पाती आई मोरे पीतम की
pati i more pitam ki
पाती आई मोरे पीतम की, साईं तुरत बुलायो हो।
इक अँधियारी कोठरी, दूजे दिया न बाती।
बाँह पकरि जम ले चले, कोइ संग न साथी॥
सावन की अँधियरिया, भादों निज राती।
चौमुख पवन झकोरही, धड़कै मोरि छाती॥
चलन तो हमैं जरूर है, रहना यहाँ नाहीं।
का लैके मिलब हज़ूर से, गाँठी कछु नाहीं॥
पलटु दास जग आय के, नैनन भरि रोया।
जीवन जनम गँवाय के, आपै से खोया॥
मेरे प्रियतम का पत्र आया है, स्वामी ने तुरंत बुलाया है। क़ब्र की एक अँधियारी कोठरी होगी, उसमें कोई प्रकाश नहीं होगा। मौत बाँह पकड़कर ले चली, उससे छुड़ाने वाला मेरा कोई संगी-साथी नहीं दिखा! मौत ने क़ब्र में डाल दिया। सावन-भादौं की काली घटा की घोर अँधियारी की तरह मेरी रात होगी। चारों तरफ़ से झंझावात के झकोर में पड़े हुए के समान मैं वासना के झोंके में पड़ा डोल रहा हूँ। इससे मेरा हृदय धड़क रहा है। मुझे इस संसार से अवश्य चलना है। यहाँ मुझे रहना नहीं है। मेरे पास आत्मबोध तथा आत्मशुद्धि का बल नहीं है, फिर मैं किस बल पर भवबंधन के नियम रूपी हाकिम से बचूँगा। पलटू साहेब कहते हैं कि संसार में आकर मनुष्य जीवनपर्यंत केवल रोता है। यह अपने आपको न समझकर जीवन-जन्म को माया-मोह में डालकर खो देता है।
- पुस्तक : पलटू साहेब की बानी (पृष्ठ 403)
- संपादक : अभिलाषा दास
- रचनाकार : पलटू
- प्रकाशन : कबीर आश्रम, कबीर नगर, इलाहाबाद
- संस्करण : 2012
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