नारायण वामन तिलक के उद्धरण

हे आर्यमाता! हे पृथ्वी देवी! तुम्हें प्रणाम करता हूँ। हे मंदस्मित हास्यवदन, चारुयामिनी, विकसित-नवकुसुम-मृदुल-दाम-शोभिनी, तुम्हारे चरणों की निरंतर जय हो, जय हो, जय हो। हे माँ। तुम धर्म हो, तुम मर्म हो, तुम यश और बल हो।
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