Font by Mehr Nastaliq Web

जां क्रिस्तोफ़

jam christof

रोमां रोलां

रोमां रोलां

जां क्रिस्तोफ़

रोमां रोलां

और अधिकरोमां रोलां

    जां क्रिस्तोफ़ क्रोप्ट मेलकायर का पुत्र था। मेलकायर एक नशेबाज संगीतज्ञ था। उसका लूईशा नामक रसोईदारिन से संबंध हो गया था और इसके दुष्परिणामस्वरूप जां क्रिस्तोफ़ का जन्म हुआ।

    रहिन नामक एक छोटे क़स्बे में जां मिचेल नामक व्यक्ति ने पचास वर्ष पहले अपना निवास स्थान बनाया था। यह जां मिचेल जां क्रिस्तोफ़ का बाबा था। बहुत छुटपन में ही क्रिस्तोफ़ की रुचि संगीत की ओर हो गई। मेलकायर नित्य ही अपने पुत्र को पियानो के पास ज़बरदस्ती बिठा लेता और रोज़ उससे अभ्यास करवाता। बच्चे को यह चीज़ पसंद नहीं थी।

    एक दिन जां मिचेल उसको ऑपेरा दिखाने ले गया, जहाँ जां क्रिस्तोफ़ पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उसने संगीतज्ञ बनने का निश्चय कर लिया।

    कुछ समय बाद एक दिन जां मिचेल ने अपने पोते क्रिस्तोफ़ द्वारा अब तक लिखे सभी गीतों को संगृहीत कर लिया। क्रिस्तोफ़ खेलते वक़्त इन गीतों को वैसे ही बना लिया करता था। बाबा ने इन गीतों के संग्रह का नाम रखा 'शैशव के सुख'। मेलकायर ने अपने पुत्र की प्रतिभा को पहचाना और शीघ्र ही एक संगीत-सभा का आयोजन किया। उसमें ग्रांडड्यूक ऑफ़ लीयोफ़ोल्ड को निमंत्रित किया गया और जां क्रिस्तोफ़ नामक साढ़े सात वर्ष के संगीतज्ञ ने अपने बनाए गीतों को उस सभा में गाया-बजाया। वे सब गीत ग्रांडड्यूक को समर्पित कर दिए गए थे। क्रिस्तोफ़ को दरबार की कृपा प्राप्त हुई। उसको सरकार की ओर से वज़ीफ़ा बाँध दिया गया और महल में बाजा बजाने का काम भी मिल गया।

    इन्हीं दिनों उसके बाबा की मृत्यु हो गई और आमदनी का एक ज़रिया ख़त्म हो गया। उसके पिता की नशेबाजी भी अब और बढ़ गई। परिणाम यह हुआ कि होब थियेटर के ऑरकेस्ट्रा में से उसे निकाल दिया गया। शराब ने उसके पिता की नौकरी छुड़वा दी थी, अत: चौदह वर्ष की अवस्था में ही वायलिन की केवल पहली धुन बजा पाने वाले क्रिस्तोफ़ को सारा परिवार सँभालने का बोझ उठाना पड़ा।

    क्रिस्तोफ़ के मामा का नाम गोटफ़्रीड था। वह सीधा-सादा ईमानदार आदमी था। उसकी आमदनी के आधार पर क्रिस्तोफ़ ने एक जीवन-दर्शन बनाया और उसको अपनाने की चेष्टा की। अब क्रिस्तोफ़ इधर-उधर संगीत सिखाने भी जाया करता था। एक धनी परिवार में एक लड़की को वह संगीत सिखाने लगा। वह उस लड़की से प्रेम करने लगा, किंतु लड़की ने उसका मज़ाक़ उड़ा दिया। इस बात से जां क्रिस्तोफ़ को बहुत दुःख हुआ। कुछ ही दिन बाद उसके पिता की भी मृत्यु हो गई। इसका परिणाम यह हुआ कि क्रिस्तोफ़ का मन राग-रंग से उचाट खा गया और वह नीरस विशुद्धतावादी-सा बन गया। किंतु फिर भी उसका मन इतनी नीरसता से अपने आपको बाँध नहीं सका और कुछ दिनों में ही जां क्रिस्तोफ़ सेबीन नामक एक विधवा युवती के प्रेम में फँस गया। किंतु इससे पूर्व कि वह प्रेम परिपक्व होता, बढ़ता, सेबीन मर गई। इस घटना ने क्रिस्तोफ़ को बहुत ही विरक्त कर दिया और वह देहात की ओर घूमने का शौक़ीन हो गया। दूर-दूर तक घूमता। ऐसे ही घूमते-घूमते एक बार उसकी एडा नामक एक लड़की से मुलाक़ात हुई। उन्होंने होटल में रात साथ-साथ गुज़ारी और क्रिस्तोफ़ उसके प्रेम में पड़ गया। लेकिन जब उसे यह पता चला कि उसके छोटे भाई के साथ एडा का प्रेम-संबंध चल रहा है तो उसे बड़ा भारी धक्का लगा। अब वह पूरी शक्ति से अपने काम में लग गया। जैसे-जैसे उसकी परिपक्वता बढ़ती जा रही थी, उसकी परख, ईमानदारी, सचाई और चेतना में पुष्टि रही थी। उसके संगीत-रचना के नियम जर्मन नियमों से टकराने लगे और एक स्थानीय पत्र में उसने जर्मन पद्धति को बर्बर कहना प्रारंभ किया। इसका परिणाम यह हुआ कि संपादकों से उसका झगड़ा हो गया और वह एक साम्यवादी पत्र में लिखने लगा। इस बात से ग्रांडड्यूक भी क्रुद्ध हो गया और क्रिस्तोफ़ को राज्य की ओर से मिलने वाली सहायता भी बंद हो गई। किंतु जां क्रिस्तोफ़ की विपत्ति का यहीं अंत नहीं हुआ। क़स्बे के लोग उसके विरुद्ध हो गए और धीरे-धीरे सारे मित्र भी उसे छोड़ने लगे। केवल बूढ़ा पीटर शेट्ज़, जो संगीत के इतिहास का रिटायर्ड प्रोफ़ेसर था, उसकी बात को समझता था।

    एक बार एक सराय में एक किसान लड़की के साथ नृत्य करते समय क्रिस्तोफ़ का कुछ शराबी सैनिकों के साथ झगड़ा हो गया। उस समय वह बीस वर्ष का था। सैनिकों से झगड़ा करने के अपराध में जेल हो जाने का ख़तरा था, इसलिए क्रिस्तोफ़ को मजबूर होकर पेरिस भाग जाना पड़ा। पेरिस में अपने जीवनयापन के लिए वह संगीत की ट्यूशन करने लगा। वहाँ उसे बचपन का एक दोस्त मिल गया—सिलवे कोहन, जो पेरिस में अपनी स्थिति बना चुका था। उसने क्रिस्तोफ़ को पेरिस के समाज में घुसा दिया, किंतु क्रिस्तोफ़ को वह सब पसंद नहीं आया। उस समाज में एक खोखलापन था, काहिली थी, नैतिक निर्वीर्यता थी, उद्देश्यहीनता, व्यर्थता अपने आपको नष्ट कर देने वाली अनावश्यक आलोचना थी; जैसे उस समाज में एक सार्वजनिक तनाव था, जिसने लोगों की सहजता को विनष्ट कर दिया था। ऐसे समाज में प्रसिद्धि प्राप्त करने के लिए क्रिस्तोफ़ को इन सब बातों से समझौता करने की आवश्यकता थी, जो करना उसने स्वीकार नहीं किया। ...और इसलिए वह ट्यूशन से अपना काम नहीं चला पाया, क्योंकि वह धीरे-धीरे सबसे दूर होता चला गया था। अब वह एक प्रकाशक के लिए संगीत-लिपि लिखने लगा।

    इसी बीच वह बहुत बीमार पड़ गया। उसके पड़ोस में कुछ लोग रहते थे, जिनमें सीडोनी ने उसकी बहुत सेवा-सुश्रूषा की। यहाँ उसकी इकोल नोरमेल के एक तरुण लेक्चरर ओलिवियर ज़्यानिन से मुलाक़ात हो गई। उसको पता चला कि ओलिवियर एंतोनित का भाई था, जिससे कि उसकी जर्मनी में मुलाक़ात हुई थी। यद्यपि जां क्रिस्तोफ़ का कोई दोस्त नहीं था, फिर भी उसका परिचित होने के कारण एंतोनित का समाज में सम्मान नष्ट हो गया था। उसे पता चला कि एंतोनित को तपेदिक हो गई थी और अपने भाई को पढ़ाने के प्रयत्न में घोर परिश्रम करने और उस अवस्था में अपनी देख-रेख कर पा सकने के कारण उसकी मृत्यु हो गई थी।

    एक दिन ओलिवियर ने क्रिस्तोफ़ से कहा कि अब तक वह असली फ़्रांस के संपर्क में नहीं आया है—असली फ़्रांस की जनता के संपर्क में। दोनों ही एक-दूसरे को नई-नई जानकारी जुटाते। दोनों एक-दूसरे की प्रकृति से अवगत हो गए थे। ओलिवियर स्वभाव का गंभीर था, किंतु शारीरिक रूप से वह स्वस्थ नहीं था। क्रिस्तोफ़ में अपार शक्ति थी और उसकी आत्मा भी तूफ़ानी थी। दोनों की जोड़ी ऐसी थी जैसे एक लँगड़ा था और एक अंधा।

    कुछ दिन बाद कोलेथ नामक लड़की के पीछे दोनों मित्रों में एक तनाव गया। क्रिस्तोफ़ कोलेथ को पहले प्यार करता था और अब ओलिवियर उसका नया प्रेमी था। कोलेथ ने लूसियन लेवीकोर नामक एक व्यक्ति को बीच में लिया। यह क्रिस्तोफ़ का पुराना शत्रु था और उसने एक प्रकार की उलझन पैदा कर दी थी। नासमझी में क्रिस्तोफ़ बहुत क्रुद्ध हो गया। उसने एक पार्टी में लेवीकोर का अपमान कर दिया और परिणाम यह हुआ कि लेवीकोर ने द्वंद्व के लिए उसे ललकारा। दोनों युद्ध के लिए तैयार हुए, किंतु दोनों की गोलियाँ ख़ाली चली गईं। इसका परिणाम यह हुआ कि क्रिस्तोफ़ और ओलिवियर का तनाव दूर हो गया और दोनों एक-दूसरे के मित्र हो गए।

    इस बीच में फ़्रांस और जर्मनी के बीच युद्ध की भयानक ख़बरें आने लगीं। चारों ओर एक आतंक फैल गया। जब कुछ शांति हुई, क्रिस्तोफ़ रचनात्मक कार्य में दस गुनी शक्ति के साथ लग गया। अब उसकी संगीत-संबंधी रचनाएँ प्रकाशित होने लगीं और फ़्रेंच और जर्मन ऑरकेस्ट्रा उन्हें बजाने लगे। उसकी सफलता का पथ प्रशस्त हो चला था। लेकिन ऐसे समय दुर्भाग्य से उसे जर्मनी में अपनी माता की मृत्युशय्या के निकट जाना पड़ा।

    जेक्लीन लैंगियास एक ख़ूबसूरत लड़की थी, जिसकी आदतें बिगड़ चुकी थीं और जो बहुत ही चपल थी। ओलिवियर उसके प्रेम में पड़ गया और उसने उससे विवाह कर लिया। उसको फ़्रांस के क़स्बे में एक नौकरी मिल गई और अब वह अपनी पत्नी के साथ वहीं एक क़स्बे में बस गया। कुछ दिन बाद वे लोग पेरिस गए। लेकिन जेक्लीन ओलिवियर से ऊब गई। एक बच्चा भी पैदा हुआ, किंतु दोनों पति-पत्नी उसके कारण भी एक नहीं हो सके। जेक्लीन ने क्रिस्तोफ़ से प्रेम करने की चेष्टा की, किंतु उसका मन नहीं भरा और वह एक बदचलन लेखक के साथ भाग गई। इस घटना का परिणाम यह हुआ कि क्रिस्तोफ़ और ओलिवियर, जिनमें कभी वैमनस्य हो गया था, जेक्लीन के कारण फिर से मित्र हो गए। वे दोनों पेरिस के समाज को समझना चाहते थे। ओलिवियर आदर्शवादी था और क्रिस्तोफ़ में मानववादी चेतना थी। इन बातों ने उन्हें मज़दूर आंदोलन की ओर आकर्षित किया। 'मई दिवस' के प्रदर्शन को देखने ओलिवियर भी गया। क्रिस्तोफ़ बड़े जोश में था। ओलिवियर वहाँ एक दंगे में मारा गया। क्रिस्तोफ़ का इस पर पुलिस से झगड़ा हो गया, किंतु उसके मित्रों ने उसे बचा लिया। उन्होंने उसे देश की सीमा के पार पहुँचा दिया। अब वह एक बार फिर अधिकारी वर्ग के सामने भगोड़ा हो गया—जैसा कि दस वर्ष पूर्व इधर से उधर भाग रहा था। डॉक्टर ब्रोन ने उसे आश्रय दिया। वे जर्मन थे। उनकी पत्नी का नाम अन्ना था। कुछ दिनों बाद क्रिस्तोफ़ और अन्ना में प्रेम-व्यवहार प्रारंभ हो गया। यद्यपि उन्होंने बहुत चेष्टा की कि उस संबंध को तोड़ दें, किंतु वे सफल नहीं हुए। ब्रोन को धोखा दिया गया है, यह सोच-सोचकर अन्ना को इस बात का इतना मानसिक दुःख हुआ कि उसने अंत में आत्महत्या तक करने की चेष्टा की। परिणामस्वरूप, क्रिस्तोफ़ वहाँ से निकल भागा।

    वह स्विटजरलैंड के पर्वतीय इलाक़े में पहुँच गया। इस तरह वर्षों बीत गए—क्रिस्तोफ़ को विदेशों में घूमते-फिरते। इटली में रहते हुए क्रिस्तोफ़ को ग्रेज़िया मिली। एक बार जवानी में उससे पेरिस में क्रिस्तोफ़ की मुलाक़ात हुई थी। ग्रेज़िया ने आस्ट्रिया के एक काउंट से विवाह किया था। अपने पति के प्रभाव से उसने क्रिस्तोफ़ को उस समय सहायता दी थी, जबकि जनता क्रिस्तोफ़ के संगीत को पसंद नहीं करती थी। उसके पति की द्वंद्व युद्ध में मृत्यु हो गई थी और अब वह एक माँ थी। क्रिस्तोफ़ और ग्रेज़िया एक-दूसरे के प्रेम में पड़ गए, किंतु बाद में जल्द ही दोनों अलग-अलग हो गए। क्रिस्तोफ़ पेरिस लौट आया। उधर ग्रेज़िया का स्वास्थ्य नष्ट हो गया और वह मर गई।

    अपने जीवन के ढलते वर्ष क्रिस्तोफ़ अपने पुराने मित्रों के साथ बिताने लगा। इन्हीं दिनों क्रिस्तोफ़ के लिए भय का नया कारण उत्पन्न हो गया और वह यह था कि जर्मनी और फ़्रांस में युद्ध के बादल घिर रहे थे। परंतु उसको निश्चय था कि यदि युद्ध हुआ, तो भी वह दोनों देशों के बीच भाईचारे के संबंध को नष्ट नहीं कर पाएगा।

    अंतिम समय तक क्रिस्तोफ़ संगीत-रचना करता रहा। यहाँ तक कि जब मृत्यु निकट गई, तो भी उसने अपनी क़लम उठाई और अपना बनाया हुआ गीत लिखा :

    तू फिर से जन्म लेगा, विश्राम कर।

    अब सब कुछ एक हो गया है।

    रात और दिन की मुसकानें मिल गई हैं।

    प्रेम और घृणा परस्पर समरसता में परिणत हो चुके हैं।

    मैं दो विशाल पंखों वाले देवता का आराधन करूँगा।

    जीवन की जय, मृत्यु की जय!

    स्रोत :
    • पुस्तक : नोबेल पुरस्कार विजेताओं की 51 कहानियाँ (पृष्ठ 70-75)
    • संपादक : सुरेन्द्र तिवारी
    • रचनाकार : रोमां रोलां
    • प्रकाशन : आर्य प्रकाशन मंडल, सरस्वती भण्डार, दिल्ली
    • संस्करण : 2008
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए