हरिशंकर परसाई का परिचय
जन्म : 01/08/1924 | होशंगाबाद, मध्य प्रदेश
निधन : 01/08/1995
हरिशंकर परसाई का जन्म सन् 1922 में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद ज़िले के जमानी गाँव में हुआ। उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से एम.ए. करने के बाद कुछ समय अध्यापन-कार्य किया, फिर स्वतंत्र लेखन करने लगे। उन्होंने जबलपुर से ‘वसुधा’ पत्रिका निकाली, जिसका हिंदी जगत में व्यापक स्वागत हुआ।
परसाई का लेखन व्यंग्य को एक साहित्यिक विधा के रूप में स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ। सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक विसंगतियों पर आधारित उनके लेखन ने व्यंग्य साहित्य की दिशा और मानकों को नया स्वरूप प्रदान किया। उन्होंने साहित्यिक व्यंग्य को इसकी पारंपरिक सीमाओं से निकालकर गंभीर सामाजिक मुद्दों से जोड़ा। समाज में व्याप्त पाखंड, भ्रष्टाचार और बेईमानी जैसे मुद्दों पर परसाई के व्यंग्य लेख साहित्य को एक प्रखर सामाजिक माध्यम के रूप में प्रस्तुत करते हैं। उनके व्यंग्य केवल हास्य उत्पन्न नहीं करते, बल्कि विसंगतियों के विरुद्ध चेतना जागृत करते हैं। उनकी विविध रचनाएँ बदलाव की भावना को जन्म देती हैं और आदर्श मूल्यों की स्थापना का प्रस्ताव करती हैं।
बतौर लेखक और नागरिक, हरिशंकर परसाई भारतीय समाज के सजग प्रहरी थे—ऐसे प्रहरी, जो लगातार जागते रहे और समाज को जगाते रहे। उनकी रचनाओं का मूल आधार समाज-संलग्न संवेदनशीलता और व्यथा है। हरिशंकर परसाई का लेखन साहित्यिक मंडलियों के लिए नहीं था, बल्कि आम पाठक वर्ग से संबोधित होता था। उन्होंने केवल साहित्यिक चर्चाओं तक अपने लेखन को सीमित नहीं रखा, बल्कि समाज की गहराइयों में जाकर ग़रीबी, असमानता और विसंगतियों को उजागर किया। वह समाज में व्याप्त भ्रम और अंधविश्वास को तोड़ने के लिए अपने लेखन में साहसिक प्रहार करते रहे। उनकी संवेदनशीलता सामाजिक चिंतन की पृष्ठभूमि पर टिकी थी। परसाई का व्यक्तित्व एक गंभीर विचारक का रहा था। सामाजिक संदर्भों के ज्ञान और सहज भाषा शैली ने उनके निबंधों को अद्वितीय बना दिया। उनकी भाषा और विषयवस्तु में अद्भुत सामंजस्य है, जो उनकी रचनाओं को प्रभावशाली बनाता है।
एक स्तंभ लेखक के रूप में समय और समाज पर परसाई की गहरी नज़र तत्कालीन संवेदना को तो आकार देती ही रही, बदलते दौर के साथ समसामयिक विमर्श में भी मूल्यवान बनी रही है। सोशल मीडिया के नए युग में भी वह सबसे लोकप्रिय और उद्धृत किए जाते हिंदी लेखकों में शामिल हैं।
बक़ौल कमला प्रसाद, “जनभाषा में एक कवि कबीर है, जिसने राह के बटमारों की गतिविधियों को ख़ूब पहचाना। उसने जासूसी की। कपट को पारदर्शी आँखों से चीरने का काम उसने जीवनपर्यंत किया। ऐसा ही दूसरा लेखक उसकी बिरादरी में हुआ परसाई।”
हरिशंकर परसाई ने व्यंग्य-लेख और निबंध के साथ ही कहानी, उपन्यास, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज आदि विधाओं में भी योगदान किया है और इन विधाओं में भी चिह्नित किए जाते हैं। उन्हें उनकी कृति ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ के लिए साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
प्रमुख कृतियाँ :-
निबंध-संग्रह :- तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमानी की परत, पगडंडियों का ज़माना, शिकायत मुझे भी है, सदाचार का तावीज़, और अंत में, प्रेमचंद के फटे जूते, माटी कहे कुम्हार से, काग भगोड़ा।
कहानी-संग्रह :- हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव, दो नाक वाले लोग
उपन्यास :- रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज, ज्वाला और जल।
व्यंग्य-लेख संग्रह :- वैष्णव की फिसलन, ठिठुरता हुआ गणतंत्र, विकलांग श्रद्धा का दौरा।
संस्मरण :- तिरछी रेखाएँ।
इसके अतिरिक्त, ‘परसाई रचनावली’ के छह खंडों में उनके समग्र साहित्य का संकलन किया गया है।