मजबूतिपनौ रखनो मन में
majbutipnau rakhno man mein
मजबूतिपनौ रखनो मन में, दुख दीनपनौ दरसावनो ना।
बहनो कुल रीति सुमारग में, हरि से हियँ हेत हटावनो ना॥
'चिमनेश' हँसी खुशी बोलन में बिन स्वारथ बैर बढ़ावनो ना।
जग जेती भलाई बनै सो करो मरजावनो है फिर आवनो ना॥
(मुसीबत) में भी अपने हृदय को मजबूत रखना चाहिए। चाहे कितनी ही विपत्तियाँ आ जाएँ, किसी के सामने अपनी निर्बलता का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। परमात्मा को अपने मन में याद करते हुए हमेशा कुल की निर्धारित रीति पर चलना चाहिए। कवि चिमनेश कहते हैं कि सबसे प्रेम-पूर्वक व्यवहार करते हुए रहना चाहिए और बिना किसी ठोस कारण (क्षुद्र स्वार्थ के हित) किसी भी व्यक्ति से दुश्मनी नहीं करनी चाहिए। इस संसार में जब तक जी रहे हो, संभव हो उतनी भलाई करते रहो, क्योंकि अंत में सबको मर ही जाना है।
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 622)
- संपादक : महालचंद बयेद
- रचनाकार : चिमनेश
- प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
- संस्करण : 1937
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