भोर और बरखा
bhor aur barkha
रोचक तथ्य
प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा सातवी के पाठ्यक्रम में शामिल है।
जागो बंसीवारे ललना!
जागो मोरे प्यारे!
रजनी बीती, भोर भयो है, घर-घर खुले किंवारे।
गोपी दही मथत, सुनियत हैं कंगना के झनकारे॥
उठो लालजी! भोर भयो है, सुर-नर ठाढ़े द्वारे।
ग्वाल-बाल सब करत कुलाहल, जय-जय सबद उचारै॥
माखन-रोटी हाथ मँह लीनी, गउवन के रखवारे।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सरण आयाँ को तारै॥
बरसे बदरिया सावन की।
सावन की मन-भावन की॥
सावन में उमग्यो मेरो मनवा, भनक सुनी हरि आवन की।
उमड़-घुमड़ चहुँदिस से आया, दामिन दमकै झर लावन की॥
नन्हीं-नन्हीं बूँदन मेहा बरसे, शीतल पवन सुहावन की।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर! आनंद-मंगल गावन की॥
- पुस्तक : वसंत (भाग-2) (पृष्ठ 82-83)
- रचनाकार : मीराबाई
- प्रकाशन : एनसीईआरटी
- संस्करण : 2022
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