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लाल, तुम्हारे विरह की
लाल, तुम्हारे विरह की अगनि अनूप, अपार।सरसै बरसैं नीरहूँ, झरहूँ मिटै न झार॥
बिहारी
मिली ललकि उठि लाल को
मिली ललकि उठि लाल को, टूटी लाल की माल।मनौ कढ़ी उर ते परै, विरह अनल की ज्वाल॥
भूपति
फूलूँ हों लखि लाल को
फूलूँ हों लखि लाल को, पिघरें घेना गात।सो हितु क्यों वे दूर जब, दुहुँ की उलटी बात॥
दयाराम
अमृत जस जुग लाल कौ
अमृत जस जुग लाल कौ, या बिनु अँचौ न आन।मो रसना करिबो करो, याही रस को पान॥
हरिव्यास देव
लाल, अलौकिक लरिकई
लाल, अलौकिक लरिकई, लखि-लखि सखी सिहाँति।आज-काल्हि में देखियतु, उर उकसौंही भाँति॥
बिहारी
लाल लली ललि लाल की
लाल लली ललि लाल की, लै लागी लखि लोल।त्याय दे री लय लायकर, दुहु कहि सुनि चित डोल॥
दयाराम
ललित लीला लाल सिय की
ललित लीला लाल सिय की, त्रिगुन माया पार।पुरुष तहँ पहुँचे नहीं, केवल अली अधिकार॥
रसिक अली
लसत लाल डोरे रु सित
लसत लाल डोरे रु सित, चखन पूतरी स्याम।प्यारी तेरे दृगन में, कियो तिहूँ गुण धाम॥
बैरीसाल
ल्याई लाल निहारिए
ल्याई लाल निहारिए, यह सुकुमारि विभाति।उचके कुच कच-भार तें, लचकि-लचकि कटि जाति॥
रामसहाय दास
रसना को रस ना मिलै
रसना को रस ना मिलै, अनत अहो रसखान।कान सुनैं नहिं आन गुन, नैन लखैं नहिं आन॥
श्रीधर पाठक
तरिवन-कनकु कपोल-दुति
तरिवन-कनकु कपोल-दुति, बिच बीच हीं बिकान।लाल लाल चमकति चुनीं, चौका-चिह्न-समान॥
बिहारी
किनहूं अंत न पाइयौ
किनहूं अंत न पाइयौ, अब पावै कहि कौन।सुन्दर आगें होहिंगे, थाकि रहे करि गौन॥