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पंचपंडव चरित रासु (ठवणि १३)

panchpanDaw charit rasu (thawani १३)

शालिभद्र सूरि

शालिभद्र सूरि

पंचपंडव चरित रासु (ठवणि १३)

शालिभद्र सूरि

और अधिकशालिभद्र सूरि

    थापीऊ पंडव राजि कन्हडु उत्सवु अति करए

    कूणबिहिं देविं गंधारिं धयरठू राऊ मनावीऊ ए।

    हरीयला दूपदिं देविं इकू दिंणू नारद परिभवि

    बेह रहइं कन्हु जाएबिं सुद्रह मांहि वाटडी ए।

    आणीय धानुकी पंडि देवीय अरिं वसिं घालीया

    पहुतला पासिं गंगेय जय तणी सांभलइं वातडी ए।

    ऊपनुं केवलनाणु सामीय नेनि जिणेसरहं

    सांभली सामि वखाणु विरता सवयव्रतु धरइं ए।

    वरतीय देसि अमारि नासिक जाईऊ जिणू नमइं

    दिणि दिणि दीजइं दाव पूजीयं जिण भूयण ऊपनऊ ए।

    ऊपनऊ भवह वइरागु बेटऊ पीरीयखिं पाटिं प्रतीठिंऊ ए।

    सामीय गणहर पासि पांचह हरिखिहि व्रतू लिइं ए।

    सांभली बलिभदि वात नियभवू पूठए पूछइं प्रभु कन्ह ए।

    बोलइ गुरू धर्मघोषु “पुवभवि पांच कूणबीय ए।

    वसइं ति अचलह गामिं बंधव पांच भाविया

    सूरईऊ संतुन देवु सुमतिऊ सुभद्रउ सूचांमु ए।

    सुगुरू यशोधर पासिं हरिखिहिं पांच व्रतु धरए

    कणगावलिं तपु एकु बीजऊ करइ रयणावली ए।

    मुकतावलिं तपु सारू चऊथऊ सिहनिकीलिऊ

    पांचभु आंबिंलवर्धमानु तपु तपी अणूत्तर्रि सवि गिया

    चवीयला तुम्हि हूआ पंचइ भर्वि सिवपुरि पार्मिसऊ

    सांभली नेमिनिरवाणु चारण सवणह सूणि वयणि

    सेत्रुजि तीथि चडेवि पांचह पांडव सिद्धि गिया

    पंडव तणऊ चरीतू जो पढ़ए जो गुणइ संभलए

    पाप तणऊ विण तसासु रहइं हेलां होइसि

    नीपनऊ नयरि नादऊदि बच्छरी चऊददहोत्तर

    तंदुलवेयालीयसूत्र माझिला भव अम्हि ऊधर्या

    पुनिमपखभुणिंद सालिभद सूरिहिं नींमीऊ ए।

    देवचन्द्रऊपरोधि पंडव राक्षु रसाऊलु ए॥

    ॥इति पंचपांडवचरित्ररासः समाप्त॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 120)
    • संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
    • रचनाकार : शालिभद्र सूरि
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
    • संस्करण : 1976

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