गेबी अजब अचंभा देखा
gebi ajab achambha dekha mukh se kahun to kayo na jaay
संत लाधूनाथ
Sant Ladhunath
गेबी अजब अचंभा देखा
gebi ajab achambha dekha mukh se kahun to kayo na jaay
Sant Ladhunath
संत लाधूनाथ
और अधिकसंत लाधूनाथ
गेबी अजब अचंभा देखा मुख से कहूँ तो कयो न जाय।
तीन लोक ने कीड़ी गिटगी मुख उदर तो उनके नाँय॥
सूतो बटाउड़ो नींदरा जागे जल बिच अग्नि लागी लाय।
बकरी पकड़ कसाई ने मारे छुन्न-छुन्न करके माँस बिकाय॥
हड्डियाँ जलगी चूल्हों सीजे घर धणी ने खावे धान।
घड़ो बरसे कुवो भरीजे धिन्न जोगाँ रो पूरो ज्ञान॥
जले काँधिया मुड़दो जीवे जमड़े के शिर लागी मार।
शूरवाँ भागे कायर जूझे बिना फौज बावे तरवार॥
मुसलमान घर सूर मारियो हिंदू के घर मारी गाय।
धरमीड़ा नरकां में गिरगा पापी नर बैकुंटाँ जाय॥
लाधूनाथ बोलिया जोगी नानकनाथ जी खोज बताय।
ऊँचा मूल तले को डाला फल लागा पियाँला माँय॥
लाधूनाथ छुडावण चाला गऊ बनी के सिंग ने खाय।
सर्प कूं मूसो खा बैठो हस्ती कूं कीड़ी खा जाय॥
पुरुष ऊपर माचो सूतो ऊभोड़े ने आवे नींद।
माता तो पटराणी बणगी पुत्र जायो सो बणियो बींद॥
पर्वत कूं माखी ले उड़गी तीन लोक से ऊपर जाय।
बिना डंका वहाँ ढोल घूरत है बिना भोमी का नगर बसाय॥
धरती को जल गिगना छायो नदियाँ उल्ट अकाशा आय।
कुवे की जोत अगम जा लागी धिन्न जोगी के आई दाय॥
सातू समंदर सूखा पड़िया सब नदियाँ मछली पी जाय।
लाधूनाथ बोलिया जोगी नानकनाथ जी खोज बताय॥
- पुस्तक : लाधूनाथ वाणी प्रकाश (पृष्ठ 335)
- रचनाकार : संत लाधूनाथ
- प्रकाशन : महन्त श्री गणेश नाथ जी
- संस्करण : 2001
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