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बड़ कौतिक इक ए दिख्यों
बड़ कौतिक इक ए दिख्यों, रति आरति ही रूप।तामें होत प्रतीति सुख, निपुन रंक का भूप॥
दयाराम
मरदाने के कवित ए
मरदाने के कवित ए, कहिहैं क्यों मति-मन्द।बैठि जनाने पढ़त जे, नित नख-सिख के छंद॥
वियोगी हरि
ए तीनों बुध कहत हैं
ए तीनों बुध कहत हैं, श्रद्धा के अनुभाव।श्रद्धा संपति होय घर, तब बस्तु की चाव॥
रसिक अली
ई मन चंचल ई मन चोर
ई मन चंचल ई मन चोर, ई मन शुद्ध ठगहार।मन-मन करते सुर-नर मुनि जहँड़े, मन के लक्ष दुवार॥
कबीर
कौन सुने, कासौं कहाँ
कौन सुने, कासौं कहाँ, सुरति बिसारी नाह।बदा-बदी ज्यों लेत हैं, ए बदरा बदराह॥
बिहारी
औरै भाँति भएऽब
औरै भाँति भएऽब, ए चौसरु, चंदनु, चंदु।पति-बिनु अति पारतु बिपति, मारतु मारुतु मंदु॥
बिहारी
सकुचि न रहियै स्याम सुनि
सकुचि न रहियै स्याम सुनि, ए सतरौहैं बैन।देत रचौंहौं चित्त कहे, नेह-नैचौ हैं नैन॥
बिहारी
दादू हरदम मांहिं, दिवांन
दादू हरदम मांहि, दिवांन, सेज हमारी पीव है।देखौं सो सुबहांन, ए इसक हमारा जीव है॥