आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "alam granthavali ebooks"
अत्यधिक संबंधित परिणाम "alam granthavali ebooks"
सेजु सुखासन हेम हीर
अजहूँ सँभारि ‘आलम’ सुकबि जौ लौं अंतक नहिं अस्यो।पग डगमगोत हेरत हँसत, बिरह भुजंगम को डस्यो॥
आलम
अँखियाँ भली जु ऐसे अँसुवनि धारैं
‘आलम’ संताप स्वेद सींचिवो अधार कौ हूँ,झूरी ह्वै कै देह फिर खेह ज्यों उड़ाति है।
आलम
लता−प्रसुन डोल बोल कोकिला अलाप केकि
‘आलम’ रसाल बन, गान ताल काल सी,बिहंग बाय बेगि चालि चित्त लाज लुँज की।
आलम
दैहों दधि मधुर धरनि धर्यौ छोरि खैहै
‘आलम’ सुकबि मेरे ललन चलन सीखें,बलन की बाँह ब्रज गलिनि में डोलि हैं।
आलम
पृष्ठ के संबंधित परिणाम "alam granthavali ebooks"
अन्य परिणाम "alam granthavali ebooks"
पतियाँ पठाये अश्रुपात तौ भलै पै होत
‘आलम’ निरास बैन सुने कौन जोरै नैन,हिये को कठिन ऐसो कौन ब्रजबासी है।
आलम
रजनी बितई रति सौं सजनी
रजनी बितई रति सौं सजनी थिरकैं दृग द्वै तजि चंचलता।कबि ‘आलम’ आलस ही जलपै किलकैं कुच खीन भई कलता।
आलम
किंकिंन कंकन कान मिलै बर
आलम
सोर भयो जो सरीस बिषे
आइ गये अवताली दोऊ कच छाप लये सिर स्याम सुहाई।‘आलम’ लाल गुपाल की सौं सिरदार भई तन में तरुनाई॥
आलम
सीत रितु भीत भई छाती राती ताती तई
‘आलम’ अनिल इतराय कै कलिन मिलि,दीन्हो है कलेस सुधि आये दूनो दवैंगे।
आलम
अरविंद पुंज गुंज डोर भौंर ही व्रती हलोर
‘आलम’ कबित्त चित्त रास के विलास ते,प्रकाश वंदना करी बिलोकि बिस्व-बंदनी।
आलम
बेगि ब्रजराज तजि काज नेकु चलि तहाँ
‘आलम’ चकोर बिन चंद की चमक ऐसी,चकित व्है रहै नहीं आवै बात चैन की।
आलम
कोकिल किलक थानी सुनि सुनि सानि मानी,
‘आलम’ कहै हो पूरो पुन्य को सुहायो कोल,मुख की निकाई हेरि हिमकर हार्यो है।
आलम
तरनिजा तट बंसी-ृबट कुंज पुँज बीथी
‘आलम’ सुकबि कहै तन बीच कान्ह छबि,जोग दैन आये तुम कहा हम जोगी हैं।
आलम
अति आतुर चातुर कान्ह रमै
अति आतुर चातुर कान्ह रमै तन में रस रासि नई सँचरै।कवि ‘आलम’ बाम बिहार बढ़ै सजनी सिख चित्त सबै बिसरे।
आलम
रजनी मधि राधिका गौन कियो
रजनी मधि राधिका गौन कियो निरखी अँखियाँ पति प्रेम भरी।कवि ‘आलम’ रंभन को ललचो रति लालच लै हिय लाई हरी।
आलम
जीउ है जानतु जेजे अनदेखें दुख होत
‘आलम’ कहै हो प्यारे, काहू की तो पीर बूझो,दूर ही तें बदन दिखैबो कीजै अब तें।
आलम
भली कीनी भावते जू पावँ धारे यहि खोरि
‘आलम’ कहै हो चख चाहि चितु चोरि लीनो,नीकी चतुराई कीनी भले जु चतुर हौ।
आलम
वारै तें न पलक लगत बिनु साँवरे ते
‘आलम’ बिहात छिन जानो जात कोटि दिन,कौन रैन की समाई सुरति न नैस हैं।