बंदे जान साहब सार वे
bande jaan sahab sar we
बंदे जान साहब सार वे।
पिदर मादर आप कादर नहीं बुल परिवार वे॥
जल बूँद से जिन साज साजा लहम दरिया नूर वे।
है सकल सरबंग साहब देख निकट न दूर वे॥
जिंद अजूनी बेनमूनो जागता गुरु पीर है।
उलट पटन मेरु चढ़ना लहम दरिया तीर वे॥
अजब साहब है सुभान खोज दम का कीन वे।
तिर्कुटी के घाट चढ़कर ध्यान धर दुरबीन वे॥
अजब दरिया है हिरंवर परम हंस पिछान वे।
आब ख़ाक न बाद आतिस ना जमीं असमान वे॥
अलख आप अलाह साहब कुर्स कुंज ज़हूर वे।
अर्स ऊपर महल मालिक दर झिलमिला दूर वे॥
मौला करीम अदाय खूंबी घुन सोहंसी जाप वे।
बांग रोज निमाज कलमा है सबद गरगाप वे॥
निर्भय निहंगम नाद बाजै निरख कर टुक देख वे।
अरसी अजूनी जिंद जोगी अलख आदि अलेख वे॥
मर्ढी महल न तासु ये आसन अचंभो ऐन वे।
पाजी ग़ुलाम ग़रीब तेरा देखता सुख चैन वे॥
- पुस्तक : हिंदी संतकाव्य-संग्रह (पृष्ठ 316)
- संपादक : गणेशप्रसाद द्विवेदी
- रचनाकार : ग़रीबदास
- प्रकाशन : हिंदुस्तानी एकेडेमी
- संस्करण : 1952
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