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किया पट कर्म, तन दया नहिं

kiya pat karm, tan daya nahin

धरनीदास

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किया पट कर्म, तन दया नहिं

धरनीदास

और अधिकधरनीदास

    किया पट कर्म, तन दया नहिं धर्म, तजो नहिं भर्म, किमि कर्म छूटै।

    दियो बहु दान, करि विविध विधान, मन बढ़ो अभिमान जम प्रान लूटै॥

    जग्य अरु जोग, तप तीरथ व्रत नेम करि, बिना प्रभु-प्रेम, कलि काल कूटै।

    दास धरनी कहै, कौन विधि निर्बहै, जबै गुरुज्ञान तब गगन फूटै॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : धरनीदास की बानी (पृष्ठ 30)
    • रचनाकार : धरनीदास
    • प्रकाशन : वेलवेडियर छापाखाना इलाहाबाद
    • संस्करण : 1931

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