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ससुरवाँ पंथ कैसे जाब हो

sasurwan panth kaise jab ho

संत गुलाल

संत गुलाल

ससुरवाँ पंथ कैसे जाब हो

संत गुलाल

और अधिकसंत गुलाल

    ससुरवाँ पंथ कैसे जाब हो, नेहर अति बड़ कूर॥टेक॥

    काम जानों गुन नहिं आवे करब कवन हम ज्ञान।

    संगहिं सवति सोहागिन हमरी कैसे रहहि अब मान॥

    सासु ननद घरु दारुन भइलीं पियवा नाहिं हमार।

    गाँव के लोगवा लइया लावे ससुरे मिलली भतार॥

    का से कहों दुख कौन सुने अब निसु दिन डहत अंगार।

    धन जोबन दूनों हम खोवल पिया नहिं अयलें हमार॥

    नेम धरम कइकै मन लावल करम बुड़ल संसार।

    कहैं गुलाल अगमपुर बासी नैहर छुटल हमार॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : गुलाल साहेब की बानी (पृष्ठ 55)
    • रचनाकार : गुलाल
    • प्रकाशन : बेलवेडियर प्रेस, प्रयाग
    • संस्करण : 1932

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