कुंजन मधि रच्यौ रास
kunjan madhi rachyau ras
कुंजन मधि रच्यौ रास, अद्भुत गति लियैं गोपाल,
कुंडल की झलक देख, कोटि मदन ठटक्यौ।
अधर तौ सुरंग रंग, बाँसुरी सुहात संग,
टेढ़ी छबि देख-देख मेरौ मन अटक्यौ॥
एरी अब देखौ जाय, ऐसे सौं कहा बसाय,
अलकन की गति निरख, सेषनाग सटक्यौ।
निरतत संगीत री, तत-तत-थेई, तत-तत-थेई,
त्रिभंगि अंगि रंगी चाल देख, इंद्र-धनुष पटक्यौ॥
रुनक-झुनक नूपुर ठुनक, रुनझुन-रुन-झनन-ननन,
सनन-ननन बंसी बाजै, मंद मुख सौं मटक्यौ।
रति-विलास सुख की रास भनत 'बैजू' गोपाल,
यह सरूप दरस-परस वृंदावन कौं सटक्यौ॥
- पुस्तक : बैजू और गोपाल (पृष्ठ 72)
- संपादक : प्रभुदयाल मीतल
- रचनाकार : बैजू
- प्रकाशन : साहित्य संस्थान मथुरा
- संस्करण : 1960
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