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जमुना सी नाहिं कोऊ और दाता
जमुना सी नाहिं कोऊ और दाता।जेइ इनकी सरन जात हैं दौरि के ताहि कों तिहि छिनु करी सनाथा॥
गोविंद स्वामी
मधुकर! करहु और कछु बात
मधुकर! करहु और कछु बात।मोहन भये मधुपुरी-प्रीतम, तातें हमें न सुहात॥
गोस्वामी हरिराय
भंवरगीत (कथोपकथन)
ब्रज—जोगी जोतिहिं भजे भक्त निज रूपहि जानै।प्रेम पियूषै प्रगटि स्यामसुंदर उर आनै॥
नंददास
श्री विट्ठल प्रगटे ब्रजनाथ
श्री विट्ठल प्रगटे ब्रजनाथ।नंद नंदन कलियुग में आए, निज जन किए सनाथ॥
छीतस्वामी
लगन जाल है काल प्रगति
करत फ़क़ीर अमीरन के सुत घर-घर भीख मँगाई री।कृपानिवास परी गर मेरे दुख दो भा सुखदाई री॥
कृपानिवास
पाहि-पाहि उर अंतरजामी
पाहि-पाहि, उर अंतरजामी, हरन अमंगल ही के।‘सहचरिसरन’ बिनय सुनि कीजै, बारिधि कृपा-अमी के।
सहचरिशरण
राधा स्याम के संग बनी
अंग-अंग सौं मिलि कै गाढे, नील कंचन तनी।छीतस्वामी गिरिधरन के संग सोहै और घनी॥
छीतस्वामी
साहेब मोरी ओर निहारो
धरमदास यह बिनती बिनवै, सतगुरु मोको तारो।साहेब कबीर हंस के राजा, अमर लोक पहुँचावो॥
धनी धरमदास
उर में माखन-चोर गड़े
को वसुदेव, देवकी है को, ना जानै औ बूझैं।सूर स्यामसुंदर बिनु देखे और न कोऊ सूझैं॥
सूरदास
नाथ तुम अपनी ओर निहारो
अब लौं तो कबहूं नहिं देख्यौ जन के औगुन प्यारे।तो अब नाथ कई क्यौं ठानत भाखहु बार हमारे॥
भारतेंदु हरिश्चंद्र
अब डर कौन कौ रे भैया
कहत ग्वाल जसुमति के आगे हैं त्रिभुवन की रैया।तोर्यो सकट पूतना मारी को कहि सकै बधैय्या॥
परमानंद दास
उर में घाव, रूप सों सैंकै
उर में घाव, रूप सों सैंकै, हित की सेज बिछावै।दृग-डोरे सुइर्या बर-बरुनी, टाँके ठीक लगावै।