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यहाँ निरी विकृति,मुझे ही मैं अज्ञात-सा लगता हूँ,
आज़ाद हवा की तरह तेरी कला के सामनेन रंग की, न धर्म की, न देश की दीवार है
करके सबके भले की अरदास मैंइसी साझा लंगर से रोटी पाऊँगा
एक लड़काअंधी गुफाओं की खोज में
आज मैंने माँ की फटी बिवाइयाँ देखींऔर ख़ुश हुआ
आभा उसके अमल अंतिमालोक की,रेखा-सी कर गई हृदय पर शोक की!
आप क्या करेंगे यह जानकरकि मेरे घर में आटा नहीं है
कनेर का पौधा उगाकहाँ है कनेर का पौधा?
बढ़ई ने तैयार किया थाअभी कुर्सी का चौखट ही
अब मैं उठूँगा तभीजब सूरज आकर दरवाज़ा भड़भड़ाएगा
सैकड़ों लोगों की मौजूदगी मेंवसूलती है ग़ुंडों की भीड़ हफ़्ता
बीन लेती सीपियाँचंद्रमा की संगत में
किसी दंश की वजह सेऔर सो जाता है।
पार्क की बैंच पर बुढ़ापा काटतेकुछ रिटायर्ड कंधों पर
नियोन फानूसलंबी ट्राम की पटरियों को घिस रहा है
अपनी आत्मा केस्रोत की प्रवाह-धारा में।
मुझे पसंद हैथकान और उदासी भरे दिन को चुकाकर
निपट निठुराई कीकि झोंकों की झड़ियों से
सफल किया जीवन उद्देश।बौद्ध भिक्षुओं की वह वाणी
अलख निरंजनये धन, ये ईंधन
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