Font by Mehr Nastaliq Web

एक रात का अपराधी

ek raat ka apradhi

विक्टर ह्यूगो

विक्टर ह्यूगो

एक रात का अपराधी

विक्टर ह्यूगो

और अधिकविक्टर ह्यूगो

    अपराध की दुनिया के नवागंतुकों के लिए बनी जेल के साथ बनी सज़ायाफ़्ता क़ैदियों की जेल एक जीवंत विरोधाभास है। केवल दुष्कर्मियों का प्रारंभ और अंत ही आमने-सामने है, वरन् दोनों व्यवस्थाएँ भी आमने-सामने हैं—एकांत कारावास और सामूहिक कारावास। इस प्रश्न का उत्तर भी इसी से निश्चित हो जाता है। एकांत कारावास की काल कोठरी और तहख़ाना (सेल) पुराने और नए जेल के मौन द्वंद्व युद्ध की तरह है। एक ओर हैं सभी सज़ायाफ़्ता क़ैदी-सत्रह वर्षीय बच्चे, सत्तर वर्षीय वृद्धों के साथ, तेरह माह की सज़ा के साथ आजन्म कारावासी। दाढ़ी रहित लड़का जिसने सेब चुराया था और भरी सड़क का हत्यारा जिसे प्लेस सैट जैक्स में झूमा झपटी के बाद प्रत्यक्षदर्शी गवाहों के चलते तूलों भेजा गया, कुछ हद तक निरपराध और समयबद्ध सज़ायाफ़्ता भी, नीली आँखों वाला और सफ़ेद दाढ़ी वाला सभी कीड़े-मकोड़ों से भरे, वर्कशॉप में नीम-अँधेरे में सिलाई और अन्य काम बिना एक-दूसरे को देखे मजबूरी में करते रहते हैं, जहाँ एक समूह उम्र से डरता रहता है और दूसरा उनके गर्म ख़ून से।

    दूसरी ओर उस विशाल तिमंजिला बिल्डिंग के अपने-अपने सेल (कोठरी) में क़ैदी मधुमक्खियों के छत्ते की तरह बंद हैं। पड़ोसी हैं जो कभी एक-दूसरे को नहीं देखते, छोटी-छोटी कुटियों से बसा एक शहर ही है जहाँ बच्चों के सिवाए कोई नहीं रहता। ऐसे बच्चे जो एक-दूसरे से अपरिचित हैं, जो बरसों पड़ोस में रहने के बावजूद एक-दूसरे के पैरों की पदचाप की गूँज या आवाज़ तक नहीं सुनते। दीवारों में बंद नर्क—मेहनत, पढ़ाई, औज़ार, पुस्तकें, नींद-आठ घंटे, आराम—एक घंटा, दीवारों से घिरे आँगन में एक घंटा खेलना, सुबह-शाम प्रार्थना—कभी सोचा भी है।

    एक ओर है मलकुंड और दूसरी ओर खेती।

    आप सेल (कोठरी) में जाते हैं—एक लड़का गंदी-सी खिड़की से आती रोशनी में बेंच के पास खड़ा दिखता है, खिड़की का एक फुटा पल्ला ऊपर तक उठाया जा सकता है। लड़का नहा-धोकर मोटा सर्ज पहिने शांत, गंभीर खड़ा हैI काम बंद कर वह सेल्यूट करता है, आप उससे प्रश्न करते हैं और वह उत्तर देता है, गंभीर नज़रों के साथ दबी ज़ुबान में।

    वहाँ कुछ क़ैदी ताले बना रहे हैं, दिन में एक दर्जन; दूसरे फ़र्नीचर में नक़्क़ाशी कर रहे हैं। परिस्थितियाँ उतनी ही हैं जितनी कहानियाँ हैं, जितने गलियारे हैं उतने ही वर्कशॉप। यहाँ लड़के लिख-पढ़ भी सकते हैं। यहाँ जेल में जहाँ एक शिक्षक ज्ञान के लिए है तो एक व्यायाम के लिए भी।

    यह ख़ाम-ख़याली मत पाल लीजिएगा कि नम्रता और सौम्य व्यवहार के कारण जेल में दंड अपर्याप्त होंगे। नहीं, वे पर्याप्त पीड़ादायक हैं। सभी क़ैदियों पर दंड के अलग-अलग निशान स्पष्ट दिखते हैं।

    आलोचना में तर्क तो बहुत से दिए जा सकते हैं, सेल (कोठरी) व्यवस्था को हीलें। बहुतेरे सुधार अपेक्षित हैं, लेकिन वर्तमान में वे आधे-अधूरे और अपर्याप्त हैं, यह अवश्य है कि अन्य जेल-व्यवस्थाओं से तुलना करें तो वे पर्याप्त प्रशंसनीय हैं।

    क़ैदी-दसों दिशाओं से बंद—आज़ादी केवल काम करते समय उपलब्ध-रुचि मात्र उसमें जिसे वह बनाता है, बस। परिणामस्वरूप वह लड़का जो सभी काम-धंधों से घृणा करता था, वही सर्वाधिक मेहनती मैकनिक बन जाता है। जब भी किसी को एकांत कारावास बंद कर दिया जाता है तो वह अँधेरी कालकोठरी में भी रोशनी की किरण को तलाश ही लेता है।

    अभी उस दिन मैं जेल देखने गया था तो साथ चल रहे गवर्नर से पूछा था, ‘क्या तुम्हारे यहाँ कोई मृत्युदंड प्राप्त व्यक्ति है?’

    ‘जी है! मारक्वीस नाम है उसका, जिसने एक लड़की की हत्या तौरिक्से में की थी, वह उसे लूटना चाहता था।’

    ‘मैं इस व्यक्ति से मिलना चाहूँगा,’ मैंने कहा था।

    ‘सर’, गवर्नर ने उत्तर दिया था, ‘मैं यहाँ आपके आदेशों का पालन करने के लिए हूँ, किंतु मैं आपको मृत्युदण्ड पाए व्यक्ति के सेल (कोठरी) में प्रवेश की अनुमति नहीं दे सकता।’

    ‘क्यों नहीं?’

    ‘सर, पुलिस नियमों के अनुसार मैं सभी को मृत्युदंड के सेलों में जाने की अनुमति नहीं दे सकता।’

    इस पर प्रतिरोध करते मैंने कहा, ‘मैं पुलिस नियमों से तो परिचित नहीं हूँ जेल निदेशक, लेकिन मैं इतना जानता हूँ कि कानून मुझे अनुमति देता है। कानून के अनुसार जेल चैंबर्स के शासनाधीन है और जेल के सभी अधिकारी फ्रांस के पियर्स के अधीन हैं—जो उनके कार्यों की समीक्षा कर उचित निर्णय ले सकते हैं। जब भी कहीं कोई दुर्व्यवहार होता है, विधायिका उसकी जाँच कर सकती है। मृत्युदंड प्राप्त व्यक्ति के सेल (कोठरी) में नियम विरुद्ध क्रियाकलापों की पर्याप्त आशंका है। अत: उसमें जाना मेरा कर्त्तव्य है और उसे खोलना आपका।’

    कोई उत्तर दे गवर्नर मुझे साथ ले आगे बढ़ गया था।

    फूलों के कुछ पौधे आँगन को घेरकर बने गलियारे में लगे थे। यह क़ैदियों के खेलने और कसरत करने का मैदान था। आँगन को चार ऊँची बिल्डिंग घेरे थीं। गलियारे की एक बिल्डिंग के बीचों-बीच लोहे का एक भारी भरकम दरवाज़ा था। उसका एक छोटा फाटक खुला और मैंने स्वयं को पत्थरों से बने छोटे कमरेनुमा धुँधले गलियारे में पाया। मेरे सामने ये तीन दरवाज़े—एक सामने और शेष दो दाएँ और बाएँ—तीन वज़नदार दरवाज़े जिनमें लोहे की जालियाँ मढ़ी थीं। ये तीन दरवाज़े तीन सेलों (कोठरियों) के थे, जिनमें प्राणदंड पाए अपराधी, न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट में भेजी अपनी अपीलों के निर्णय की प्रतीक्षा करते हैं। इसका सामान्य अर्थ था दो माहों की प्रतीक्षा।

    ‘दो से अधिक सेल (कोठरियाँ) आज तक कभी भरे नहीं हैं,’ गवर्नर ने कहा था।

    बीच वाले सेल (कोठरी) का दरवाज़ा खोला गया। इस समय केवल इसी सेल (कोठरी) में क़ैदी था। मैं भीतर चला गया था। मेरे दहलीज़ पार करते ही एक व्यक्ति तेज़ी से खड़ा हो गया था। वह आदमी सेल (कोठरी) के दूसरे छोर पर था। मैंने उसे आसानी से देख लिया था। मरियल-सी रोशनी ऊपर बनी गहरी-सी खिड़की से निकल उसके सिर पर पड़ रही थी, जिससे उसकी पीठ चमक रही थी। उसका सिर नंगा था और गर्दन भी। वह जूते और स्ट्रेट-वेस्ट कोट (जकड़-जामा) और भूरे रंग का ऊनी पतलून पहने था। मोटी भूरी लिनन की वेस्ट कोट की बाँहें सामने की ओर गाँठ लगाकर बंधी थीं। तंबाखू से भरे पाइप को पकड़े हाथ अलग ही दिखलाई पड़ रहा था। दरवाज़ा खुलने के समय वह उसे जलाने ही जा रहा था। यही था सज़ायाफ़्ता।

    बरसते आकाश की हल्की-सी झलक के अतिरिक्त खिड़की से कुछ भी दिखलाई नहीं पड़ रहा था। कुछ समय तक वहाँ खामोशी पसरी रही। अंदर से मैं इतना विचलित था कि मैं कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं था। वह बमुश्किल बाईस तेईस वर्ष का युवक था। उसके भूरे बाल स्वाभाविक रूप से घुँघराले थे और छोटे-छोटे कटे थे, लेकिन दाढ़ी बेतरतीब बढ़ी हुई थी। उसकी बड़ी-बड़ी सुंदर आँखें नीचे झुकी हुई थीं और दुष्टता उनसे स्पष्ट झलक रही थी, उसकी नाक चपटी और माथा संकरा, कान के पीछे की हड्डियाँ बढ़ी हुई थीं, जो अपशगुनी माना जाता है, गँवारों जैसा मुँह और बायाँ गाल सूजा हुआ था, जो किसी दर्द का परिणाम था। पीली रंगत के साथ उसका चेहरा खिंचा हुआ था। बहरहाल हमारे भीतर आते ही उसने मुस्कुराने की भरसक कोशिश की थी।

    वह सीधे तनकर खड़ा था। उसका बिस्तर उसके बाएँ ओर था—पहिए वाला नीचा-सा पलंग जिस पर पूरी संभावना है वह हमारे आने के पहिले लेटा हुआ था, और उसके दाहिने अनाड़ी तरीक़े से पीले रंग से पेंट की गई छोटी-सी टेबिल थी, जिसका ऊपरी भाग संगमरमरी रंग से पेंट किया गया था। टेबिल पर चमकती मिट्टी की प्लेटों में सब्जियाँ, कुछ गोश्त, ब्रेड का टुकड़ा और तंबाखू से भरा चमड़े का पाउच रखा था। टेबिल के पास बाँस की एक कुर्सी रखी थी।

    यह चौकीदारों वाला भयानक सेल (कोठरी) था। अच्छा-ख़ासा लंबा चौड़ा हल्के पीले रंग से पुता कमरा था, जिसमें पलंग, टेबिल, कुर्सी, पालिश किया मिट्टी का स्टोव और खिड़की के सामने की दीवार पर शेल्फ था, जिसमें पुराने कपड़े और पुरानी क्राकरी रखी थी। एक कोने में एक गोल कुर्सी रखी थी, जिसने पुराने जेलों के घटिया टब की जगह ले ली थी।

    सब कुछ साफ़-सुथरा-सा, पर्याप्त व्यवस्थित और घरेलूपन से भरा जिसकी अनुपस्थिति में वस्तुओं का आकर्षण खो जाता है। लोहे की सलाखें लगी खिड़की खुली थी। खिड़की की सहायता के लिए दो छोटी चेनें सज़ायाफ़्ता के सिर के ऊपर दो कीलों से लटकी थीं। स्टोव के पास दो व्यक्ति खड़े थे—तलवार लिए एक सिपाही और एक वार्डर। सज़ायाफ़्ता अपराधियों के साथ सदैव दो कर्मचारी तैनात रहते हैं, जो उन्हें दिन-रात कभी भी अकेले नहीं छोड़ते। हर तीन घंटों में उनका स्थान दूसरे पहरेदार ले लेते हैं।

    इन सभी पर मेरा ध्यान एकसाथ नहीं गया था। मेरा पूरा ध्यान क़ैदी पर केंद्रित था।

    एम० पिलार्ड डि विलेन्यू मेरे साथ ही थे। इस ख़ामोशी को तोड़ते कहा था, ‘मारक्वीस’ उन्होंने मेरी ओर इशारा करते कहा, ‘ये सज्जन तुम्हारे हित में तुमसे मिलना चाहते हैं।’

    ‘महोदय,’ मैंने कहा था ‘यदि आपको कोई शिकायत हो तो सुनने के लिए मैं उपस्थित हूँ।’

    सज़ायाफ़्ता ने सिर झुका एक अजीब-सी मुस्कुराहट के साथ कहा, ‘मुझे कोई शिकायत नहीं है सर, मैं यहाँ पर्याप्त सुविधाओं के साथ हूँ। ये सज्जन (अपने गार्डों की ओर इशारा कर) पर्याप्त दयालु हैं और मुझसे बातचीत करने को सदैव तत्पर रहते हैं। गवर्नर भी मुझे देखने बीच-बीच में आते रहते हैं।’

    ‘तुम्हें भोजन किस प्रकार का मिलता है?’ मैंने पूछा था।

    ‘बहुत अच्छा है सर, मुझे दुगना राशन दिया जाता है।’

    फिर कुछ पल रुककर कहा था, ‘दुगना राशन हमारा अधिकार है, और हाँ, मुझे सफ़ेद ब्रेड भी मिलती है।’

    मैंने ब्रेड के दुकड़े पर नज़र घुमाई, वह सफ़ेद थी।

    उसने अपनी बात पूरी करते हुए कहा था, ‘जेल में ब्रेड ऐसी मिलती है जिसकी मुझे आदत नहीं पड़ी है’ सेंटपेलाजी में जहाँ मुझे गिरफ़्तार कर रखा गया था, हम युवकों ने तो एक सोसायटी ही बना ली थी, दूसरों से अलग रहने के विचार से ताकि हमें सफ़ेद ब्रेड मिल सके।’

    उसके उत्तर को कुरेदने के विचार से मैंने प्रश्न किया था ‘यहाँ की तुलना में क्या तुम सेंटपेलाजी में बेहतर महसूस करते थे?”

    ‘हूँ सेंटपेलाजी में मैं ठीक था और यहाँ भी हूँ।’

    ‘तुमने कहा कि तुम दूसरों के साथ मेल-जोल पसंद नहीं करते, दूसरों से तुम्हारा क्या तात्पर्य है?”

    ‘दरअसल वहाँ बहुत बड़ी संख्या में साधारण लोग थे।’

    उसका उत्तर था।

    सज़ायाफ़्ता, चाबाने गली के एक पोर्टर का बेटा था।

    ‘अच्छा, क्या तुम्हारा पलंग आरामदायक है?’ मैंने जानना चाहा था।

    उसके कुछ कहने के पूर्व ही गवर्नर ने चादर उठाते हुए कहा, ‘जी सर, बालों से भरे गद्दे, नहीं दो गद्दे और दो कंबल।’

    ‘और दो तकिए भी,’ मारक्वीस ने जोड़ा था।

    ‘और तुम्हें नींद तो अच्छी आती है न।’ मेरा प्रश्न था।

    उसने कुछ हिचकते हुए कहा, ‘हाँ बहुत अच्छी।’ पलंग पर एक फटी-सी पुस्तक खुली रखी थी।

    ‘तुम पढ़ते भी हो?”

    ‘जी, सर।’

    मैंने पुस्तक उठा ली थी। वह पिछली सदी में प्रकाशित ‘एब्रिजमेंट ऑफ ज्यॉग्रफी एण्ड हिस्ट्री’ थी। उसके शुरुआती पन्ने और जिल्द फटी हुई थी। कांसटेंस झील के वर्णन पर पुस्तक खुली हुई थी।

    ‘सर’ गवर्नर ने मुझसे कहा था ‘यह पुस्तक मैंने ही इसे पढ़ने को दी है।’

    मैंने मारक्वीस की ओर मुड़कर कहा था, ‘क्या यह पुस्तक तुम्हें पसंद रही है?’

    ‘यस सर,’ उसने तुरंत उत्तर दिया था, ‘गवर्नर साहब ने मुझे ‘वायजेस ऑफ ला पेराउज’ और ‘कैप्टन कुक’ भी पढ़ने को दी हैं। मेरी रुचि अन्वेषकों के साहसिक अभियानों में है। मैं इन्हें पहिले भी पढ़ चुका हूँ, लेकिन मैं उन्हें दोबारा प्रसन्नता के साथ पढूँगा और उन्हें एक वर्ष या दस वर्ष बाद फिर से पढूँगा।’

    उसने यह नहीं कहा था कि—मैं पढ़ सकता हूँ, वरन् मैं ‘पढूँगा’ कहा था। वह बातूनी था और उसे अपनी आवाज़ सुनना पसंद था। ‘हमारे महान् अन्वेषक, पाठ्य-पुस्तक जैसी है।’ वह एक अख़बार की तरह बात कर रहा था। उसकी कही बातों का सार यह था कि उसमें स्वाभाविकता का अभाव है। मृत्यु के सामने सब कुछ विलुप्त हो जाता है सिवाए कृत्रिमता के। भलाई और बुराई लुप्त हो जाती है, उदार व्यक्ति कटु, असभ्य विनम्र लेकिन कृत्रिम व्यक्ति कृत्रिम ही रह जाता है।

    यह विचित्र ही है कि मृत्यु के स्पर्श के बावजूद वह आपको सहजता और सरलता प्रदान नहीं करती।

    वह एक निर्धन लेकिन घमंडी कारीगर था, कुछ अंशों में कलाकार जिसे कमोवेश अहम् ने बर्बाद कर दिया था। अपनी औक़ात से बाहर निकल ऐशो-आराम करने का विचार उसके मन में दृढ़ था। अपने पिता की डेस्क से उसने सौ फ्रांक चुराए और दूसरे दिन मनोरंजन और दुर्व्यसनों में लिप्त रहने के बाद उसने एक लड़की को लूटने के प्रयास में उसकी हत्या कर दी थी। यह एक भयानक नसैनी है, जिसके बहुत से डंडे (पायदान) हैं, जिसका प्रारंभ घर में चोरी से लेकर हत्या तक, पिता की डाँट से हथकड़ियों तक हैं। लासेनेयर और पॉलमान जैसे शातिर अपराधियों को जिन्हें चढ़ने में बीस वर्ष लगे थे, लेकिन इस युवक ने जो कल तक एक सामान्य-सा किशोर था, उसने इन पायदनों को चौबीस घंटों में पार कर लिया था, जैसा गलियारे में मिले एक पूर्व स्कूल शिक्षक अपराधी ने कहा था—उसने सभी सीढ़ियाँ एक ही छलाँग में पार कर ली हैं।

    कैसा नर्क है ऐसा भाग्य!

    कुछ मिनिटों तक वह पुस्तक के पन्ने पलटता रहा था और मैंने कुछ समय बाद आगे प्रश्न किया था, ‘क्या तुम्हारे पास अपने जीवन-यापन का कभी कोई साधन नहीं रहा है?’

    उत्तर में उसने सिर उठाकर पर्याप्त गर्व से कहा, ‘बिल्कुल था।’ फिर उसने विस्तार से बतलाना शुरू कर दिया। उसे रोकने का मैंने कोई प्रयास नहीं किया था।

    ‘मैं फ़र्नीचर डिज़ाइन किया करता था। मैंने वास्तुकला (आर्किटेक्चर) का अध्ययन किया है। मुझे मारक्वीस कहकर पुकारा जाता था। मैं शिष्य हूँ।’

    उसने लूव्रे के पूर्व वास्तुविद् एम० वायलेट ले डुक का नाम लिया था। मैंने मारक्वीस के साथ ही ‘ले डुक’ का नाम लिया, लेकिन उसने अभी अपनी बात पूरी नहीं की थी।

    ‘मैंने कैबिनेट निर्माताओं के लिए ‘जर्नल ऑफ डिज़ाइन’ का प्रकाशन शुरू किया था। मैंने पर्याप्त प्रगति भी कर ली थी। कार्पेट (क़ालीन) निर्माताओं को मैं रेनेसां शैली में कुछ डिज़ाइनें देना चाहता था, जो उनके व्यवसाय के अनुकूल हों, ऐसी डिज़ाइनें जो उनके पास कभी रही ही नहीं और वे अक्सर अनुपयुक्त शैली में बनाने को बाध्य होते हैं।’

    ‘तुम्हारा विचार तो बहुत अच्छा था। तुमने उसे आगे क्यों नहीं बढ़ाया?’

    ‘मेरी योजना असफल हो गई थी सर।’

    उसने बहुत जल्दी से उपरोक्त शब्द कहे और फिर आगे अपनी बात शुरू कर दी, ‘बहरहाल मेरा उद्देश्य उससे कमाई करने का था ही नहीं। मेरे पास प्रतिभा थी, अपनी डिज़ाइनें मैं बेच दिया करता था। उन्हें अपनी मनचाही क़ीमत पर बेचने की स्थिति में अंततः मैं पहुँच सकता था।’

    ‘फिर क्यों’—चाहकर भी मैं स्वयं को कहने से रोक नहीं सका था। उसने मेरा मंतव्य समझ उत्तर दिया था, ‘सच तो यह है कि मैं स्वयं भी नहीं जानता। मेरे मन में विचार आया तो था। लेकिन इस विषय पर चर्चा इस समय तो समीचीन नहीं है, कम से कम इस निर्णायक दिन में।’

    ‘निर्णायक दिन’ कह वह कुछ पल रुक गया था और फिर लापरवाही से कहा था,

    ‘खेद है कि मेरे पास यहाँ मेरी डिज़ाइनें नहीं हैं, अन्यथा मैं आपको उनमें से कुछ अवश्य ही दिखलाता। मैंने कुछ लैंडस्केप भी पेंट किए थे। एम० ले डुक ने मुझे वाटर-कलर पेंटिंग करना भी सिखलाया था। सिसेरी शैली में मैंने सफलता भी प्राप्त कर ली थी। मैंने कुछ काम ऐसे भी किए थे, जिन्हें देख आप सिसेरी घोषित कर देते। मुझे ड्राइंग बेहद पसंद है। सेंट पेलाजी में मैंने अपने बहुत से साथियों के पोर्टेट क्रेयॉन से ही बनाए थे। उन्होंने मुझे वाटर कलर भीतर ले जाने की अनुमति ही नहीं दी थी।’

    ‘क्यों?’ मैंने बिना कुछ सोचे-विचारे पूछा था।

    उत्तर देने में वह कुछ हिचकिचा गया था। उधर प्रश्न के बाद मैं पछताने लगा था, क्योंकि मेरी समझ में कारण अचानक ही गया था।

    ‘सर’ कह कुछ देर रुकने के बाद कहा था, ‘कारण यह है कि उनका विचार है कि रंगों में ज़हर होता है, जबकि वे ग़लत थे। वे तो वाटर-कलर थे।’

    ‘लेकिन’, गवर्नर ने तुरंत ही टोक कर कहा था, ‘सिंदूर’ में कुछ मात्रा में ज़हर होता है?’

    ‘हो सकता है, उसने उत्तर दिया था, ‘सच यह है कि उन्होंने मुझे अनुमति नहीं दी थी और मुझे क्रेयॉन से ही संतुष्ट होना पड़ा था। कुछ पोट्रेट अच्छी बनी थीं।’

    ‘अच्छा, तुम यहाँ क्या करते हो?’

    ‘अपने आपको व्यस्त रखता हूँ।’

    इतना कह वह ख़ामोश रह कुछ सोचता रहा था और फिर कहा था, ‘मैं अच्छे रेखांकन कर सकता हूँ।’ अपनी वेस्ट कोट की ओर इशारा कर कहा था, ‘वह मुझे परेशान नहीं करती। कितनी ही विरोधी परिस्थितियाँ क्यों हों व्यक्ति चित्र तो बना ही सकता है।’ उसने हथकड़ियों में बंद हाथों को हिलाते कहा और फिर ये लोग (सिपाहियों की ओर इशारा कर) पर्याप्त सज्जन हैं। इन्होंने मुझे बाँहें मोड़ने की अनुमति पहिले ही दे दी है, लेकिन मैं तो इसके अतिरिक्त भी कुछ करता हूँ—मैं पढ़ता हूँ।’

    ‘तुम पादरी से भी तो मिलते होंगे?’

    ‘जी सर, वे मुझसे मिलने आते हैं।’ इतना कह उसने गवर्नर की ओर मुड़कर कहा, ‘लेकिन मैंने अभी तक एबे मांतेस को नहीं देखा है।’

    उसके मुँह से इस नाम को सुनना मुझे ख़ासा शैतानियत भरा लगा। अपनी ज़िंदगी में मैंने केवल एक ही बार एबे मांतेस को देखा है—वे गर्मियों के दिन थे, तभी मैंने उसे पॉन्ट-ओ-चेंज में एक गाड़ी में लाउवेल को फाँसी चढ़ाने ले जाते देखा था।

    बहरहाल गवर्नर ने ही उसे उत्तर दिया था ‘आह! वह दरअसल बूढ़ा हो गया है। छयासी वर्ष का होने को गया है। बेचारा तभी पाता है, जब उसकी सेहत अनुमति देती है।’

    ‘छयासीऽऽ’, मेरे मुँह से निकल गया था, ‘चूँकि उसकी देह शक्तिहीन हो गई है—इसी की तो उसे लंबे समय से आवश्यकता थी। उसकी उम्र में पहुँच व्यक्ति ईश्वर के इतने निकट पहुँच जाता है कि वह आराम से प्यारे सुंदर शब्दों का उच्चारण कर सकता है।’

    ‘उससे मिल मुझे तो प्रसन्नता ही होगी’, मारक्वीस ने हड़बड़ाते हुए कहा था।

    ‘अरे, आस पर आसमान टिका है’, मैंने कहा था।

    ‘ओह’ उसने कहा था, ‘प्लीज़ मुझे निराश करें। अभी तो अपील-अदालत को भेजा मेरा आवेदन है और साथ ही मैंने ‘एन ग्रेस’ (धर्माचार्य) से भी प्रार्थना की है। जो सज़ा मुझे दी गई है, हो सकता है, उसे रोक दिया जाए। मेरा यह तात्पर्य नहीं है कि जो सज़ा दी गई है वह न्यायोचित नहीं है, लेकिन वह कुछ अधिक कठोर अवश्य है। उन्हें कम से कम मेरी आयु पर तो ध्यान देना चाहिए था, साथ ही मुझे बाह्य परिस्थितियों का लाभ भी देना था। और कम से कम मेरी आयु पर तो ध्यान देना चाहिए था। और फिर मैंने सम्राट से भी क्षमा याचना की अपील की है। मेरे पिता ने, जो मुझसे भेंट करने आते रहते हैं, उन्होंने इस संबंध में मुझे बहुत विश्वास दिलाया है। स्वयं एम० ले डुक ने सम्राट को पिटीशन दी है। एम० ले डुक मुझसे भली-भाँति परिचित हैं, वे अपने शिष्य मारक्वीस को जानते हैं। सम्राट उनकी बात को टालने के आदी नहीं हैं। उनके लिए मेरे क्षमादान को नकारना तो असंभव ही है—मैं जेल मुक्ति नहीं चाहता, लेकिन—’इतना कह वह ख़ामोश हो गया था।

    ‘हाँऽऽ’, मैंने उसे आश्वस्त करते कहा था, ‘हिम्मत रखो, तुम्हारे एक ओर हैं तुम्हारे न्यायाधीश और दूसरी ओर हैं तुम्हारे पिता। लेकिन इन दोनों के ऊपर हैं तुम्हारे वास्तविक पिता और न्यायाधीशों के भी न्यायाधीश स्वयं प्रभु, जो तुम्हें दंड देने की क़तई आवश्यकता महसूस नहीं करते, साथ ही वे क्षमा सागर हैं, अत: आशा रखना ही श्रेयस्कर है।’

    धन्यवाद, सर,’ मारक्वीस ने उत्तर दिया था।

    एक बार फिर वहाँ मौन पसरकर गहरा गया था। कुछ देर बाद मैंने ही उसे तोड़ते हुए कहा था, ‘क्या तुम्हें किसी वस्तु की आवश्यकता है?’

    आँगन में टहलने के लिए कभी-कभार जाना चाहता हूँ, बस। अभी मुझे दिन में मात्र 15 मिनट की ही अनुमति है।’

    ‘यह तो पर्याप्त नहीं है, ‘मैंने गवर्नर से कहा था’, मैं समझ गया आप क्या कहना चाहते हैं। ऐसा कीजिए, यदि दो सिपाही पर्याप्त हों तो चार की व्यवस्था कर लीजिए, लेकिन इस युवक को शुद्ध हवा और सूरज की रोशनी से वंचित रखें। आख़िर जेल के बीचों-बीच है आँगन, हर कहीं दरवाज़े और लोहे के सींकचे हैं, इन सबको घेरे हैं चार ऊँची-ऊँची दीवारें। चौबीस घंटों का चार सिपाहियों का पहरा, स्ट्रेट वेस्ट कोट, प्रत्येक मोड़ पर संतरी, दो संतरी चक्कर लगाते रहते हैं और सात फुट ऊँचे दो परकोटे-भला आपको आशंका किस बात की है? एक क़ैदी को आंगन में चहलकदमी की अनुमति तो देनी ही चाहिए—यदि उसकी इच्छा है तो।’

    गवर्नर ने सिर झुकाते हुए कहा था, ‘आपका कथन उचित है सर, मैं आपके सुझाव पर अमल करूँगा।’ इस पर सज़ायाफ़्ता ने गद्गद हो बार-बार आभार प्रकट किया था।

    ‘अब मेरे जाने का समय हो गया है,’ मैंने उससे कहा था, ‘ईश्वर पर ध्यान लगाओ और हिम्मत रखो, बस।’ ‘रखूँगा सर, हिम्मत रखूँगा।’ वह मेरे साथ दरवाज़े तक आया था, लेकिन मेरे बाहर निकलते ही दरवाज़ा बंद हो गया था। गवर्नर मुझे दाहिनी ओर के सेल (कोठरी) में ले गया था। पहिले की तुलना में यह कुछ बड़ा था। उसमें मात्र एक पलंग और बर्तन रखे थे।

    यहीं, इसी सेल में पॉलमान को रखा गया था। जो छह सप्ताह उसने यहाँ व्यतीत किए थे, उनमें उसने इन्हीं पटियों के फ़र्श पर चल-चलकर तीन जोड़ी जूते घिस डाले थे। वह चलना कभी बंद ही नहीं करता था। अपनी कोठरी में प्रतिदिन पंद्रह लीग (एक लीग = 3 मील) चला करता था। यह तो भयानक ही था।

    ‘यहीं पर जोज़फ हेनरी भी रहा है न?’ मैंने गवर्नर से पूछा था।

    ‘जी हाँ, लेकिन वह पूरे समय अस्पताल में ही रहा था। वह बीमार था, लेकिन हमेशा पत्र लिखता रहता था—मोहर लगाने वाले को, राज्यपाल प्रमुख को, चांसलर को, महान रिफाउंड्री को पत्र-चार-चार पृष्ठों के पत्र वह भी बारीक हस्तलिपि में। एक दिन मैंने उससे हँसते हुए कहा था—‘यह तो तुम्हारा सौभाग्य है कि तुम्हें अपना लिखा पढ़ने को बाध्य नहीं किया जाता, समझे।’ उन पत्रों को कभी भी किसी ने नहीं पढ़ा था। वह मूर्ख था मूर्ख।’

    जेल से बाहर निकलने के पहिले गवर्नर ने दो घेरे या घिरी हुई दो गलियों, ऊँची दीवारों, कहीं-कहीं लगी हरियाली प्रत्येक तीस क़दम पर बने संतरी-बाक्सों को एक-एक कर इशारा कर दिखलाया। इसके बाद उसने सज़ायाफ़्ताओं के सेलों (कोठरियों) की खिड़कियों की ओर इशारा किया था, जहाँ एक वर्ष पूर्व दो संतरियों ने स्वयं को गोली मार ली थी। उन्होंने राइफ़लों से अपने सिर ही उड़ा दिए थे। गोलियों के खोल संतरी बाक्स में मिले थे। दीवार पर लगे ख़ून के धब्बों को बरसात ने धो दिया है। एक ने इसलिए गोली चला ली थी, क्योंकि उसके पास से गुज़रते आफ़ीसर ने उसे बिना राइफल के पकड़ लिया था, जिसे वह संतरी बाक्स में छोड़ आया था। उसके पास से गुज़रते आफ़ीसर ने कहा था, ‘पुलिस हिरासत में पंद्रह दिन।’ दूसरे ने गोली क्यों मारी, हमें कभी पता नहीं चल सका।’

    स्रोत :
    • पुस्तक : विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ (खण्ड-2) (पृष्ठ 85)
    • संपादक : ममता कालिया
    • रचनाकार : विक्टर ह्यूगो
    • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
    • संस्करण : 2005
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए