भरतेश्वर बाहुबली रास (ठवणि ११)
bharteshwar bahubli ras (thawani ११)
चलीय दूत भरहेसरहं तेय वात जणावइ
कोपानलि परजलीय वीर साहण पलणावइ
लागी य लागि निनादि वादि आरति असवार
बाहुबलि रणि रहिउ रोसि मांडिउ तिणिवार।।१३९।।
ऊड कंडोरण रणंत सर बेसर फूटइं
अंतरालि आवइं ई याण तीहं अंत अखूटइं
राउत राउति योध-थोधि पायक पायक्किहिं
रहवर रहवरि वीर वारि नायक नायक्किइं।।१४०।।
वेढिक विढइं विरामि सामि नामिहिं नरनरीया
मारइं मुरडीय मूंछ-मेच्छ मनि मच्छर भरीया
ससइं मसइं धसमसइं, वीर धड वड नरि नाचइं
राषस रीरा रव करंति रूहिरे सवि राचइं।।१४१।।
चांपीय चुरइं नरकरोडि भुयबलि भय भिरडइं
विण हथीयार कि वार एक दांतिहिं दल करडइं
चालइं चालि चम्माल चाल करमाल ति ताकइं
पडइं चिध झूझइं कबन्ध सिरि समहरि हाकइं।।१४२।।
रूहिर रल्लितहिं तरइं तुरंग गय गुडीय अमूझइ
राउत रण रसि रहित बुद्धि समरंगणि सूझइं
पहिलइ दिणि इम झूझ हवुं सेनह मुख मंडण
संध्या समइ ति वारणुं ए करइं भट बिहुं रण।।१४३।।
- पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 15)
- संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
- रचनाकार : शालिभद्र सूरि
- प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
- संस्करण : 1976
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