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सरल सरल तें होय हित
सरल सरल तें होय हित नहीं सरल अरु वंक।ज्यों सर सुधहि कुटिल धन, डारै दूर निसंक॥
दीनदयाल गिरि
सजल सरल घनस्याम अब
सजल सरल घनस्याम अब, दीजै रस बरसाय।जासों ब्रजभाषा-लता, हरी-भरी लहराय॥
सत्यनारायण कविरत्न
प्रीति जोरवी सरल पें
प्रीति जोरवी सरल पें, करियो कठिन निभाव।जैयबों जलधी पार परि, पेंठी कागद नाव॥
दयाराम
ब्रजदेवी के प्रेम की
ब्रजदेवी के प्रेम की, बँधी धुजा अति दूरि।ब्रह्मादिक बांछत रहैं, तिनके पद की धूरि॥
ध्रुवदास
कै सांई की बंदगी
कै सांई की बंदगी, कै सांई का ध्यांन।सुन्दर बंदा क्यों छिपै, बंदे सकल जिहांन॥
सुंदरदास
ज्यौं अमली की ऊंघतें
ज्यौं अमली की ऊंघतें, परी भूमि पर पाग।वह जानै यह और की, सुन्दर यौं भ्रम लाग॥
सुंदरदास
पद्मनाभ के नाभि की
पद्मनाभ के नाभि की, सुखमा सुठि सरसाय।निरखि भानुजा धार को, भ्रमि-भ्रमि भंवर भुलाय॥
रघुराजसिंह
इश्क उसी की झलक है
इश्क उसी की झलक है, ज्यौं सूरज की धूप।जहाँ इस्क तहँ आप हैं, क़ादिर नादिर रूप॥
नागरीदास
तूहूँ ब्रज की मुरलिया
तूहूँ ब्रज की मुरलिया, हमहूँ ब्रज की नारि।एक बास की कान करि, पढ़ि-पढ़ि मंत्र न मारि॥
नागरीदास
कै कृपाण की धार कै
कै कृपाण की धार कै, अनल-कुंड कौ ठाट।एही बीर-बधून के, द्वै अन्हान के घाट॥
वियोगी हरि
सुन्दर मानुषा देह की
सुन्दर मानुषा देह की, महिमा बरनहिं साथ।जामैं पइये परम गुरु, अविगति देव अगाध॥
सुंदरदास
लाल, तुम्हारे विरह की
लाल, तुम्हारे विरह की अगनि अनूप, अपार।सरसै बरसैं नीरहूँ, झरहूँ मिटै न झार॥