अनुभव अनहद करै बिचारा
anubhaw anhad karai bichara
अनुभव अनहद करै बिचारा। सूझि परै तब उतरै पारा॥
सूझै तीनि लोक ते न्यारा। पुर्ख पुरान निजु प्रेम अधारा।
अभै लोक जहां भय के नासा। जुग जुग अंमर करै बिलासा॥
सुरति बांधि चेतनि जब ठानै। पहुंचे सो जो मन के जानै।
मूल सब्द तहां लै पहुंचावै। जो कोइ सतगुर होए लखावै॥
अनहद शब्द का अनुभव होने पर जीव संसार-सागर से पार उतर जाता है। इसके द्वारा उस सत्पुरुष का प्रत्यक्ष अनुभव होता है जो सदा से विद्यमान है, जो हमारी आत्मा के प्रेम का आधार है तथा तीनों लोकों से भिन्न है। जीव उस अभय-लोक में पहुँच जाता है जहाँ काल का भय नहीं रहता और फिर वह अनंत युगों तक अमरत्व का जीवन जीते हुए आनंद प्राप्त करता है। वहाँ केवल वही पहुँच सकता है जो अपनी सुरत को एकाग्र करके, चेतना को जाग्रत कर लेता है तथा अपने मन को पहचान लेता है। केवल पूरा सतगुरु ही इस मार्ग का भेद बता सकता है तथा जीव को परमात्मा के उस धाम तक पहुँचा सकता है जहाँ से वह शब्द-धुन उठ रही है।
- पुस्तक : संत दरिया (बिहार वाले) (पृष्ठ 210)
- संपादक : काशीनाथ उपाध्याय
- रचनाकार : संत दरिया (बिहार वाले)
- प्रकाशन : राधास्वामी सत्संग ब्यास, पंजाब
- संस्करण : 2016
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