भरतेश्वर बाहुबली रास (ठवणि)
bharteshwar bahubli ras (thawani)
रिसह जिणेसर पय पणमेवी, सरसति सामिणी मनि समरेवि,
नमवि निरन्तर गुरू-चरण।।१।।
भरह नरिंदह तणुं चरित्तो, जं जुगी वसहां-वलय वदीतो,
वार वरिष बिहुँ बंधवहं।।२।।
हुँ हिव पभणिसु रासह छंदिहिं, तं जन मनहर मन आणंदिहि,
भाविहिं भवीयण संभलेउ।।३।।
जंबुदीवि उवझाउरि नयरो, धणि कणि कंचणि रयणिंहि पवरो,
अवर पवर किरि अमर परो।।४।।
करइ राज तहिं रिसह जिणेसर, पाव तिमिर मय-हरण दिणेसर,
तेजि तरणि कर तहिं तपइये।।५।।
नामि सुनंद सुमंगल देवि, राय रिसहेसर राणी बेवि,
रूवरेहि रति प्रीति जिन।।६।।
बिवि बेटी जनमी सुनंदन, तेह जि तिहूयण मन आनन्दन,
भरह सुमंगल देवि तणु।।७।।
देवि सुनंदन नंदन बाहूबलि, भंजइ भिउड महाभड भूयबलि,
अवर कुमर वर वीर धर।।८।।
पूवर लाख तेणि तेयासी, राजतणीं परि पुहवि पयासी,
जुग जुग मारग दाखीउ ए।।९।।
उवझापुरि भरहेसर थापीय, तक्षशिला बाहूबलि आपीय,
अवर अठाणुं वर नयर।।१०।।
दान दियइ जिणवर संवत्सर, विसय विरत्त वहइ संजमभर,
सुर असुरा नरि सेवीइए।।११।।
परमताल पुरि केवल नाणुं, तस ऊपन्नूं प्रगट प्रमाणूं,
जाण हवुं भरहेसरहं।।१२।।
तिणि दिणि आउधसालंह चक्को, आवीय अरोपण पड़ीय ध्रसहो
भरह विमासइ गहगहीउ।।१३।।
धनु-धनु हुं घर मंडलि राउ, आज पढम जिणवर मुझ ताउ,
केवल लच्छि अलंकीयउ।।१४।।
पहिलुं ताय पाय पणमेसो, राज रिद्धि राणिमा फल लेसो,
चक्करयण तव अणसरउं।।१५।।
वस्तु---चलीय गयवर चलीय गयवर, गडीय गज्जंत
हूं पत्तउ रोसभरि, हिण-हिणंत हय थट्ट हल्लीय
रह भय भरि टल टलीय मेरू, सेसुमणि मउड खिल्लीय
सिउं-मरूदेविहिं संचरीय, कुंजरी चडिउ नरिंद।
समोसरणि सुखरि सहिय, वदिय पढ़म जिणंद।।
पढ़म जिणवर पढ़म जिणवर, पाय पणमेवि,
आणंदिहिं उच्छव करीय, चक्करयण बलि वलिय पुज्जइ
गडयडंत गजकेसरीय, गरूय नद्दि गजमेह गज्जइ
बहिरीय अम्बर तूर रवि, वलिउ नीसाणे घाउ
रोमंचिय रिउ रायवरि, सिरि भरहेसर राउ।।१७।।
- पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 3)
- संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
- रचनाकार : शालिभद्र सूरि
- प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
- संस्करण : 1976
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