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भारत-भारती / वर्तमान खंड / साधु-संत
वे भूरि संख्यक साधु जिनके पंथ-भेद अनंत है—अवधूत, यति, नागा, उदासी, संत और महंत हैं।
मैथिलीशरण गुप्त
संत दिवाली नित करें
संत दिवाली नित करें, सतलोक के माहिं।और मते सब काल के, योहिं धूल उड़ाहिं॥
संत शिवदयाल सिंह
सतगुरु संत दया करी
सतगुरु संत दया करी, भेद बताया गूढ़।अब सुन जीव न चेतई, तौ जानौ अतिमूढ़॥
संत शिवदयाल सिंह
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संत दया सतगुरु मया
संत दया सतगुरु मया, पाया आद अनाद।गत मत कहते ना बने, सुरत भई विस्माद॥
संत शिवदयाल सिंह
संत मता सब से बड़ा
संत मता सब से बड़ा, यह निश्चय कर जान।सूफ़ी और वेदांती, दोनों नीचे मान॥
संत शिवदयाल सिंह
सोता मन कस जागे भाई
संत बिना सब भटके डोलें, बिना संत नहिं शब्द पिछान।शब्द-शब्द मैं शब्दहि गाऊँ, तू भी सूरत लगा दे तान॥
संत शिवदयाल सिंह
ऐसे संत बिबेकी होरी खेलै हो
ऐसे संत बिबेकी होरी खेलै हो, जाके गुरुमुख दृढ़ बिस्वास।स्रवन नैन रसना मिलो है, आतम राम के पास॥
संत केशवदास
निर्गुन नाम निधान
निझर झरत अमृत रस निरमल, पीवहिं संत सुजान॥द्वादस पदुम पदारथ, मुक्ता नाम कि खान।
संत केशवदास
निर्गुन नाम निधान
निझर झरत अमृत रस निरमल, पीवहिं संत सुजान॥द्वादस पदुम पदारथ, मुक्ता नाम की खान।
संत केशवदास
सोई निज संत जिन अंत आपा लियो
संत केशवदास
मुरलिया बाज रही
मुरलिया बाज रही कोइ सुने संत धर ध्यान।सो मुरली गुरु मोहिं सुवाई लगे प्रेम के बान॥
संत शिवदयाल सिंह
जिन सतगुरु के बचन की
जिन सतगुरु के बचन की, करी नहीं परतीत।नहि संगत करी संत की, वह रोवें सिर पीट॥