राना मगन होय जस गावै
rana magan hoy jas gaavai
राना मगन होय जस गावै।
तिरलोकी रो नाथ जिणारो, छेह भला कुण पावै।
आपो आप हुवे वो परगट, समंद लहर लहरावै॥
निराकार, साकार, सगुण, निर्गुण, जिणनै बतलावै।
भगत बछल बांध्यो बंध ज्यावै, आपे आप नवावे॥
ध्यानी ग्यानी संत मुनिजन, वेद पुराणां गावै।
सूरज री किरण्या में झांके, तेज चतुर कोई पावै॥
जो है जनम मरण सूं अलगो, कथना में नहीं आवै।
राम रूप दशरथ घर खेल्यो, किसन बिरज नै भावै॥
जग को बीज, बीज अण बीज्यो, अण बींन्ध्यो बतलावै।
सतगुरु 'खोजी' चाकर 'राना', बंवरा में बतलावै॥
ठाकुर गोपीनाथ दया कर, परसराम दरसावै।
गोपी ग्वाल बिरज में ‘राना', जै जै लाड लडावे॥
- पुस्तक : जाटों की गौरव गाथा (पृष्ठ 48)
- रचनाकार : रानाबाई
- प्रकाशन : राजस्थानी ग्रंथागार
- संस्करण : 2016
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