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सरल सुभाव, सील संतोषी
सरल सुभाव, सील सतोषी, जीव-दया चित-चारी।काम क्रोध-लोभादि बिदा करि, समुझि-बूझि अवतारी।
सहचरिशरण
इंद्र हू की असवारी
बादरन की फ़ौजें छाईं बूँदन की तीरा कारी॥दामिनी की रंजक, तामैं ओले-गोले तोप छुटत,
बैजू
झूलै कुँवरि गोपराइन की
झूलै कुँवरि गोपराइन की। मधि राधा सुंदरि-सुकुमारि॥प्रथमहि रितु पावस आरम्भ। श्रीवृषभानु मँगाये खंभ॥
गदाधर भट्ट
मंगल आरति प्रिया प्रीतम की
जुगलप्रिया
ब्रज की नारी डोल झुलावैं
ब्रज की नारी डोल झुलावैं।सुख निरखत मन मैं सचु पावें मधुर-मधुर कल गावैं॥
नंददास
संगत साधुन की करिये
संगत साधुन की करिये, कपटी लोगन सों डरिये।कौन नफा दुरजन की संगत, हाय-हाय करि मरिये॥
निपट निरंजन
ब्रज की बीथिन निपट सांकरी
ब्रज की बीथिन निपट सांकरी॥यह भली रीति गाऊं गोकुल की जितही चलीए तितहिबां करी॥