तुम चंदन हम इरंड बापुरे
tum chandan hum iranD bapure
तुम चंदन हम इरंड बापुरे, सांगि तुमारे बासा।
नीच रुख ते ऊँच भए हैं, गंध सुगंध निवासा॥
माधउ सतसंगति सरने तुमारी, हम अउगुन तुम्ह उपकारी॥रहाउ॥
तुम मखतूल सुपेद सपीअल, हम बपुरे जस कीरा।
सतसंगति मिलि रहीऐ माधउ, जैसे मधुप मखीरा॥
जाती ओछा पाती ओछा, ओछा जनम हमारा।
राजा राम की सेव न कीनी, कहि रैदास चमारा॥
हे संतो! तुम चंदन हो और मैं बेचारा अरंड का वृक्ष! किंतु तुम्हारी संगति में वास करते हुए नीच वृक्ष से ऊँचा सुगंधित वृक्ष हो गया हूँ। हे माध्व! मैं तो संतों की संगति में हूँ। मैं अवगुणी हूँ और तुम उपकार करने वाले हो। तुम श्वेत मुलायम रेशम के समान हो जबकि मैं काले पत्थर के तुल्य हूँ। इसलिए मधु से चिपटी मक्खियों के समान मैं निरंतर सत्संगति में रहता हूँ। रैदास कहते हैं, मेरी जाति−पाँति तो ओछी है ही, किंतु यदि इतने पर भी मैंने प्रभु राम की सेवा नहीं की तो मेरा जन्म भी ओछा है।
- पुस्तक : रैदास ग्रंथावली (पृष्ठ 194)
- प्रकाशन : साहित्य संस्थान
- संस्करण : 2011
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