस दूसरे केस में क्या है?’

    ‘टेप रिकार्डर, मैं आपकी आवाज़ भी टेप करूँगा। मैं लोगों को ज़िज़ी के शराबघर में इसी तरह टेप कर लेता हूँ। उनको पता भी नहीं चलता कि मैं ऐसा कर रहा हूँ।’

    ‘अरे! यह कैसी आवाज़ सुनी मैंने। मेरे टेप में एक छोटा-सा बहुत शानदार माइक्रोफ़ोन है। किसी को दिखाई नहीं देता।’

    ‘और इस केस के अंदर क्या है?’

    उसने एक चाँदी का छड़ीनुमा एरियल खींच कर निकाला। ‘मेरा ट्रांजिस्टर-मेरा प्यारा ट्रांजिस्टर! जानते हो इसमें मैंने क्या सुना? ‘हेल्प’ वाले गीत का रेकार्ड। ताज्जुब! बीटल्ज़ (अंग्रेज़ी-अमरीकी संगीतकार लड़कों का प्रसिद्ध समूह) ओह बीटल्ज़! यहाँ अफ़्रीका में भी इतने लोकप्रिय!’

    ‘हमने उन्हें लंदन में देखा था—एक लाइव कार्यक्रम में। मेरे साथ मेरे भाई-बहन भी थे। मेरी बहन तो ‘हेल्प’ का रेकार्ड ख़रीद भी लाई। मगर यह रेकार्ड यहाँ बजाने का मतलब ही क्या, इसलिए तो हमने बजाया नहीं।’

    ‘बड़ी अच्छी बात है। कुछ प्रतिभाशाली लड़कों को ज़रा जल्दी ही मौक़े मिल जाते हैं। तुमने तो उनको देखा ही था। मैंने भी अपने बाल उनकी ही तरह कैसे बढ़ा लिए थे। कुछ तो बोलो यार! देखो, मैं अपना पोर्टेबल रेकार्ड-प्लेयर लेकर आता हूँ। तुम्हारी बहन उस पर अपना यह रेकार्ड सुन सकती है।’

    ‘तुम किस वक़्त सकते हो?’

    ‘आप जब कहें, मैं तो ख़ाली हूँ। सिर्फ़ मुझे अभी अभ्यास के लिए जाना है, मैं दोपहर को जाऊँगा, बुजुर्ग मदाम ब्लेंच के बाहर जाने के पहले। वहाँ लंच लेकर, उसके बाद आपसे ज़रूर मिलूँगा। क़रीब दो बजे।’

    ‘मैं आपका इंतज़ार करूँगा। क्या मेरे फ़ोटो भी लेते आएँगे?’

    क्लाइव एक छोटे बरामदे से दौड़ता हुआ आया। उसने वह झूलता पर्दे वाला दरवाज़ा झटके से खोला। घर्र-सी आवाज़ हुई, और उसने दरवाज़ा झूलता छोड़ दिया।

    ‘हेय! देखो यहाँ एक लड़का है जो अँग्रेज़ी बोल सकता है। अभी-अभी इसने मुझसे अँग्रेज़ी में बात की है। वह वास्तव में एक सही अमरीकन है। थोड़ी देर रुको। देखो उसके पास क्या है? एक कैमरा। उसने मेरे कुछ फ़ोटो भी खींचे, मगर मैं तो उसे जानता तक नहीं। उसके पास एक छोटा-सा टेप-रिकार्डर भी है। उस पर लोगों की आवाज़ इस तरह से ली जाती है कि लोगों को पता भी नहीं चलता। ट्रांजिस्टर तो उसके पास इतना छोटा है कि वैसा मैंने पहले कभी नहीं देखा।’

    ‘हाँ, तो तुम्हें एक दोस्त मिल गया।’ उसकी माँ ने कहा ‘भगवान भला करे।’ वह सलाद के लिए हरी मिर्च काट रही थी। उसने चाक़ू की नोंक पर सलाद का एक टुकड़ा आगे कर दिया लेकिन उसकी तरफ़ देखा नहीं।

    ‘वह तो सारी दुनिया में घूमता फिरता है। अब अमरीका जा रहा है। वहाँ वह बहुत कम समय के लिए स्कूल भी जाता है। मैं नहीं जानता, उसने ‘फॉल’ के बारे में कुछ कहा है। वह शायद स्कूल होगा।’

    ‘अरे मूरख! फॉल कोई किसी जगह का नाम नहीं है। फॉल का मतलब पतझर होता है।’

    घर में जो फव्वारा बना था, वह रसोईघर से सटा हुआ था और नहाने की जगह एक अलमारी की तरह थी। उसका दरवाज़ा खिसका कर खोला जाता था। दरवाज़ा अंदर की तरफ़ अपनी फ़्रेम में हमेशा हिलता रहता था।

    ‘तुम बड़े ही जल्दबाज़ हो। दरवाज़ा इतने झटके से खोलते हो?’ उसकी बहन ने कहा, ‘इससे तुम्हें क्या मिला?’ उसके चेहरे पर बड़ी-बड़ी इच्छाओं, आकाँक्षाओं की चमक थी। प्लास्टिक की छोटी चमकदार टोपी के बीच से झाँकता उसका चेहरा। कितना मासूम!

    ‘जेन! चलो अब रेकार्ड सुन सकते हैं। वह रेकार्ड-प्लेयर लेकर रहा है। जानती हो वह अमरीका का रहने वाला है।’

    क्या उम्र होगी?’

    ‘यही, तकरीबन मेरी उम्र का होगा।’

    उसने अपना हैट उतारा। उसके लंबे, घने सीधे केश; चेहरा, पलकों आदि को ढँकते हुए कंधों पर बिखर गए। उसने कहा, ‘बहुत अच्छे! बीटल्ज़ के बालों की तरह।’

    उसके पिता डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठ कर ‘नाइस मैटिन’ पढ़ने लगे। वह किताब एक ख़ूबसूरत गुड़िया की तरह थी, जिस पर पीला कवर स्कर्ट की तरह था, जो उसकी जिल्द पर फिट था।

    जैसे ही लड़का कुछ बोला, उसने एक असफल-सी कोशिश की और बड़े आत्मीय तरीक़े से उसका पैर दबाया। उसे लगा कि लड़का अब कोई मज़ेदार मुद्रा दिखाएगा, यह जताते हुए कि उनकी एक-एक बात सुन रहा है वह पूछने लगा, ‘तुम्हारे दोस्त का नाम क्या है?’

    ‘अरे—यह तो मुझे पता ही नहीं कि वह अमरीकन है। वह तो अभी एक छोकरा ही है। मगर उसके पास तीन-तीन चमड़े के केस हैं।’

    ‘तुम्हें वह आज दोपहर को मिल सकता है। उसके बाल बीटल कट में बड़े-बड़े हैं, अच्छे लगते हैं।’ ये शब्द उसने उस छोटी लड़की से कहे। लड़की एकदम मुड़ी और एक पथरीले ज़ीने पर अपने गीले-गीले पैरों के निशान बनाती ज़ीना चढ़ गई।

    सच पूछा जाए तो जेनी लड़की की उम्र पार कर गई थी और वयस्कों की तरह मिलती-जुलती थी। वह एकदम से पूछने लगी—‘तो लड़का अमरीकी है।’ ‘कौन?’ उसे एक पूरा जवाब मिला। ‘हाँ’ मैं हूँ वह लड़का। मुझे अक्सर मैट कह कर पुकारते हैं, लेकिन यह तो मेरे बीच के नाम का संक्षिप्त है। वास्तव में तो मेरा नाम निकोलस मैथ्यू रुटेस कैलर है।’

    ‘बहुत जूनियर, बहुत छोटे हो अभी।’ उसने उसे छेड़ते हुए पूछा, ‘बीच का नाम तो ठीक, अच्छा बताओ तीसरा नाम क्या है?’

    ‘अरे नहीं, नहीं, आख़िर मुझे ऐसा क्यों होना चाहिए? मेरे पिता का नाम तो डोनल्ड रुटेस कैलर है। मेरा प्रथम नाम तो मेरे नाना के परिवार पर रखा गया है। मेरी माँ का तो बड़ा भारी भरकम परिवार था। उसके पाँच भाइयों ने युद्ध में पाँच-पाँच अलंकरण हासिल किए थे। मेरा मतलब है तीन तो जर्मन युद्धों में और दो कोरियन युद्ध में। मेरे छोटे चाचा का नाम रॉड था, उनकी पीठ में एक छेद था, ठीक पसलियों के पास, उसे हाथ लगा कर महसूस कर सकते थे। मेरा मतलब मेरा हाथ।’ —उसने अपनी छोटी-छोटी मुट्ठी तान कर अपना हाथ बताया, जो किसी वयस्क हाथ जैसा नहीं लगता था। ‘अच्छा यह बताओ, मेरे हाथ को और कितना मोटा होना चाहिए? क्या इतना ही और? ताकि, वह एक पूरे बड़े आदमी के हाथ जैसा लगे?’ उसने अपने हाथों को क्लाइव के हाथों से मिला कर मापा। दो दस-दस साल की मुट्ठियाँ उत्सुकता के साथ उसने क्लाइव की मुट्ठियों से मिला दीं।

    ‘तुम्हारी और क्लाइव की मुट्ठियाँ मिल कर बड़ी हो जाएँगी—बिलकुल किंग साइज़ की। ठीक किसी बड़े आदमी के पंजे जैसी। अच्छा अब यह कूपन पकड़ो। इसके ऊपरी सिरे पर एक चौखाना चिपकाओ, ठीक उसी से मिलता-जुलता।’

    लेकिन बड़े भाई की ललचाई बातों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया या फिर उन्होंने ही इन दो छोटे लड़कों को ग़लत समझा। क्लाइव कुछ दबी ज़बान से कहना चाहता था, उस विज्ञान-पत्रिका की शान बघारते हुए वह उसके बारे में अपनी राय दे सकता था, जिससे उसका दोस्त जुड़ा हुआ था। मैट बड़ी मासूमियत के साथ एक ऐसे बच्चे की तरह बोलता चला गया, जिसकी स्वाभाविकता को सबने स्वीकार लिया, ठीक उसी तरह जैसे कोई शिशु माँ की गोद में हो।

    वह अक्सर उस दोपहर के बाद से उस निवास (प्लेस) पर आने लगा और उसके रेकार्ड-प्लेयर पर पहली बार हमने बीटल का नया रेकार्ड सुना। जवान लड़कों के पास तो उसकी प्रतीक्षा के सिवा और कोई काम था नहीं, मगर माँ-बाप दोपहर के भोजन के बाद आराम करने चले जाते थे। (घर के आसपास की जगह जहाँ जेनी को शाम को टहलना पसंद था, और जहाँ वह टहलते-टहलते कुछ मनचले लड़कों की नज़रें अपनी ओर खींचती थी, उस दिन बड़ी उदास या मायूस लगी। लड़के नज़रें बचा कर घूरते भर थे, मगर उन्हें उसकी भाषा तो आती नहीं थी)। इसलिए उस समय हाउस के आँगन में बैठ कर वे बार-बार वह रेकार्ड सुनते रहते थे।

    वह प्लेस यानी निवास, एक किसान के बड़े मकान में बदलने के पहले सुअरों का बाड़ा था। जब रेकार्ड धीरे-धीरे पूरा हो जाता, तो मैट उन लोगों की आवाज़ें टेप करता, ‘कोई अफ़्रीकी बात कहो’ और मार्क जुलू बोली के कुछ शब्द गड्ड-मड्ड करके बोलने लगता। वे लड़के इसके जुलू में बोले गए कुछ टूटे-फूटे शब्द समझ लेते। कभी-कभी वह कुछ गंदे और जोशीले शब्द बोलता, जो गालियाँ होती थीं या अफ़्रीकन कबीलों के कुछ प्रचलित मुहावरे, या परिचित सड़क-संकेतों के शब्द। जैसे—‘साका बोना, वाएटेसक, हेम्बेकाबल, हो तिक्स मालिंगी-मुशल, व्रायॅस्टाट।’ भाई-बहन कुर्सी की दो टाँगों को उचका कर झूलते और बतियाते। मैट बड़ी बारीक़ नज़रों से देखता और उनकी बातें ऐसे सुनता, जैसे कोई पक्षीशास्त्री किसी दुर्लभ पंछी की आवाज़ सुन रहा हो। ‘बहुत अच्छे, बहुत अच्छे लड़के! शुक्रिया, शुक्रिया! ये सारी बातें, ये सारे शब्द उस डाक्यूमेंट्री में होंगे, जो मैं बनाने वाला हूँ। डाक्यूमेंट्री का कुछ भाग मेरे पिता के मूवी कैमरे से बनेगा और उसमें कुछ मेरे अचल चित्र भी होंगे। अभी तो मैं पटकथा तैयार करने में लगा हूँ। वह घर पर रखी है।’ उसने उन लोगों को यह भी बता दिया कि उसके पिता एक किताब लिख रहे हैं। कई किताबें, एक-एक किताब एक-एक देश पर, उन देशों पर जहाँ-जहाँ वे गए और इस काम में माँ भी मदद कर रही है। वे लोग तो अपना काम बड़ी मुस्तैदी और तन्मयता से करते हैं। वे दोपहर के पहले अपना काम शुरू करके रात को एक बजे तक अपने काम में लगे रहते हैं। यही वजह है कि मुझे भी घर से सुबह बहुत जल्दी बाहर निकल जाना पड़ता है। मैं तब तक घर वापस नहीं आता जब तक वे जाग कर लंच के लिए नहीं उठ बैठते। मैं इस वजह से भी घर से बाहर रहता हूँ कि उनको शांति की ज़रूरत है। सोने के लिए भी और काम के लिए भी।

    जेनी बोली, ‘तुमने उसकी नेकर देखी? मद्रासी कपड़े की नेकर? मद्रासी कॉटन जिसके बारे में तुमने पढ़ा है। इसे धोते हैं, तो इसके रंग और चटख उठते हैं। मेरी इच्छा थी काश, ऐसा कपड़ा तुम भी यहाँ ख़रीद पाते।’

    ‘डेड! वह ट्रांजिस्टर भी गज़ब का है। उधर देखो, मार्क आँगन में झंडे के चबूतरे पर धूप में सर लटकाए इस तरह बैठा है, जैसे उसने पूरे साल अपने घर पर धूप खाई ही हो। हाँ, फ्रांस में वह धूप सेंकता तो ज़रूर था, मगर इस तरह सूरज की गरम धूप में नहीं बैठता था।’

    ‘ठीक है। वे लोग अपने बच्चों को बुरी तरह से बिगाड़ देते हैं। इसी का एक नमूना यह है। इसके पास पचास पाउण्ड का एक कैमरा खिलौने की तरह है। बड़े होकर इनके जीवन में किस बात की कमी रहेगी?’

    क्लाइव को पूरे समय मैट के बारे में बातचीत करना अच्छा लगता। वह बोला, ‘अमरीका में उसके पास एक जादुई कुटिया है। अभी-अभी उन्होंने उसे बेच दिया है, क्योंकि वे दुनिया भर की सैर करते फिरते हैं और वहाँ तो बहुत ही कम रह पाते हैं।’

    माँ बोली, ‘बड़ा ही शैतान है वह बच्चा। गर्दन में दुनिया भर के गंडे ताबीज़ और कबाड़खाना लटकाए फिरता है और अपनी गंदी गली में ही पड़ा रहता है।’

    क्लाइव ‘हो...हो’ करके चिल्लाया, ‘हाँ कबाड़ा, कूड़ा-कर्कट, सही तो है।’ उसने अपने कंधे उचकाए और अपनी हथेली मसल कर घुमाई। ‘यक़ीन जानिए, उस कूड़े के मुक़ाबले तो सैकड़ों डॉलर भी कहीं नहीं लगते। जिसे तुम कूड़ा कहती हो, उसके बारे में तुम्हें पता-वता कुछ है नहीं और यों ही बड़बड़ाती हो।’

    ‘अच्छा मिस्टर बताओ तो ज़रा, एक डॉलर होता कितना है?’ जेनी ने डॉलर को अपनी मुद्रा में बदलने वाली टेबल रट रखी थी। यह टेबल उसे हवाई जहाज़ में चढ़ते वक़्त ट्रेवल एजेंट ने दी थी।

    ‘मैं नहीं जानता कि कितना होता है। मैं तो अमरीका के बारे में बात कर रहा हूँ।’

    क्लाइव के पिता रोज़ उसे समझाते, “देखो बेटा, तुम्हें उस लड़के के साथ गाँव के बाहर नीचे उतर कर नहीं जाना है। घूमना है, तो गाँव में ही घूमो।’

    वह परिवार के साथ भी कभी गाँव के बाहर नहीं गया। उसने आज तक एंटीबीज का अजायबघर जाकर देखा, वेल्लोरिस की मिट्टी की पॉटरी और यहाँ तक कि मारकेरिलो के महलों, केसिनो (जुआघर) और मछलीघर देखने भी वह कभी नहीं गया। वही पुराना गाँव, चहारदीवारी से घिरा, बेतरतीब गलियों वाला, एक अजीब जगह, जो उतना ही असमंजस और भ्रम पैदा करता है, जितना कि योरप के स्मारकों पर लिखी और लिखकर बार-बार बदल दी गई तारीख़ें। यही उसके और मेरे लिए जाना-पहचाना गाँव का नक़्शा था, जिसके सीमित दायरे में हमें घूमना पड़ता था। गली की बिल्लियाँ भी लोगों के साथ इस नक़्शे पर विचरती रहती थीं। लोग जाने क्या बड़बड़ाते रहते थे, उनकी भाषा समझ में नहीं आती थी, मार्ट और वे जो काम करते थे वह बड़े गोपनीय ढंग से होता था, क्या गतिविधियाँ होती थीं कुछ भी समझ में नहीं आता था। वे सवेरे से शाम तक किसी गंभीर उद्देश्य से घूमते रहते थे। कई बार वे किसी कोने में दुबक कर छुप जाते थे। वे चाहते थे कि सड़क पार करते उन्हें कोई देखे, वे दोपहर बाद की किसी भीड़ के लोगों की तरह लगना नहीं चाहते थे।

    उन काले बच्चों से एक काम जो जबरन कराया जाता था वह था किसी गिरजाघर से मुर्ग़ाजाली उठाकर ले आने का। अगर कहीं कोई रंगीन काँच के टुकड़े या बदरंग मोज़ेक की पपड़ी मिलती तो उसे उठा लाते और यह काम इस प्रकार करना पड़ता था कि कोई स्कूल के नीचे खिड़कियों से उन्हें देख ले। यह काम वे सुबह तब करते थे, जब स्कूल चलता था। वह स्कूल एक प्रकार से पत्थरों का घर था। उसमें कोई खेल का मैदान नहीं था। रोज़-रोज़ एक जैसा कोरस बच्चे गा-गा कर ऊब जाते थे। उनकी आवाज़ मुझे अपने देश के काले बच्चों के स्कूलों की याद दिलाती थी। कभी गाँव के बच्चे पूँछ लगा कर जानवरों की नकल करते, और हँसी मज़ाक करते या कभी बेहद चुप्पी धारण कर लेते थे, जिसे तोड़ना लगभग असंभव होता था। लड़कियाँ भी वहाँ होती थीं। जल्दी ही उसने उँगलियों के ज़रिए अपमानजनक इशारे करना सीख लिया था। वह कई शब्द नहीं जानता, उसने एक शब्द फ्रेंच में चिल्लाना भी सीख लिया था। शायद, वह गाली का शब्द ‘मरदे’ था, जिसका मतलब कोई गंदी माँ की गाली होता है।

    मैट हमेशा बातें किया करता था। वह फ्रेंच की ही तरह उतार-चढ़ाव से भरी ऊँची और ख़ुशी भरी आवाज़ में ज़रा गोपनीय ढंग से अँग्रेज़ी बोलता था। कई बार वह बड़ी उत्तेजित आवाज़ में लोगों का अभिवादन करता और ऐसा लगता, जैसे उसकी ध्वनि उसके मुँह से उछलकर बाहर रही हो। उसकी तेज़ आवाज़ दीवारों से टकराकर वापस जाती और उसकी वह रहस्यमय ढंग से बोली जाने वाली अँग्रेज़ी सुन कर उन लड़कों के सर झुक जाते थे। यहाँ तक कि जब उसकी आवाज़ बिल्कुल धीमी हो जाती थी, और वह मात्र फुसफुसाता तो उसकी गोल-गोल काली आँखों से बाहर निराशा झाँकने लगती थी, उसकी दबी-दबी नाक के ऊपर चालाकी भरी त्यौंरी चढ़ जाती थी, कोष्ठकों की तरह उसकी भौंहे तन कर ऊपर-नीचे होने लगती थीं और जो भी उसके आसपास होते थे, सबके सब चौंक जाते थे। वह अजनबियों का स्वागत भी उसी तरह करता था, जिस तरह अपनों का करता था। कुछ लोग भ्रमण पर आते तो वह उनके पास जाकर खड़ा हो जाता और उनकी ओर देखता रहता और कभी कोई नलकर्मी मेन-होल खोलने आता तो उससे वह बड़े जोशीले ढंग से बातचीत करता। जब वह अपने साथियों के साथ फ्रेंच बोलता, तो उसकी फ्रेंच उन गाँव के बच्चों की फ्रेंच से थोड़ी बेहतर होती थी। मैट कंधे उचकाता और नीचे का होंठ बाहर निकाल-निकाल कर बोलने लगता। अगर कुछ लोग उसके इतना बोलने से तंग जाते या ताज्जुब महसूस करते तो वह उनसे प्रश्न करने लगता। (क्लाइव को सुन कर पता चल जाता था कि वे लोग प्रश्न कर रहे हैं)। उसके प्रश्न करने का तरीक़ा बड़ा मज़ेदार होता था। ऐसे प्रश्नों से बच्चों की झेंप मिट जाती थी।

    मैट बातूनी था। कभी-कभी वह किसी को बातचीत करते बुलाता तो घर के दरवाज़े के सामने रास्ते पर कुर्सी डाले बैठा व्यक्ति उसकी बात शुरू होने से पहले ही उठकर अंदर चला जाता और दरवाज़ा बंद कर लेता। इस पर वह अँग्रेज़ी में बड़े तेज़ स्वर में कहता ‘इस शहर के लोग सचमुच थोड़े-बहुत सनकी हैं। मैं इन सबकी असलियत जानता हूँ, हर एक की। कोई मज़ाक नहीं कर रहा हूँ।’ पास ही जो झुर्रियों से भरे चेहरे वाली बूढ़ी औरत लंबे काले मोजे, लंबा एप्रन पहने, काला चौड़ा हैट लगाए मकान में बैठी-बैठी ओपन रेस्त्राँ के लिए फलियाँ छीलती दिखाई देती, वह उसकी बात सुन कर, अपना अखरोटी रंग का पके गोश्त-सा चेहरा उठाकर हिस्स की आवाज़ करती, जैसे कोई हँस बोल रहा हो।

    मैट उससे जाकर मिला था। ऐसा मेरे पिता ने बताया था। यह उस वक़्त की बात है, जब पेरिस में बाढ़ आई थी। एक विशालकाय औरत ने इसके नाम का एक बड़ा-सा पोस्टर अपने सीने पर लगा कर उसका प्रदर्शन किया। वह पोस्टर पहनकर ऐसी लगती थी, जैसे कि पत्थर की तरह फासिल हो गए पेड़ के तने पर कोई नई टहनी हो और उसमें पत्ती गई हो। वह मैट की तरफ़ मुँह बना-बना कर गुर्राई। मेरे पास उसके कुछ फ़ोटो हैं, बड़े ज़बरदस्त और शानदार। सच पूछा जाए तो वह एक वैभवशाली पुरानी महिला थी।

    मैट ने एक और फ़ोटो लिया, जिसमें एक आदमी एक बंगले के पीछे पार्किंग की जगह पर एक लड़की का चुम्बन ले रहा था। मैट ने उसका पीछा किया। क्लाइव भी अब उसके आसपास अपना बॉक्स-कैमरा लेकर चल पड़ा, लेकिन उसने केवल बिल्लियों के फ़ोटो खींचे। मैट ने एक बौने का फ़ोटो खींचने का भी क्लाइव को आश्वासन दिया। वह बौना वास्तव में मनुष्य था, किसी सर्कस का बौना नहीं था। वह उस रेस्त्रां में बैरा बन गया था और मेमने का गोश्त ख़ास तरह से पका कर परोसता था। क्लाइव का स्वभाव फ़ोटोग्राफर जैसा नहीं था। वह जल्दी परेशान हो जाता, झेंपता और डर जाता। एक बार स्पेनिश नृत्यांगना का सर बौने के सर से टकरा गया तो क्लाइव का चेहरा झेंप से लाल हो गया था। ऐसी बात तो उसके लिए असह्य थी। पर मैट ने वह दृश्य अपने पोलोरॉइड कैमरे में उतार लिया था। वे अब एक दूसरे दरवाज़े पर चले गए थे, जहाँ प्लास्टिक की पट्टियों वाला एक पर्दा लटक रहा था, ताकि मक्खियाँ अंदर घुसें। उन्होंने अंदर झाँका। वहाँ उस बौने का सर था, जो इस तरह छोटे से शरीर पर मटक रहा था, जैसे उँगलियों से चलने वाली कोई कठपुतली हो। मैट इतराया तो नहीं, मगर उसके कहने का अंदाज़ ज़रा ऐसा था कि जब उसने अद्भुत या ग़ज़ब कहा तो उससे इतराने की झलक मिली। इससे पहले मैंने इतना अच्छा दृश्य कभी नहीं देखा था। यह सौभाग्य की बात थी और एक संयोग ही था कि हम एक सप्ताह पहले यहाँ नहीं आए, जब वह लगभग पगला ही गया था और उसे अस्पताल ले जाना पड़ा था। वह अभी-अभी ही वापस आया है और अच्छा रहा कि तुमने उसे मिस नहीं किया, इस बीच अगर तुम अफ़्रीका चले जाते, तो उसे देख नहीं पाते।

    जो-परिवार मद्रासी कपड़े की नेकर पहने, साथ में अपना सुंदर-सा ट्रांजिस्टर दिखाते हुए लोगों से मिलता था और क्लाइव के जिस दोस्त के रेकार्ड-प्लेयर पर रेकार्ड सुन कर जिनको बड़ा मज़ा आता था, उन्होंने देखा कि वह लड़का बहुत ही वाचाल और बातूनी हो गया है, कुछ ज़्यादा ही घर आने लगा है और अक्सर गलियों में ही घूमता रहता है। क्लाइव को परिवार वालों ने हिदायत दी कि वह परिवार के साथ ही बाहर जाए। वे क़रीब 20 मील दूर गाड़ी चला कर गए सिर्फ़ इसलिए कि वहाँ सूप में पकाई मछली खाने की इच्छा थी। उन्होंने पूरी दोपहर फ़ोटो देखने में ही गुज़ार दी। वह गली से एकदम निकल कर आया और पूछने लगा कि ‘कि हम किस वक़्त वापस चलेंगे।’ ‘मैं नहीं जानता, यही कोई दोपहर बाद।’ ‘क्या हम दो बजे तक वापस नहीं चल सकते? आख़िर हम इस धरती पर समय से बँधे ही क्यों हैं? आज तो हमारा छुट्टी है, फिर वह वापस गली में दौड़कर चला गया और वहाँ भी इस तरह की असंतोषजनक सूचना देता रहा।

    जब परिवार घर वापस गया तो वह दुबला-छरहरा लड़का सड़क के मोड़ पर खड़ा होकर हाथ हिलाने लगा। एक बार वे उसे अंधेरे से गलियों की रोशनी में लाए थे तो उसका सपाट चेहरा ऐसा लगा था, जैसे वह अधपगला हो, उसका कुत्ता और वह दोनों उदास लगे। उसने बातचीत करते हुए सर ऊपर उठाया तो ऐसा लगा, जैसे वह ऐसी ट्रेन का इंतज़ार कर रहा था जो ठीक समय पर आने वाली हो। दूसरे दिन आँगन के एक कोने से दूसरे कोने तक एक संदेश लिखा था ‘मैट! तुमसे पुन: फिर कभी मिलेंगे।’

    ‘आख़िर उन लोगों के साथ समस्या क्या है? यहाँ तक कि वे तो अपने बच्चे को समुद्र तट पर तैराने तक नहीं ले जाते’, माँ ने कहा। क्लाइव ने यह बात सुनी पर उसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। वह इस गुलाबी घर में कभी अलीबाबा पॉट्स के साथ नहीं गया था। मैट वहाँ से एक बिल्ली की तरह उदित हुआ था। उसके पास हमेशा ही पैसा रहता था। उन्होंने एक ऐसी जगह का पता लगा लिया था, जहाँ बबलगम बेचे जाते थे, कभी-कभी वे वहाँ से रोटी भी ख़रीद लेते। जब मैट क्लाइव से कहता कि चलो कुछ करारी-रोटी और मुरब्बा लेंगे। (जो क्लाइव को भी पसंद थे) तो क्लाइव को यह पता नहीं रहता था कि मैट उसे कहाँ ले जाने वाला है। वहीं उसकी डाक्यूमेंट्री फिल्म बनती थी और इसी तरह वह अपनी किताब भी लिख रहा था। कई बार बच्चों की ऐसी किताबों से काफ़ी पैसा मिलता है, जो बच्चों द्वारा ही लिखी जाती हैं। यह बात मैट ने उस परिवार को समझाई। उसने कहा कि उसकी किताब एक जासूसी कहानी है। उसे उम्मीद थी कि उसकी किताब अच्छी चल निकलेगी और जो फ़ोटो उसने लिए हैं, वे भी वह ‘टाइम’ और ‘लाइफ’ मैगज़ीन्स को बेच सकेगा।

    एक प्यारी-सी सुबह क्लाइव की माँ ने पूछा कि ‘अगर हम लोग मैट को हवाई जहाज़ पर विदा करने चलें तो मैट मना तो नहीं करेगा। बच्चे बड़े-बड़े जेट विमान उतरते देख सकेंगे और बड़े अपना काम-काज या रिज़र्वेशन आदि कराते रहेंगे।’ पिता ने कहा कि ‘अगर तुम चाहो तो अपने लिए लेमनेड का आर्डर कर दो।’ उसका मतलब था कि वापस आकर वह लेमनेड के लिए पैसे दे देंगे। फिर उन्होंने लेमनेड पिया और आइसक्रीम खाई और फिर मैट ने कहा कि मैं इन चीज़ों का असर कम करने के लिए एक ब्लैक कॉफ़ी लेना चाहूँगा। मैट और क्लाइव दोनों ने ब्लैक कॉफ़ी पी और जब बिल आया तो पिता चिढ़ गए, क्योंकि फ्राँस में कॉफ़ी बहुत महँगी थी, जबकि उनके देश में तो गिलास भर कॉफ़ी पानी के मोल मिल जाती है।

    मैट ने कहा मैं दिन भर में पाँच-छह कॉफ़ी पी सकता हूँ और मेरा लीवर वगैरह कभी ख़राब नहीं होता। नाइस में तो प्लेस यानी घर आसपास ही था, बाद में वहाँ मेसीना और जेनी भी पीछे से गई जो चाहती थीं कि वे वैसे ही पोलो शर्ट ख़रीदें, जैसे फ्रेंच लड़कियाँ पहनती हैं, मगर लड़कों को नाइस जाने की इजाज़त नहीं दी गई, इस डर से कि कहीं वे वहाँ उन लड़कियों के साथ भीड़-भाड़ में खो जाएँ। इसी कारण उन्हें वहाँ का बड़ा फ़व्वारा भी देखने नहीं जाने दिया गया। मैट ने क्लाइव के कान में कुछ फुसफुसा कर कहा। मगर वह उसे समझ नहीं सका। अब तो मैट भी परिवार का ही एक ऐसा लड़का बन गया था, जैसा कोई भी छोटा लड़का परिवार में हो सकता था।

    शनिवार का दिन था। जब वे सीधी सड़क से घर के लिए ड्राइव करते हुए रवाना हुए तो वह अधपगला, और कुत्ता नई-नई ट्रैफ़िक लाइट के पास बैठे हुए थे। मैट ने जब उस अधपगले की आवाज़ सुनी तो खिड़की से बाहर झाँक कर फ्रेंच में उससे नमस्ते कहा। गाँव में सप्ताहांत पर आने वाले सैलानियों की भीड़ बढ़ चुकी थी। लंच नीचे उपलब्ध था और लड़के उस पट्टिका की तरफ़ तेज़ी से लपके, जहाँ ज़ेवियर ड्यूवल 20 अक्टूबर, 1944 को विरोध प्रदर्शन करते हुए मारे गए थे और जिनकी यादगार में यह पट्टिका लगाकर समारोह मनाया जा रहा था। क्लाइव वहाँ पहले से ही मौजूद था और अपने दोस्त मैट का उदाहरण और उसकी सारी तकनीकी बड़ी वफ़ादारी से इस तरह आज़मा रहा था कि जब वह मौक़े के फ़ोटो ले रहा था तो मैट को भी यह पता नहीं चला कि उस पर भी किसी की निगाह है। वास्तव में वह दोपहर उस दिन की सबसे शानदार दोपहर थी। मैट ने कहा था कि ‘शनिवार के दिन हमेशा ही अच्छे दिन होते हैं। तमाम क़िस्म के भयभीत और मनमर्ज़ी करने वाले लोग यहाँ मँडराने लगते हैं। मेरे भाई, ज़रा अपनी आँख खुली रखो, मैंने लंच के वक़्त तक अपनी किताब का चौदहवाँ अध्याय पूरा कर लिया है, वह मेरे कमरे में एक ट्रे में रखा हुआ है।’ वे आज सुबह चार बजे के पहले ही निकल गए थे, पहले तो वे उठ ही नहीं रहे थे। ‘इस एयरपोर्ट पर यह सब पहले से ही तय है, याद रखो तुमने देखा होगा मेरा मुँह किस तरह घूम रहा था और जब जहाज़ ने उड़ान भरी तो ज़रा-सी भी आवाज़ तक यहाँ नहीं आई। पास ही कॉफ़ी पीते-पीते किसी की हत्या हो गई, मगर उसकी आवाज़ और चीख़-पुकार किसी ने नहीं सुनी। आदमी की मौत पर किसी का ध्यान नहीं, सबके सब हवाई जहाज़ की उड़ान की आवाज़ पर थमे हुए।’

    वे कार पार्क में से गुज़र रहे थे और स्पोर्ट्स मॉडलों के मोती जैसे चमकदार टोप पर हाथ घुमा रहे थे। पास ही गड्ढे में लड़ रहे झबरीले कुत्तों के दंगल से वे बेख़बर से थे और उस आदमी से भी जो प्लेस के मूत्रालय में धक्का-मुक्की करता प्रवेश कर रहा था। मैट बोला, ‘मेरे पास तो इन अपराधियों के अब काफ़ी फ़ोटो हो गए हैं।’ फिर वे फूलदार पैंट पहने खड़ी उस लड़की के पास से गुज़रे जो रो रही थी, अपने उस झबरीले कुत्ते को लेकर जो संघर्ष कर रहा था। प्लेस के ज़रा ऊपर की ओर स्थानीय लोगों की भीड़ जमा थी, पार्क की तंग गलियाँ कारों से पट गई थीं, फ्रेंच और अलजीरियन लड़के अरबी संगीत बजा रहे थे, जो बहुत ही उत्तेजक और भद्दा था और वह संगीत रियाने के बारे में था, उस मकान वाली बूढ़ी औरत के चेज़ रियाने के बारे में। बौना भी वहाँ था। वह एक अमरीकन सुंदरी को निहार रहा था और दाँत दबा-दबा कर इस तरह बातें कर रहा था, जैसे उसे चबा जाएगा। उसके दोस्तों का हँसते-हँसते दम निकला जा रहा था, लेकिन वे उसकी ओर बड़ी नरमाई दिखा रहे थे। बूढ़ी औरतों ने बड़े काले हैट लगा कर और अपने पेट पर एप्रन बाँध कर बेंच पर जगह बना ली। वहाँ और भी झबरीले कुत्ते थे, एक इटेलियन ग्रेहाउंण्ड चमकीले बारीक़ तारों के जेवर से सजा हुआ खड़ा था, जो इस कुत्ता-दंगल में भाग लेने आया था। परस्पर मित्र औरतें बाहर की टेबलों पर जम गई थीं और मित्र लोग बैंगनी जीन्स और गुलाबी क़मीज़ में सिगरेट का धुआँ उड़ाते ज़िजी बार के सामने बैठ गए। आदमी-औरत समुद्रतटीय कपड़े पहने हाथ में हाथ डाले दूकानों और शराबघरों के दरवाज़ों में झाँकते। जैसे ही कुत्ते अपने मालिकों की डोरियाँ तुड़ा कर भागते, औरतें एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर खींचने लगतीं। मैट ने क्लाइव के परिवार की ओर इशारा किया, जो अपनी पसंदीदा रोटी, देसी शराब के साथ खा रहा था, मगर क्लाइव ने उसे झटक दिया।

    उन्होंने वह श्वान दंगल कुछ देर तक देखा और वह खेल भी जो एक कसाई और कोई एक स्थानीय चैम्पियन मिल कर गेलरी पर खेल रहे थे। उसने गुलाबी रंग की जालीदार बनियान पहनी थी, जिसके सामने के भाग पर बर्र के आकार और बेल-बूटे बने हुए थे। एक काली लंबी टोपी और बड़ी-बड़ी मूँछों वाला आदमी आया और उसने हलचल मचा दी। हे मेरे भगवान! कई सप्ताहों से मैं इसे ख़ोज रहा हूँ। मैट ने उसे चकमा दिया और क्लाइव भी पीछे हो लिया और जो लोग खेल देख रहे थे, उनके पास से आड़े-टेढ़े ढंग से वे भाग खड़े हुए। वह आदमी एक छोटी-सी स्पोर्ट्स कार से उनका पीछा करते हुए प्लेस तक पहुँचा। जगह ख़ाली हो गई थी, वहाँ एक पुलिस वाला शनिवारी वर्दी में खड़ा था, जो उस आदमी पर चिल्ला रहा था, मगर वह आदमी रुक नहीं पाया, उन लड़कों को पकड़ सका। क्योंकि जैसे ही वह आगे बढ़ता, लोगों का ताज़ा रेला जाता, उससे उसका रास्ता रुक जाता। मैट ने कहा, यह आदमी एक पेंटर है। तुम जानते ही हो उस छोटे से दड़बे के ऊपर मोची की दुकान के ऊपरी हिस्से में वह रहता है। वह शनिवार और इतवार को छोड़ कर कभी बाहर नहीं निकलता। मैंने उसके भी कुछ फ़ोटो खींचे हैं। वह आदमी अपना यश चाहने वाला लगा। बड़ा ख़ब्ती-सा, यार! पेंटर के साथ एक सुंदर, घमंडी लड़की भी है, जो शरलॉक होम्स की तरह कपड़े पहनती है, जो मर्दाने ट्वीड और हिरण की खाल के बने होते हैं। मार्क ने कहा कि यह कार भी उसकी होगी। उसने अपनी पूरी फिल्म ही ख़र्च कर डाली थी। आधुनिक कलाकारों के फ़ोटो कुछ नए तरीक़ों से लेने पड़ते हैं।

    मैट ख़ासकर बड़ा बातूनी था, ज़िज़ी के शराबखाने में जब वह उस लड़की के पति से हैलो करने गया तो भी एमिली से बात करता रहा। वहाँ बेल-बूटेदार कुटिया में उसके परिवार के लोग बैठे थे। पिता ने क्लाइव की ओर इशारा करके उसे बुलाया। पहले तो उसने ध्यान नहीं दिया, फिर वह जाकर टेबलों की बीच खड़ा हो गया—‘हाँ, क्या बात है?’

    ‘तुम्हें कुछ पैसों की तो ज़रूरत नहीं है?’

    इसके पहले कि वह जवाब देता, मैट उसे अँगूठा हिला कर दिखाने लगा। वह दौड़ा, मगर उसके पिता ने चिल्लाकर कहा, रुको और वह रुक गया। मगर मैट तो वहाँ से उड़ लिया, उस औरत को लाँघकर जो दम तोड़ रही थी, या तोड़ चुकी थी।

    क्लाइव बोला ‘हमें तो जाना ही है।’

    माँ ने पूछा ‘किसलिए?’

    जेनी बोली ‘हे सर्वशक्तिमान!’

    वह मैट के साथ चला गया। वे लड़ते-झगड़ते, उस शून्य में समा गए। शून्य का वह रास्ता उन्होंने ही तो अपने लिए बनाया था। सीढ़ियों के पास एक भारी-भरकम औरत पड़ी हुई थी। उसके कपड़े मुड़े-कुचले हुए से हो गए थे। उसके मुँह से झाग उठ रहे थे। लोग तर्क-वितर्क कर रहे थे और उस स्त्री के लिए कुछ कुछ करने के लिए इधर से उधर लपक रहे थे। जो लोग उसे वहाँ से उठाना चाहते थे, उन्हें उन लोगों ने धकिया कर अलग कर दिया था, जो चाहते थे कि वह वहीं पड़ी रहे। किसी ने उसके जूते उतार दिए। कुछ लोग चेज़ रियेने के रेस्तराँ से पानी लेने दौड़े, लेकिन औरत पानी पी नहीं सकी। एक दिन इन लड़कों ने एक कारीगर को उसके नीले कपड़ों और सिलेटी रंग के जूतों में टेबक बार के सामने पड़े-खड़े ख़र्राटे भरते देखा था। वहाँ लोग पी रहे थे। मैट ने उस आदमी को भी पहचान लिया। ख़राब से ख़राब हालत में भी तुम एक लाश का फ़ोटो ले सकते हो। मगर यह जो फ़ोटो मैंने उतारा है, वह तो आज तक के सारे फ़ोटो में सबसे अच्छा है। मैट ने पूरी रील ख़त्म कर दी उस पेंटर के फ़ोटो उतारने पर और नई रील डाल दी। औरत अभी भी वहाँ पड़ी थी और भीड़ की आवाज़ के पीछे एम्बुलेंस की गाड़ी की आने की आवाज़ सुनाई दे रही थी, जो नीचे के पोर्ट से उस गाँव की तरफ़ दौड़ रही थी। एम्बुलेंस प्लेस तक तो नहीं पहुँच पाई, मगर उसके अंदर से लोगों ने स्ट्रेचर निकाला और उस औरत को उठा लिया। उसका चेहरा बैंगनी रंग का हो गया था। हाथ सर्दी की सुबह के समान ठंडे पड़ गए थे और टाँगे चौड़ी हो गई थीं। लड़के उन लोगों में से थे, जो उस एम्बुलेंस के पीछे-पीछे जा रहे थे। मैट घुटनों पर फुदक-फुदक कर चल रहा था इस तरह जैसे कोई रूसी नर्तक हो, ताकि वह उस शांत क्रियाहीन देह का फ़ोटो नए-नए एंगल से निकाल सके।

    जब यह सब ख़त्म हो गया, तो वे उस क्रेपरी यानी बेल-बूटेदार झोंपड़ी में परिवार को यह सब सनसनीखेज कहानी सुनाने पहुँचे, मगर वे वहाँ क़तई रुकना नहीं चाहते थे। वे वहाँ से अपने गाँव के घर चल दिए। वास्तव में यह घटना और इसके चित्र ऐसे हैं, जिन्हें तुम अफ़्रीका में दिखा सकते हो, मैट ने कहा। वह उस दोपहर को अपना मिनॉक्स कैमरा काम में ला रहा था और उसने कहा कि जब फिल्म धुल जाएगी तो फ़ोटो की प्रतियाँ वह उसे ज़रूर भेजेगा। इसे बंद कर लो, हमें तब तक इंतज़ार करना पड़ेगा, जब तक हमारे माता-पिता नाइस नहीं पहुँचते, क्योंकि फिल्म यहाँ धुल नहीं सकती। और वे नाइस सिर्फ़ बुधवारों को ही जाते हैं।

    क्लाइव एक़दम बोला, ‘मगर मैं भी उनके साथ चला जाऊँगा।’

    ‘चले जाओगे? वापस अफ़्रीका!’ यह सोचते ही उसे वह लंबी दूरी जो उस जगह और अफ़्रीका के बीच थी, याद गई। दूरियों के साथ वे सारी सदियाँ याद गईं और उस महाद्वीप का ख़ाली नक़्शा, मीलों में दर्शाई दूरियाँ, लोग वहाँ के गाँव आदि सब कुछ याद गया, ‘इसका मतलब यह हुआ कि तुम वापस अफ़्रीका चले जाओगे?”

    क्लाइव ने अपना बॉक्स कैमरा अलमारी के हवाले कर दिया और उसके साथ योरप की सारी यादें भी, ताकि वह जब भी अलमारी खोले वहाँ की यादें उन्हें देख कर फिर ताज़ा हो उठें और वह वहाँ के लिए लालायित हो जाए। उसका उन चीज़ें से गहरा रिश्ता बन गया था।

    पहले दिन स्कूल में उसने एक नए शब्द के साथ डींग हाँकी और उस नई जगह का वर्णन किया, जहाँ वह गया था। लेकिन कुछ ही सप्ताह में उसने जो शहर, जो महल वगैरा देखे थे, उनके ही बारे में इतिहास और भूगोल की कक्षा में भी वर्णन सुना। वह सब पढ़ते समय उसने यह नहीं बताया कि ये सब जगहें उसने देख रखी हैं। वास्तव में पाठ्य-पुस्तकों में उन जगहों के जो चित्र बने थे और जो वर्णन था, वह सब वैसा था ही नहीं, जैसा उसने स्वयं देखा था।

    एक दिन उसने अपना कैमरा उठाया और वह एक खेल मीटिंग में गया। वहाँ उसने पाया कि उसके कैमरे में खींची हुई फिल्म लगी है। जब वह फिल्म उसने धुलवाई तो उसमें बिल्लियों के फ़ोटो थे। उसने उन चित्रों को इधर-उधर घुमाकर आर्चवे के काले-काले पत्थरों पर कभी मंदी रोशनी में तो कभी तेज़ में दिखाया, उसमें अमरीकी लड़के मैट के भी फ़ोटो थे। एक छरहरा लड़का जिसके घुटने कुछ आउट ऑफ फोकस होकर बड़े लग रहे थे, जो एकदम शंकालु मगर तेज़ बुद्धि का लगता था, और उसके बाल लंबे-लंबे थे।

    परिवार एकसाथ एकत्रित हुआ। छुट्टियों में क्या-क्या दुख-दर्द बाहर जाकर झेला और कितना मज़ा आया, यह सब हँसते-मुस्कुराते आपस में बताने लगे। ‘यह ‘टाइम’, ‘लाइफ’ मैगज़ीनों का आदमी ख़ुद है, बिचारा बूढ़ा आदमी, जानते हो उसका दूसरा नाम क्या था? माँ ने कहा ‘यह फ़ोटो तुमको उस बूढ़े के पास भेजना चाहिए। तुम्हारे पास उसका पता तो होगा ही? क्या तुम्हारा उससे अब कोई संपर्क नहीं है?’

    हाँ, मगर उसका पता तो मेरे पास था ही नहीं। मैट की कोई गली नहीं थी, मकान नहीं था, गली में मकान नहीं था, मकान में कमरा था; गली, मकान, मकान में कमरा, कुछ भी नहीं था उसका। क्लाइव ने कहा, ठीक वैसा जैसा अमरीका में उसके पास कुछ नहीं था, मगर वह अब अमरीका में है जैसे वे पहले भी अमरीका में थे। वे वहाँ के शून्य से आए थे और यहाँ के शून्य से मिल कर वापस अपने शून्य में लौट गए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ (खण्ड-2) (पृष्ठ 245)
    • संपादक : ममता कालिया
    • रचनाकार : नदीन गोर्डिमर
    • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
    • संस्करण : 2005
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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