हरि चरणन बिन ठौड़ कठे
hari charnan bin thauD kathe
हरि चरणन बिन ठौड़ कठे।
चरण पांवड्यां मस्तक धारी, भरत तपस्या करी जठै॥
बसुदेव लियां जाय लाल ने, जमना करतब को बठै॥
नार अहल्या तिरी म्हा जाणी, जोत जीव पारवाण हटै।
ब्रह्मा गाई मैमां ज्यांरी, वेद पुराणां सभी रटै॥
जुग त्यारण गंगा में न्हायां, जनम-जनम रा पाप कटै।
'राना' इण चरणां में रमगी, म्हारे ज्यारो पटो पटै॥
- पुस्तक : जाटों की गौरव गाथा (पृष्ठ 50)
- रचनाकार : रानाबाई
- प्रकाशन : राजस्थानी ग्रंथागार
- संस्करण : 2016
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