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अरी मैं तो नाम के रंग छकी

ari main to nam ke rang chhaki

संत जगजीवन

संत जगजीवन

अरी मैं तो नाम के रंग छकी

संत जगजीवन

और अधिकसंत जगजीवन

    अरी मैं तो नाम के रंग छकी॥

    जब तें चाख्यो बिमल प्रेम रस, तब तैं कछु सोहाई।

    रैनि दिना धुनि लागि रही, कोउ केतौ कहि समुझाई॥

    नाम पियाला घोंटि के, कछु और मोहिं चही।

    जब डोरी लागी नाम की, तब केहि कै कानि रही॥

    जो यहि रंग में मस्त रहत है, तेहि कै सुधि हरना।

    गगन मंदिल दृढ़ डोरि लगावहु, जाइ रहौ सरना॥

    निर्भय ह्वै कै बैठि रहौ अब, माँगौ यह बार सोई।

    जगजीवन बिनती यह मोरी, फिरी आवन नहिं होई॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : जगजीवन साहब की बानी, दूसरा भाग (पृष्ठ 9)
    • रचनाकार : जगजीवन साहब
    • प्रकाशन : बेलवेडरी स्टीम प्रिंटिंग वर्क्स, इलाहाबाद
    • संस्करण : 1909

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