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नज़्र-ए-योगेश प्रवीन नज़्र-ए-लखनऊ
लखनऊ! तुझ पर बहा-ए-नौ दुबारा आएगीबारिशें होंगी मुहब्बत की, घटा फिर छाएगी
हिमांशु बाजपेयी
ज़िल्ल-ए-सुब्हानी
संवेदना की सबसे महीन नस हरकत करने लगती है तबठीक उसी वक़्त ज़िल्ल-ए-सुब्हानी
विपिन चौधरी
सुपुर्द-ए-ख़ाक
एक दिन हो जाएगा सुपुर्द-ए-ख़ाकये गैस चैंबर, ये शैतान बच्चा, ये ताजमहल, ये खंडहर
आसित आदित्य
मोहब्बत-ए-बारिश
मोहब्बत-ए-बारिश की उन बूँदों-सी तो नहीं मैंजिसे नज़र भर भी देख न सके वो ज़ालिम