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ऐसा मरण मरो संत भाई

aisa mar.n maro sa.nt bhaa.ii

संत सिंगा

संत सिंगा

ऐसा मरण मरो संत भाई

संत सिंगा

और अधिकसंत सिंगा

    ऐसा मरण मरो संत भाई भवरी जलम नहीं धरणा रे॥

    अगले होयंगे आग का पूला आपण होगा पाणी रे।

    जाणे आगु आजाण होणा तत्व लेना छाणी रे॥

    नद्दी नाला मेल भयो है जब दरियाव कव्हाणा रे।

    गंगा जल की मोटी महिमा देस देस बिकाणा रे॥

    अठारह वरण की गौआ दुहाई एक बरतन मु रखणा रे।

    दही मथी माखन कीना बरतण को क्या करणा रे॥

    साधु संत से अधीन रहणा उपाव कभी करणा रे।

    कहे जण ‘सिंघा’ सुणो भाई साधु, साधु सदा दीवाणा रे॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : निमाड़ के संतकवि सिंगाजी (पृष्ठ 37)
    • संपादक : रमेशचंद्र गंगराड़े
    • रचनाकार : संत सिंगाजी
    • प्रकाशन : हिंदी साहित्य भंडार, लखनऊ
    • संस्करण : 1966

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