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केलि-विलास (शरद)

keli wilas (sharad)

चंदबरदाई

चंदबरदाई

केलि-विलास (शरद)

चंदबरदाई

और अधिकचंदबरदाई

    पित्ते पुत्त सनेह गेह भुगता युक्तानि दिव्या दिने।

    राजा छत्रनि साजि राजि षितया नंदाननब्भासने।

    कुसमे कातिक चंद निम्मल कला दीपांनि वर दायते।

    मां मुक्कइ पिय बाल नाल समया सरदाय दरदायते।

    जो पिता-पुत्रादि के स्नेह और घर का भोग कर रही है, और जो युक्ता (संयोगिनी) है, उसके लिए दिन दिव्य है। राजागण छत्रों को साजकर अपनी क्षिति पर शोभित होकर आनंद युक्त मुखों से शोभित हो रहे हैं। कुसुम और चंद्रमा की कलाएँ कार्त्तिक में निर्मल हो गई हैं और दीप वरदायी हो रहे है—दीप-दान से लोग वांछित फल प्राप्त कर रहे हैं। हे प्रिय, यौवना को कमल नाल निकलने के समय में अकेला मत छोड़ क्योंकि शरद का दल दिखाई पड़ रहा है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पृथ्वीराज रासउ (पृष्ठ 248)
    • रचनाकार : चंदबरदाई
    • प्रकाशन : साहित्य-सदन चिरगाँव (झाँसी)
    • संस्करण : 1963

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