मैडेलिन के साथ जेनिथ तक की यात्रा में लगभग आधा घंटा लगा, पर मार्टिन को इतना समय किसी तूफ़ानी बादल के समान भयावह और बोझिल जान पड़ा। उसे आने वाले एक-एक क्षण से अलग-अलग नहीं जूझना था, बल्कि तीस मिनट लंबा समय एक साथ उसके सामने खड़ा था। दो मिनट बाद कहने वाली बात जब वह मन-ही-मन याद कर रहा होता तो दो मिनट पहले कही हुई अपनी भोंडी बात उसके कानों में सुनाई दे जाती। वह पूरी कोशिश कर रहा था कि मैडेलिन का ध्यान अपने इस 'घनिष्ठ मित्र' पर से हटाए रख सके जिससे वे मिलने जा रहे थे।
कौन है यह आदमी जिससे हम मिलने जा रहे हैं? तुम उसके बारे में छिपा क्यों रहे हो? मार्टिन, सच बताना, तुम कहीं मुझसे मज़ाक़ तो नहीं कर रहे?
“ख़ैर, मैं तुम्हें बता ही दूँ, वह मर्द नहीं, औरत है।
ओह!
तुम जानती ही हो अपने काम से मुझे अकसर अस्पतालों में जाना पड़ता है और जेनिथ के सार्वजनिक अस्पताल की कुछ नर्सों ने मेरी बहुत मदद की… इतना कहते-कहते वह हाँफने लगा, “ख़ास तौर से, वहाँ एक नर्स है, जो विलक्षण है, वह रोगी-परिचर्या के संबंध में बहुत कुछ जानती है। मुझको उसने इतनी कुछ काम की बातें सिखाई हैं कि मैं बता नहीं सकता।
वह एक नेक लड़की है… मिस टोज़र, उसका पहला नाम शायद 'ली' या कुछ ऐसा ही है। उसके पिता उत्तरी डकोटा के एक बड़े आदमी हैं, काफ़ी धनी हैं। मेरा ख़याल है कि इस लड़की ने समाज-सेवा की भावना से प्रेरित होकर ही नर्सिंग का पेशा अपनाया होगा। मैंने सोचा, तुम दोनों एक-दूसरे से परिचित होना पसंद करोगी।
हाँ... आँ। मैडेलिन की निगाहें बहुत दूर किसी चीज़ पर टिक गई थीं। अरुचि की रेखाएँ उसके चेहरे पर फैल गई थीं, बेशक, मैं उससे मिलकर बहुत ख़ुश होऊँगी। तुम्हारी कोई मित्र है वह...पर मार्ट, कहीं तुम उसके साथ इश्क़ तो नहीं लड़ा रहे हो? इन नर्सों के साथ ज़्यादा मेल-जोल बढ़ाना अच्छा नहीं है। मैं इनके बारे में कुछ भी नहीं जानती, लेकिन मैंने सुना है कि उनमें से कुछ नर्से एक-के-बाद दूसरे मर्द की तलाश करती रहती हैं।
हो सकता है, लेकिन मैं तुम्हें अभी बता दूँ कि ल्योरा ऐसी नहीं है।
‘‘मैं भी ऐसा ही सोचती हूँ, लेकिन... मार्टिकिस, कहीं ऐसा न हो कि ये नर्स तुमसे केवल अपना दिल बहलाती रहें। मैं तुम्हारे भले के लिए ही कहती हूँ, उनके पास दिल बहलाने के ऐसे कई साधन होंगे। तुम समझते हो कि तुम्हें औरतों के मनोविज्ञान का अच्छा ज्ञान है, लेकिन मार्ट, सच कहती हूँ, कोई भी तेज़ औरत तुम्हें अपनी उँगली पर नचा सकती है।
'ख़ैर, मेरा ख़याल है, मैं अपनी हिफ़ाज़त ख़ुद कर सकता हूँ।
ओह, मेरा मतलब है... मेरा मतलब यह नहीं है... लेकिन मुझे उम्मीद है कि मैं इस टोज़र नाम की लड़की को पसंद कर सकूँगी, क्योंकि तुमको वह पसंद है, लेकिन यह मत भूल जाना कि मैं ही तुम्हारी सच्ची प्रियतमा हूँ। मैंने सदा तुम्हें अपने अंतरमन से प्यार किया है।
यह सच है कि उसने किया था। इसलिए जब उसने मार्टिन के हाथ को अपने हाथों में थाम लिया तो उसने आस-पास बैठे मुसाफ़िरों की निगाहों की उपेक्षा कर दी। ल्योरा के विषय में उसने जो कुछ कहा था उससे मार्टिन को ग़ुस्सा तो आया था, पर अब वह इतनी हारी-सी लग रही थी कि उसका क्रोध हवा हो गया।
ग्रांड 1907 में जेनिथ का सर्वोत्तम होटल था। अब तो विशाल होटल यार्नली की शान-शौक़त के आगे इसका रंग फीका पड़ गया है। अब मोज़ेक के काम वाले इसके फ़र्श गंदे पड़े रहते हैं। रंग-रोगन और मुलम्मों पर खरोचें पड़ गई हैं और वे बदरंग हो गए हैं। चमड़े की भारी-भारी कुर्सियों की सीवनें उधड़ गई हैं। उसमें सिगरेट की राख झड़ी रहती है और घोड़ा बेचने वाले उनका उपयोग करते हैं। लेकिन अपने दिनों में यह शिकागो और पित्सबर्ग के बीच एकमात्र ऐसी शरणगाह थी, जिस पर सबको गर्व था। यह होटल वस्तुत: पश्चिमी स्थापत्यकला का एक नमूना है। इसके प्रवेश मार्ग पर मूरिश शैली के बीच के लगभग मेहराब बने हुए हैं।
मार्टिन ने देखा कि ल्योरा उस दिन बहुत ही बेढंगे कपड़े पहनकर आई थी। उसने अपने बालों को अनाड़ी की तरह अपने हैट के भीतर खींच रखा था। हैट भी क्या था, हैटनुमा चटाई की टोपी थी। लेकिन मार्टिन को उसके हैट और बालों की उतनी परवाह न थी। उसको तो जो चीज़ें अखरीं, वे थीं उसकी शर्टवेस्ट, जिसका तीसरा बटन ही ग़ायब था। मार्टिन मन-ही- मन उसके इस पहनावे से खीज गया था, क्योंकि मैडेलिन के नीले रंग की चमकदार पोशाक के आगे उसकी यह पोशाक बहुत साधारण और भद्दी लग रही थी। ल्योरा को अधिक अच्छी तरह वस्त्राभूषण से सज-धजकर आना चाहिए था। यह बात उसके मन में केवल इसलिए उठी, क्योंकि वह ल्योरा को मैडेलिन की अपेक्षा तनिक भी घटाकर नहीं देखना चाहता था। उसका स्नेह ल्योरा को अपने आँचल में समेटकर, अपने संरक्षण में लेने के लिए आतुर हो उठा।
यह सोचने के साथ-साथ वह मन-ही-मन कह रहा था, मैंने सोचा, तुम दोनों लड़कियों को एक-दूसरे से परिचित हो ही जाना चाहिए। मिस फ़ाक्स, मैं मिस टोज़र से तुम्हारा परिचय करना चाहता हूँ…
ल्योरा और मैडेलिन ने एक-दूसरे से कोई विशेष बात नहीं की। मार्टिन उनको मार्ग दिखाता ग्रांड के प्रसिद्ध भोजन-कक्ष में ले गया। उसमें मख़मली कुर्सियाँ और चाँदी के भारी बर्तन रखे थे। हरे तथा सुनहरे रंग के वास्केट पहने हुए प्रौढ़ नीग्रो बैरे इधर से उधर दौड़-भाग रहे थे।
कितना शानदार कमरा है! ल्योरा ने चहकते हुए कहा। मैडेलिन ने ऐसे देखा, मानो वह भी इसी बात को अधिक लंबे शब्दों में कहने का इरादा रखती है, लेकिन उसने भित्तिचित्रों पर एक बार फिर अपनी दृष्टि डाली और कहा, हाँ, लेकिन यह बहुत बड़ा है...
वह बैरे को खाने की चीज़ों का ऑर्डर दुखते हुए जी के साथ दे रहा था। उसने इस ऐयाशी के लिए किसी तरह चार डालर का इंतज़ाम किया था। और इसी में बैरे को 'टिप' भी देनी थी। अच्छे भोजन का उसका स्टैंडर्ड यही था कि उसे चार के चार डालर इस मद में ख़र्च कर देने हैं। मीनू कार्ड को देखता हुआ वह सोच नहीं पा रहा था कि क्या मँगवाए, जबकि घिनौना-सा बैरा उसके कंधों के पीछे ऑर्डर की प्रतीक्षा में खड़ा था। तभी मैडेलिन बोल पड़ी। वह अति औपचारिक नम्रता के साथ बोली, “मिस्टर ऐरोस्मिथ ने मुझे बताया है कि आप नर्स हैं, मिस टोज़र।
हाँ, नर्स का ही काम कर रही हूँ।
क्या आपको नर्सिंग का पेशा दिलचस्प लगता है?
हाँ, यह दिलचस्प तो है।
“मेरा ख़्याल है कि दूसरों को कष्ट में राहत पहुँचाना एक अच्छा काम है। जहाँ तक मेरे काम का सवाल है, मैं अंग्रेज़ी साहित्य में डॉक्टर आॉफ़ फ़िलॉसफ़ी की डिग्री के लिए शोधकार्य कर रही हूँ… उसने इसको कुछ ऐसे लहज़े में कहा, मानो वह पी०एच०डी० नहीं लेने जा रही, किसी अर्ल का पद प्राप्त करने जा रही है। बहुत रूखा और निष्पक्ष भाव से किया जाने वाला काम है। मुझे अंग्रेज़ी भाषा के उद्भव और विकास का सांगोपांग अध्ययन करना है और कुछ इसी तरह के अन्य काम करने हैं। आप तो प्रायोगिक प्रशिक्षण प्राप्त कर रही हैं, इसलिए आपको यह काम बेतुका-सा लगेगा।
हाँ, हो सकता है ऐसा—नहीं, यह ज़रूर बहुत ही दिलचस्प होगा।
“क्या आप जेनिथ की रहने वाली हैं, मिस टोज़र?
नहीं, मैं एक छोटे से क़स्बे...उसे मुश्किल से ही क़स्बा कहा जा सकता है—उत्तरी डकोटा की रहने वाली हूँ।
ओह... उत्तरी डकोटा!
'हाँ... पश्चिम की ओर।
'अच्छा, अच्छा... आप क्या इधर पूरब में कुछ समय तक रुकेंगी? ठीक यही बात मैडेलिन के एक चचेरे भाई ने उससे कही थी और मैडेलिन को उसकी यह बात पसंद नहीं आई थी।
“जी नहीं... हाँ, लेकिन कुछ समय तक तो मैं यहाँ हूँ ही।
“आप... आपको क्या यह जगह अच्छी नहीं लगी?
'क्यों नहीं, यह काफ़ी ख़ूबसूरत है, बड़े शहरों में तो देखने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं होता।
बड़ा? ख़ैर, यह तो अपने-अपने दृष्टिकोण पर निर्भर है, मैं तो न्यूयार्क जैसे शहर को बड़ा कहती हूँ, लेकिन आपके उत्तरी डकोटा के मुक़ाबले तो यह बड़ा ही है। अपने क़स्बे से बड़ा और आकर्षक होने के कारण ही शायद यह आपको अच्छा लगता है।
“जी हाँ, इससे उसकी तुलना ही क्या!
बताइए तो सही, आपका उत्तरी डकोटा है कैसा? इन पश्चिमी राज्यों के बारे में मेरे मन में सदा से कुतूहल रहा है। मैडेलिन ने यह दूसरी बात अपने चचेरे भाई की नक़ल की थी, इसको देखकर आप क्या सोचती हैं?
आपका आशय मैं ठीक से समझी नहीं।
मेरा मतलब है कि इस नगर को देखकर आपको कैसा लगा?
यहाँ पर गेहूँ और स्वीडिश शलजम काफ़ी पैदा होता है।
लेकिन मेरा मतलब है... मेरा अनुमान है आप पश्चिमी लोग हम पूर्वी लोगों की तुलना में बहुत ही शक्तिशाली और स्फूर्तिमय होते हैं।
मैं नहीं कह सकती... हाँ, संभव है, ऐसा होता हो?
जेनिथ में तो आप काफ़ी लोगों को जानती होंगी।
नहीं, मेरा परिचय बहुत कम लोगों से है।
क्या आप डॉ० बिचहॉल से मिल चुकी हैं? वे आपके अस्पताल में ऑपरेशन करते हैं, बहुत नेक आदमी हैं। सर्जन तो उतने अच्छे नहीं हैं, किंतु हैं बड़े प्रतिभाशाली। गायक तो वे ग़ज़ब के हैं। उनका ख़ानदान भी बहुत इज़्ज़तदार माना जाता है।
नहीं, उनसे मिलने का सुअवसर अभी तक मुझे नहीं मिल पाया है। ल्योरा ने मिमियाती-सी आवाज़ में कहा।
आप उनसे ज़रूर मिलिए, वे टेनिस के बहुत शानदार खिलाड़ी हैं, लखपतियों की ओर से दी जाने वाली दावतों में उनको बराबर निमंत्रित किया जाता है। वे बहुत फुर्तीले और चुस्त-दुरुस्त आदमी हैं।
मार्टिन ने अब पहली बार टोका, “क्या कहा, चुस्त-दुरुस्त? और वह? उस आदमी के पास तो दिमाग़ नाम की कोई चीज़ है ही नहीं।
मैंने 'चुस्त' उस अर्थ में नहीं कहा, जिस अर्थ में तुमने समझा। यह कहकर मैडेलिन फिर ल्योरा की ओर उन्मुख हो गई और मार्टिन अकेला पड़ गया। मैडेलिन ने पहले से भी अधिक उत्सुकता और उल्लास के साथ ल्योरा से पूछा कि क्या वह कॉरपोरेशन के वकील के लड़के को, अमुक हैट की दुकान को और अमुक क्लब को जानती है? काउक्ससे, वान ऐंटिप और वाड्सवर्थ जैसे लोगों के विषय में जो जेनिथ के सामाजिक नेता माने जाते थे और 'एडवोकेट टाइम्स' के सामाजिक कॉलमों में जिनके नाम प्रायः नित्य ही चर्चित होते थे। मैडेलिन ऐसे बात कर रही थी, जैसे वह उन्हें काफ़ी नज़दीक से जानती हो। बड़े लोगों से उसकी इस घनिष्ठता का परिचय पाकर मार्टिन भी आश्चर्यचकित था। निश्चय ही ल्योरा ने इन बड़े-बड़े लोगों का नाम तक नहीं सुन रखा था, न उसने कभी ऐसी संगी-गोष्ठियों, ऐसे भाषणों और ऐसी कवि-गोष्ठियों में भाग ही लिया था, जिनमें मैडेलिन की सारी शानदार शामें बीतती थीं।
कुछ क्षण सोचने के बाद मैडेलिन फिर बोली, “ख़ैर, यह बताइए, अस्पताल में आकर्षक और मोहक डॉक्टरों तथा दूसरे लोगों से मिलने-जुलने के बाद आप लोगों को लेक्चर तो फीके लगते होंगे! इसके बाद उसने ल्योरा से बात करना छोड़कर प्रोत्साहन देने की भंगिमा के साथ मार्टिन को देखा और कहा, “तुम क्या बता रहे थे—ख़रगोशों पर कोई और प्रयोग करने की योजना बना रहे हो?
मार्टिन गंभीर था, यही मौक़ा था जब वह अपनी बात कह सकता था, मैडेलिन! तुम दोनों को मैंने इसलिए मिलाया, क्योंकि, मैं; मैं अपने को दोषमुक्त सिद्ध करने के लिए कोई बहाना नहीं बनाना चाहता। मैं ऐसा किए बिना रह न सका। मैं तुम दोनों से प्रेम करता हूँ। और मैं जानना चाहता हूँ...”
मैडेलिन सहसा उठ खड़ी हुई। इतनी गर्वीली और इतनी सुंदर वह कभी नहीं दिखाई दी थी। उसने उन दोनों की ओर स्थिर दृष्टि से कुछ क्षणों तक देखा और फिर बिना एक शब्द बोले, पीठ फेरकर वहाँ से चल दी। फिर तुरंत ही लौट आई, ल्योरा के कंधे को उसने छुआ और चुपचाप ल्योरा को चूम लिया। “मुझे तुम्हारे लिए दु:ख है, अब तुम्हें एक काम मिल गया है! मेरी प्यारी बच्ची! इतना कहकर वह चल दी। जाते समय उसके कंधे गर्व से सीधे थे।
शंकित, भयभीत मार्टिन सकते में आ गया। वह आँख उठाकर ल्योरा की ओर देख न सका।
उसने अपने हाथ पर ल्योरा के हाथ का स्पर्श अनुभव किया। उसने आँखें ऊपर उठाईं, वह मुस्करा रही थी। उसकी आँखें प्रसन्न थीं और उसका उपहास-सा कर रही थीं।
सैंडी, मैं तुम्हें चेतावनी देती हूँ कि मैं तुम्हें त्याग नहीं रही हूँ। मैं मान लेती हूँ उतने ही बुरे हो, जितना वह कहती है। मैं यह भी मानती हूँ कि मैं मूर्ख और कि तुम उद्धत हूँ, लेकिन तुम मेरे हो! मैं तुम्हें बता देना चाहती हूँ कि अगर तुम अब किसी और से फँसे तो तुम्हारे हक में ठीक न होगा। मैं उस चुड़ैल की आँखें बाहर निकाल लूँगी। समझे? अब तुम अपने बारे में भी मुग़ालते में मत रहो, मैं जहाँ तक समझ पाई हूँ तुम्हें, तुम काफ़ी स्वार्थी हो, लेकिन मुझे इसकी परवाह नहीं, तुम मेरे हो, केवल मेरे!
मार्टिन ने अस्फुट स्वर में कई बातें कहीं, जो उस अवसर पर कही जा सकती थीं। कुछ सोचकर ल्योरा ने कहा, मैं ज़रूर यह महसूस करती हूँ कि तुम और वह जितने निकट थे, मैं और तुम उससे अधिक निकट हैं, शायद तुम इसलिए मुझे ज़्यादा पसंद करते हो, क्योंकि तुम डरा-धमकाकर मुझसे काम करा सकते हो। मुझ पर तुम्हारी धौंस चल सकती है, क्योंकि मैं तुम्हारी पिछलग्गू बन सकती हूँ और वह कभी नहीं बन सकती थी। मैं यह भी जानती हूँ कि तुम्हारे कार्य तुम्हारी दृष्टि में मुझसे भी अधिक महत्त्व रखते हैं, संभव है, तुम्हारा काम ख़ुद तुमसे भी ज़्यादा महत्त्व रखता हो। लेकिन मैं गँवार हूँ, सीधी-सादी हूँ, और वह ऐसी नहीं है। मैं तुम्हारी अनन्य प्रशंसिका हूँ, क्यों, यह तो ईश्वर जाने, पर मैं तुम्हारी प्रशंसा करती हूँ। जबकि उसमें इतनी समझदारी है कि वह तुमसे अपनी प्रशंसा कराने और तुम्हें अपना पिछलग्गू बनाने की सोच सके।
नहीं, मैं सौगंध खाकर कहता हूँ ल्योरा। मैं तुम्हें इसलिए पसंद नहीं करता कि तुम पर अपनी धौंस जमा सकता हूँ और उस पर नहीं—मैं सौगंध खाता हूँ, यह बात नहीं है, बिलकुल नहीं। और तुम कभी यह मत सोचना कि वह तुमसे अधिक चतुर और समझदार है, वह कैंची की तरह ज़बान ज़रूर चलाना जानती है लेकिन—ओह! उसका ज़िक्र अब बंद करो। तुम मुझे मिल गई हो। मेरा नया जीवन आज से शुरू हुआ।
maiDelin ke saath jenith tak ki yatra mein lagbhag aadha ghanta laga, par martin ko itna samay kisi tufani badal ke saman bhayavah aur bojhil jaan paDa. use aane vale ek ek kshan se alag alag nahin jujhana tha, balki tees minat lamba samay ek saath uske samne khaDa tha. do minat baad kahne vali baat jab wo man hi man yaad kar raha hota to do minat pahle kahi hui apni bhonDi baat uske kanon mein sunai de jati. wo puri koshish kar raha tha ki maiDelin ka dhyaan apne is ghanishth mitr par se hataye rakh sake jisse ve milne ja rahe the.
kaun hai ye adami jisse hum milne ja rahe hain? tum uske bare mein chhipa kyon rahe ho? martin, sach batana, tum kahin mujhse maज़aक़ to nahin kar rahe?
“khair, main tumhein bata hi doon, wo mard nahin, aurat hai.
oh!
tum janti hi ho apne kaam se mujhe aksar aspatalon mein jana paDta hai aur jenith ke sarvajnik aspatal ki kuch narson ne meri bahut madad kee… itna kahte kahte wo hanphane laga, “khaas taur se, vahan ek nurse hai, jo vilakshan hai, wo rogi paricharya ke sambandh mein bahut kuch janti hai. mujhko usne itni kuch kaam ki baten sikhai hain ki main bata nahin sakta.
wo ek nek laDki hai…miss tozar, uska pahla naam shayad lee ya kuch aisa hi hai. uske pita uttari dakota ke ek baDe adami hain, kafi dhani hain. mera khayal hai ki is laDki ne samaj seva ki bhavna se prerit hokar hi nursing ka pesha apnaya hoga. mainne socha, tum donon ek dusre se parichit hona pasand karogi.
haan. . . aan. maiDelin ki nigahen bahut door kisi cheez par tik gai theen. aruchi ki rekhayen uske chehre par phail gai theen, beshak, main usse milkar bahut khush houngi. tumhari koi mitr hai wo. . . par maart, kahin tum uske saath ishq to nahin laDa rahe ho? in narson ke saath zyada mel jol baDhana achchha nahin hai. main inke bare mein kuch bhi nahin janti, lekin mainne suna hai ki unmen se kuch narse ek ke baad dusre mard ki talash karti rahti hain.
ho sakta hai, lekin main tumhein abhi bata doon ki lyora aisi nahin hai.
‘‘main bhi aisa hi sochti hoon, lekin. . . martikis, kahin aisa na ho ki ye nurse tumse keval apna dil bahlati rahen. main tumhare bhale ke liye hi kahti hoon, unke paas dil bahlane ke aise kai sadhan honge. tum samajhte ho ki tumhein aurton ke manovij~naan ka achchha gyaan hai, lekin maart, sach kahti hoon, koi bhi tez aurat tumhein apni ungli par nacha sakti hai.
khair, mera khayal hai, main apni hifazat khu kar sakta hoon.
oh, mera matlab hai. . . mera matlab ye nahin hai. . . lekin mujhe ummid hai ki main is tozar naam ki laDki ko pasand kar sakungi, kyonki tumko wo pasand hai, lekin ye mat bhool jana ki main hi tumhari sachchi priyatma hoon. mainne sada tumhein apne antarman se pyaar kiya hai.
ye sach hai ki usne kiya tha. isliye jab usne martin ke haath ko apne hathon mein thaam liya to usne aas paas baithe musafiron ki nigahon ki upeksha kar di. lyora ke vishay mein usne jo kuch kaha tha usse martin ko ghussa to aaya tha, par ab wo itni hari si lag rahi thi ki uska krodh hava ho gaya.
graanD 1907 mein jenith ka sarvottam hotel tha. ab to vishal hotel yarnli ki shaan shauqat ke aage iska rang phika paD gaya hai. ab mozek ke kaam vale iske farsh gande paDe rahte hain. rang rogan aur mulammon par kharochen paD gai hain aur ve badrang ho gaye hain. chamDe ki bhari bhari kursiyon ki sivnen udhaD gai hain. usmen cigarette ki raakh jhaDi rahti hai aur ghoDa bechne vale unka upyog karte hain. lekin apne dinon mein ye shikago aur pitsbarg ke beech ekmaatr aisi sharangah thi, jis par sabko garv tha. ye hotel vastutah pashchimi sthapatyakla ka ek namuna hai. iske pravesh maarg par murish shaili ke beech ke lagbhag mehrab bane hue hain.
martin ne dekha ki lyora us din bahut hi beDhange kapDe pahankar i thi. usne apne balon ko anaDi ki tarah apne hat ke bhitar kheench rakha tha. hat bhi kya tha, haitanuma chatai ki topi thi. lekin martin ko uske hat aur balon ki utni parvah na thi. usko to jo chizen akhrin, ve theen uski shartvest, jiska tisra button hi ghayab tha. martin man hi man uske is pahnave se kheej gaya tha, kyonki maiDelin ke nile rang ki chamakdar poshak ke aage uski ye poshak bahut sadharan aur bhaddi lag rahi thi. lyora ko adhik achchhi tarah vastrabhushan se saj dhajkar aana chahiye tha. ye baat uske man mein keval isliye uthi, kyonki wo lyora ko maiDelin ki apeksha tanik bhi ghatakar nahin dekhana chahta tha. uska sneh lyora ko apne anchal mein sametkar, apne sanrakshan mein lene ke liye aatur ho utha.
ye sochne ke saath saath wo man hi man kah raha tha, mainne socha, tum donon laDkiyon ko ek dusre se parichit ho hi jana chahiye. miss faaks, main miss tozar se tumhara parichai karna chahta hoon…,
lyora aur maiDelin ne ek dusre se koi vishesh baat nahin ki. martin unko maarg dikhata graanD ke prasiddh bhojan kaksh mein le gaya. usmen makhamli kursiyan aur chandi ke bhari bartan rakhe the. hare tatha sunahre rang ke vasket pahne hue prauDh nigro baire idhar se udhar dauD bhaag rahe the.
kitna shanadar kamra hai! lyora ne chahakte hue kaha. maiDelin ne aise dekha, mano wo bhi isi baat ko adhik lambe shabdon mein kahne ka irada rakhti hai, lekin usne bhittichitron par ek baar phir apni drishti Dali aur kaha, haan, lekin ye bahut baDa hai. . .
wo baire ko khane ki chizon ka order dukhte hue ji ke saath de raha tha. usne is aiyashi ke liye kisi tarah chaar Dalar ka intzaam kiya tha. aur isi mein baire ko tip bhi deni thi. achchhe bhojan ka uska standard yahi tha ki use chaar ke chaar Dalar is mad mein kharch kar dene hain. minu card ko dekhta hua wo soch nahin pa raha tha ki kya mangvaye, jabki ghinauna sa baira uske kandhon ke pichhe order ki pratiksha mein khaDa tha. tabhi maiDelin bol paDi. wo ati aupacharik namrata ke saath boli, “mistar airosmith ne mujhe bataya hai ki aap nurse hain, miss tozar.
haan, nurse ka hi kaam kar rahi hoon.
kya aapko nursing ka pesha dilchasp lagta hai?
haan, ye dilchasp to hai.
“mera khyaal hai ki dusron ko kasht mein rahat pahunchana ek achchha kaam hai. jahan tak mere kaam ka saval hai, main angrezi sahity mein doctor aaauf filaॉsaph ki degre ke liye shodhkarya kar rahi hoon… usne isko kuch aise lahze mein kaha, mano wo pi०ech०d० nahin lene ja rahi, kisi arl ka pad praapt karne ja rahi hai. bahut rukha aur nishpaksh bhaav se kiya jane vala kaam hai. mujhe angrezi bhasha ke udbhav aur vikas ka sangopang adhyayan karna hai aur kuch isi tarah ke any kaam karne hain. aap to prayogik prashikshan praapt kar rahi hain, isliye aapko ye kaam betuka sa lagega.
haan, ho sakta hai aisa—nahin, ye zarur bahut hi dilchasp hoga.
“kya aap jenith ki rahne vali hain, miss tozar?
nahin, main ek chhote se qasbe. . . use mushkil se hi qasba kaha ja sakta hai—uttari dakota ki rahne vali hoon.
oh. . . uttari dakota!
haan. . . pashchim ki or.
achchha, achchha. . . aap kya idhar purab mein kuch samay tak rukengi? theek yahi baat maiDelin ke ek chachere bhai ne usse kahi thi aur maiDelin ko uski ye baat pasand nahin i thi.
“ji nahin. . . haan, lekin kuch samay tak to main yahan hoon hi.
“aap. . . aapko kya ye jagah achchhi nahin lagi?
kyon nahin, ye kafi khubsurat hai, baDe shahron mein to dekhne ke liye zyada kuch nahin hota.
baDa? khair, ye to apne apne drishtikon par nirbhar hai, main to nyuyark jaise shahr ko baDa kahti hoon, lekin aapke uttari dakota ke muqable to ye baDa hi hai. apne qasbe se baDa aur akarshak hone ke karan hi shayad ye aapko achchha lagta hai.
“ji haan, isse uski tulna hi kyaa!
bataiye to sahi, aapka uttari dakota hai kaisa? in pashchimi rajyon ke bare mein mere man mein sada se kutuhal raha hai. maiDelin ne ye dusri baat apne chachere bhai ki naqal ki thi, isko dekhkar aap kya sochti hain?
apka ashay main theek se samjhi nahin.
mera matlab hai ki is nagar ko dekhkar aapko kaisa laga?
yahan par gehun aur sviDish shaljam kafi paida hota hai.
lekin mera matlab hai. . . mera anuman hai aap pashchimi log hum purvi logon ki tulna mein bahut hi shaktishali aur sphurtimay hote hain.
kya aap Dau० bichhaul se mil chuki hain? ve aapke aspatal mein operation karte hain, bahut nek adami hain. surgeon to utne achchhe nahin hain, kintu hain baDe pratibhashali. ghayak to ve gazab ke hain. unka khandan bhi bahut izzatdar mana jata hai.
nahin, unse milne ka suavsar abhi tak mujhe nahin mil paya hai. lyora ne mimiyati si avaz mein kaha.
aap unse zarur miliye, ve tennis ke bahut shanadar khilaDi hain, lakhapatiyon ki or se di jane vali davton mein unko barabar nimantrit kiya jata hai. ve bahut phurtile aur chust durust adami hain.
martin ne ab pahli baar toka, “kya kaha, chust durust? aur vah? us adami ke paas to dimagh naam ki koi cheez hai hi nahin.
mainne chust us arth mein nahin kaha, jis arth mein tumne samjha. ye kahkar maiDelin phir lyora ki or unmukh ho gai aur martin akela paD gaya. maiDelin ne pahle se bhi adhik utsukta aur ullaas ke saath lyora se puchha ki kya wo corporation ke vakil ke laDke ko, amuk hat ki dukan ko aur amuk club ko janti hai? kauksse, vaan aintip aur vaDsvarth jaise logon ke vishay mein jo jenith ke samajik neta mane jate the aur advocate taims ke samajik kaulmon mein jinke naam praya nity hi charchit hote the. maiDelin aise baat kar rahi thi, jaise wo unhen kafi naज़dik se janti ho. baDe logon se uski is ghanishthata ka parichai pakar martin bhi ashcharyachkit tha. nishchay hi lyora ne in baDe baDe logon ka naam tak nahin sun rakha tha, na usne kabhi aisi sangi goshthiyon, aise bhashnon aur aisi kavi goshthiyon mein bhaag hi liya tha, jinmen maiDelin ki sari shanadar shamen bitti theen.
kuch kshan sochne ke baad maiDelin phir boli, “khair, ye bataiye, aspatal mein akarshak aur mohak Dauktron tatha dusre logon se milne julne ke baad aap logon ko lecture to phike lagte honge! iske baad usne lyora se baat karna chhoDkar protsahan dene ki bhangima ke saath martin ko dekha aur kaha, “tum kya bata rahe the—khargoshon par koi aur prayog karne ki yojna bana rahe ho?
martin gambhir tha, yahi mauqa tha jab wo apni baat kah sakta tha, maiDelin! tum donon ko mainne isliye milaya, kyonki, main—main apne ko doshamukt siddh karne ke liye koi bahana nahin banana chahta. main aisa kiye bina rah na saka. main tum donon se prem karta hoon. aur main janna chahta hoon. . . ”
maiDelin sahsa uth khaDi hui. itni garvili aur itni sundar wo kabhi nahin dikhai di thi. usne un donon ki or sthir drishti se kuch kshnon tak dekha aur phir bina ek shabd bole, peeth pherkar vahan se chal di. phir turant hi laut i, lyora ke kandhe ko usne chhua aur chupchap lyora ko choom liya. “mujhe tumhare liye duhakh hai, ab tumhein ek kaam mil gaya hai! meri pyari bachchi! itna kahkar wo chal di. jate samay uske kandhe garv se sidhe the.
shankit, bhaybhit martin sakte mein aa gaya. wo ankh uthakar lyora ki or dekh na saka.
usne apne haath par lyora ke haath ka sparsh anubhav kiya. usne ankhen upar uthain, wo muskra rahi thi. uski ankhen prasann theen aur uska uphaas sa kar rahi theen.
sainDi, main tumhein chetavni deti hoon ki main tumhein tyaag nahin rahi hoon. main maan leti hoon utne hi bure ho, jitna wo kahti hai. main ye bhi manti hoon ki main moorkh aur ki tum uddhat hoon, lekin tum mere ho! main tumhein bata dena chahti hoon ki agar tum ab kisi aur se phanse to tumhare hak mein theek na hoga. main us chuDail ki ankhen bahar nikal lungi. samjhe? ab tum apne bare mein bhi mughalte mein mat raho, main jahan tak samajh pai hoon tumhein, tum kafi svarthi ho, lekin mujhe iski parvah nahin, tum mere ho, keval mere!
martin ne asphut svar mein kai baten kahin, jo us avsar par kahi ja sakti theen. kuch sochkar lyora ne kaha, main zarur ye mahsus karti hoon ki tum aur wo jitne nikat the, main aur tum usse adhik nikat hain, shayad tum isliye mujhe zyada pasand karte ho, kyonki tum Dara dhamkakar mujhse kaam kara sakte ho. mujh par tumhari dhauns chal sakti hai, kyonki main tumhari pichhlaggu ban sakti hoon aur wo kabhi nahin ban sakti thi. main ye bhi janti hoon ki tumhare kaary tumhari drishti mein mujhse bhi adhik mahattv rakhte hain, sambhav hai, tumhara kaam khu tumse bhi zyada mahattv rakhta ho. lekin main ganvar hoon, sidhi sadi hoon, aur wo aisi nahin hai. main tumhari anany prashansika hoon, kyon, ye to ishvar jane, par main tumhari prashansa karti hoon. jabki usmen itni samajhdari hai ki wo tumse apni prashansa karane aur tumhein apna pichhlaggu banane ki soch sake.
nahin, main saugandh khakar kahta hoon lyora. main tumhein isliye pasand nahin karta ki tum par apni dhauns jama sakta hoon aur us par nahin—main saugandh khata hoon, ye baat nahin hai, bilkul nahin. aur tum kabhi ye mat sochna ki wo tumse adhik chatur aur samajhdar hai, wo kainchi ki tarah zaban zarur chalana janti hai lekin—oh! uska zikr ab band karo. tum mujhe mil gai ho. mera naya jivan aaj se shuru hua.
maiDelin ke saath jenith tak ki yatra mein lagbhag aadha ghanta laga, par martin ko itna samay kisi tufani badal ke saman bhayavah aur bojhil jaan paDa. use aane vale ek ek kshan se alag alag nahin jujhana tha, balki tees minat lamba samay ek saath uske samne khaDa tha. do minat baad kahne vali baat jab wo man hi man yaad kar raha hota to do minat pahle kahi hui apni bhonDi baat uske kanon mein sunai de jati. wo puri koshish kar raha tha ki maiDelin ka dhyaan apne is ghanishth mitr par se hataye rakh sake jisse ve milne ja rahe the.
kaun hai ye adami jisse hum milne ja rahe hain? tum uske bare mein chhipa kyon rahe ho? martin, sach batana, tum kahin mujhse maज़aक़ to nahin kar rahe?
“khair, main tumhein bata hi doon, wo mard nahin, aurat hai.
oh!
tum janti hi ho apne kaam se mujhe aksar aspatalon mein jana paDta hai aur jenith ke sarvajnik aspatal ki kuch narson ne meri bahut madad kee… itna kahte kahte wo hanphane laga, “khaas taur se, vahan ek nurse hai, jo vilakshan hai, wo rogi paricharya ke sambandh mein bahut kuch janti hai. mujhko usne itni kuch kaam ki baten sikhai hain ki main bata nahin sakta.
wo ek nek laDki hai…miss tozar, uska pahla naam shayad lee ya kuch aisa hi hai. uske pita uttari dakota ke ek baDe adami hain, kafi dhani hain. mera khayal hai ki is laDki ne samaj seva ki bhavna se prerit hokar hi nursing ka pesha apnaya hoga. mainne socha, tum donon ek dusre se parichit hona pasand karogi.
haan. . . aan. maiDelin ki nigahen bahut door kisi cheez par tik gai theen. aruchi ki rekhayen uske chehre par phail gai theen, beshak, main usse milkar bahut khush houngi. tumhari koi mitr hai wo. . . par maart, kahin tum uske saath ishq to nahin laDa rahe ho? in narson ke saath zyada mel jol baDhana achchha nahin hai. main inke bare mein kuch bhi nahin janti, lekin mainne suna hai ki unmen se kuch narse ek ke baad dusre mard ki talash karti rahti hain.
ho sakta hai, lekin main tumhein abhi bata doon ki lyora aisi nahin hai.
‘‘main bhi aisa hi sochti hoon, lekin. . . martikis, kahin aisa na ho ki ye nurse tumse keval apna dil bahlati rahen. main tumhare bhale ke liye hi kahti hoon, unke paas dil bahlane ke aise kai sadhan honge. tum samajhte ho ki tumhein aurton ke manovij~naan ka achchha gyaan hai, lekin maart, sach kahti hoon, koi bhi tez aurat tumhein apni ungli par nacha sakti hai.
khair, mera khayal hai, main apni hifazat khu kar sakta hoon.
oh, mera matlab hai. . . mera matlab ye nahin hai. . . lekin mujhe ummid hai ki main is tozar naam ki laDki ko pasand kar sakungi, kyonki tumko wo pasand hai, lekin ye mat bhool jana ki main hi tumhari sachchi priyatma hoon. mainne sada tumhein apne antarman se pyaar kiya hai.
ye sach hai ki usne kiya tha. isliye jab usne martin ke haath ko apne hathon mein thaam liya to usne aas paas baithe musafiron ki nigahon ki upeksha kar di. lyora ke vishay mein usne jo kuch kaha tha usse martin ko ghussa to aaya tha, par ab wo itni hari si lag rahi thi ki uska krodh hava ho gaya.
graanD 1907 mein jenith ka sarvottam hotel tha. ab to vishal hotel yarnli ki shaan shauqat ke aage iska rang phika paD gaya hai. ab mozek ke kaam vale iske farsh gande paDe rahte hain. rang rogan aur mulammon par kharochen paD gai hain aur ve badrang ho gaye hain. chamDe ki bhari bhari kursiyon ki sivnen udhaD gai hain. usmen cigarette ki raakh jhaDi rahti hai aur ghoDa bechne vale unka upyog karte hain. lekin apne dinon mein ye shikago aur pitsbarg ke beech ekmaatr aisi sharangah thi, jis par sabko garv tha. ye hotel vastutah pashchimi sthapatyakla ka ek namuna hai. iske pravesh maarg par murish shaili ke beech ke lagbhag mehrab bane hue hain.
martin ne dekha ki lyora us din bahut hi beDhange kapDe pahankar i thi. usne apne balon ko anaDi ki tarah apne hat ke bhitar kheench rakha tha. hat bhi kya tha, haitanuma chatai ki topi thi. lekin martin ko uske hat aur balon ki utni parvah na thi. usko to jo chizen akhrin, ve theen uski shartvest, jiska tisra button hi ghayab tha. martin man hi man uske is pahnave se kheej gaya tha, kyonki maiDelin ke nile rang ki chamakdar poshak ke aage uski ye poshak bahut sadharan aur bhaddi lag rahi thi. lyora ko adhik achchhi tarah vastrabhushan se saj dhajkar aana chahiye tha. ye baat uske man mein keval isliye uthi, kyonki wo lyora ko maiDelin ki apeksha tanik bhi ghatakar nahin dekhana chahta tha. uska sneh lyora ko apne anchal mein sametkar, apne sanrakshan mein lene ke liye aatur ho utha.
ye sochne ke saath saath wo man hi man kah raha tha, mainne socha, tum donon laDkiyon ko ek dusre se parichit ho hi jana chahiye. miss faaks, main miss tozar se tumhara parichai karna chahta hoon…,
lyora aur maiDelin ne ek dusre se koi vishesh baat nahin ki. martin unko maarg dikhata graanD ke prasiddh bhojan kaksh mein le gaya. usmen makhamli kursiyan aur chandi ke bhari bartan rakhe the. hare tatha sunahre rang ke vasket pahne hue prauDh nigro baire idhar se udhar dauD bhaag rahe the.
kitna shanadar kamra hai! lyora ne chahakte hue kaha. maiDelin ne aise dekha, mano wo bhi isi baat ko adhik lambe shabdon mein kahne ka irada rakhti hai, lekin usne bhittichitron par ek baar phir apni drishti Dali aur kaha, haan, lekin ye bahut baDa hai. . .
wo baire ko khane ki chizon ka order dukhte hue ji ke saath de raha tha. usne is aiyashi ke liye kisi tarah chaar Dalar ka intzaam kiya tha. aur isi mein baire ko tip bhi deni thi. achchhe bhojan ka uska standard yahi tha ki use chaar ke chaar Dalar is mad mein kharch kar dene hain. minu card ko dekhta hua wo soch nahin pa raha tha ki kya mangvaye, jabki ghinauna sa baira uske kandhon ke pichhe order ki pratiksha mein khaDa tha. tabhi maiDelin bol paDi. wo ati aupacharik namrata ke saath boli, “mistar airosmith ne mujhe bataya hai ki aap nurse hain, miss tozar.
haan, nurse ka hi kaam kar rahi hoon.
kya aapko nursing ka pesha dilchasp lagta hai?
haan, ye dilchasp to hai.
“mera khyaal hai ki dusron ko kasht mein rahat pahunchana ek achchha kaam hai. jahan tak mere kaam ka saval hai, main angrezi sahity mein doctor aaauf filaॉsaph ki degre ke liye shodhkarya kar rahi hoon… usne isko kuch aise lahze mein kaha, mano wo pi०ech०d० nahin lene ja rahi, kisi arl ka pad praapt karne ja rahi hai. bahut rukha aur nishpaksh bhaav se kiya jane vala kaam hai. mujhe angrezi bhasha ke udbhav aur vikas ka sangopang adhyayan karna hai aur kuch isi tarah ke any kaam karne hain. aap to prayogik prashikshan praapt kar rahi hain, isliye aapko ye kaam betuka sa lagega.
haan, ho sakta hai aisa—nahin, ye zarur bahut hi dilchasp hoga.
“kya aap jenith ki rahne vali hain, miss tozar?
nahin, main ek chhote se qasbe. . . use mushkil se hi qasba kaha ja sakta hai—uttari dakota ki rahne vali hoon.
oh. . . uttari dakota!
haan. . . pashchim ki or.
achchha, achchha. . . aap kya idhar purab mein kuch samay tak rukengi? theek yahi baat maiDelin ke ek chachere bhai ne usse kahi thi aur maiDelin ko uski ye baat pasand nahin i thi.
“ji nahin. . . haan, lekin kuch samay tak to main yahan hoon hi.
“aap. . . aapko kya ye jagah achchhi nahin lagi?
kyon nahin, ye kafi khubsurat hai, baDe shahron mein to dekhne ke liye zyada kuch nahin hota.
baDa? khair, ye to apne apne drishtikon par nirbhar hai, main to nyuyark jaise shahr ko baDa kahti hoon, lekin aapke uttari dakota ke muqable to ye baDa hi hai. apne qasbe se baDa aur akarshak hone ke karan hi shayad ye aapko achchha lagta hai.
“ji haan, isse uski tulna hi kyaa!
bataiye to sahi, aapka uttari dakota hai kaisa? in pashchimi rajyon ke bare mein mere man mein sada se kutuhal raha hai. maiDelin ne ye dusri baat apne chachere bhai ki naqal ki thi, isko dekhkar aap kya sochti hain?
apka ashay main theek se samjhi nahin.
mera matlab hai ki is nagar ko dekhkar aapko kaisa laga?
yahan par gehun aur sviDish shaljam kafi paida hota hai.
lekin mera matlab hai. . . mera anuman hai aap pashchimi log hum purvi logon ki tulna mein bahut hi shaktishali aur sphurtimay hote hain.
kya aap Dau० bichhaul se mil chuki hain? ve aapke aspatal mein operation karte hain, bahut nek adami hain. surgeon to utne achchhe nahin hain, kintu hain baDe pratibhashali. ghayak to ve gazab ke hain. unka khandan bhi bahut izzatdar mana jata hai.
nahin, unse milne ka suavsar abhi tak mujhe nahin mil paya hai. lyora ne mimiyati si avaz mein kaha.
aap unse zarur miliye, ve tennis ke bahut shanadar khilaDi hain, lakhapatiyon ki or se di jane vali davton mein unko barabar nimantrit kiya jata hai. ve bahut phurtile aur chust durust adami hain.
martin ne ab pahli baar toka, “kya kaha, chust durust? aur vah? us adami ke paas to dimagh naam ki koi cheez hai hi nahin.
mainne chust us arth mein nahin kaha, jis arth mein tumne samjha. ye kahkar maiDelin phir lyora ki or unmukh ho gai aur martin akela paD gaya. maiDelin ne pahle se bhi adhik utsukta aur ullaas ke saath lyora se puchha ki kya wo corporation ke vakil ke laDke ko, amuk hat ki dukan ko aur amuk club ko janti hai? kauksse, vaan aintip aur vaDsvarth jaise logon ke vishay mein jo jenith ke samajik neta mane jate the aur advocate taims ke samajik kaulmon mein jinke naam praya nity hi charchit hote the. maiDelin aise baat kar rahi thi, jaise wo unhen kafi naज़dik se janti ho. baDe logon se uski is ghanishthata ka parichai pakar martin bhi ashcharyachkit tha. nishchay hi lyora ne in baDe baDe logon ka naam tak nahin sun rakha tha, na usne kabhi aisi sangi goshthiyon, aise bhashnon aur aisi kavi goshthiyon mein bhaag hi liya tha, jinmen maiDelin ki sari shanadar shamen bitti theen.
kuch kshan sochne ke baad maiDelin phir boli, “khair, ye bataiye, aspatal mein akarshak aur mohak Dauktron tatha dusre logon se milne julne ke baad aap logon ko lecture to phike lagte honge! iske baad usne lyora se baat karna chhoDkar protsahan dene ki bhangima ke saath martin ko dekha aur kaha, “tum kya bata rahe the—khargoshon par koi aur prayog karne ki yojna bana rahe ho?
martin gambhir tha, yahi mauqa tha jab wo apni baat kah sakta tha, maiDelin! tum donon ko mainne isliye milaya, kyonki, main—main apne ko doshamukt siddh karne ke liye koi bahana nahin banana chahta. main aisa kiye bina rah na saka. main tum donon se prem karta hoon. aur main janna chahta hoon. . . ”
maiDelin sahsa uth khaDi hui. itni garvili aur itni sundar wo kabhi nahin dikhai di thi. usne un donon ki or sthir drishti se kuch kshnon tak dekha aur phir bina ek shabd bole, peeth pherkar vahan se chal di. phir turant hi laut i, lyora ke kandhe ko usne chhua aur chupchap lyora ko choom liya. “mujhe tumhare liye duhakh hai, ab tumhein ek kaam mil gaya hai! meri pyari bachchi! itna kahkar wo chal di. jate samay uske kandhe garv se sidhe the.
shankit, bhaybhit martin sakte mein aa gaya. wo ankh uthakar lyora ki or dekh na saka.
usne apne haath par lyora ke haath ka sparsh anubhav kiya. usne ankhen upar uthain, wo muskra rahi thi. uski ankhen prasann theen aur uska uphaas sa kar rahi theen.
sainDi, main tumhein chetavni deti hoon ki main tumhein tyaag nahin rahi hoon. main maan leti hoon utne hi bure ho, jitna wo kahti hai. main ye bhi manti hoon ki main moorkh aur ki tum uddhat hoon, lekin tum mere ho! main tumhein bata dena chahti hoon ki agar tum ab kisi aur se phanse to tumhare hak mein theek na hoga. main us chuDail ki ankhen bahar nikal lungi. samjhe? ab tum apne bare mein bhi mughalte mein mat raho, main jahan tak samajh pai hoon tumhein, tum kafi svarthi ho, lekin mujhe iski parvah nahin, tum mere ho, keval mere!
martin ne asphut svar mein kai baten kahin, jo us avsar par kahi ja sakti theen. kuch sochkar lyora ne kaha, main zarur ye mahsus karti hoon ki tum aur wo jitne nikat the, main aur tum usse adhik nikat hain, shayad tum isliye mujhe zyada pasand karte ho, kyonki tum Dara dhamkakar mujhse kaam kara sakte ho. mujh par tumhari dhauns chal sakti hai, kyonki main tumhari pichhlaggu ban sakti hoon aur wo kabhi nahin ban sakti thi. main ye bhi janti hoon ki tumhare kaary tumhari drishti mein mujhse bhi adhik mahattv rakhte hain, sambhav hai, tumhara kaam khu tumse bhi zyada mahattv rakhta ho. lekin main ganvar hoon, sidhi sadi hoon, aur wo aisi nahin hai. main tumhari anany prashansika hoon, kyon, ye to ishvar jane, par main tumhari prashansa karti hoon. jabki usmen itni samajhdari hai ki wo tumse apni prashansa karane aur tumhein apna pichhlaggu banane ki soch sake.
nahin, main saugandh khakar kahta hoon lyora. main tumhein isliye pasand nahin karta ki tum par apni dhauns jama sakta hoon aur us par nahin—main saugandh khata hoon, ye baat nahin hai, bilkul nahin. aur tum kabhi ye mat sochna ki wo tumse adhik chatur aur samajhdar hai, wo kainchi ki tarah zaban zarur chalana janti hai lekin—oh! uska zikr ab band karo. tum mujhe mil gai ho. mera naya jivan aaj se shuru hua.
स्रोत :
पुस्तक : नोबेल पुरस्कार विजेताओं की 51 कहानियाँ (पृष्ठ 107-113)
संपादक : सुरेन्द्र तिवारी
रचनाकार : हेरी सिंक्लेयर लेविस
प्रकाशन : आर्य प्रकाशन मंडल, सरस्वती भण्डार, दिल्ली
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।