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पूरब पुन्न भये परगट

purab punn bhaye pargat

पलटू

पलटू

पूरब पुन्न भये परगट

पलटू

पूरब पुन्न भये परगट, सतसंग के बीच में जाय परी।

आनंद भयो जब संत मिले, वही सुभ दिन वहि सुभ घरी॥

दरसन करत त्रयताप मिटे, बिनु कौड़ी दाम मैं जाय तरी।

पलटू आवागवन छुटा, रज चरनन की जब सीस धरी॥

मेरे पूर्व जन्मों के शुभ संस्कार उदय हुए, जिनके ज़ोर से मैं विवेकवान संतों के सत्संग में लग गया। जब संत मिले, तब उनके ज्ञान से मन के सारे दुख मिटकर अखंड आनंद छा गया; अतएव संत-मिलन के दिन और घड़ी ही शुभ हैं। संतों के दर्शन करने से मेरे तीनों ताप मिट गए और बिना कौड़ी तथा बिना दाम दिए, मैं दुख से पार हो गया। पलटू साहेब कहते हैं कि जब मैंने संतों की चरण-रज सिर पर रखी और उनमें आत्मबोध पाया, तो भवसागर से मुक्त हो गया।

स्रोत :
  • पुस्तक : पलटू साहेब की बानी (पृष्ठ 285)
  • संपादक : अभिलाषा दास
  • रचनाकार : पलटू
  • प्रकाशन : कबीर आश्रम, कबीर नगर, इलाहाबाद
  • संस्करण : 2012

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